चाँद की देवी : चीनी लोक-कथा

Lady of the Moon : Chinese Folktale

यह तब की बात है जब सम्राट याऊ एक राजकुमार था और उसका नाम हू प्रथम था। वह एक बहुत ही ताकतवर हीरो और बहुत ही अच्छा तीर चलाने वाला था।

एक बार आसमान में दस सूरज एक साथ निकले और इतनी ज़ोर से चमके और इतने भयानक रूप से गर्म हुए कि धरती पर रहने वाले लोग उनकी चमक और गर्मी को सह नहीं सके। सो सम्राट ने अपने बेटे हू प्रथम को हुक्म दिया कि वह उनको मार गिराये। हू प्रथम ने तीर मार कर उनमें से नौ सूरजों को आसमान में से नीचे गिरा दिया।

तीर कमान के अलावा हू प्रथम के पास एक घोड़ा भी था जो इतनी तेज़ दौड़ता था कि हवा भी उसको नहीं पकड़ सकती थी। जब वह शिकार करने के लिये जाता था तो वह उसी घोड़े पर बैठ कर जाता था। वह घोड़ा तुरन्त ही दौड़ जाता था और फिर उसको कोई नहीं पकड़ सकता था।

एक बार हू प्रथम कुनलुन पहाड़ पर गया। वहाँ उसकी मुलाकात जैस्पर समुद्र की रानी माँ से हुई। उसने राजकुमार को एक बूटी दी जो उसको अमर बना देती।

वह उस बूटी को अपने साथ घर ले आया और उसको अपने कमरे में छिपा कर रख दिया। पर उसकी पत्नी जिसका नाम शैंगो था उसने उसे देख लिया।

एक बार जब उसका पति घर में नहीं था तो चालाकी से उसने उसमें से कुछ बूटी खा ली। उस बूटी को खाते ही वह तो आसमान में उड़ गयी। जब वह चाँद के पास पहुँची तो वह उसके किले में घुस गयी और तब से वहाँ वह चाँद की देवी तरह रह रही है।

एक बार पतझड़ के मौसम में टैंग साम्राज्य का सम्राट दो जादूगरों37 के साथ बैठा हुआ शराब पी रहा था कि उन दोनों जादूगरों में से एक जादूगर ने अपना बाँस का डंडा उठाया और आसमान की तरफ फेंक दिया। वहाँ जा कर वह एक पुल बन गया।

पुल बनने के बाद वे तीनों उस पुल पर चढ़ कर चाँद पर पहुँच गये। वहाँ उन्होंने एक बड़ा किला देखा जिस पर खुदा हुआ था – “बहुत ठंडे फैले हुए कमरे”।

उसी के पास कैसिया का एक पेड़ खड़ा था। उस पर बहुत सारे फूल खिले हुए थे और उनकी खुशबू चारों तरफ फैल रही थी। उसी पेड़ पर एक आदमी भी बैठा था जो कुल्हाड़ी से उस पेड़ से छोटी छोटी डंडियाँ काट रहा था।

उस आदमी को देख कर एक जादूगर बोला — “यह है वह आदमी जो चाँद में रहता है। यह कैसिया का पेड़ इतना ज़्यादा और इतनी जल्दी बढ़ता है कि कुछ ही दिनों में यह चाँद की सारी चमक को ढक लेता है इसलिये इसको हर एक हजार साल में काटना पड़ता है।”

इसके बाद वे “फैले हुए कमरों” में घुसे। किले की चाँदी की मंजिलें एक के ऊपर एक लगी हुई थीं। उसकी दीवारें और खम्भे द्र्रव क्रिस्टल के बने हुए थे।

उसकी दीवारों में पिंजरे और तालाब बने हुए थे। उनमें चिड़ियें और मछलियाँ ऐसे घूम रही थीं जैसे कि वे ज़िन्दा हों। सारी चाँद की दुनियाँ ऐसी दिखायी दे रही थी जैसे मानो शीशे की बनी हुई हो।

वे लोग अभी उस सबको देख ही रहे थे कि चाँद की देवी बाहर निकल कर उनके पास आयी। उसने इन्द्रधनुषी पोशाक पहनी हुई थी और उसके ऊपर सफ़ेद रंग का शाल ओढ़ा हुआ था।

वह मुस्कुरायी और बादशाह से बोली — “तुम तो मिट्टी की बनी दुनियाँ के राजकुमार हो। तुम बहुत खुशकिस्मत हो जो यहाँ तक आ पहुँचे।”

कह कर उसने अपनी दासियों को बुलाया जो तुरन्त ही चिड़ियों पर उड़ती हुई वहाँ आ पहुँचीं। वे कैसिया के पेड़ के नीचे गाने और नाचने लगीं। उनका मीठा संगीत चारों ओर हवा में तैरने लगा।

कैसिया के पेड़ के पास ही सफ़ेद संगमरमर का बनी एक ओखली रखी थी जिसमें जैस्पर का एक खरगोश बैठा बैठा वहाँ उसमें कुछ बूटी पीस रहा था। यह चाँद का अँधेरा वाला हिस्सा था।

जब गाना और नाचना खत्म हो गया तो बादशाह जादूगरों के साथ धरती पर आ गया। घर आ कर उसने जो गीत चाँद पर सुना था उसे लिख लिया और फिर उसने उसको अपने नाशपाती के बागीचे में जैस्पर की बाँसुरी के साथ गाया।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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