कुआन यिन की भविष्यवाणी : चीनी लोक-कथा
Kuan Yin’s Prophecy : Chinese Folktale
लो याँग नदी फ़ूकीं प्रान्त में सबसे ज़्यादा काम आने वाली, सबसे ज़्यादा चौड़ी और सबसे ज़्यादा खतरनाक नदी थी। यह नदी सारे प्रान्त में कच्चा माल और खाना ले जाने का मुख्य जरिया थी। बहुत सारे लोग उस नदी को पार करते हुए मर गये थे पर वे उसको पार करने के लिये उस पर एक पुल नहीं बना सके थे।
एक दिन पतझड़ की एक सुबह को अचानक ही लो याँग नदी में बहुत ज़ोर का तूफान आ गया। यह तूफान इतनी ज़ोर का था कि उस तूफान की हवा के एक ही झोंके ने उसके पास में लगे सारे पेड़ उखाड़ दिये थे और बहुत सारे मकान गिरा दिये थे।
उसी समय नदी में एक छोटा सा जहाज़ यात्रियों को ले कर जा रहा था। वह भी उस नदी में तूफान से उठे भँवर में फँस गया। और फिर हवा और लहरों ने उसको इतना ऊँचा उठा कर किनारे डाल दिया कि जिससे सुबह की रोशनी भी रुक गयी।
उस जहाज में बैठे यात्री सहायता के लिये चिल्लाने लगे, बच्चे डर कर रोने लगे और मुर्गियों, मछलियों और सब्जियों की टोकरियाँ उछल उछल कर नदी के पानी में गिरने लगीं।
उस जहाज में बैठे यात्रियों ने तो यह उम्मीद ही छोड़ दी थी कि वे फिर कभी जमीन पर चल पायेंगे कि तभी सफेद कपड़ों में लिपटी एक स्त्री की शक्ल जहाज पर प्रगट हुई।
उसने अपनी आँखें बन्द की, पानी की तरफ हाथ फैलाये और पानी ने उसका हुक्म माना। उसके हुक्म से हवा रुक गयी, लहरें शान्त हो गयीं और तूफान के बादल छँट गये और सब कुछ शान्त हो गया। यह स्त्री दया की देवी कुआन यिन थी।
जहाज़ पर के सारे यात्री आश्चर्य से उस दया की देवी कुआन यिन की तरफ देखते रह गये और एक एक कर के उसके पैरों पर पड़ गये और उसके सामने अपना सिर झुकाने लगे। कुआन यिन जहाज के एक कोने से दूसरे कोने तक गयी और एक स्त्री की तरफ गयी जिसको बच्चे की आशा थी और जो जहाज़ के एक कोने में खड़ी थी।
वह स्त्री उस देवी को देख कर फुसफुसायी — “धन्यवाद।”
उसने उस स्त्री से कहा — “फौंग साई, तुमको मुझे धन्यवाद देने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम तो खुद ही एक ऐसे बच्चे को जन्म देने वाली हो जो इस नदी पर पुल बनायेगा।”
यह कहने के बाद कुआन यिन वहाँ से गायब हो गयी और फौंग साई के पास उसको बधाई देने के लिये काफी भीड़ इकठ्ठा हो गयी।
फौंग साई कुआन यिन की यह बात सुन कर आश्चर्य में पड़ गयी और घर लौट गयी। कुछ दिन बाद ही उसने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम उसने साई सियाँग रखा।
साई सियाँग बड़ा हो कर एक बहुत ही अच्छा लड़का बना। वह अपने बड़ों का कहा मानता था। जब वह सात साल का हुआ तो वह अपनी माँ की उसके छोटे से खेत पर सहायता करता था। जल्दी ही वह उस खेत को अपने आप सँभालने के लायक भी हो गया।
हर साल उसके जन्म दिन की शाम को उसकी माँ उससे कुआन यिन की भविष्यवाणी दोहराती थी — “याद रखना बेटे कि जब तुम बड़े हो जाओगे तो तुमको लो याँग नदी पर पुल बनाना है। कभी किसी को अपने काम के रास्ते में अड़चन मत डालने देना।”
हर साल साई सियाँग अपनी माँ से कुआन यिन की यह भविष्यवाणी सुनता और अपने मन में यह पक्का इरादा करता कि वह कुआन यिन की इस भविष्यवाणी को जरूर पूरी करेगा।
साई सियाँग जब तीस साल का हुआ तब उसने एक इम्तिहान पास किया जिससे वह सरकार के लिये काम कर सकता था। वह वहाँ बहुत ही लगन से काम करता रहा और एक दिन वहाँ का वजीर बन गया।
हालाँकि उसके पास बादशाह की दी हुई इज़्ज़त और पैसे की कोई कमी नहीं थी फिर भी वह अपने दिमाग में कुछ कुछ सोचता रहता था।
वह वहाँ के प्रान्तों की देख भाल बहुत अच्छे से करता था। वह वहाँ के हर प्रान्त के लोगों की परेशानियों को दूर करने की कोशिश करता था और इसी लिये किसानों से ले कर कुलीन लोगों तक सभी लोग उसकी एक सी इज़्ज़त करते थे।
वह हर साल बादशाह के सामने फ़ूकीं प्रान्त जाने का कोई न कोई बहाना रखता पर हर बार बादशाह अपने उस अक्लमन्द वजीर को अपने पास से कहीं जाने नहीं देता था।
एक शाम साई सियाँग अपने शाही बागीचे बैठा हुआ था कि उसने चींटियों की एक लाइन चट्टान के एक छेद की तरफ जाती देखी तो उसके दिमाग मे एक तरकीब दौड़ गयी।
अगली सुबह उसने एक डंडी के ऊपर शहद लगाया और उसको ले कर शाही बागीचे में आया। जब उसने चारों तरफ देख कर यह पक्का किया कि वह वहाँ अकेला ही था तो उसने एक बड़े केले के पत्ते पर चीनी भाषा के आठ अक्षर लिखे।
उन अक्षरों से उसने लिखा “साई सियाँग़ साई सियाँग अपना काम पूरा करने के लिये घर लौटो।”
फिर वह अपने कमरे में लौट आया। उस कमरे में से वह शाही बागीचा देख सकता था। उसने देखा कि पाँच मिनट के अन्दर अन्दर ही बहुत सारी चींटियाँ उस पत्ते पर उसका शहद खाने आ गयी थीं। आधा घंटे बाद बादशाह भी सुबह की सैर के लिये बागीचे के दरवाजे में घुसे।
बादशाह इधर उधर फूलों और पेड़ों को देखते घूम रहे थे कि उनकी निगाह बड़े केले के पेड़ के एक पत्ते पर पड़ी जिस पर चींटियाँ वह आठ अक्षर की शक्ल में शहद खा रही थीं। उन्होंने वे शब्द ज़ोर से पढ़े — “साई सियाँग़ साई सियाँग अपना काम पूरा करने के लिये घर लौटो।”
यही वह पल था जिसका साई सियाँग इन्तजार कर रहा था। वह अपने कमरे से निकल कर बागीचे में भागा और बादशाह को झुक कर सलाम किया और बोला — “धन्यवाद योर मैजेस्टी। तो मैं कल घर वापस जाऊँ?”
बादशाह आश्चर्य से थोड़ा पीछे हट गये और साई सियाँग को अपने पैरों पर से उठने के लिये कहा और पूछा — “यह तुम क्या कह रहे हो साई? मैंने तो तुमको घर वापस जाने के लिये नहीं कहा। मैं तो केवल ये लिखे हुए शब्द ज़ोर से पढे, थे।”
पर साई सियाँग तो हार मानने वालों में से नहीं था। वह अपना मामला बादशाह के सामने बेताबी से रखता ही रहा — “योर मैजेस्टी, राज्य का हर आदमी जानता है कि आपके कहे शब्द तो शाही हुक्म हैं और जब वे एक बार आपके मुँह से बोले गये तो उनका पालन तो होना ही चाहिये।”
अब बादशाह के पास और कोई चारा नहीं रह गया था सो उनको साई सियाँग की बात माननी ही पड़ी। न चाहते हुए भी उन्होंने अपने वजीर को दो महीने के लिये अपने घर जाने की इजाज़त दे दी और कहा कि वह वहाँ चुआन चू गाँव में मजिस्ट्रेट का काम करेगा।
साई सियाँग बहुत खुश हुआ और अपने घर चला गया। जिस दिन से वह अपने घर आया तभी से उसने बहुत सारे मजदूर लगवा कर उस नदी पर पुल बनवाने का काम शुरू कर दिया।
पर उस पुल की नींव में जो पत्थर डाले जा रहे थे वे ऐसे बहे चले जा रहे थे जैसे नदी के तेज़ बहाव में छोटे पत्थर बहे चले जाते हैं। वह वहाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
समय कम था सो नाउम्मीद सा हो कर उसने समुद्र के ड्रैगन राजा को यह प्रार्थना करते हुए एक चिठ्ठी लिखी कि वह अपने तूफानी पानी को बस तीन दिन के लिये शान्त रखें।
यह चिठ्ठी लिख कर साई सियाँग ने उस चिठ्ठी को वजीर की सील से बन्द किया और उस चिठ्ठी को ले कर समुद्री ड्रैगन राजा के पास ले जाने के लिये अपने मजदूरों में से एक आदमी ढूँढने के लिये गया जो उसको समुद्री ड्रैगन राजा के पास ले जा सके। वहाँ जा कर उसने उनसे पूछा समुद्र की तली तक कौन जायेगा।
एक बदकिस्मत आदमी सिया ते हई ने यह सवाल कुछ गलत सुना और उसको लगा कि उसको मजिस्ट्रेट के सामने बुलाया जा रहा है सो वह चिल्लाया — “मैं यहाँ हूँ, मैं यहाँ हूँ।”
साई सियाँग ने उसको बुलाया और उससे कहा कि वह लो याँग नदी की गहराइयों में जाये और जा कर वह चिठ्ठी समुद्र के ड्रैगन राजा को दे दे। और उसने वह बन्द चिठ्ठी उस आश्चर्य भरे आदमी के हाथ में पकड़ा दी।
दूसरे मजदूर सिया ते हई को नदी के कीचड़ भरे पानी की तरफ ले गये और उसको वहाँ अकेला छोड़ दिया। अँधेरा होने लगा था। जब सब लोग वहाँ से चले गये तो सिया ते हई अपने घुटनों पर बैठ गया और डर और घबराहट से रोने लगा। जब वह रोते रोते थक गया तो वह वहीं नदी के किनारे ही सो गया।
सपने में उसने देखा कि वह समुद्री ड्रैगन राजा के मोती और सीपी से बने एक बहुत बड़े कमरे में खड़ा हुआ था। उसके दाँये हाथ को एक केंकड़ा खड़ा हुआ अपने पैदल सिपाहियों को कुछ हुक्म सुना रहा था और उसके बाँये हाथ को समुद्री ड्रैगन राजा अपने सोने के सिंहासन पर बैठे हुए थे।
सिया ते हई राजा के सिंहासन की तरफ दौड़ा और उनके सिंहासन के सामने जमीन पर लेट कर उनको सलाम किया और हकलाते हुए बोला — “मेरा नाम सिया ते हई है। यह चिठ्ठी आपके लिये है समुद्री ड्रैगन, समुद्री ड्रैगन बादशाह।”
समुद्री ड्रैगन बादशाह ने हाथ बढ़ा कर उसके हाथ से वह चिठ्ठी ले ली और उसको धीरे धीरे पढ़ा। पढ़ कर वह बोले — “जो कुछ भी वजीर ने लिखा है मैं वह कर सकता हूँ पर मैं पानी को केवल तीन दिन के लिये ही हटा सकता हूँ इससे ज़्यादा समय के लिये नहीं।”
उसके बाद समुद्री ड्रैगन बादशाह ने उसकी हथेली पर चीनी भाषा का एक अक्षर लिखा और इशारे से उसको वहाँ से जाने के लिये कहा। सिया ते हई बादशाह की तरफ देखे बिना ही वहाँ से जितनी जल्दी जा सकता था चल दिया।
सुबह की ठंडी कड़क हवा ने सिया ते हई को उसके सपने से जगा दिया। वह नदी के गीले किनारे से उठा तो उसको अपनी हथेली पर लिखा हुआ चीनी भाषा का वह एक अक्षर दिखायी दिया जो समुुद्री ड्रैगन राजा ने उसकी हथेली पर लिख दिया था।
उस एक अक्षर को देख कर उसको अपने सपने की सारी घटनाऐं एक एक कर के याद आ गयीं। वह सुबह के धुँधलके में ही साई सियाँग के घर दौड़ गया। साई सियाँग उस समय सो रहा था।
उसने साई सियाँग के पहरेदारों को धक्का दिया और सीधा उसके सोने के कमरे में चला गया और खुशी से बोला — “मालिक मुझे आप अपनी नींद मे खलल डालने के लिये माफ करें पर मैं समुद्री ड्रैगन राजा से मिला और उन्होंने मुझे यह लिख कर दिया है।”
कहते हुए उसने अपनी हथेली वजीर के सामने बढ़ा कर उसके बिस्तर की सिल्क की चादर पर रख दी।
वजीर ने उसे पढ़ा — “इक्कीसवें दिन यू बजे।”
सो उस महीने के इक्कीसवें दिन शाम को छह बजे चुआन चू गाँव में एक बहुत ज़ोर की गड़गड़ाहट की आवाज सुनी गयी जैसे कि लो याँग नदी का पानी किसी ने उसकी तली दिखाने के लिये वापस खींच लिया हो।
अपने औजार उठाने से पहले साई सियाँग और उसके मजदूरों ने कुछ अगर बत्तियाँ और कागज के नोट उस समुद्री ड्रैगन बादशाह की पूजा के लिये जलाये।
उसके बाद उन्होंने यह कसम खायी कि जब तक उनका काम खत्म नहीं हो जायेगा वे अपने औजार नहीं रखेंगे। तब कहीं जा कर साई सियाँग ने उनको काम शुरू करने का हुक्म दिया।
यह नदी एक मील चौड़ी थी और हालाँकि एक हजार मजदूर इस काम के लिये लगाये गये थे पर फिर भी पहले दिन के अन्त तक पुल का केवल एक तिहाई हिस्सा ही पूरा हो सका। और खाना तो बिल्कुल ही खत्म हो गया था।
साई सियाँग ने अपने मजदूरों को कितना ही धमकाया पर उस के मजदूरों ने तब तक काम शुरू करने से मना कर दिया जब तक कि वे नया राशन नहीं देख लेते।
साई सियाँग तो यह सुन कर बहुत परेशान हो गया कि अब वह क्या करे क्योंकि उसके पास तो पैसे बिल्कुल ही खत्म हो गये थे और बिना खाना देखे वे मजदूर वापस काम पर जाने के लिये तैयार नहीं थे।
ऐसे समय में उसको दया की देवी कुआन यिन की याद आयी जिन्होंने उसकी माँ की जान बचायी थी। बस वह तुरन्त ही घुटनों के बल बैठ गया और मन लगा कर उनकी प्रार्थना करने लगा।
“हे कुआन यिन, तुमने मेरी माँ से कहा था कि मै इस नदी पर पुल बनाऊँगा और आज मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिये यहाँ मौजूद हूँ पर मुझे अपने मजदूरों के खाने के लिये और पैसे चाहिये। हे दया की देवी मुझे बुद्धि दो। मुझे इस समय तुम्हारी बहुत जरूरत है मेरी सहायता करो।”
अगले दिन लो याँग नदी पर एक नाव प्रगट हुई जिसमें सफेद सिल्क के कपड़े पहने एक बहुत सुन्दर स्त्री बैठी हुई थी। उसके बारे में गाँव भर में बात फैल गयी और लोग उसको देखने के लिये वहाँ आने लगे।
उस स्त्री ने अपनी नाव उस भीड़ के पास लगा ली और उनकी धीमी फुसफुसाहट को अपने हाथ के इशारे से चुप कर दिया।
फिर वह बोली — “मैं उस आदमी से शादी करने का वायदा करती हूँ जो कोई मेरी गोद में एक सोने का या चाँदी का सिक्का डालेगा।”
जैसे ही उसने यह कहा कि लोगों ने उसके ऊपर सोने चाँदी के सिक्कों की बौछार कर दी और इतने सिक्के फेंके कि उसकी नाव डूबने लगी। पर आश्चर्य, उन गाँव वालों ने कितने भी सिक्के फेंके पर एक भी सिक्का उस देवी की गोद में जा कर नहीं गिरा।
एक घंटे बाद जब वह नाव उन सिक्कों का बोझ नहीं सँभाल सकी तो उस स्त्री ने उन गाँव वालों को उनके घर वापस भेज दिया।
पर जब साई सियाँग घर जाने के लिये मुड़ा तो उस स्त्री ने उसको अपने पास बुलाया और उससे कहा — “साई सियाँग़ मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली थी इसी लिये मैं तुम्हारी सहायता करने आयी हूँ। लो यह सारा पैसा तुम्हारा है और इसको तुम मेरी भविष्यवाणी सच करने के लिये खर्च करो।”
कुआन यिन ने वह सारे सिक्के नाव में से निकाल कर घास पर साई सियाँग के पैरों के पास फेंक दिये और फिर बिना एक शब्द बोले वहाँ से गायब हो गयी।
बिना एक पल की देर किये साई सियाँग ने भी अपने मजदूरों को काम पर वापस भेज दिया। उसकी मेहनत और पक्के इरादों से उसके मजदूर बराबर काम करते रहे। और समुद्री ड्रैगन बादशाह के नदी में पानी छोड़ने से एक घंटा पहले ही उस नदी पर पुल बन चुका था। इस तरह साई सियाँग ने उस नदी पर पुल बनाया।
Kuan Yin – Kuan Yin is the Goddess of Mercy
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)