लाल जूते (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Lal Joote (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

एक गाँव में एक छोटी-सी सुंदर और नाजुक लड़की थी जो बहुत गरीब थी। गर्मियों भर वह नंगे पाँव रहती थी और सर्दियों में लकड़ी के जूते पहनती थी, जिनकी रगड़ से उसके छोटे-छोटे पैर छिलकर लाल हो जाते थे।

उसी गाँव में एक बूढ़ी विधवा रहती थी जिसका पति जूते बनाता था। उसने बड़ी मेहनत के साथ उस गरीब लड़की के लिए लाल चमड़े के टुकड़ों से एक जोड़ा बनाया पर वह जोड़ा बहुत अच्छा नहीं बन पाया।

केरन नाम की उस लड़की को वे जूते उस दिन मिले, जिस दिन उसकी माँ को दफनाया जा रहा था। जूतों का रंग दु:ख के मौके के लिए ठीक नहीं था, पर दूसरे जूते न होने की वजह से उसे वही पहनने पड़े। वह बेचारी फटे-पुराने कपड़े, नंगी टाँगों और लाल जूतों में ताबूत के पीछे चल रही थी।

तभी एक बहुत पुराने ढंग की गाड़ी उसके पास से गई; उसमें एक बूढ़ी औरत बैठी थी। वह उस छोटी लड़की को देखकर बहुत दुखी हुई और उसी वक्त पादरी के पास जाकर बोली, 'वह छोटी लड़की मुझे दे दीजिए। मैं उसे बहुत अच्छी तरह पालूँगी।'

केरन ने सोचा कि शायद बूढी औरत ने उसे उसके लाल जूतों की वजह से पसंद किया होगा। पर उस बुढ़िया को वे जूते इतने भद्दे लगे कि उसने उन्हें चूल्हे में डलवाकर जला दिया। अब केरन को अच्छे साफ-सुथरे कपड़े पहनाए जाते थे, उसे पढ़ना-लिखना और सिलाई करना सिखाया गया। सब लोग यह मानते थे कि वह एक सुंदर बच्ची थी; जबकि शीशा कहता था कि 'तुम सुंदर नहीं, बहुत सुंदर हो।'

एक बार रानी अपनी बेटी-राजकुमारी के साथ पूरे देश की यात्रा कर रही थी। हर जगह उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट जाती थी। जब वे केरन के गाँव के पास के किले में गए तो वह छोटी लड़की भी भीड़ के पीछे चल दी। राजकुमारी किले की एक बड़ी-सी खिड़की में से झाँक रही थी जिससे सब लोग उसे देख सकें। वह एक छोटे-से स्टूल पर खड़ी थी। उसने मुकुट नहीं लगा रखा था। पर एक बहुत सुंदर सफेद पोशाक और मोरक्को के बने बहुत सुंदर लाल जूते पहन रखे थे। जूते बनाने वाले की विधवा ने केरन के लिए जो लाल जूते बनाये थे वे उनसे बहुत सुंदर थे। पर वे भी लाल जूते थे और केरन को वे दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद थे।

धीरे-धीरे केरन इतनी बड़ी हो गई कि उसका ईसाई ढंग से धार्मिक संस्कार होना था। इस मौके के लिए उसकी नई पोशाक और नए जूते लिए जाने थे। बुढ़िया उसे पास के शहर के सबसे बढ़िया जूते वाले की दूकान पर लेकर गई। उसने उसके पैरों का नाप लिया। उस दूकान की दीवारों पर शीशे की आलमारियों में बहुत तरह के सुंदर जूते सजे हुए थे। बुढ़िया की आँखें इतनी कमज़ोर थीं कि वह कुछ देख नहीं पा रही थी। पर केरन देख सकती थी, उसे दो जोड़ा जूतों के बीच में एक लाल जोड़ा दिखा जो राजकुमारी के जूतों की तरह था। ओह, वे कितने सुंदर थे! जूते वाले ने बताया कि ये किसी रईस आदमी की लड़की के लिए बनाए गए थे, पर उसके नाप के नहीं बन पाए थे।

बुढ़िया बोली, 'मेरे ख्याल से ये पेटेंट चमड़े के हैं क्योंकि चमक रहे हैं।' केरन उन्हें पहनने की कोशिश करती हुई बोली, 'हाँ, ये चमक रहे हैं।' वे उसके ठीक आए, इसलिए बुढ़िया ने दिलवा दिए। पर अगर उसे पता होता कि वे लाल रंग के हैं तो वह नहीं खरीदती क्योंकि धार्मिक काम के वक्त लाल जूते नहीं पहने जाते। नज़र कमज़ोर होने की वजह से बुढ़िया को रंग का पता नहीं चला और न ही उसने रंग देखा।

पर चर्च में सब उसके पैरों की तरफ देख रहे थे। वहाँ की दीवारों पर पुराने पादरियों और उनकी पलियों की बड़ी-बड़ी तसवीरें लगी थीं। जिनमें वे गले पर सफेद झालर लगी काली पोशाकों में दिख रहे थे। वे वहीं दफनाये गये थे। केरन को लगा जैसे वे भी उसके लाल जूतों को घूर रहे थे।

बूढ़े पादरी ने केरन के सिर पर हाथ रखकर वह पवित्र कसम कही जो उसे दुहरानी थी। कसम में उसे भगवान से अच्छा ईसाई बनने की प्रतिज्ञा करनी थी। पर केरन का दिमाग पादरी के शब्दों की तरफ नहीं था। बाजे पर बूढ़ा गायक संस्कार के मौके पर गाया जाने वाला भजन गा रहा था, बच्चों की मीठी आवाज़ भी सुनाई दे रही थी, और केरन-वह अपने लाल जूतों के बारे में सोच रही थी।

दोपहर तक बुढ़िया को लोगों से केरन के जूतों के रंग के बारे में पता चल गया। वह बहुत नाराज़ हुई और लड़की को डाँटा। उसने कहा कि चर्च में लाल जूते पहनकर जाना बहुत गलत था। साथ ही यह भी बताया कि उसे हमेशा यह याद रखना चाहिए कि चर्च में काले जूते ही पहनने चाहिए भले ही वह पुराने हों।

अगले शनिवार को केरन को भोज समारोह में जाना था। उसने अपने काले जूते देखे, फिर लाल देखे और एक बार फिर वे लाल जूते ही पहन लिए।

वह दिन बड़ा सुंदर था, सूरज चमक रहा था। बुढ़िया और केरन खेतों में से होते हुए गए जिससे उनके जूते थोड़े गंदे हो गए।

चर्च में घुसने वाले दरवाजे पर बैसाखी के सहारे एक अपाहिज सैनिक खड़ा था। उसकी बहुत सुंदर लंबी लाल रंग की दाढ़ी थी जिसमें बीच-बीच में सफेदी झलक रही थी। उसने बुढ़िया की तरफ झुककर पूछा कि क्या वह उसके जूते साफ कर सकता है। केरन ने बिना कहे अपने छोटे पैर भी उसके आगे कर दिए।

सैनिक ने उसके जूतों की तली को थपथपाते हुए कहा, 'बड़े सुंदर नाचने वाले जूते हैं।' फिर उसने जूतों से कहा, 'याद रखना कि नाचने के लिए तुम्हें इसके पैरों पर रहना है।'

बुढ़िया ने सैनिक को एक सिक्का दिया और दोनों चर्च में घुस गईं।

फिर सबने, यहाँ तक कि तसवीरों के लोगों ने भी, केरन के पैरों की तरफ देखा। जब वह वेदी के आगे झुकी और पादरी उसके होंठों की तरफ सोने का प्याला बढ़ा रहे थे, तब भी वह सिर्फ अपने लाल जूतों के बारे में सोच रही थी, उसे प्याले की शराब में भी उन्हीं की परछाईं दिखाई दे रही थी। उसने भजन गाने में सबका साथ नहीं दिया, वह भगवान की प्रार्थना भी भूल गई।

जब गाड़ीवान उन्हें घर ले जाने के लिए गाड़ी लेकर गया तो बुढ़िया तो चढ़ गई, केरन चढ़ने वाली थी, तभी पास खड़े उस बूढ़े सैनिक ने कहा, 'इन सुंदर नाचने वाले जूतों को देखो।'

उसके इतना कहने पर केरन ने नाच के एक-दो कदम उठाए। पर शुरू करने के बाद उससे रुका ही नहीं जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी अपनी इच्छा नहीं रही थी, जूते हुक्म दे रहे थे और वह चर्च के कोने में चारों तरफ नाच रही थी।

गाड़ीवान गाड़ी से कूदा, उसकी तरफ भागा, बड़ी मुश्किल से उसे पकड़ा और ज़मीन से ऊपर उठा लिया, पर उसके पैर हवा में नाच रहे थे। उसने उसे गाड़ी में डाल दिया, पर पैर फिर भी नाच रहे थे। उसका नाच रोकने के लिए उसके पैरों से जूते उतारने की कोशिश में बेचारी बुढ़िया और गाड़ीवान कई लातें खा गए।

जब वे घर पहुँचे तो लाल जूते आलमारी में रख दिए गए, पर मौका मिलते ही केरन उन्हें देखती रहती थी।

कुछ दिन बाद बुढ़िया बहुत बीमार पड़ी। डॉक्टरों ने कहा कि वह अब ज्यादा वक्त नहीं जी पाएगी। उसे अच्छी देखभाल की ज़रूरत थी जो केरन के अलावा कौन कर सकता था। शहर में एक नाच का आयोजन था जिसमें केरन को भी बुलाया गया था। उसने बुढ़िया को देखा जिसे हर हालत में मरना था, फिर अपने लाल जूते देखे, देखना पाप नहीं था। फिर उसने उन्हें पहना, इसमें भी क्या नुकसान था? पर फिर वह नाच में चली गई!

वहाँ वह नाचने लगी! पर जब वह दाहिनी तरफ नाचना चाहती थी तो जूते बाईं तरफ ले जाते थे; जब वह नाच के कमरे में नाचना चाहती थी तो जूते उसे सीढ़ियों से होते हुए सड़क पर ले गए। वह नाचती-नाचती शहर के फाटक से बाहर निकल कर अँधेरे जंगल में चली गई।

पेड़ों के बीच में कुछ चमका, उसने सोचा चाँद है, पर वह चाँद नहीं था, वह चेहरा उसी बूढ़े सैनिक का था जिसकी लाल रंग की दाढ़ी थी। उसने लड़की की तरफ देखकर सिर हिलाया और बोला, 'देखो, कितने सुंदर नाचने वाले जूते हैं।'

केरन ने डरकर जूते उतारने चाहे, मोज़े फट गए पर जूते नहीं उतरे। वे उसके पैरों से चिपक गए थे। वह नाचती जा रही थी। खेतों में, मैदानों में, सूरज की रोशनी में, बारिश में, दिन में, रात में, वह नाचती ही चली गई। पर रात को जब सारी दुनिया में अँधेरा छा जाता था तब उसे बहुत डर लगता था।

वह चर्च के फाटक के बाहर से नाचती हुई कब्रिस्तान में चली गई; पर मरे हुए लोगों को भी बेहतर काम थे इसलिए उसके साथ कोई नहीं नाचा। वह एक गरीब की कब्र पर बैठना चाहती थी, वहाँ जंगली जड़ी-बूटियाँ उग आई थीं, पर उसे पल-भर को भी आराम नहीं मिल रहा था। चर्च का दरवाजा खुला था। वह नाचती हुई उस तरफ जा रही थी, पर सफेद कपड़े पहने और ज़मीन को छूते बड़े पंखों वाला देवता उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया।

उसका चेहरा बड़ा सख्त और गंभीर था, और उसके हाथ में एक चौड़ी चमकीली तलवार थी।

वह बोला, 'तुम तब तक नाचोगी जब तक कि तुम पीली और कमज़ोर नहीं पड़ जाती। तुम अपने लाल जूतों में तब तक नाचोगी जब तक कि तुम्हारी खाल हड्डियों से कंकाल की तरह नहीं चिपक जाती। तुम एक दरवाज़े से दूसरे तक, तब तक नाचोगी जब तक कि एक ऐसे घर के सामने नहीं पहुँच जाती जहाँ रहने वाले बच्चे अहंकारी होंगे। तुम्हारे दरवाज़ा खटखटाने पर वे तुम्हें देखेंगे और तुम्हारी किस्मत के बारे में डरेंगे। नाचो, तुम्हें नाचना है नाचो!'

'दया करो!' केरन चीखी, पर देवता का जवाब नहीं सुन पाई क्योंकि उसके जूते उसे दूर ले गए थे, फिर चर्च के आँगन से निकल कर मैदानों और सड़कों से होती हुई, गलियों में से बराबर नाचती चली गई।

एक सुबह वह अपने पहचाने हुए घर के सामने से नाचती हुई जा रही थी। अंदर से भजनों की आवाज़ आ रही थी। तभी दरवाज़ा खुला, फूलों से सजा एक ताबूत निकाला गया। उसके प्रति दयालु बुढ़िया मर चुकी थी। उसे लगा जैसे सभी इंसानों ने उसे छोड़ दिया और भगवान के दूत ने उसे अभिशाप दिया है।

पर उसे नाचते जाना था और वह नाचती रही। जूते उसे मैदानों और खेतों में ले गए, कँटीली झाड़ियों और बिच्छू बूटियों के बीच से ले गए। उसके पैर कट गए, खून बहने लगा।

एक दिन वह एक वीरान खेत में से जा रही थी जहाँ सिर्फ एक झोंपड़ी थी। वह जानती थी कि वहाँ जल्लाद रहता था। केरन ने उसकी खिड़की खटखटाई, और आवाज़ लगाई, 'बाहर आओ! बाहर आओ! मैं अंदर नहीं आ सकती क्योंकि मुझे नाचते रहना है।'

जल्लाद दरवाज़ा खोलकर बाहर आया, केरन को देखकर बोला, 'जानती हो मैं कौन हूँ? मैं वह हूँ जो दुष्टों का सिर काटता है, मेरी तलवार चलने के लिए बेचैन है।'

केरन ने खुशामद करते हुए कहा, 'मेरा सिर मत काटना, क्योंकि तब मैं प्रायश्चित नहीं कर सकूँगी। हाँ, मेरे पैर काट दो।'

उसने अपने पाप मान लिए, जल्लाद ने उसके पैर काट दिए और उसके लाल जूते नाचते हुए अँधेरे में चले गए। जल्लाद ने उसके लिए लकड़ी के पैर और एक जोड़ी बैसाखी बना दी, साथ ही एक पछतावे से भरा भजन भी सिखाया। केरन ने तलवार चलाने वाले हाथ को चूमा और अपने रास्ते पर चल दी।

उसने सोचा, 'मैंने इन लाल जूतों की वजह से बहुत दुःख सहा है। अब मैं और लोगों के साथ चर्च जाऊँगी।'

पर जब वह चर्च के दरवाजे पर पहुंची, तो फिर उसके सामने लाल जूते नाचने लगे। वह डर कर वहाँ से भाग आई।

पूरा हफ्ता वह बहुत उदास रही और आँसू बहाती रही। इतवार आने पर उसने सोचा, 'अब मैं काफी तकलीफ उठा चुकी हूँ। इस वक्त चर्च में जो लोग बैठे पूजा कर रहे हैं, मैं भी उन जैसी ही तो हूँ। वे भी गर्व से सिर ऊँचा रखते हैं।' इस ख्याल ने उसे हिम्मत दी, पर वह चर्च के फाटक के आगे नहीं जा सकी, क्योंकि फिर जूते उसके सामने नाच रहे थे। अब वह सच्चे दिल से पछता रही थी।

वह पादरी के घर गई और काम के लिए विनती करती रही। उसने कहा कि मुझे तनख्वाह की परवाह नहीं है। मुझे सिर्फ सिर पर छत और खाना चाहिए।

पादरी की औरत ने उस पर तरस खाकर रख लिया। केरन को रहने की जगह मिल गई और वह मेहनत से काम करने लगी। शाम को पादरी बाइबल पढ़ते और वह बैठकर सुनती रहती थी। उनके बच्चों को वह बहुत पसंद थी, वे उसके साथ खेलते थे, पर जब वे उसकी सुंदरता किसी राजकुमारी जैसी बताते तो वह उदास होकर सिर हिलाने लगती थी।

जब फिर इतवार आया तो सारे घरवाले चर्च जाने के लिए तैयार होने लगे। उन्होंने उससे भी साथ चलने को कहा। उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने ठंडी साँस भरकर अपनी बैसाखियों की तरफ देखा। जब सब चले गए, तब वह अपने छोटे कमरे में गई, जहाँ सिर्फ एक पलंग और एक कुर्सी आ सकती थी। वह बैठकर भजनों की किताब पढ़ने लगी। चर्च से बाजे की आवाज हवा पर सवार होकर आ रही थी। उसने आँसू-भरा चेहरा उठाकर कहा, 'हे भगवान, मेरी मदद करो।'

अचानक धूप दुगुनी तेज़ हो गई। उसके सामने वही देवता खड़ा था जिसने उसे चर्च में घुसने नहीं दिया था, जो हाथ में तलवार लिए था। पर इस वक्त उसके हाथ में गुलाब की एक टहनी थी, जिस पर फूल लगे थे। देवता ने उसी टहनी से कमरे की छत छुई, वह ऊपर उठ गई, और जहाँ उसने छुआ था, वहाँ एक सुनहरी सितारा चमकने लगा। फिर उसने उसी टहनी से दीवारें छुई और वे चौड़ी हो गईं।

केरन ने बाजा और तसवीरें देखीं, फिर देखा कि वहाँ जमा पूरी भीड़ हाथ में भजनों की किताब लिए गा रही थी। क्या चर्च उसके छोटे-से कमरे में आ गया था या वही चर्च में पहुंच गई थी। अब वह सबके बीच में थी। भजन पूरा होने पर सबने उसे देखा।

किसी ने फुसफुसाकर कहा, 'केरन, अच्छा हुआ कि तुम आ गईं।'

उसने जवाब दिया, 'यह प्रभु की कृपा है।'

बाजा बज रहा था। उसके साथ बच्चों की आवाज़ मिली हुई थी। खिड़की से धूप आ रही थी। धूप ने केरन के दिल में ऐसी शांति और खुशी भर दी कि उसका दिल फट गया। उसकी आत्मा सूरज की किरन पर सवार होकर भगवान के पास चली गई। वहाँ किसी ने उससे उसके लाल जूतों के बारे में नहीं पूछा।

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