लच्छो की बहादुरी (लोक कथा) : हंसराज रहबर
Lachchho Ki Bahaduri : Hansraj Rahbar
किसी गाँव में एक लड़की रहती थी, जिसका नाम था लच्छो। एक दिन वह अपनी सखियों के साथ कुएं पर पानी भरने गई। वहाँ सब लड़कियां अपने सगाई-व्याह की बातें कर रही थीं।
एक सहेली जिसका नाम बन्तो था, बोली-‘‘मेरे पिता ने मेरे ब्याह के लिए कीमती वस्त्र खरीद रखे हैं।’’
दूसरी ने कहा-‘‘मेरे लिए ससुराल में दुलहन के व्याह के सुन्दर वस्त्र तैयार हो रहे हैं। ’’
यों सब लडकियाँ बातें कर रही थीं। कोई अपने भाई की बात कहती थी और कोई मामू की।
लच्छो बेचारी सखियों की बातें चुपचाप सुन रही थी। उसके पास कहने की कोई बात नहीं थी। बहुत दिन हुए-उसके माता-पिता मर चुके थे और वे उसके लिए कोई धन-दौलत भी नहीं छोड़ गये थे। कोई दूसरा सगा-सम्बन्धी भी नहीं था, जिसका सहारा लेती। बेचारी अकेली थी और गरीबी में दिन काट रही थी। उसकी शादी का प्रबन्ध कौन करता?
लेकिन जी चाहता था कि वह भी सखियों की बातचीत में हिस्सा ले, इसलिए उसने योंही एक बात बनाई और कहा-‘‘मेरा चाचा भी परदेश से आ रहा है, वह मेरे लिए बहुत से जेवर, गहने और कीमती कपडे लायेगा।’’
एक बिसाती, जो गाँव में अपना सामान बेचने आया था, कहीं पास ही बैठा लड़कियों की यह बातें सुन रहा था। वह बिसाती एक चालक ठग था और सामान बेचने के बहाने लोगों के भेद मालूम किया करता था। जब उसका दाँव लगता था, लोगों को लूट लेता था।
लच्छो की बात सुनकर वह मन ही मन प्रसन्न हुआ और दूसरे दिन भेस बदलकर उसके घर चला गया। वह अपने साथ कीमती वस्त्र और भूषण भी लाया था। उसने लच्छो से कहा-‘‘मैं तुम्हारा चाचा हूँ। कई साल परदेश में रहकर बहुत सा धन कमाकर लौटा हूँ। मैं तुम्हारा ब्याह अपने एक धनी मित्र के बेटे से करना चाहता हूँ।’’ लच्छो भोली-भाली सरल स्वभाव की लड़की थी। उसने ठग की बातों का सहज में विश्वास कर लिया। उसने घर का सारा सामान बाँधा और ठग के साथ चल पड़ी।
जब वे दोनों ठग के घर की ओर चले जा रहे थे, एक चिड़िया ने चीं-चीं करते हुए कहा ‘बहन लच्छो, तेरी अकल कहाँ खो गई जो तू एक ठग से ठगी गई।
लच्छो पक्षियों की भाषा समझती थी। उसने अपने चाचा से पूछा-‘‘यह चिड़िया क्या कह रही ?’’
ठग ने उत्तर दिया-‘‘चीं-चीं करना और शोर मचाना इन चिड़ियों की आदत है। हमें इसमे क्या मतलब?’’
थोड़ी दूर आगे बढ़े तो उन्हें एक मोर मिला, उसने भी वही बात कही।
फिर एक गीदड़ मिला, उसने भी यही बात दोहराई।
लच्छो के पूछने पर ठग हर बार कह देता था कि शोर मचाना इन पशुओं और पक्षियों की आदत है, हमे इससे क्या मतलब ?
वह ठग लच्छो को साथ लिए अपने घर पहुँचा और घर पहुँचते उसने सारा भेद अपने आप खोल दिया और लच्छो से कहा-‘‘मैं तुम्हारा चाचा या कोई दूसरा सगा- सम्बन्धी नहीं हूँ। मैं तो तुम्हारी सुन्दरता पर मुग्ध हूँ ओर तुम्हारे साथ ब्याह करने के लिए तुम्हे यहाँ लाया हूँ।’’
लच्छो सुनकर बहुत रोई लेकिन अब क्या हो सकता था। उसके लिए अब वहां से भाग जाना भी सम्भव नहीं था। उसे मार्ग के पशु-पक्षियो की बातें याद आई और उसे अफसोस हुआ कि उसने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया। वह वाकई ठग से ठगी गई थी।
ठग जब चोरी और ठगई के लिए बाहर जाता तो लच्छो को अपनी माँ के सुपुर्द कर जाता कि वह उस पर कड़ी निगरानी रखे ओर उसे कहीं बाहर न जाने-दे। ठग की माँ बहुत बूढ़ी थी। उसके मुख पर झुरियाँ थी, गालों का मास लटक गया था और सिर गंजा था।
लच्छो के बाल बहुत लम्बे थे-काले और सुन्दर! नागिन की तरह लहराते हुए। बुढिया को लच्छो के यह बाल बहुत पसन्द थे।
एक दिन जब उसका बेटा ठग घर से बाहर गया हुआ था तो उसने लच्छो से पूछा-‘‘तुम्हे यह सुन्दर बाल कहाँ से मिले हैं?’’
लच्छो ने एकदम बात बनाई, बोली-‘‘यह सब मेरी माँ की कृपा है। उसने एक दिन मेरा सिर ओखली मे रखकर ऊपर से मूसल मारे। जैसे-जैसे मूसल पड़ते थे, मेरे बाल लम्बे होते जाते थे। हमारे गाँव में बाल बढ़ाने का यह पुराना रिवाज है।’’
बुढ़िया बोली-‘‘मेरा सिर तो गंजा है। ओखली में सर देकर और ऊपर से मूसल मार कर क्या मेरे बाल भी लम्बे हो जायेंगे?’’
लच्छो ने झट उत्तर दिया-‘‘क्यों नहीं? जरूर हो जायेंगे।
बुढ़िया बाल उगाने की खुशी में ओखली में सिर देने के लिए तैयार हो गई।
दूसरे दिन ठग जब काम से बाहर गया, बुढ़िया ने लच्छो से अपने बाल बढ़ाने को कहा। लच्छो ने ओखली में उसका सिर रख कर ऊपर से धड़ाधड़ मूसल मारना शुरू किया।
मूसल की चोटों के नीचे बुड़िया तड़पने लगी, और पाँच-सात चोटों में ही मर गई।
लच्छो ने बुढ़िया को विवाह के वस्त्र पहनाये और घूँघट निकाल कर दीवार के सहारे एक कोने में बैठा दिया। इसके बाद लच्छो ने घर का थोड़ा धन और सामान समेटा और वहाँ से भाग खड़ी हुई।
रास्ते में उसे ठग मिला। वह कहीं से चक्की के दो पाट चुरा कर लौट रहा था। लच्छो उसे देखते ही एक झाड़ी में छिप गई। ठग ने लच्छो को देख तो लिया, मगर पहचाना नहीं। वह समझा कि कोई औरत किसी काम से घर आई है और इस ख्याल से कि कहीं वह चोरी का माल देख कर शोर न मचादे, वह खुद छिपता हुआ अपनी राह चलता रहा।
जब वह बहुत दूर चला गया तो लच्छो झाडी की ओट से बाहर निकली और अपने गाँव की और चल पड़ी।
ठग जब घर पहुँचा तो उसने लच्छो को आवाज दी। उसे कोई उत्तर नहीं मिला।
जब बार-बार पुकारने पर लच्छो न बोली, तो उसे क्रोध आ गया, और उसने चक्की के पाट बुढ़िया के सिर पर दे मारे। वह नये वस्त्रों में बुढ़िया को लच्छो समझ रहा था। लेकिन जब उसे मालूम हुआ कि वह लच्छो नहीं उसकी माँ है तो वह फफक-फफक कर रोने लगा। उसने समझा कि उसकी माँ चक्की के पाटों ही से मरी है। ठग ने मन ही मन में निश्चय किया कि वह लच्छो को वापस लाकर ही दम लेगा।
लच्छो गाँव में लौटकर आई तो ठग के डर से अपनी एक सखी के घर रहने लगी। जब एक महीना इसी प्रकार बीत गया तो उसने सोचा कि ठग अब नहीं आयेगा तो वह अपने घर में रहने लगी। जब रात को सोती तो अपनी रक्षा के लिए एक तेज खंजर अपने सिरहाने रख लेती ।
एक रात जब वह गहरी नींद में सोई पड़ी थी तो ठग आया। उसके साथ तीन ठग और भी थे। उन्होंने सोई हुई लच्छो को चारपाई के साथ बांध दिया, और उठा कर चलते बने।
लच्छो की आँख खुल गई थी, लेकिन वह चुपचाप लेटी रही। जब वह जंगल में पहुँचे तो लच्छो ने धीरे से खंजर निकाला ओर पिछले दो आदमियों के सिर काट डाले, और फिर तीसरे आदमी का भी सफाया कर दिया। लेकिन ठग जान बचा कर पेड़ पर चढ़ गया।
लच्छो ने पेड़ को आग लगा दी। ठग उसके साथ ही जल कर राख का ढेर हो गया।
यों लच्छो ने अपनी वीरता और साहस से ठग पर विजय पाई। वह उसके घर गई और उसका सारा धन ओर सामान छुकड़े पर लाद कर अपने घर ले आई। आसपास के देहात में उसकी वीरता की चर्चा होने लगी।
बहुत से नौजवान उसके साथ ब्याह करने को तैयार थे। लच्छो ने अपनी पसन्द के एक लड़के से ब्याह कर लिया और वे दोनों सुख ओर आनन्द से एक साथ रहने लगे।