कुल्हाड़ी के बेंट (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई

Kulhadi Ke Bent (Hindi Satire) : Harishankar Parsai

स्वामी कृष्णानंद (सोख्ता नहीं 'धब्बा') याने भूतपूर्व छोटेलाल मास्टर, वर्तमान एम. एल. ए. ।

और खूबचंद सोंधिया याने भूतपूर्व सोंधिया मास्टर और वर्तमान संसद सदस्य ।

दोनों ने कुल्हाड़ी के बेंट का काम किया, अपने ही वंश पर कुठार चलाया।

सागर के शिक्षक-दिवस की बात है कि शिक्षकों की एक सभा में भाषण में दोनों कुछ इस प्रकार के उद्गार व्यक्त किए-

'शिक्षकों का वेतन क्यों बढ़ाया जाय? वे क्या करते हैं? दिन-भर ऊँघते रहते हैं ।'

दोनों ही पहले शिक्षक थे। दोनों ही ऊँघते रहे और ऊँघते ऊँघते एक संसद के सदस्य हो गए और दूसरे हो गए विधानसभा के सदस्य ! कांग्रेस में ऊँघनेवालों को ही पद मिल जाता है, क्योंकि अगर जाग्रत हुआ तो गड़बड़ करेगा, एकदम हाथ ऊँचा नहीं करेगा । इसीलिए दोनों ऊँघने की जय बोलते हैं- और संसद तथा विधानसभा में ऊँघते रहते हैं ।

कुल्हाड़ी बनवाकर लकड़हारा जब वन में वृक्ष काटने पहुँचा तो उसके सामने अजब उलझन आई कि इस कुल्हाड़ी से वृक्ष कटेंगे कैसे? उसी समय बाँस ने कहा, 'मुझे कुल्हाड़ी में फिट करो और प्रहार करो।'

बाँस का बेंट कुल्हाड़ी में लगाकर लकड़हारे ने वृक्षों पर प्रहार किया और थोड़ी देर में बाँस ने अपना सारा वंश कटवा दिया।

शासन के लकड़हारे ने जब शिक्षक को शोषण की कुल्हाड़ी से काटने का काम आरंभ किया तो कृष्णानंद और सोंधिया झट बेंट बनकर लग गए।

राजनीति के छल-कपट, झूठे सदस्य बनाने के प्रपंच, पाखंड, क्षुद्रता और शोषण में लिप्त कांग्रेसी पदधारी क्या समझें कि शिक्षक का वेतन क्यों बढ़ाना चाहिए ! और वे क्यों चाहें कि शिक्षक खुशहाल हो ? शिक्षक खुशहाल होगा तो पढ़ाई अच्छी होगी, पढ़ाई अच्छी होगी तो देश की जनता समझदार होगी, और अगर जनता समझदार हो गई तो बैल छाप में कौन वोट डालेगा? और बैल छाप में वोट नहीं पड़ेंगे तो स्वामी और सोंधिया जैसे गोस्वामी मेम्बर कैसे होंगे ।

इसलिए अज्ञान तेरी जय ! पाखंड तेरी जय ! कुल-नाश-धर्म तेरी जय !

प्रहरी, 22 जनवरी, 1956

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