कुणनेटी का छोरा : लोककथा (उत्तराखंड)

Kunneti Ka Chhora : Lok-Katha (Uttarakhand)

एक गरीब किसान था । वह घास -फूस की छोपड़ी में रहता था । उसे सभी कुणनेटी के नाम से पुकारते थे । कुणनेटी बूढ़ा होकर मर गया । उसके बाद घर की सारी जिम्मेदारी उसके इकलौते लड़के फगुणू पर आ गई थी । फगुणू को सभी कुणनेटी का छोरा नाम से पुकारने लगे ।

एक बार फगुणू की भेंट राजदरबार में काम करने वाले ठेकेदार से हो गई । उसने फगुणू को मजदूरी पर लगा दिया । काफी दिन मजदूरी करने के बाद ठेकेदार ने उसे एक सौ लाल (तत्कालीन प्रचलित सिक्के) और एक घोड़ा दिया । घोड़े पर सवार होकर फगुणू घर जा रहा था । वह थक गया था । उसने घोड़े से उतरकर पीपल की छांव में बैठने का निर्णय लिया । उसने देखा चार आदमी उसी की ओर आ रहे हैं । उनके रंग ढंग से फगुणू समझ गया कि वे ठग हैं । उनके पहुंचने से पहले फगुणू ने एक लाल घोड़े की पूंछ के नीचे छिपा दिए । जैसे ही वे ठग फगुणू नजदीक आए | फगुणू ने उनसे कहा, ‘‘ मामा! सेमान्या (सेवा मानो, आदरसूचक संबोधन) आपने मुझे पहचाना नहीं ? मैं आपका भांजा हूँ ।‘‘ उसने ठगों के सामने ही घोड़े की पूंछ पर हाथ फेरते हुए कहा,‘‘निकाल, घोड़ा! एक लाल । उसने पूंछ हटाई तो वह लाल नीचे गिर पड़ा । उस लाल को फगुणू ने उठा कर संभाल लिया । घोड़े को देखकर चोरों को लालच आ गया । उन्होंने फगुणू से कहा, ‘‘ भांजे! यह घोड़ा हमें बेच दो ।

‘‘मामा! तुम मुझे जान से मार दो किन्तु मैं यह घोड़ा नहीं बेच सकता ‘‘-फगुणू ने जवाब दिया।

‘‘तू हमारा भांजा है । हम तुझे क्यों मारेंगे ? मामाओं का ख्याल रखते हुए घोड़ा तो तुम्हें बेचना ही पड़ेगा ।‘‘- चारों एक साथ बोले ।

‘‘ठीक है, तुम कह रहे हो, इसलिए मैं घोड़ा बेचने को तैयार हूँ । ‘‘-फगुणू ने कहा।

फगुणू ने कई गुना दाम पर वह घोड़ा बेच दिया ।

जाते समय फगुणू ने उन चारों से कहा,‘‘ घोड़ा पालना काफी कठिन काम है । आप घोड़े को दाने के साथ काफी नमक खिलाएं पानी कम पिलाएं तथा तपती धूप में खड़ा रहने दें ।‘‘

वे ठग उस घोड़े को अपने घर ले गए । उन्होंने घोड़े को काफी नमक के साथ दाना खिलाया । पानी भी कम पिलाया । उन्होंने घोड़े को तपती धूप में बांधे रखा । कुछ देर में घोड़ा मर गया ।

वे ठग दूसरे दिन गुस्से में फगुणू के घर आ गए । उन्होंने घोड़े के मरने का समाचार फगुणू को सुनाया । फगुणू ने बेहोश पड़ने का नाटक किया । आधे घण्टे के बाद वह उठा । उसने ठगों से कहा, ‘‘ कहीं तुमने घोड़े को दाना के साथ अधिक नमक तो नहीं खिलाया ? कहीं तपती धूप में तो नहीं रखा ? ‘‘

ठगों ने कहा,‘‘ हॉ , हमने ऐसा ही किया था । तुमने भी तो हमें ऐसा करने के लिए कहा था ।‘‘

‘‘ नहीं मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए मना किया था । तुमने मेरी बात को ठीक से नहीं समझा।‘‘- रोते -रोते फगुणू बोला ।

चारों ठग फगुणू के घर से वापस लौट आए । उन्होंने आपस में विचार विमर्श किया कि फगुणू को फिर कभी बुरी तरह ठग लेंगे ।

एक दिन फगुणू लकड़ी लेने जंगल गया । उसे वहां दो तितराले (एक प्रकार का जंगली जीव ) दिखाई दिए । वह उन तितरालों को अपने घर ले आया । दूसरे दिन उसने एक तितराला अपने घर में ही बांध दिया । वह अपनी मॉ से बोला, ‘‘ माँ ! आज घर में बहुत अच्छा खाना बनाना । मैं उन चारों ठगों को खाने पर बुलाऊंगा ।‘‘ दूसरे दिन एक तितराले को अपने साथ लेकर फगुणू उसी रास्ते पर चल पड़ा जिस रास्ते वे चार ठग आते थे । रास्ते में उनकी भेंट फगुणू से हो गई । फगुणू ने उन्हें अपने घर आने का न्यौता दिया । वे राजी हो गए। फगुणू ने अपने साथ लाए तितराले से कहा, ‘‘ जाओ, मेरे घर जाओ । मेरी माँ से कहना मेरे घर पहुंचने तक बारह व्यंजन, छत्तीस प्रकार बनाना । मेरे साथ मेरे चार मामा भी आएंगे । ‘‘- यह कहकर उसने तितराले की रस्सी खोली और उसे छोड़ दिया ।

चारों ठग जब फगुणू के साथ उसके घर पहुंचे तो उनकी नजर वहाँ बंधे तितराले पर पड़ी । उनको आश्चर्य हुआ । घर पर बंधे तितराले का रंग भी वही था जो ठगों ने जंगल में देखा था। उन्होंने घर में बंधे तितराला को वही तितराला समझा जिसके पास फगुणू ने अपनी माँ के लिए संदेश भेजा था । फगुणू ने अपनी माँ को सुबह घर से निकलने से पहले ही सब बता रखा था । फगुणू ने तितराले को पुचकारते हुए कहा, ‘‘शाबाश! तूने हमारा समय बचा दिया । माँ को मामा लोगों के लिए भी खाना बनाने के लिए समय पर बता दिया ।‘‘

पहले फगुणू ने चारों ठगों को खाना खिलवाया । उनके खाने के बाद वह भी खाने पर बैठ गया । उसने अपनी माँ से कहा,‘‘ मेरे लिए घी कहाँ है ?

उसकी माँ गुस्सा जताते हुए बोली, ‘‘घ्यू न स्यू, खा मेरु ज्यू ( घी नहीं है। इसके बदले मेरा जी (हृदय) को खा ।‘‘ यह सुनते ही फगुणू ने उन चारों ठगों के सामने गुस्सा दिखाते हुए अपनी माँ के गले के नीचे चाकू से वार किया । वहाँ पर खून ही खून हो गया । उसकी माँ वहीं रसोईघर में गिर पड़ी । फगणू ने अपनी माँ के गले के नीचे एक थैली पर बकरे का खून भरा हुआ था । इसी थैली पर उसने चाकू से वार किया था । ठगों ने समझा फगणू ने अपनी माँ को मार दिया है।

‘‘भांजे! यह तुमने क्या किया ? तुमने हमारी बहिन को मार दिया‘‘- एक ठग बोला ।

‘‘मामा जी! जब भी मुझे गुस्सा आता है, मैं ऐसा ही करता हूँ । आप चिन्ता मत करो । मैं अभी माँ को ठीक कर देता हूँ ।‘‘

यह कहकर फगुणू ने अपने हाथ में कुछ चावल और काली दाल के बीज लिए । उसने इन्हें हाथ में लेकर उसने अपनी माँ पर जोर से मारा । मुँह के अन्दर वह कुछ बुदबुदाया । कुछ देर बाद उसकी माँ उठकर खड़ी हो गई । यह देखकर ठगों को आश्चर्य हुआ । जाते समय ठग फगुणू से बोले, ‘‘ भांजे! आज के बाद हम तुमसे न तो कुछ मांगेगे और न खरीदेंगे लेकिन आज तुम्हें दो चीजें तो हमें देनी ही पड़ेंगी । ‘‘

‘‘क्या ?‘‘- फगुणू ने कहा ।

‘‘एक तो तितराले को बेचना होगा। दूसरा हमें भी वह तरीका बताना होगा जिससे तुमने अपनी माँ को मारकर जिन्दा किया ।‘‘- ठगों ने कहा ।

‘‘ठीक है। मामाओं की बात कैसे टाली जा सकती है ?‘‘- यह कहकर उसने एक कागज पर ‘अकणम-बकणम-जकणम जा, जा जा जा सकणम पा‘ लिखकर उन्हें दे दिया और कहा-‘‘यही वह मंत्र है जिससे आदमी को मारकर फिर से जीवित किया जा सकता है ।‘‘

फगुणू ने उन ठगों को वह तितराला भारी कीमत में बेच दिया ।

रास्ते में ठगों ने तितराला से कहा,‘‘ हमारे घर जाओ । हमारी पत्नियों से कहो कि घर पहुंचने से पहले हमारे लिए खाना बनाकर रखें । यह कहकर उन्होंने तितराला को छोड़ दिया । तितराला जंगल में चला गया । जब वे ठग घर पहुंचे तो वहाँ कोई तितराला नहीं था । उन्हें जोर की भूख लगी हुई थी । उनकी पत्नियों ने खाना भी तैयार नहीं किया था । उन्होंने समझा कि तितराला उनके घर तक पहुंचा होगा किन्तु उनकी पत्नियों की लापरवाही से वह भाग गया होगा ।

उन्होंने गुस्से में आकर चाकू से अपनी अपनी पत्नियों के गले के नीचे वार कर दिया । उनकी पत्नियां मर गई । उन्होंने दाल और चावल के दाने हाथ में लेकर फगुणू के दिए मंत्र को पढ़ डाला पर उनकी पत्नियां जीवित नहीं हुई ।

पत्नियों की मौत से ठगों को बहुत दुख हुआ । उन्हें फगुणू पर बहुत गुस्सा आया । वे फगुणू को जान से मारने के इरादे से उसके घर पहुंच गए । फगुणू के घर पहुंचने पर ठगों ने उसकी माँ को फूट फूट कर रोते हुए देखा । वह अपना माथा पीटकर कह रही थी, ‘‘ हाय! क्या करूं ? मेरा बेटा मर गया है । देखो ,उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं ।‘‘

ठगों ने देखा । उनका गुस्सा उतर गया । फगुणू मरा नहीं था, उसने अपने शरीर पर गुड़ का लेप किया था । इसलिए मक्खियां भिनभिना रही थी । ठगों ने समझा कि फगुणू मर गया है । वे खुश हो गए । वे फगुणू की माँ से बोले,‘‘ बहिन ! जो होना था वह हो गया । अब हमें भांजे का खटुला (अर्थी) तैयार करना होगा ।

‘‘ हमारे गाँव का विधान है कि खटुला माँ को ही तैयार करना पड़ता है ।‘‘- यह कहकर फगुणू की माँ ने खटुला तैयार किया । उसने इसमें फगुणू को लिटा लिया । खटुला इस ढंग से बांधा जिससे वह आसानी से खुल भी सके । फगुणू के खटुले को श्मशान घाट ले जाने से पहले उसकी माँ ने उन ठगों को समझा दिया कि खटुले को यहां की रीति के अनुसार एक घण्टे तक धार में रखकर फिर वापस घर आना पड़ता है । इसके बाद श्मशान घाट में पूरे खटुले को गाड (नदी) में बहाया जाता है ।

फगुणू का मकान बस्ती से दूर निर्जन स्थान पर था । इसलिए वे चार ठग ही फगुणू के खटुले को ले गए । उन्होंने उसे धार में छोड़ दिया और फगुणू के घर वापस आ गए ।

धार में जहाँ पर फगुणू का खटुला रखा हुआ था, वहाँ से एक ग्वाला गुजर रहा था । फगुणू ने उससे कहा, ‘‘ दोस्त! कुछ लोगों ने मुझे जबरदस्ती इस खटुले में बांध लिया है । मुझे खोल दो ।‘‘

उस ग्वाले ने फगुणू को बंधनमुक्त कर दिया । फगुणू ने उस खटुले में अपने ही आकार का पहले से तैयार एक पुतला रख दिया । वह पास के उड्यार ( गुफा) में छिप गया ।

थोड़ी देर में वहाँ चारों ठग पहुंचे । वे खटुले को कंधे में लादकर श्मशान घाट ले गए । वहाँ उन्होंने खटुले को गाड में बहा दिया । वे खुशी खुशी वापस फगुणू के घर आने लगे । जब वे फगुणू के घर पहुंचे तो उन्होंने फगुणू को घर में हुक्का पीते हुए देखा । वे आश्चर्य से बोले,‘‘ भांजे! तुम जिन्दा हो ? ‘‘

‘‘ मामा जी! तुम मेरे खटुले को नदी में बहाकर अभी आ रहे हो । मैं जिन्दा कैसे हूँ ? यह गुप्त रहस्य मैं तुम्हें इसलिए बता रहा हूँ कि तुम मेरे मामा हो । जब तुमने मुझे खटुले सहित गाड में बहाया तो थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने नदी में छलांग लगा दी थी । जब कोई आदमी चाहे वह जिन्दा हो या मरा, खटुले सहित नदी में बहाया जाए और इसके तुरंत बाद यदि कोई गाड में छलांग मारे तो मरा हुआ आदमी जिन्दा हो जाता है । छलांग लगाने वाली की भी उम्र दो गुनी हो जाती है । अगर उसकी पत्नी मरी हो तो वह भी जीवित हो जाती है । ‘‘- फगुणू ने ठगों को समझाया ।

ठग फगुणू के घर से वापस चले गए । उन्होंने तय किया कि चार ठगों में से दो ठगों का खटुला तैयार किया जाएगा । शेष दो ठग गाड में छलांग लगाएंगे । इससे उनकी आयु भी दो गुनी हो जाएगी और उनकी पत्नियां भी जीवित हो जाएंगी । ठगों ने ऐसा ही किया । वे पानी में डूबकर मर गए । जब ठगों के मरने का समाचार राजा को मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ । राजा की कोई संतान नहीं थी । राजा ने फगुणू को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । वह अपनी माँ के साथ सुखपूर्वक राजमहल में रहने लगा ।

(साभार : डॉ. उमेश चमोला)

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