लघु कथाएँ : फ़्रेंज़ काफ़्का

Laghu Kathayen : Franz Kafka

1. दिशा

'बहुत दुख की बात है,' चूहे ने कहा, 'दुनिया दिन प्रतिदिन छोटी होती जा रही है। पहले यह इतनी बड़ी थी कि मुझे बहुत डर लगता था। मैं दौड़ता ही रहा था और जब आखिर में मुझे अपने दाएँ-बाएँ दीवारें दिखाई देने लगीं थीं तो मुझे खुशी हुई थी। पर यह लंबी दीवारें इतनी तेजी से एक दूसरे की तरफ बढ़ रही हैं कि मैं पलक झपकते ही आखिर छोर पर आ पहुँचा हूँ; जहाँ कोने में वह चूहेदानी रखी है और मैं उसकी ओर बढ़ता जा रहा हूँ।'
'जहाँ दिशा बदलने की जरूरत है, बस ।' बिल्ली ने कहा, और उसे खा गई ।

2. खिड़की

जीवन में अलग-थलग रहते हुए भी कोई व्यक्ति जब-तब कहीं-कहीं किसी हद तक जुड़ना चाहेगा। दिन के अलग-अलग समय, मौसम, काम-धंधे की दशा आदि में उसे कम से कम एक ऐसी स्नेहिल बाँह की ओर खुलने वाली खिड़की के बगैर बहुत अधिक समय तक नहीं रह सकेगा। कुछ भी न करने की मनःस्थिति के बावजूद वह थके कदमों से खिड़की की ओर बढ़ जाता है और बेमन से कभी लोगों और कभी आसमान की ओर देखने लगता है, उसका सिर धीरे से पीछे की ओर झुक जाता है। इस स्थिति में भी सड़क पर दौड़ते घोड़े, उनकी बग्घियों की खड़खड़ और शोरगुल उसे अपनी ओर खींच लेंगे और अंततः वह जीवन-धारा से जुड़ ही जाएगा।

(अनुवाद: सुकेश साहनी)

3. अस्वीकृति

जब मैं छोटी लड़की से मिला तो मैंने उससे कहा, "कृपया मेरे साथ आओ, " और बिना एक भी शब्द बोले वह मेरे साथ चल पड़ी, उसके कहने का आशय यही है-

आप कोई प्रसिद्ध डयूफ नहीं हैं, रेड इंडियन काठी, स्तर विचारमग्न आँखोंवाले कोई बड़े अमरीकी भी नहीं, जिसकी चमड़ी पर प्रेयरी की हवाओं तथा उसके साथ बहनेवाली नदियों का कोई प्रभाव नहीं, आपने कभी सात समुद्र की यात्रा नहीं की है, वे जहाँ कहीं भी हों, मुझे भी नहीं मालूम वे कहाँ हैं । इसलिए क्यों, प्रार्थना कीजिए कि मेरे जैसी लड़की को आपके साथ जाना चाहिए?

'आप भूल गए कि कोई भी वाहन लंबे झटके में तेजी से आपके पास से चौराहे पर नहीं निकलता है; मुझे मामूल है कोई भी सभ्य व्यक्ति पीछे से आपके स्कर्ट को दबाते एवं धीरे-धीरे आपके सिर के पास दुआ बोलते हुए अर्ध-वृत्त में आपका मार्गदर्शन कर रहा है; आपकी छाती आपके अंत:वस्त्र में सही तरह से बँधी है, लेकिन आपके जाँघ एवं नितंब इसके विपरीत खुले हैं। आप भव्य पोशाक पहने हुए हैं, जिसके स्कर्ट में ऐसा चुन्नट है जैसा कि पिछली शरद ऋतु में हमें आनंद मिला था और फिर भी आप मुसकरा रहे हैं, भीषण संकट को आमंत्रित कर रहे हैं, समय-समय पर ।'

“हाँ, हम दोनों ही दाईं ओर हैं तथा अटल रूप से हमें इसके प्रति सचेत रखने के लिए, क्या यह बेहतर नहीं है। कि हम अलग-अलग रास्तों से अपने घर जाएँ?"

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

4. नया वकील

हमारे पास एक नया वकील है, जिसका नाम बुसफेलस है। इसके चेहरे में कुछ ऐसा है, जिसे देखकर यह याद आता है कि वह कभी मखइन के सिकंदर के युद्ध में मुखिया था । निश्चित रूप से यदि आपको उसकी कहानी मालूम होगी तभी कुछ पता चलेगा। यहाँ तक कि एक साधारण सुरक्षाकर्मी, जिसे कि मैंने दूसरे दिन लॉ कोर्टस की सीढ़ियों पर देखा था, वह भी प्रशंसाभरी नजरों से वकील के मन को पढ़ने की कोशिश कर रहा था, जब वह तेजी के साथ संगमरमर की सीढियाँ चढ़ रहा था।

सामान्यतः बुसफ़ेलस के दाखिले की अनुमति बार देता है । आश्चर्यभरी दृष्टि से लोग स्वयं से कहते हैं कि आधुनिक समाज जैसा भी है, उसमें बुसफेलस की स्थिति कठिन है, इसलिए विश्व इतिहास में उसके महत्त्व को देखते हुए उसे कम-से-कम एक मित्र जैसा स्वागत तो जरूर मिलना चाहिए। वर्तमान समय में यह निर्विवाद है कि कोई सिकंदर महान नहीं है। बड़ी संख्या में लोग हैं, जो यह जानते हैं कि लोगों की हत्या कैसे करनी है; भोजन टेबल पर किसी मित्र को हथियार से भेदने के लिए आवश्यक कौशल की कमी नहीं है; कुछ लोगों के लिए मखइनिया छोटी सी जगह है, तभी वे पिता फिलिप को कोसते हैं। लेकिन कोई भी भारत की ओर भ्रमण नहीं कर सकता है। यहाँ तक कि उसके समय में भी भारत के द्वार उसकी पहुँच से दूर थे, फिर भी राजा की तलवार ने उन्हें रास्ते का संकेत दिया, आज तो वे द्वार और भी सुदूरवर्ती क्षेत्रों में चले गए हैं; कोई भी रास्ते का संकेत नहीं करता और वह नजर, जो उनका पीछा करने की कोशिश करती है वह भी भ्रमित है।

इसलिए शायद सबसे अच्छा यह है, जो स्वयं बुसफेलस ने भी किया था, स्वयं को कानून की किताबों के अध्ययन में डुबो दिया था। शांत दीये के प्रकाश में उनका ध्यान घुड़सवारों की आहट से अविचलित, युद्ध के हंगामे से बहुत दूर वह प्राचीन ज्ञान की पुस्तक को पढ़ने में मग्न है।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

5. संकल्प

यदि तुम्हें स्वयं को खराब मनःस्थिति से बाहर लाना है। इसे मजबूत इच्छा-शक्ति द्वारा करना है, यह सरल होना चाहिए। मैं जबर करके कुरसी से उठा, टेबल के चारों ओर का चक्कर लगाया, सिर एवं गले का व्यायाम किया, आँखों में चमक लाई तथा चारों ओर की मांसपेशियों को सख्त किया। अपनी भावनाओं की परवाह न करते हुए पूरे उत्साह के साथ ' A ' स्वागत करता हूँ, यह मानकर कि यह मुझसे मिलने आया है तथा प्यार से ' B ' को अपने कमरे में बरदाश्त करता हूँ, सबकुछ भूलकर जो उसने 'C' के कमरे में कहा था, चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा या परेशानी हो ।

फिर भी मैं किसी तरह वह सबकुछ कर लेता हूँ, फिर भी एक चूक, सिर्फ एक चूक, जिसकी संभावना रहती है, वह पूरी प्रक्रिया को ही रोक देंगी, जो सरल एवं पीड़ादायक हैं और यह मुझे ऐक बार फिर अपने घेरे में वापिस भेज देगी।

इसलिए श्रेष्ठ तरीका यह है कि हर चीज का निष्क्रियता से सामना करो, ताकि स्वयं को एक निष्क्रिय प्राणी बना सको, लेकिन यदि तुम्हें लगता है कि आवेश में बहते जा रहे हो, तो स्वयं को एक ही अनावश्यक कदम उठाने से रोको, दूसरों को पशु की तरह निहारो, जिसमें कोई दयाभाव न हो । संक्षेप में, अपने ही हाथों से अपने भीतर शेष रह गए पैशाचिक जीवन का अंत कर दो, ताकि कब्र की अंतिम शांति का विस्तार कर सको और उसके बाद उसके सिवा कुछ और न बचे। अपनी कनिष्ठ उँगली को अपने भवों पर फेरना इस दिशा में होने वाली एक विशिष्ट क्रिया हैं।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

6. पर्वतों की सैर

"मुझे नहीं मालूम,'' मैं चिल्लाया, लेकिन मेरी आवाज सुननेवाला कोई नहीं था, “मुझे नहीं मालूम।” यदि कोई नहीं आता तो कोई नहीं आएगा। मैंने किसी का भी बुरा नहीं किया है, किसी ने मेरा भी बुरा नहीं किया है, लेकिन कोई मेरी सहायता नहीं करेगा। मामूली आदमियों का दल । सिर्फ यह कि कोई मेरी मदद नहीं करता, दूसरी ओर सामान्य आदमियों का दल ठीक है। मैं शौक से सैर पर जाऊँगा, क्यों नहीं, आम आदमियों के दल के साथ। निस्संदेह पर्वतों की सैर को, और कहाँ ? ये आम आदमी किस तरह एक-दूसरे को ढकेलते हैं, एक साथ जुड़े ये उठे बाजू, पास-पास चलते ये असंख्य पैर । निस्संदेह वे सभी अच्छी पोशाकें पहने हुए हैं। हम इतने प्रसन्नचित्त ढंग से गए, हवा हमें स्पर्श करती बह रही थी और हमारी संगति में थोड़ा खाली स्थान था । हमारे गले फूल गए थे और पर्वतों के बीच स्वतंत्र हो गए थे । आश्चर्य है कि हमने गाना गाना शुरू नहीं किया।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

7. अविवाहित का दुर्भाग्य

अविवाहित रहना कितना कठिन लगता है, अपनी मर्यादा को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहना, जबकि किसी संगति में शाम बिताने की इच्छा होने पर आमंत्रण की गुहार करना, कमरे के एक कोने में अपने बिछावन पर पड़े खाली कमरे को ताकते हुए सप्ताह बिताना, हमेशा सामने के दरवाजे से शुभ रात्रि कहना, कभी ऊपरी मंजिल पर अपनी पत्नी के बगल में नहीं जाना, अपने कमरे में सिर्फ बगल का दरवाजा होना, जो दूसरों के बैठकों की ओर खुलता हो, एक हाथ में अपना खाना लिये घर आना, दूसरों के बच्चों की प्रशंसा करते हुए और फिर भी यह बोलने की अनुमति नहीं, "हमारा कोई नहीं है, " अपने हाव-भाव तथा आचरण के उन एक-दो युवाओं के साँचे में ढालते हुए, जिन्हें आप अपनी जवानी के दिनों से जानते हैं।

यह ऐसा ही होगा सिवाय इसके कि वास्तविकता में आज और बाद में भी, व्यक्ति अपने स्पर्शनीय शरीर, वास्तविक सिर, वास्तविक माथे, के साथ अपने हाथ से हराने के लिए खड़ा होगा।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

  • मुख्य पृष्ठ : फ़्रेंज़ काफ़्का की कहानियाँ हिन्दी में
  • जर्मनी की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां