लालची मानव : नागा लोक-कथा
Lalchi Manav : Naga Folktale
('अंगामी' नागा कथा)
प्राचीन काल की बात है एक लालची मानव खेत पर काम करने जा रहा था। रास्ते में उसे एक चुहिया दिखाई दी। उसने चुहिया को पकड़ कर अपने बक्से में बन्द कर दिया। घर पहुँच कर रात में जब उसने बक्सा खोला तो यह देखकर चकित रह गया कि चुहिया तो अति सुन्दर कन्या में बदल गई। उस सुन्दरी को देखकर उसके मन का लालच जाग उठा, उसने सोचा, 'यदि मैं इसका विवाह विश्व के सबसे शक्तिशाली पुरुष से कर दूँ तो मैं भी धनी हो जाऊँगा।' ऐसा सोचकर उसने सुन्दर कन्या को साथ लिया, और महानतम पुरुष की खोज में चल दिया।
खोजते खोजते सबसे पहले वह विश्व के प्रसिद्ध शासक राजा के पास पहुँचा। उसने राजा से विनती करते हुए कहा, 'महाराज, मैं अपनी अतिसुन्दर कन्या का विवाह विश्व के महानतम पुरुष से करना चाहता हूँ, जो कि आप हैं, इसे स्वीकार करें।'
राजा ने विनम्रता से उत्तर दिया, 'मुझे तुम्हारी कन्या से विवाह करके प्रस्न्नता होती, पर तुमने जैसा कि अभी कहा कि तुम महानतम पुरुष से इसका विवाह करना चाहते हो, तो सुनो मित्र! मैं तो पानी के समान नगण्य हूँ। जब मैं नदी में खड़ा होता हूँ तो उसकी तीव्र धार मुझे बहाकर ले जाती है। इस प्रकार मेरी दृष्टि में पानी महानतम है।'
धन के लोभ में वह पानी के पास पहुँचा। उसने पानी से आग्रह किया कि वह विश्व में महानतम है, अतः वह उसकी कन्या से विवाह कर ले। पानी ने उसके प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा, "पवन (हवा) मुझसे श्रेष्ठ है। जब मैं स्थिर होता हूँ तो वह मुझे बहा कर ले जाता है।"
इस प्रकार वह पवन की खोज में निकला। पवन से भेंट होने पर उसने पुनः अपना निवेदन कह सुनाया। पवन ने कहा, "हो सकता है मैं पानी से श्रेष्ठ हूँ, पर महानतम नहीं हूँ। परवत मुझसे अधिक शक्तिवान है। मैं सभी सांसारिक वस्तुएं उड़ा कर, बहा कर ले जा सकता हूँ पर पर्वत को उसके स्थान से नहीं हिला सकता, मेरे विचार में पर्वत महान है।"
अतः वह मानव पर्वत के पास पहुँचा और पुनः अपनी कन्या से विवाह करने का निवेदन किया। पर्वत ने स्थिर स्वर में उत्तर दिया, "हां, मैं कुछ वस्तुओं से शक्तिशाली और महान हूँ पर सर्वोत्तम नहीं। एक छोटा सा चूहा मुझसे महान है क्योंकि वह जब चाहता है, मेरे अन्दर छेद कर देता है।"
पर्वत के मना करने के बाद उस लालची पुरुष के पास कोई स्थान नहीं बचा था, जहाँ वह महानतम की खोज कर सकता, अतः वह पुनः घर लौट आया और तभी उसने अचम्भा देखा, वह सुन्दर कन्या धीरे धीरे फिर चुहिया बन गई और फुदक कर भाग गई।
(सीमा रिज़वी)