लड़का, लड़की और इंटरनेट (तेलुगु कहानी) : कोल्लूरि सोम शंकर
Ladka Ladki Aur Internet (Telugu Story) : Kolluri Soma Shankar
हैदराबाद रेलवे स्टेशन पर मुसाफ़िरों का शोर मच रहा है! सुबह के साढ़े छै बजने वाले हैं। हैदराबाद से नई दिल्ली जाने वाली आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस दो नंबर प्लेटफ़ार्म पर खड़ी है.....` माइक पर लगातार घोषणाएँ जारी है!
संदीप का इंतजार कर रहा है नवीन! संदीप को सी-ऑफ करने
के लिए आना था! देरी हो रही। है! संदीप के आने की सूचना तक नहीं! नवीन बेचैन होने।
लगा! इतने में दूर से हाथ हिलाता हुआ संदीप आ गया!
दोपहर के खाने का समय हो गया था!
नवीन के सोए संस्कार भी जागे।
`क्या रे? इतनी देर? और पांच मिनट न आता तो ट्रेन निकल चुकी होती!`
"क्या करुँ यार? कल रात इंटरनेट सेंटर में बहुत देर हो
गई! हम जो गरम मसाला वेब साइट देखते हैं ना,
उन में बहुत सारे अपडेट आये हैं! उनको देखकर जब घर लौटा,
तब तक ग्यारह बज गए! इसलिए
आज सुबह आँख न खुल सकी।" संदीप ने
देर की वजह बताते हुए कहा।
`अपडेट कैसे हैं यार? किसी काम के हैं क्या?' नवीन उत्सुकता न
रोक पाया!
`बहुत अच्छे हैं! इतनी परेशानी क्यों? एक हफ़्ते में तो वापस आ जाओगे न, आने
के बाद देखना! नही तो
दिल्ली में किसी इंटरनेट सेंटर पर चले जाना।'
नवीन ने उसकी सलाह मान ली! फिर
थोड़ा रुक कर बोला, `कुछ भी कहो यार, सफ़र लंबा है,
काफ़ी उबाऊपन होगा! '
'अरे, फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे में जा रहे हो! कुछ उपन्यास,
और वॉकमैन भी ले जा रहे हो, उबाऊपन क्यों होगा?ट और
तुम्हारा सीट नंबर क्या है? संदीप
ने पूछा।
'छत्तीस ...'
झट से संदीप डिब्बे में घुस गया और
तुरंत वापस आया!
'यार, तू तो बड़ा भाग्यवान है! तेरे सामनेवाली सीट पर एक खूबसूरत
लड़की बैठी है! अब तो तेरा सफ़र सुखमय होगा!'
'सच, मैंने तो नहीं देखा,' कह कर नवीन ने डिब्बे में अपनी सीट की
तरफ एक नजर डाली।
ध्यान से देखा
तो वहां एक लड़की और उसके साथ में एक बूढ़े सज्जन बैठे थे। बंगाल की
सूती साड़ी
में वह लड़की शिष्ट और गरिमामय लग रही थी।
'वाह, क्या नमक है बाप, टस्टन्निंग ब्यूटीट
नीचे स्वर में नवीन ने कहा!
इतने में रेलगाड़ी छूटने का वक्त हो गया और माइक पर गाड़ी चलने
की सूचना प्रसारित हो गई। संदीप ने हाथ हिलाते हुए अलविदा कह
दिया!
गाड़ी की रफ़तार बढ़ने
पर, नवीन अंदर आया और अपनी सीट पर बैठ
गया! बैग से वॉकमैन बाहर निकला और उसमें टरिकी मारटिनट का टउल्वेट कैसेट लगाकर
टेप आन किया और गीत के अनुसार पैर हिलाने लगा!
नवीन को अच्छी तरह मालूम है कि वह शिष्टाचार नही है, फिर भी।
थोड़ी देर बाद जान
बूझकर सामने की सीट पर बैठी लड़की को झाँकना लगा!
`तू चीज बड़ी है मस्त मस्त, तू चीज बड़ी है मस्त.....जो गाना
उसने कल रात शाटिलैट चैनेल पर देखा था उसे गुनगुनाने लगा!
वह लड़की इस
सबको नज़रंदाज़ करती हुई 'बार्न टु
विन' पढती रही। उसके साथ में बैठे हुए
सज्जन ने थोड़ी देर बाद
नवीन से अखबार मांगा और चुपचाप पढ़ने लगे!
नवीन ने लड़की को आकर्षित करने के लिए एक अँग्रेज़ी उपन्यास बाहर निकाला!
पुस्तक को आंखों के रख कर, उस लड़की की सुंदरता की रस लेने
लगा। नवीन की नजरें उस लड़की की हर अंग को छूने लगीं।
`वाह, कितनी सुंदर है, परफेक्ट फिगर! इस का हाथ माँगनेवाला,
भाग्यशाली बनेगा` सोचा नवीन ने,
`मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है...`एक
लड़की को देखा तो
ऐसा लगा जैसे ...फ़िल्मी गाने इतनी धीमी आवाज
में
गाना शुरू किया, ताकि वह सुन सके!
लेकिन उस लड़की ने इसकी परवाह नहीं की, किताब पढ़ने में लगी रही!
वृद्ध सज्जन भी अखबार में निमग्न हो
गए।
तीन घंटे के बाद
गाड़ी टकाजीपेटट स्टेशन पर रुकी! चाय,
काफी और नाश्ता बेचने वाले ऊँची
आवाज में चिल्लाने लगे।
टक्यों बेटी, चाय पियोगी?ट वृद्ध सज्जन ने पूछा
टहां, दादाजी, पिएँगेट कहकर, उस ने किताब को सीट पर रख
दिया!
नवीन की तरफ देख कर मुसकराई!
नवीन ने झट से अपना नाम बता कर, उसका नाम पूछा!
टमेरा नाम विद्या हैट उसने बताया।
नवीन ने प्लेटफ़ार्म पर दुकान से एक पेप्सी का कैन खरीद लिया और
आराम से धीरे धीरे पीने लगा।
`आप कहां जा रहे हैं?ट लड़की ने पूछा।
`नागपुरट
गाड़ी ने फिर रफ़तार पकड़ ली थी थोड़ी ही देर में वह पटरियों
पर दौड़ने लगी।
चाय पीकर विद्या ने फिर पुस्तक उठाई!
नवीन समझ गया की अगर विद्या
किताब पढ़ने मे लीन हो गयी तो, उससे बातचीत करना मुश्किल है!
उसने तुरंत बात बढाई!
टआप क्या पढ़ रही है?
`मैने विजुअल आर्ट्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है! आपने`?ट
`हाल ही में मेरा बी.कॉम पूरा हुआ है! एम.बी.ए प्रवेश परीक्षा ले रहा
हूं! स्टडी मेटीरियल के लिए दिल्ली जा
रहा हूँ नवीन ने आवाज़ में रोब लाते हुए कहा।
ट ओ, अच्छाट, कह कर विद्या ने फिर से किताब उठा ली।
टआप की हॉबीज़ क्या हैं, विद्या?ट
टपेंटिंग और किताबें पढ़ना।ट
`अच्छा, रीडिंग का मुझे भी शौक है! साइंस फ़िक्शन मुझे बहुत अच्छा लगता है!
इंटरनेट देखना और भी पसंद
है!`
` तो आपने फ्रॉम द अर्थ टु मून ज़रूर पढ़ी होगी।
नवीन ने नकारात्मक सिर हिलाया!
`अच्छा तो फिर जर्नी टु द सेंटर ऑफ़ अर्थ तो पढ़ी ही होगी।
नवीन ने और एक बार नकारात्मक सिर हिलाया! वास्तव में उसने इन
किताबों के नाम तक नही सुने थे। वह फिर
भी लड़की के सामने अपने सम्मान की रक्षा करते हुए झूठ बोला, `इतना
समय नहीं मिल पाता है! चाहते हुए भी पढ़
नही सका।ट
विद्या नवीन की असलियत समझ गई और किताब पढ़ने लगी।
गाड़ी हवा को काटती हुई तेजी से चली जा रही थी।
`कुछ समय के बाद दो व्यक्ति आकर खाने का ऑर्डर लेने लगे। नवीन
ने अपना ऑर्डर दे दिया! लड़की और वृद्ध सज्जन ने कोई
ऑर्डर नहीं दिया।
`बेटी, चलो खाना खालें,ट कहकर दादाजी साथ में लाया हुआ लंच बाक्स उठा लिया!
`मै अभी आई दादू,ट कह कर विद्या वाशबेसिन की तरफ चल दी!
विद्या को जाते
हुए देखकर नवीन को एकदम झटका लगा। वह लंगड़ाते हुए चल रही थी!
उसका बायाँ पैर रबर का मालूम होता था!
नवीन के चेहरे का रंग बदल गया! अब तक उस के मन में विद्या के
प्रति जो मोहक भावनाएँ उठ रही थीं वे
सहानुभूति में बदल गईं। वह सोचने लगा -`इतनी सुंदर लड़की को
ऐसी कमी? लड़कियों को अंग वैकल्य हो तो, उन की शादी में कितनी
दिक्कत होती है? आजकल जिनके सब अंग ठीक हैं उनका भी जीना
मुश्किल है, ये लड़की अपना जीवन
कैसे संभालेगी?
इतने में उस का खाना आ गया !
तीनों ने भोजन कर लिया! दादाजी झपकी लेने लगे! और विद्या ने फिर
से किताब उठा ली!
`विद्या! मुझे पता नही चला की आप विकलांग है!
यह हादसा कब और कैसे हुआ?ट
`तीन बरस पहले, तब मै डिग्री के दूसरी साल मे थी! एक सड़क
दुर्घटना में मेरा पांव चूर-चूर हो गया!
इसीलिए नकली पांव लगाना पड़ा!`
`बड़े अफ़सोस की बात हैं।ट
`अफ़सोस क्यों? जो हुआ, सो हुआ! पुराने दुख की याद करते रहेंगे,
तो वर्तमान के सुख खो जाएँगे!
हादसे के बाद कई दिनों तक मै तीव्र नैराश्य में थी! मेरी एक
हॉबी इंटरनेट पर समय बिताने ने मुझे मानसिक
बल दिया! इंटरनेट में कुछ वेब साइट्स जैसे
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ने मेरे जीवन में फिर से विश्वास
भर दिया! जल्दी ही मै निराशा से बाहर आकर सामान्य बन गयी!
'आपको शायद यह नहीं मालूम होगा कि
सब लोग आप जैसे नहीं होते।'
विद्या को लगा कि नवीन उससे सहानुभूति जता रही है। यह समझकर,
बात को बदलते हुए उसने पूछा -जीवन में आप का लक्ष्य क्या है?ट
`अब तक तो कुछ नही है देखना है! एम.बी.ए के बाद कोई
कंप्यूटर कोर्स में शामिल हो जाऊँगा!ट
`लड़का हो या लड़की, जिंदगी में तो कुछ न कुछ लक्ष्य तो होना ही
चाहिए। कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश ही मनुष्य जाति के
विकास की नींव है। मेरा लक्ष्य तो, पेंटिंग में
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाना है।
अगर हमें अपना लक्ष्य ही न मालूम हो तो हम किस दिशा में जाएँगे?
पिछले कुछ महीनों मै कठिन साधना कर रही हूँ।
`पर्यावरणट पर काम करने वाली एक प्रमुख संस्था की
प्रतियोगिता में मैंने दूसरा स्थान प्राप्त किया है। उसी का
इनाम लेने के लिए
नागपुर जा रही हूँ ! हमारी यात्रा का इंतजाम भी उसी संस्था ने
किया है।
नवीन चकित होकर विद्या को देखता रह गया!
`और एक बात बताऊँ नवीन, देखने में तो आप आवारा नही लगते! लेकिन
लड़कियों को घूरने से उन्हें काफ़ी
क्लेश पहुँचता है! शायद आप सोचते होंगे की आंखों से गलती करेंगे
तो पकड़े नही जाएँगे। लेकिन ऐसी हरकतें छुपती नहीं। जो भी हो, मेरी शारीरिक
विकलांगता की अपेक्षा आपकी मानसिक विकलांगता ज़्यादा ख़तरनाक
है। इस
स्थिति से जल्दी से जल्दी बाहर निकलना आप के लिए बेहतर है !
नवीन कुछ न कह सका। उसने सिर नीचे झुका लिया। उसे लगा की विद्या ठीक
कह रही है ! उसके मन में विद्या के प्रति भावनाएँ एक बार
फिर बदलीं। अब वहाँ आदर और शिष्टाचार ने स्थान ले लिया !
मनुष्य में बदलाव लाने के लिए एक छोटी सी घटना ही काफ़ी होती है ! कुछ लोगों का
बड़प्पन दूसरों के अंतरंग को शुद्ध करके उनके मन की गहराई में
छुपे संस्कारों को बाहर निकालता है। यह दूसरे पर निर्भर करता
है कि वह तुरंत इसका लाभ उठा सकता है या नहीं।
कुछ क्षण के बाद नवीन ने सिर उठाया और बोला -`मुझे माफ कीजिए!
इंटरनेट में जो मनहूस साइट्स मै देखता हूँ उन्होंने मेरा मन
कलुषित कर दिया है ! मेरा विवेक खो गया है! इसने मुझे
मानसिक रूप के कमजोर बना दिया है ....
विद्या उसकी बातों को कटती हुई बोली -टइंटरनेट पर इल्ज़ाम
लगाना भूल है नवीन! टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल
करना हमारी अपनी रुचि पर आधारित है! मैंने बताया था न, मुझे इंटरनेट से कैसी मदद मिली! सब कुछ हमारी मानसिकता में
ही है!
नवीन को लगा वह ठीक कह रही है। वे दोनों,
गाड़ी नागपुर पहुंचने
तक बात करते रहे!
गाड़ी स्टेशन पर रुकी!
विद्या
दादाजी का सहारा लेकर नीचे उतरी और नवीन से बोली -`आपका दिन
अच्छा रहे!ट
जाते जाते वक्त विद्या की निगाहें नवीन से यही सवाल कर रही थीं
कि तुम कुछ कर के तो दिखाओगे ना? ट
नवीन मन ही मन उसका सकारात्मक उत्तर दे रहा था।
गाड़ी अपनी दिशा की ओर बढ़ चली
थी।