लघु कथाएँ/अफ़सानचे : सआदत हसन मंटो

Laghu Kathayen/Afsanche : Saadat Hasan Manto

आराम की ज़रूरत

“मरा नहीं......देखो अभी जान बाक़ी है”
“रहने दो यार......मैं थक गया हूँ।”

आँखों पर चर्बी

“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…….
पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके
इस मस्जिद में काटे हैं। वहां मंदिरों में
धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।
लेकिन यहां सुवर का मास ख़रीदने के लिए
कोई आता ही नहीं।”

इश्तिराकियत/साम्यवाद

वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक
में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों
ने उसे रोक लिया। एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब
पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा,
“देखो यार किस मज़े से इतना माल
अकेला उड़ाए चला जा रहा था।”
अस्बाब के मालिक ने मुस्कुरा कर कहा।
“जनाब ये माल मेरा अपना है।”
दो तीन आदमी हंसे। “हम सब जानते हैं।”
एक आदमी चिल्लाया। “लूट लो, ये अमीर आदमी है…
ट्रक लेकर चोरियां करता है।”

इस्तिक़लाल

“मैं सिख बनने के लिए हरगिज़ तय्यार नहीं
...मेरा उस्तुरा वापिस कर दो मुझे।”

इस्लाह

“कौन हो तुम?”
“तुम कौन हो”
“हरहर महादेव......हरहर महादेव”
“हरहर महादेव”
“सुबूत क्या है?”
“सुबूत......मेरा नाम धर्मचंद है”
“ये कोई सुबूत नहीं”
“चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।”
“हम वेदों को नहीं जानते......सुबूत दो”
“क्या?”
“पाएजामा ढीला करो”
“पाएजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया।
मार डालो......मार डालो”
“ठहरो ठहरो...... मैं तुम्हारा भाई हूँ......
भगवान की क़सम तुम्हारा भाई हूँ।” “तो ये क्या सिलसिला है?”
“जिस इलाक़े से आ रहा हूँ वो हमारे दुश्मनों का था
इस लिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा......
सिर्फ़ अपनी जान बचाने के लिए......
एक यही चीज़ ग़लत होगई है।
बाक़ी बिल्कुल ठीक हूँ।”
“उड़ा दो ग़लती को”
ग़लती उड़ा दी गई.....
धर्मचंद भी साथ ही उड़ गया

उलहना

“देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केट
के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी
पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।”

करामात

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए।
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें।
एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई। उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं। एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया।
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये। कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं।
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया।
लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया।
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था।
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे।

कसर-ए-नफ्सी

चलती गाड़ी रोक ली गई। जो दूसरे मज़हब
के थे उन को निकाल निकाल कर तलवारों और गोलीयों
से हलाक कर दिया गया। इस से फ़ारिग़ हो कर गाड़ी के
बाक़ी मुसाफ़िरों की हलवे, दूध और फलों से तवाज़ो
की गई।गाड़ी चलने से पहले तवाज़ो करने वालों के
मुंतज़िम ने मुसाफ़िरों को मुख़ातब करके कहा। “भाईओ और
बहनो। हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में
मिली। यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे उस
तरह आप की ख़िदमत न कर सके।”

क़िस्मत

“कुछ नहीं दोस्त
......इतनी मेहनत करने पर सिर्फ़ एक बक्स हाथ लगा था
पर इस में भी साला सूअर का गोश्त निकला”

ख़बरदार

बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीट कर बाहर ले आए।
कपड़े झाड़ कर वो उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा
“तुम मुझे मार डालो लेकिन ख़बरदार जो मेरे रुपये पैसे को हाथ लगाया।”

खाद

उस की ख़ुदकुशी पर उस के एक दोस्त ने कहा।
“बहुत ही बे-वक़ूफ़ था जी। मैंने लाख समझाया कि देखो
अगर तुम्हारे केस काट दिए हैं और तुम्हारी दाढ़ी मूंड
दी है तो इस का ये मतलब नहीं कि तुम्हारा धर्म ख़त्म हो गया है
.......रोज़ दही इस्तिमाल करो। वाहगुरु जी ने चाहा तो एक
ही बरस में तुम फिर वैसे के वैसे हो जाओगे”

घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिल कर दस बीस लड़कीयों में से एक लड़की चुनी और बयालिस रुपये दे कर उसे ख़रीद लिया। रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा। “तुम्हारा नाम क्या है।”
लड़की ने अपना नाम बताया तो वो भुन्ना गया। “हम से तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो।”
लड़की ने जवाब दिया। उस ने झूट बोला था।”
ये सुन कर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा। “इस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोका किया है…… हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी…….चलो वापिस कर आएँ।”

जायज़ इस्तेमाल

दस राउंड चली और तीन आदमीयों को ज़ख़मी करने के बाद पठान भी आख़िर सुर्ख़ रोओ हो ही गया।
एक अफ़रा तफ़री मची थी। लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे। छीना झपटी हो रही थी। मार धाड़ भी जारी थी। पठान अपनी बंदूक़ लिए घुसा और तक़रीबन एक घंटा कुश्ती लड़ने के बाद थर्मस बोतल पर हाथ साफ़ करने में कामयाब हो गया।
पुलिस पहुंची तो सब भागे....... पठान भी।
एक गोली उस के दाहिने कान को चाटती हुई निकल गई। पठान ने उस की बिल्कुल परवाह न की और सुर्ख़ रंग की थर्मस बोतल को अपने हाथ में मज़बूती से थामे रख्खा।
अपने दोस्तों के पास पहुंच कर उस ने सब को बड़े फ़ख़्रिया अंदाज़ में थर्मस बोतल दिखाई। एक ने मुस्कुरा कर कहा। “ख़ान साहब आप ये क्या उठा लाए हैं।”
ख़ान साहब ने पसंदीदा नज़रों से बोतल के चमकते हुए ढकने को देखा और पूछा। “क्यूँ?”
“ये तो ठंडी चीज़ें ठंडी और गर्म चीज़ें गर्म रखने वाली बोतल है।”
ख़ान साहब ने बोतल अपनी जेब में रख ली। “ख़ू, अम इस में निस्वार डालेगा....... गर्मीयों में गर्म रहेगी। सर्दीयों में सर्द”!

जूता

हुजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा। लाठीयां बरसाई गईं, ईंटें और पत्थर फेंके गए।
एक ने मुँह पर तारकोल मल दिया।
दूसरे ने बहुत से पुराने जूते जमा किए और उन का हार बना कर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा। मगर पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं।
जूतों का हार पहनाने वाला ज़ख़मी हो गया। चुनांचे मरहम पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम हस्पताल भेज दिया गया

जैली

सुबह छः बजे पैट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया……. सात बजे तक उस की लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।
सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई। बर्फ़ और ख़ून वहीं सड़क पर पड़े रहे।
एक टांगा पास से गुज़रा। बच्चे ने सड़क पर जाते जाते ख़ून के जमे हुए चमकीले लोथड़े की तरफ़ देखा। उस के मुँह में पानी भर आया। अपनी माँ का बाज़ू खींच कर बच्चे ने उंगली से उस की तरफ़ इशारा किया। “देखो मम्मी जैली !”

तक़्सीम

एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक़ मुंतख़ब किया जब उसे उठाने लगा तो वो अपनी जगह से एक इंच भी न हिला।
एक शख़्स ने जिसे शायद अपने मतलब की कोई चीज़ मिल ही नहीं रही थी संदूक़ उठाने की कोशिश करने वाले से कहा। “मैं तुम्हारी मदद करूं?”
संदूक़ उठाने की कोशिश करने वाला इमदाद लेने पर राज़ी होगया। उस शख़्स ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज़ मिल नहीं रही थी। अपने मज़बूत हाथों से संदूक़ को जुंबिश दी और उठा कर अपनी पीठ पर धर लिया....... दूसरे ने सहारा दिया....... दोनों बाहर निकले।
संदूक़ बहुत बोझल था। उस के वज़न के नीचे उठाने वाले की पीठ चटख़ रही थी। टांगें दोहरी होती जा रही थीं मगर इनाम की तवक़्क़ो ने इस जिस्मानी मशक़्क़त का एहसास नीम मुर्दा कर दिया था।
संदूक़ उठाने वाले के मुक़ाबले में संदूक़ को मुंतख़ब करने वाला बहुत ही कमज़ोर था। सारा रस्ता वो सिर्फ़ एक हाथ से सहारा दे कर अपना हक़ क़ायम रखता रहा। जब दोनों महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंच गए तो संदूक़ को एक तरफ़ रख कर सारी मशक़्क़त बर्दाश्त करने वाले ने कहा। “बोलो। इस संदूक़ के माल में से मुझे कितना मिलेगा।”
संदूक़ पर पहली नज़र डालने वाले ने जवाब दिया। “एक चौथाई।”
“बहुत कम है।”
“कम बिल्कुल नहीं ज़्यादा है…… इस लिए कि सब से पहले मैंने ही इस पर हाथ डाला था।”
“ठीक है, लेकिन यहां तक इस कमर तोड़ बोझ को उठा के लाया कौन है?”
“आधे आधे पर राज़ी होते हो?”
“ठीक है……खोलो संदूक़।”
संदूक़ खोला गया तो इस में से एक आदमी बाहर निकला। हाथ में तलवार थी। बाहर निकलते ही उस ने दोनों हिस्सा दारों को चार हिस्सों में तक़सीम कर दिया

दावत-ए-अमल

आग लगी तो सारा मोहल्ला जल गया.......
सिर्फ़ एक दुकान बच गई जिस की पेशानी पर ये बोर्ड आवेज़ां था...
“यहां इमारत साज़ी का जुमला सामान मिलता है।”

निगरानी में

अपने दोस्त विनय को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ। रास्ते में विनय जिस का मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा। “क्यूँ जनाब आस पास कोई वारदात तो नहीं हुई?”
जवाब मिला। “कोई ख़ास नहीं…… फ़लां मोहल्ले में अलबत्ता एक कुत्ता मारा गया।”
सहम कर विनय पूछा। “कोई और ख़बर”
जवाब मिला। “ख़ास नहीं...... नहर में तीन कुत्तियों की लाशें मिलीं।”
उस ने विनय की ख़ातिर मिल्ट्री वालों से कहा। “मिल्ट्री कुछ इंतिज़ाम नहीं करती।”
जवाब मिला। “क्यूँ नहीं...... सब काम उसी की निगरानी में होता है”

पठानिस्तान

“ख़ू, एक दम जल्दी बोलो, तुम कौन ऐ?”
“मैं......मैं......”
“ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो......इंदू ऐ या मुस्लिमीन”
“मुस्लिमीन”
“ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”
“मोहम्मद ख़ान”
“टीक ऐ......जाओ”

पेश बंदी/इन्तज़ाम

पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई।
फ़ौरन ही वहाँ एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।
दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई।
सिपाही को पहली जगह से हटाकर उस जगह तैनात कर दिया गया, जहाँ दूसरी वारदात हुई थी।
तीसरी घटना रात के बारह बजे लाण्डरी के पास घटी।
जब इंसपेक्टर ने सिपाही को इस नई जगह पर पहरा देने का हुक़्म दिया तो सिपाही कुछ देर तक सोचने के बाद बोला — मुझे वहाँ खड़ा कर दीजिए, जहाँ नई वारदात होने वाली है...!

बेख़बरी का फ़ायदा

लबलबी दबी...... पिस्तौल से झुँझला कर गोली बाहर निकली।
खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया।
लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी...... दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली।
सड़क पर माशकी की मशक फटी। औंधे मुँह गिरा और उस का लहू मशक के पानी में हल हो कर बहने लगा।
लबलबी तीसरी बार दबी...... निशाना चूक गया। गोली एक दीवार में जज़्ब हो गई।
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी...... वो चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई।
पांचवीं और छट्टी गोली बेकार हो गई। कोई हलाक हुआ न ज़ख़्मी।
गोलीयां चलाने वाला भुन्ना गया। दफ़्अता सड़क पर एक छोटा सा बच्चा दौड़ता दिखाई दिया।
गोलीयां चलाने वाले ने पिस्तौल का मुँह उस तरफ़ मोड़ा।
उस के साथी ने कहा। “ये क्या करते हो?”
गोलीयां चलाने वाले ने पूछा। “क्यूँ?”
“गोलीयां तो ख़त्म हो चुकी हैं।”
“तुम ख़ामोश रहो...... इतने से बच्चे को क्या मालूम?”

मुनासिब कारवाई

जब हमला हुआ तो मोहल्ले में से अक़ल्लियत के कुछ आदमी तो क़त्ल होगए। जो बाक़ी थे जानें बचा कर भाग निकले। एक आदमी और उस की बीवी अलबत्ता अपने घर के तहख़ाने में छुप गए।
दो दिन और दो रातें पनाह-याफ़्ता मियां बीवी ने क़ातिलों की मुतवक़्क़ो आमद में गुज़ार दीं मगर कोई न आया।
दो दिन और गुज़र गए। मौत का डर कम होने लगा। भूक और प्यास ने ज़्यादा सताना शुरू किया।
चार दिन और बीत गए। मियां बीवी को ज़िंदगी और मौत से कोई दिलचस्पी न रही...... दोनों जा-ए-पनाह से बाहर निकल आए।
ख़ाविंद ने बड़ी नहीफ़ आवाज़ में लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जो किया और कहा। “हम दोनों अपना आप तुम्हारे हवाले करते हैं…… हमें मार डालो।”
जिन को मुतवज्जो किया गया था वो सोच में पड़ गए। “हमारे धर्म में तो जी हत्या पाप है।”
वो सब जैनी थे लेकिन उन्हों ने आपस में मश्वरा किया और मियां बीवी को मुनासिब कार्रवाई के लिए दूसरे मोहल्ले के आदमीयों के सपुर्द कर दिया

रिआयत

“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो।”
“चलो उसी की मान लो…….कपड़े उतार कर हाँक दो एक तरफ़।”

सदक़े उसके

मुजरा ख़त्म हुआ। तमाशाई रुख़्सत होगए। तो उस्तादी जी ने कहा,
“सब कुछ लुटा पुटा कर यहां आए थे
लेकिन अल्लाह मियां ने चंद दिनों में ही वारे न्यारे कर दिए।”

सफ़ाई पसंदी

गाड़ी रुकी हुई थी।
तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए। खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से क्या पूछा। “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ीयों ने जवाब दिया। “जी नहीं।”
थोड़ी देर के बाद चार नेज़ा बर्दार आए। खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा। “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
इस मुसाफ़िर ने जो पहले कुछ कहते कहते रुक गया था जवाब दिया।
“जी मालूम नहीं…… आप अंदर आ के संडास में देख लीजीए।”
नेज़ा बर्दार अंदर दाख़िल हुए। संडास तोड़ा गया तो उस में से एक मुर्ग़ा निकल आया।
एक नेज़ा बर्दार ने कहा। “कर दो हलाल।”
दूसरे ने कहा। “नहीं यहां नहीं।डिब्बा ख़राब हो जाएगा…..बाहर ले चलो।”

सॉरी

छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।
इज़ार-बंद कट गया। छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तअस्सुफ़ निकला।
“चे चे चे चे…
मिस्टेक हो गया।”

हमेशा की छुटटी

“पकड़ लो...पकड़ लो...देखो जाने न पाए”
शिकार थोड़ी सी दौड़ धूप के बाद पकड़ लिया गया।
जब नेज़े उस के आर पार होने के लिए आगे बढ़े तो उस ने लर्ज़ां आवाज़ में गिड़गिड़ा कर कहा,
“मुझे न मारो.......मुझे न मारो....... मैं तातीलों (छुट्टियों) में अपने घर जा रहा हूँ”

हलाल और झटका

“मैंने उस की शहरग पर छुरी रख्खी। हौले हौले फेरी और उस को हलाल कर दिया।
“ये तुम ने क्या किया?”
“क्यूँ?”
“उस को हलाल क्यूँ किया?”
‘मज़ा आता है इस तरह”
“मज़ा आता है के बच्चे, तुझे झटका करना चाहिए था........ इस तरह”
और हलाल करने वाले की गर्दन का झटका हो गया

हैवानियत

बड़ी मुश्किल से मियां बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए । जवान लड़की थी। उस का कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उस को माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रख्खा। एक भूरी भैंस थी उस को बलवाई हाँक कर ले गए। गाय बच गई मगर उस का बछड़ा न मिला।
मियां बीवी, उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे। सख़्त अंधेरी रात थी। बच्ची ने डर के रोना शुरू किया। ख़ामोश फ़ज़ा में जैसे कोई ढोल पीटने लगा। माँ ने ख़ौफ़ज़दा हो कर बच्ची के मुँह पर हाथ रख दिया। कि दुश्मन सुन न ले। आवाज़ दब गई। बाप ने एहतियातन ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।
थोड़ी देर के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज़ आई। गाय के कान खड़े हुए। उठी और इधर उधर दीवाना वार दौड़ती डकारने लगी। उस को चुप कराने की बहुत कोशिश की गई मगर बे-सूद।
शोर सुन कर दुश्मन आ पहुंचा। दूर से मशअलों की रौशनी दिखाई। बीवी ने अपने मियां से बड़े ग़ुस्से के साथ कहा। “तुम क्यूँ इस हैवान को अपने साथ ले आए थे।”

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