कुल्हाड़ी (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Kulhadi (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

गाँव में कभी एक ज्योतिषी आया था और भविष्यवाणी कर गया था कि वेलन एक तीन मंजिले मकान में रहेगा, जिसके चारों ओर बड़ा बाग भी होगा। यह सुनकर कोयल गाँववाले वेलन का मजाक उड़ाने लगे क्योंकि वही गाँव का सबसे बेचारा और गरीब आदमी था। उसके पिता के पास जो थोड़ी-बहुत जमीन-जायदाद थी, वह उसने गिरवी रख दी थी, और अब उसका पूरा परिवार दूसरों की जमीनों पर बहुत थोड़े पैसों पर काम करने लगा था। वेलन को जरूर तीन मंजिला घर मिलेगा-वाह!-उसका मजाक उड़ाने वाले कहते. लेकिन तीस-चालीस दिन बाद यह ज्योतिषी उन्हें मिलता तो वे उसे बिलकुल सच भविष्यवाणी करने के लिए जरूर शाबासी देते। मालगुडी कस्बे के एक सिरे पर बने महलनुमा कुमार बाग का वह अकेला निवासी हो गया था।

वेलन जब अठारह वर्ष का हुआ, उसने घर छोड़ दिया। उसके बाप ने दोपहर का खाना देर से लाने के लिए एक दिन उसे चाँटा मारा, तब बहुत से लोग आसपास खड़े थे। वेलन ने खाने की टोकरी जमीन पर रखी, एक क्षण घूरकर बाप की ओर देखा और लौट पड़ा। घर न जाकर वह सड़क पर ही चलता रहा, तब तक चलता रहा, जब तक शहर न पहुँच गया। दो दिन वह भूखा-प्यासा रहा, भीख माँगकर खाता रहा, और मालगुडी पहुँचकर बहुत ठोकरें खाने के बाद, एक बूढ़े के साथ बाग लगाने में उसकी मदद करने के लिए उसके साथ रहने लगा।

बाग अभी बूढ़े के दिमाग में ही था, जमीन पर नहीं उतरा था। जमीन जरूर काम यही था कि एक-एक करके इन पेड़-पौधों को साफ करे। कड़ी धूप में हर रोज वह हाथ से इनको साफ करता रहता था। धीरे-धीरे जंगल साफ हो गया और फुटबाल के समतल मैदान में बदल गया। उसकी तीन दिशाओं में बाग की सरहद बनाई गई और एक तरफ घर बनाने की योजना बनी। जिस समय आम के पेड़ों में बौर आने शुरू हुए घर बनाने का काम भी शुरू हो गया। फिर जिस समय नीम के पेड़ों में कुछ दूर तक किल्ले फूटने लगे, तब मकान की दीवालें भी उठनी शुरू हो गई।

सामने पार्क में तरह-तरह के फूल बो दिये गये, जो एक दिन खिलकर चारों ओर लहलहाने लगे। अब वेलन को दीवाल बनाने वालों के साथ प्रतियोगिता करनी पड़ गयी, क्योंकि मालिक बूढ़ा अचानक बीमार हो गया और वह प्रमुख माली बन गया था। वेलन को अपने पद और दायित्व पर गर्व होने लगा। वह मकान बनाने वालों को काम करते ध्यान से देखता और पौधों को पानी पिलाता हुआ उनसे फुसफुसाकर कहता, 'बच्चों, अब तेजी से बढ़ना शुरू करो। मकान रोज बनता जा रहा है। वह अगर हम से पहले तैयार हो गया तो लोग हम पर हँसेंगे।' वह पेड़ों में खाद डालता, जड़ों को हवा देता, डालियों को कतरता और उन्हें रोज दो बार पानी से तर करता-लगता कि वह प्रकृति से खेल रहा है और प्रकृति भी उसके इशारे पर चल रही है। मालिक तथा उसका परिवार जब यहाँ रहने आया तो उसने एक शानदार बाग उनको सुपुर्द कर दिया।

घर के ऊपर एक गुंबद भी आसमान में खड़ा था। छज्जे नक्काशीदार लकड़ी से सजे थे, चिकने, गोल खंभे, बड़े बरामदे, संगमरमर के चौकोर धारियों में लगे फर्श, बड़े-बड़े एक के पीछे दूसरे फैले हॉल, सब मिलाकर भवन इतना शानदार होकर निखर आया था कि वेलन स्वयं से प्रश्न करता, 'क्या कोई जीवित प्राणी इसमें रह सकता है? मैं सोचता था कि ऐसे भवन स्वर्ग में ही होते होंगे!" जब उसने रसोई और भोजनशाला देखी तो बोला, 'यहाँ तो पूरा गाँव भोजन कर सकता है!' ठेकेदार के सहायक ने उसे बताया, 'हमने तो इससे भी बहुत ज्यादा बड़े भवन बनाये हैंजो दो लाख में बने होंगे। यह मकान तो कुछ भी नहीं है। इसमें तुम्हारे मालिक का ज्यादा-से-ज्यादा एक लाख लगा होगा। औसत मकान से यह कुछ ही बड़ा है, और क्या...।' अपनी कोठरी में लौटकर वेलन इस मकान के विस्तार, शोभा और खर्च के बारे में देर तक सोचता रहा...। उसका सिर चकराने लगा। फिर वह नीम के उग रहे पौधे के पास गया और उसे पकड़कर कहने लगा, 'तेजी से बढ़ो, छोटे मियाँ। कम-से-कम मेरी ऊँचाई तक तो पहुँची। मैं तुम्हें अपनी अंगुलियों से पकड़कर हिला सकता हूँ। उगो, बढ़ो, मोटे हो जाओ। तना इतना चौड़ा करो कि दो जोड़ी हाथ उसे न घेर सकें। ऊपर उठो, फैलो। इस महल के साथ खड़े होने योग्य विशाल बनो. नहीं तो मैं तुम्हारी जड़ उखाड़कर फेंक दूंगा।'

नीम का पेड़ जब इस कल्पना के आस-पास पहुँचने लगा, तो भवन को एक विशेष गरिमा प्राप्त होने लगी। साल-दर-साल की गर्मियों और मानसून ने उसके दरवाजों और खिड़कियों का रंग-रोगन जो पहले चमकता रहता था, फीका कर दिया था, लकड़ी की कारीगरी टूटने लगी थी और दीवालों का असली रंग उड़कर उनकी जगह तरह-तरह के धब्बे और चितियाँ उभरने लगी थीं। भवन की शोभा कम हो गयी थी और अब यह ज्यादा मानवीय लगने लगा था। नीम की डालियों में सैकड़ों तोते, मैना और अनेक नामहीन पक्षी रहने लगे थे, उसकी छाया के नीचे मालिक के पड़पोते और अभी भी युवा पोते खेलते और लड़ते-झगड़ते थे। मालिक छड़ी हाथ में लिये घूमता रहता। मालकिन, जो गृह प्रवेश के दिन बड़ी शान-बान से, मोटी, तन्दुरुस्त इधर-उधर घूमती-फिरती थी, अब सूखकर बुढ़िया हो गई है, बाल सफेद पड़ गये हैं, और बरामदे में कुर्सी पर बैठी उदास आँखों से पेड़ों को देखती रहती है।

खुद वेलन भी बहुत कुछ बदल गया है। अब उसे बाग की देखभाल में अपने सहायकों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसके माँ-बाप, बीवी और चौदह में से आठ बच्चे मर चुके हैं। उसने अपनी घरेलू जायदाद वापस ले ली थी, जिसे अब उसके बेटे और दामाद संभालते हैं। वह पोंगल, नववर्ष और दिवाली के दिनों में गाँव जाता था और अपने साथ हमेशा एक नाती-पोता ले आता था, जो सब उसे बहुत प्यारे लगते थे।

वेलन अब पूरी तरह संतुष्ट और प्रसन्न था। जीवन से उसकी और कोई माँग नहीं थी। उसके मालिक का परिवार भी शान्तिपूर्ण जीवन बिता रहा था। ऐसा नहीं लगता था कि जीवन की ये खुशियाँ किसी दिन खत्म हो जायेंगी।

लेकिन तभी मौत ने दस्तक दी, वह कोने में आकर खड़ी हो गयी। नौकरों की कोठरियों से माली को अपनी झोपड़ी में खबर मिली कि मालिक बहुत बीमार हैं और उन्हें ऊपर के कमरे से-जिसे बड़े शानदार ढंग से सजाया गया था-नीचे के कमरे में ले आया गया है। डॉक्टर और परिचित लगातार आ-जा रहे हैं, और वेलन को अब फूल-तोड़ने वालों से ज्यादा सावधान रहना पड़ता था। एक रात उसे जगाकर बताया गया कि मालिक चल बसे हैं। उसे एकदम ख्याल आया, 'अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा! बेटे तो अच्छे नहीं हैं!'

उसका डर गलत भी नहीं था। बेटे सचमुच अच्छे नहीं थे। वे इस घर में एक साल और रहे, आपस में लड़े-झगड़े और दूसरे घर में रहने चले गये। साल भर बाद एक और परिवार किराये पर रहने आ गया। वेलन को देखते ही उन्होंने कहा, 'बुड़े, माली, हमारे साथ कोई चालबाजी मत करना। हम जानते हैं तुम लोग कैसे होते हो! ठीक से नहीं रहोगे तो निकाल दिये जाओगे।' वेलन की जिन्दगी असह्य होने लगी। इन लोगों को बगीचे का शौक नहीं था। वे फूलों की क्यारियों पर चलते, बच्चे पेड़ों पर चढ़कर कच्चे फल तोड़ते रहते और बगीचे की पगडंडियों पर गड़े खोद देते। वेलन को इन्हें मना करने का साहस नहीं होता था। वे उसे बाहर दूसरे काम-धंधों पर भेजते, गाय धुलवाते, हुक्म चलाते और बाग का काम कैसे किया जाता है, इस पर भाषण देते। उसे अब इस काम से चिढ़ हो गयी और वह सोचने लगा कि नौकरी छोड़कर गाँव चला जाये। लेकिन यह विचार ही उसके लिए असह्य था-वह अपने पेड़-पौधों के बिना नहीं रह सकता था।

लेकिन भाग्य ने उसका साथ दिया। किरायेदार चले गये। घर कई वर्षों तक खाली पड़ा रहा। उसमें ताला लगा दिया गया था। कभी-कभी मालिक का कोई बेटा आता और बाग में घूम-घामकर चला जाता। फिर उनका आना भी बंद हो गया। वे मकान की चाबी वेलन को ही दे गये। कभी-कभी कोई किरायेदार आता, मकान खुलवाकर देखता और यह कहकर चला जाता कि यह तो काफी टूट-फूट चुका है, दीवालों का पलस्तर झड़ रहा है, दरवाजों और खिड़कियों का रंग-रोगन बिलकुल उतर चुका है, एकाध टुकड़ा ही कहीं-कहीं रह गया है, दीमक ने अलमारियाँ खा डाली हैं.। एक साल बाद दूसरा किरायेदार आया, फिर तीसरा, फिर चौथा। कुछ महीने से ज्यादा यहाँ कोई नहीं रहा। फिर इसके बारे में लोग कहते कि यह मकान तो भुतहा है...।

मालिकों ने भी देखने के लिए आना बिलकुल बंद कर दिया। वेलन अब पूरी तरह इसका मालिक हो चुका था। चाबियाँ उसके पास रहती ही थीं। वह बूढ़ा भी हो रहा था। यद्यपि वह काम में लगा रहता, रास्तों पर घास उग आयी थी, सामने के बाग में फूलों के पौधों के इर्द-गिर्द काँटे की झाड़ियाँ उग आयी थीं। फलों के पेड़ जरूर नियम से फलों की बौछार करते रहते थे। इसलिए मालिकों ने फलों का बाग तीन साल की लीज पर किसी को दे दिया।

अब वेलन बहुत वृद्ध हो गया था। उसकी झोपड़ी में छेद हो गये थे और उनमें नया पुआल भरने की उसमें शक्ति नहीं रही थी। इसलिए वह उसे छोड़कर मकान के सामने वाले बरामदे में रहने लगा। बरामदा काफी बड़ा था और फर्श पर संगमरमर लगी हुई थी। बूढ़ा यहाँ क्यों नहीं रह सकता था! चूहे, चमगादड़ों से तो यहाँ रहने का उसे ज्यादा अधिकार था।

साल में एकाध बार कभी मूड होता तो वह कमरे खोल-खोलकर उनकी सफाई-धुलाई करता। फिर उसने यह करना भी छोड़ दिया। इन बातों की चिंता करने के लिए वह बहुत बूढ़ा हो चुका था।

साल गुजरते गये, कोई परिवर्तन नहीं हुआ। मकान को 'भूत बंगला' कहा जाने लगा और लोग इसके पास फटकने से भी बचने लगे। वेलन को इस स्थिति से कोई शिकायत नहीं थी। उसके लिए यही ठीक था। तीन-चार महीने बाद वह अपने बेटे को शहर भेजता कि मालिकों से तनख्वाह ले आये। यह इस प्रकार अनंत काल तक चलता रह सकता था. लेकिन एक दिन एक कार फाटक पर आकर रुकी और उसने हार्न बजाया। वेलन चाबियाँ लेकर वहाँ पहुँचा।

'तुम्हारे पास चाबियाँ हैं? फाटक खोलो,' कार के भीतर से किसी का हुक्म आया।

'बगल में एक छोटा दरवाजा है, ' वेलन ने धीरे से कहा।

'फाटक खोलो कार के लिए।'

वेलन भीतर से एक फावड़ा उठाकर लाया और फाटक के आगे-पीछे जमी घास-फूस और मिट्टी को साफ करने लगा। फिर जंग लगा दरवाजा खड़-खड़ करता धीरे-धीरे खुलने लगा।

उन्होंने सब दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दिये और हर हिस्से का बारीकी से मुआयना करके कहने लगे, 'तुमने देखा, गुंबद में भी दरारें आ गयी हैं। दीवालें तो चटक ही चुकी हैं.और कोई उपाय नहीं है। अगर हम चीजों को ध्यान से तोड़ें तो कुछ सामग्री को बाद में इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन मुझे लगता है कि लकड़ी की चीजें भी भीतर से पोली पड़ चुकी हैं। ईश्वर ही जानता है कि किस पागलपन के तहत पुराने लोग ऐसे मकान बनाते थे।'

फिर उन्होंने बगीचे का दौरा किया और कहा, 'इस जंगल की तो हर चीज साफ करनी होगी। यहाँ कुछ नहीं रहना चाहिए.।' एक लंबे-चौड़े आदमी ने वेलन की ओर देखकर कहा, 'तुम यहाँ के माली लगते हो? हमें बाग की कोई जरूरत नहीं है। बाउंडरी पर चार-छह पेड़ों को छोड़कर बाकी सब पेड़ काटने होंगे। जरा भी जगह बेकार नहीं करनी है। और यह फूलों का बगीचा. ठीक है. पर यह पुराने ढंग का है और इसके अलावा सामने का हिस्सा तो बिलकुल बेकार नहीं किया जा सकता. ।'

एक हफ्ते बाद पुराने मालिक का एक बेटा आया और वेलन से बोला, 'तुम्हें अब गाँव वापस जाना होगा। हमने एक कंपनी को घर बेच दिया है। उन्हें बगीचे की जरूरत नहीं है। वे फलों के पेड़ भी काट रहे हैं, लीज वाले को वे उसका भुगतान कर देंगे। वे बगीचा और इमारत दोनों खत्म कर देंगे। इस जमीन पर वे छोटे-छोटे बहुत-से मकान बनायेंगे. घास के एक पत्ते के लिए भी जगह नहीं छोड़ेंगे।"

अब यहाँ जबरदस्त काम-धाम शुरू हो गया, बहुत से लोग आने-जाने लगे और वेलन अपनी झोपड़ी में रहने चला गया। जब थक जाता तो लेटकर सो जाता। बाकी समय बाग में टहलकर अपने लगाये पेड़-पौधों को देखता रहता। उसे पंद्रह दिन का समय दिया गया था। अब हर क्षण उसे कीमती महसूस होता, और वह इन पौधों के साथ आखिरी सेकेंड तक बना रहता लेकिन..

...नोटिस दिये जाने के दो दिन बाद एक दोपहर जब वह झोपड़ी में पड़ा ऊँघ रहा था, अचानक कुल्हाड़ी की आवाज सुनकर जाग उठा। उसके कानों में किसी बहुत सख्त चीज पर पड़ती कुल्हाड़ी की खट-खट सुनायी देने लगी। वह उठा और बाहर दौड़ा। देखा कि चार आदमी नीम के चौड़े तने पर कुल्हाड़ियों से चोट कर रहे हैं।

'रुको, इसे मत काटो," वह जोर से चीखा और डंडा उठाकर काटने वालों को मारने दौड़ा।

उन्होंने आसानी से सामने का वार बचा लिया और पूछने लगे, 'लेकिन बात क्या है ?'

वेलन रोकर कहने लगा, 'यह मेरा बेटा है। इसे मैंने बोया था। मैं इसे बहुत प्यार करता हूँ। इसे मत काटो...।"

'लेकिन यह तो कंपनी का हुक्म है। इसमें हम क्या कर सकते हैं? हम बात नहीं मानेंगे तो हमें निकाल दिया जायेगा और दूसरे लोग आकर इसे काटेंगे।'

वेलन कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, 'तुम मेरे लिए इतना तो कर ही सकते हो. मुझे थोड़ा-सा वक्त दो। मैं अपना सामान बाँधकर यहाँ से चला जाऊँगा। उसके बाद जो चाहो, करना।'

मजदूरों ने कुल्हाड़ियाँ रख दी और बैठ गये।

वेलन पोटली बाँधकर बाहर आया और बोला, 'तुमने इस बूढ़े पर बड़ी कृपा की है।' फिर नीम को देखकर आँसू पोंछा और कहा, 'भाई, जब तक मैं दूर, बहुत दूर न निकल जाऊँ, तब तक मत काटना।"

मजदूर बैठे रहे और बूढ़े को जाते देखते रहे। करीब आधे घंटे बाद काफी दूर से उसकी बहुत धीमी आवाज सुनायी दी, 'अभी मत काटो। अभी मुझे सुनायी दे रहा है। मैं जरा और दूर निकल जाऊँ...।"

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