लाकर बौने का उपहार : फिजी की लोक-कथा

Laakar Baune Ka Uphar : Fijian Folk Tale

बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक बूढ़ा रहता था। वह हमेशा छोटे-बड़े बच्चों को कोई कहानी सुनाता रहता था । यही उसका पेशा बन गया था, क्योंकि उसे कहानी सुनाने की कला अच्छी तरह आती थी । इस प्रकार उसकी मजेदार मजेदार कहानियां सुनने के बाद गांव के बच्चे उसे कुछ न कुछ उपहार दिया करते थे ।

इन्हीं उपहार की वस्तुओं से वह जीता था । इसीलिए उप- हार के लालच में आकर वह अपनी कहानियों को कभी समाप्त ही नहीं होने देता था । फिर भी उसकी लम्बी-लम्बी कहानियों में नयी-नयी कहानियों जैसी उत्सुकता बनी रहती थी । इसीलिए कहानी सुनने के लिए बच्चे प्रतिदिन उसके पास आते रहते थे ।

एक शाम को कहानी सुनने के बाद सब बच्चे अपने घर चल दिये। उनमें एक युवक भी था । आज उसने उस बूढ़े को एक चवन्नी दी थी। पर उसे कल के उपहार के बारे में चिन्ता हो रही थी । इसीलिए वह चिंतायुक्त मुद्रा में घर की ओर चला जा रहा था ।

एकाएक रात के अन्धेरे में उसे किसी जन्तु के रेंगने की आवाज सुनाई दी। उसने ऊपर देखा । वह एक मोटी ओर लम्बी आंगी थी । उसके मन में तुरन्त एक विचार आया, क्यों न इसे मारकर रख लूं और कल बूढ़े को उपहार में दे दूं । इस निश्चय के साथ ही वह आंगी का पीछा करने लगा । अपनी मौत को पीछे आते देखकर आंगी अपना जान प्राण लेकर एक सुरंग में भागी। युवक था बहादुर । उसने भी सुरंग में प्रवेश किया और जमीन के अन्दर उसका पीछा करता रहा ।

कुछ दूर तक आंगी के पीछे दौड़ने के बाद उसे सूखे हुए पत्तों का एक ढेर दिखाई दिया । उसे हटाने पर एक मोटा पाइप मिला, जिसके भीतर से होकर वह छोटे-बड़े पत्थरों के एक ढेर पर जा गिरा । वहां पर बहुत से फटे-पुराने कपड़ों के चिथड़े पड़े थे। उन्हें हटाने के बाद युवक ने अपने को एक साफ-सुथरे कमरे में पाया । उस कमरे के एक कोने में एक बौना बैठा था । परन्तु वहां आंगी का नामोनिशान भी नहीं था ।

इससे युवक को बहुत गुस्सा आ गया। उसने क्रोधभरी आवाज में बूढ़े को डराया। उसने उससे पूछा - "वह आंगी कहां है ? बताओ, नहीं तो मैं तुझे जान से मार डालूंगा ।"

बूढ़ा बहुत भयभीत हो गया था । उसने कांपती हुई आवाज में उत्तर दिया- "मुझे और भयभीत न करो। मैं बहुत वृद्ध हो गया हूं । सच्ची बात तो यह है कि मैं ही उस आंगी के रूप में भाग रहा था । पाताल देवता से मुझे एक चमत्कारी शक्ति मिली है । उसके जरिये मैं अपना रूप मनचाही आकृति में बदल सकता हूं। परन्तु मुझ पर दया करो ! मुझे मारो नहीं ! मुझे यहीं छोड़ दो। इसके बदले में मैं तुझे एक अत्यन्त चमत्कारी शक्ति देने के लिए तैयार हूं ।"

बौने को कांपते देख कर युवक के हृदय में दया आ गई । इसलिए उसने बूढ़े से कहा, "तेरे बौनेपन पर मुझे तरस आता है । परन्तु तुम मुझे वह चमत्कारी शक्ति दो जिसकी सहायता से मैं हमेशा बलवान रहूं जिससे मौत भी मेरे पास फटक न सके ।”

बौना बोला, "ऐसा ही होगा। तुम मेरे पैरों का स्पर्श करो।"

युवक ने तुरन्त झुककर उसके पैर छू दिये। तब बौने ने तुरन्त अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, "आज से तुझे वह चमत्कारी शक्ति मिले, जो आज तक किसी भी मानव को नहीं मिली है। तुम्हें ही नहीं, तुम्हारे गांव के सब लोगों को यह वरदान देता हूं कि आज से तुम जलते हुए आग के अंगारों पर नंगे पांव चल सकोगे ।"

इतना कहकर लाकर बौना एकाएक गायब हो गया। युवक ने अपने शरीर में एक अलौकिक शक्ति को महसूस किया । फिर वह जिस रास्ते से यहां तक आया था, उसी रास्ते से बाहर निकल गया । घर पहुंच कर उसने सब लोगों को यह खुशखबरी सुनाई । गांव के सभी लोगों ने दिव्य शक्ति को आजमाना चाहा ।

दूसरे दिन गांव के बाहर एक विशाल लम्बा-चौड़ा गढ़ा खोदा गया । उसमें दिन-भर लकड़ियां जलायी गयीं । शाम को जब वह गढ़ा आग के मोटे-मोटे और लाल-लाल अंगारों से भर गया, तब गांव के सब लोग बारी-बारी उसमें उतर उतर कर चलने लगे । आश्चर्यं ! किसी के पांव रत्ती भर भी नहीं जले थे ।

उस दिन से फिजी द्वीपसमूह में स्थित बेका नाम के टापू के समस्त आदिवासियों को आग के अंगारों पर चलने का यह अद्भुत, चमत्कारी वरदान मिल गया है ।

इस द्वीप के आदिवासी आज भी आग के अंगारों पर चलने के महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष करते हैं और लाकर बौने को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

(साभार : एशिया की श्रेष्ठ लोककथाएं - प्रह्लाद रामशरण)

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