कुआन यिन : चीनी लोक-कथा
Kuan Yin : Chinese Folktale
सो यह कुआन यिन कौन थी जो दया की देवी थी और इस तरह से लोगों की सहायता करती थी?
चीन के चाँद के अनुसार बने हुए कैलेन्डर के छठे महीने का उन्नीसवाँ दिन बोधिसत्व की तरह से कुआन यिन के पुरखों के स्वर्ग जाने का सालाना दिन है।
यह कुआन यिन सहानुभूति और दया की देवी है और चीनी बौद्ध लोग उसकी सारी दुनियाँ में जहाँ भी रहते हैं वहीं उसकी पूजा करते हैं।
पर हमेशा से ही वह देवी नहीं थी। यह कहानी यही बताती है कि वह बोधिसत्व कैसे बनी।
यह उस समय की बात है जबकि इतिहास भी नहीं लिखा जाता था। सिंग लिन नाम का एक देश था जिसके राजा के तीन बेटियाँ थीं। उन तीनों बेटियों में उसकी सबसे छोटी बेटी मायो शान सबसे ज़्यादा अक्लमन्द, दयावान और सुन्दर थी।
वह हमेशा जरूरतमन्द लोगों के बारे में ही सोचती रहती थी और उनकी सहायता करती रहती थी। उसकी दया की कहानियाँ महल के दरबारियों और नौकर चाकरों तक में मशहूर थीं।
एक शाम जब वह महल के बागीचे में पाइन के पेड़ के नीचे बैठी हुई थी तो उसने अपने सिर के ऊपर एक सिकाडा को बोलते सुना। उसकी बोली सुनते सुनते उसको नींद आने लगी और वह सो गयी।
अचानक वह सपना देखते देखते सिकाडा की एक चीख सुन कर उठ गयी। वह कूद कर उठी तो उसने देखा कि एक टिड्डा सिकाडा के शरीर के चक्कर काट रहा था।
मायो शान उठ कर सड़क के किनारे रखी एक पत्थर की बैन्च पर चढ़ गयी और वहाँ से वह सिकाडा को टिड्डे की पकड़ से बचाने की कोशिश करने लगी। इससे टिड्डे को गुस्सा आ गया और वह उसकी उँगलियों पर कूद गया।
मायो शान ने तुरन्त ही अपना हाथ खींच लिया। इस तरह हाथ को खींचने में वह सँभल नहीं सकी और उस पत्थर की बैन्च के बराबर से जा रही सड़क पर गिर पड़ी। वह काँप तो गयी पर वह होश में थी। जब वह उठी तो उसके माथे में लगे घाव से खून बह रहा था।
जब उसकी बहिनों ने उसको देखा तो उन्होंने उसको तसल्ली दी पर वह बस कन्धे उचका कर रह गयी और बोली — “मेरे माथे पर लगा यह निशान तो उस सिकाडा को बचाने की केवल एक छोटी सी कीमत है तुम चिन्ता न करो यह जल्दी ही ठीक हो जायेगा।”
जब उसके माथे का घाव भर गया तो वहाँ उस घाव का एक निशान बन गया और वह निशान बाद में फिर एक लाल रंग का निशान बन गया इसी लिये कुआन यिन के सभी तस्वीरों और मूर्तियों में उसके चेहरे पर यह निशान दिखाया जाता है।
मायो शान केवल जानवरों के लिये ही नहीं वह आदमियों के लिये भी उतनी ही दयावान थी। वह किसी दूसरे को दुख सहते नहीं देख सकती थी। जब उसकी माँ एक लम्बी बीमारी के बाद चल बसी तो उसको तसल्ली देना बहुत मुश्किल हो गया।
वह बार बार भगवान से पूछती कि आदमी को इतना दुख क्यों सहना चाहिये और इसके लिये वह क्या कर सकती है।
एक सुबह जब वह अपने सवाल बुद्ध जी की मूर्ति के सामने दोहरा रही थी तो पूरा मन्दिर एक सुनहरी रोशनी से भर गया और वहाँ रखी बुद्ध जी की मूर्ति ज़िन्दा हो गयी।
मूर्ति बोली — “मेरी अच्छी बच्ची, यहाँ से बहुत दूर सुमेरु पहाड़ की चोटी पर एक सफेद कमल का फूल है और जेड का एक लोटा है। अगर तुम्हारे अन्दर हिम्मत है तो उस पहाड़ का रास्ता ढूँढो और उसकी चोटी पर जाओ। तुम उन सारे खतरों, मुश्किलों और रोगों को जीत लोगी जो इस दुनियाँ में हैं।
वहाँ से तुम वह फूल और लोटा लेती आना। आने के बाद तुम पढ़ना और ध्यान करना तो तुम एक दिन जरूर बोधिसत्व बन जाओगी और तुम्हारी यह इच्छा कि तुम सबकी सहायता करो पूरी होगी।”
मायो शान को बुद्ध जी से कुछ और बात करने का मौका ही नहीं मिला क्योंकि वह तुरन्त ही फिर से मूर्ति बन गये थे। पर फिर भी उनके शब्दों ने उसके दिल में एक नयी उम्मीद और तसल्ली जगा दी थी।
उसने तुरन्त ही अपनी एक दासी युंग लीन को बुलाया और उससे जल्दी से जल्दी जाने की इस तरह से तैयारी करने के लिये कहा ताकि वह अपनी यात्रा में आने वाले खतरों का सामना कर सके।
तैयारी करने के बाद मायो शान ने अपने पिता के लिये एक चिठ्ठी छोड़ी और दोनों अपनी यात्रा पर चल दीं। उन्होंने मोटे मोटे तिनकों के जूते पहन रखे थे और कन्धों पर खाने की चीज़ों और बर्तनों की टोकरियाँ ले रखी थीं।
महल छोड़ने के एक महीने बाद वे एक पहाड़ की तलहटी से गुजर रही थीं कि आसमान में बहुत सारे कौए आ गये और आसमान काला हो गया। वे नीचे और और नीचे की तरफ उड़ते आ रहे थे। युंग लीन तो उनको देख कर बहुत डर गयी और चीखने लगी।
उसको डर था कि वे चिड़ियें इतनी नीचे उड़ कर तो उसकी आँखें ही निकाल लेंगीं पर मायो शान ने उसको शान्त किया — “तुम इतना मत डरो युंग लीन। ये चिड़ियें ऐसा नहीं करेंगी जब तक कि इनके पास ऐसा करने की कोई वजह नहीं होगी। ऐसा करो कि थोड़ा सा खाना निकाल लो और उसको इनके सामने जमीन पर फेंक दो क्योंकि मुझे यकीन है कि ये जरूर ही भूखी हैं।”
युंग लीन ने ऐसा ही किया। उसने अपनी टोकरी अपने कन्धे से उतारी और उसमें खाना ढूँढने की कोशिश की। उसमें उसको एक कटोरा उबले हुए ठंडे चावल मिल गये। उसने वे सारे चावल अपने सामने फेंक दिये।
जैसा कि मायो शान ने अन्दाजा लगाया था वे कौए वाकई भूखे थे और इसी लिये वे उनको धमका रहे थे। उन्होंने तुरन्त ही सारे चावल खा लिये और खा कर सब एक साथ पूर्व की तरफ उड़ गये।
युंग लीन ने अपनी मालकिन की इस सूझ बूझ और उसकी इस दया की बहुत तारीफ की जबकि वे दोनों खुद बहुत भूखी थीं और उनके पैर बहुत दुख रहे थे।
अपनी यात्रा के दूसरे महीने के आखीर में वे एक घने जंगल में आ गयीं। मायो शान निडर हो कर उस घने जंगल में से चली जा रही थी।
जब भी कभी सूरज की रोशनी उस जंगल में आ जाती तो वह उसकी जमीन को चमका देती। उस रोशनी में उनको वहाँ कई आश्चर्य देखने को मिले जो उन्होंने यात्रियों से केवल सुने ही सुने थे कभी देखे नहीं थे।
उन दोनों ने वहाँ बहुत तरीके के, शक्लों के, और साइज़ के जानवर पेड़ों के सायों में से निकलते देखे। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अनदेखी ताकत उनको वहाँ से बाहर निकाल रही हो। कभी कभी उनको अजीब अजीब जानवरों की खाल पहने ताकतवर छोटे आदमी भी दिखायी दे जाते।
कुछ देर बाद वे दोनों एक खुली जगह में आ गयीं। वहाँ उन्होंने एक जंगली आदमी उस साफ जगह के सामने से आता देखा। उसके हाथों में उसका एक घायल दोस्त था और वह गुस्से से चीखता चला आ रहा था।
युंग लीन एक बार फिर बहुत डर गयी कि वह आदमी कहीं उन पर हमला न कर दे पर मायो शान ने एक बार फिर उसको चुपचाप और शान्त खड़ा रहने के लिये कहा।
मायो शान ने उससे पूछा — “तुमको यह कैसे लगता है कि वह हम लोगों को कोई नुकसान पहुँचायेगा? यह आदमी घायल है और इसको हमारी सहायता की जरूरत है।”
कह कर मायो शान अपनी दासी को उस साफ जगह की तरफ ले गयी और दोनों ने मिल कर उस घायल आदमी के घावों को धोया।
हालाँकि दोनों आदमियों में से कोई भी उन दोनों स्त्रियों के सामने कुछ नहीं बोला पर फिर भी मायो शान ने देखा कि उन दोनों के पैर उस जंगल में शिकार करते करते घायल हैं और टेढ़े हो गये हैं। सो उसने अपने तिनके वाले जूते उनको दे दिये। उन आदमियों ने उनके वे जूते ले लिये, उनको देखा भाला और सिर झुका कर धन्यवाद दिया।
बिना एक शब्द बोले मजबूत आदमी ने अपने घायल दोस्त को फिर से अपनी बाँहों में उठाया और उस साफ मैदान से चल दिया। मायो शान और यंग लीन भी सुमेरु पहाड़ की खोज में फिर अपनी यात्रा पर चल दीं।
सत्तर दिन के बाद अब उनका खाने का सामान भी खत्म होने पर आ रहा था सो अब वे जंगली फल और बैरी खा कर अपना गुजारा कर रही थीं।
अब उनके पास जूते भी नहीं थे सो उन्होंने अपने पैरों के चारों तरफ पत्ते बाँध लिये थे। हालाँकि उन पत्तों से उनके पैर ठीक से सुरक्षित तो नहीं थे पर फिर भी वे दोनों अपने पक्के इरादे से चलती रहीं चलती रहीं और महल से निकलने के छह महीने बाद सुमेरु पहाड़ पर पहुँच गयीं।
पर यात्रा का सबसे मुश्किल हिस्सा तो अभी बाकी था। सुमेरु पहाड़ पर चढ़ने के लिये बड़े बड़े पत्थर वाली चढ़ाइयाँ बहुत मुश्किल थीं और पहाड़ की बर्फीली चोटियाँ आसमान को छूती नजर आ रहीं थीं। उन लोगों को उन चोटियो ं तक पहुँचने में तीन दिन लग गये।
जब वे उस पहाड़ की चोटी पर खड़ी हुई थीं तो भगवान बुद्ध एक बार फिर उनके सामने प्रगट हुए। उनके एक हाथ में जेड का एक लोटा था और दूसरे हाथ में एक सफेद कमल का फूल था।
बुद्ध जी गूँजती हुई आवाज में बोले — “मेरे अच्छे बच्चों, तुम लोगों ने यह लम्बी यात्रा कर के दिखा दिया कि तुम लोगों में इस काम के लिये कितनी लगन है। और अब मुझे यह भी मालूम है कि तुम लोग अब मेरी ये भेंटें लेने के लिये तैयार हो।
अब तुम लोग यह फूल और लोटा महल ले जाओ और अपने मन्दिर में पूजा की जगह रख देना। रोज तुम लोग आसमान को भेंट चढ़ाना और ध्यान कर के अपनी बुद्धि और समझ को बढ़ाना।
अगर तुम ऐसा करती रहीं तो तुम देखोगी कि एक दिन यह जेड का लोटा पानी से भर जायेगा और इसके पानी में से विलो पेड़ की एक शाख उग जायेगी। वही दिन होगा जिस दिन तुम स्वर्ग चली जाओगी और बोधिसत्व हो जाओगी।”
यह कह कर बुद्ध जी उस बर्फ में अपना कोई भी निशान छोड़े बिना वहाँ से गायब हो गये।
मायो शान और युंग लीन दोनों पहाड़ से नीचे उतर आयीं और तीन महीने में अपने घर लौट आयीं तो उन्होंने अपने शाही घर और सारे आराम छोड़ दिये। वे मन्दिर के आँगन में एक सादे से भूसे के बिस्तर पर सोती थीं।
मायो शान ने वह जेड का लोटा बुद्ध जी के मन्दिर में बुद्ध जी की मूर्ति के सामने रख दिया और कमल का फूल वहाँ बने एक तालाब में डाल दिया। अब वह रोज बुद्ध जी की मूर्ति के सामने बैठती और सारे ज़िन्दा लोगों में मेल रखने के लिये सूत्र का जाप करती।
इस तरह से जप और ध्यान करते करते उनको दो साल बीत गये। इस बीच राज्य के बहुत सारे लोग उनसे बात करने के लिये और उनके साथ ध्यान करने के लिये वहाँ आते रहते थे। इस बीच वह कमल का फूल भी पूरा खिला रहा पर जेड का लोटा अभी भी खाली था।
युंग लीन हर आने वाले को बुद्ध जी का वह वायदा बताती जो उन्होंने मायो शान से किया था। वे दोनों उस पल का बहुत ही उत्सुकता से इन्तजार कर रही थीं जब मायो शान स्वर्ग जायेगी पर जेड का लोटा तो अभी तक खाली ही था।
वहीं एक लड़का रहता था, शान यिंग, जिसको दूसरों के साथ शरारत करने में बड़ा मजा आता था। वह हमेशा मन्दिर के आँगन के बागीचे में खेलने के लिये आता था।
बहुत सारे लोगों ने मायो शान को सावधान किया था कि वह लड़का ठीक नहीं था पर मायो शान उसको वहाँ खेलने देती थी क्योंकि उसको लगता था कि वहाँ खेल कर वह बहुत खुश रहता था।
जब युंग लीन ने उसको जेड के लोटे और उसमें निकलने वाली विलो पेड़ की शाख की कहानी सुनायी तो उसने युंग लीन का बहुत मजाक बनाया।
लेकिन फिर उसके दिमाग में मायो शान को बेवकूफ बनाने की एक तरकीब आयी। उस रात जब मन्दिर बिल्कुल शान्त पड़ा था वह मन्दिर के कमरे में गया, जेड के लोटे में कुँए का पानी भरा और विलो पेड़ की एक शाख उसके अन्दर रख दी।
उसके अगले दिन चाँद के कैलेन्डर के छठे महीने का उन्नीसवाँ दिन था। मायो शान उस दिन भी रोज की तरह से सुबह बुद्ध जी के सामने ध्यान करने के लिये उठी।
जब वह अपना कमरा छोड़ कर ध्यान करने के लिये जा रही थी तो शान यिंग की आवाज सारे मन्दिर में गूँज गयी। वह मन्दिर के कमरों में आता जाता चिल्लाता घूम रहा था — “अरे यह तो हो गया, अरे यह तो हो गया। मैंने इसे खुद अपनी आँखों से देखा। अब हमारी राजकुमारी बोधिसत्व हो जायेगी।”
उसकी इतनी ऊँची आवाज ने महल के सारे नौकरों और शाही परिवार को जगा दिया। वे सब मायो शान के छोटे से कमरे में आ कर जमा हो गये।
जब शान यिंग उस भीड़ में से जा रहा था तो उसने मायो शान को अपने पास खड़ी भीड़ से कहते सुना — “मुझे कल रात को एक बहुत ही अजीब सा सपना आया कि एक लड़का मेरे बोधिसत्व बनने में मेरी सहायता करने आया है।
मैं न तो उसका चेहरा ही देख सकी और न उसकी आवाज ही सुन सकी। पर मुझे मालूम है कि उसके कामों ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी।”
कह कर मायो शान ने वह जेड का लोटा उठा लिया और लिली के फूल वाले तालाब के पास बैठ गयी। दूसरे लोग पास में खड़े हो कर सूत्र गाने लगे। दूर कहीं आसमान के किसी कोने से एक बहुत ही धीमी सी संगीत की आवाज आनी शुरू हुई और फिर ज़्यादा तेज़ होती गयी।
शान यिंग तो उस संगीत की आवाज सुन कर डर के मारे काँपने लगी। उधर कमल का फूल भी बड़ा और और बड़ा होता जा रहा था। यहाँ तक कि उस फूल से वह पूरा तालाब भर गया। सब लोग पीछे खिसकने लगे जब उन्होंने देखा कि मायो शान का शरीर तो ऊपर उठने लगा और हवा में तैर कर उस कमल के फूल के बीच में जा कर बैठने लगा। वह वहाँ बिना हिले डुले बैठी रही और भीड़ उसके सामने घुटनों के बल बैठी रही।
कुछ ही देर में कमल का फूल तालाब में से उखड़ा और मायो शान को ले कर ऊपर आसमान की तरफ चल दिया। जब वह बादलों में गायब में हो रही थी तो उसने शान यिंग से चिल्ला कर कहा — “धन्यवाद।”
इस तरह मायो शान स्वर्ग चली गयी जहाँ उसको जेड बादशाह ने कुआन यिन, दया की देवी, बना दिया। उसकी दासी धरती पर ही रही। जब वह मरी तो उसको ड्रैगन लड़की का खिताब दे दिया गया, यानी दया की देवी की दासी।
कुआन यिन के पास ऐसी ताकत है जिससे वह जहाँ चाहे वहाँ जा सकती है और जरूरतमन्दों की सहायता करने के लिये जो रूप चाहे वह रूप ले सकती है। कभी वह बुढ़िया बन जाती है तो कभी नौजवान स्त्री और कभी नौजवान लड़की।
जब जमीन सूखी होती है तो वह बादलों में खड़ी हो कर विलो की डंडी अपने जेड के लोटे के पानी में डुबोती है और धरती पर छिड़क देती है तो उससे बारिश हो जाती है।
जहाँ कहीं भी दर्द और दुख होता है वहाँ कुआन यिन मौजूद रहती है। गरीब अमीर सभी उसकी पूजा करते हैं और वह उन सब के घरों में मिलती है जो उसको याद करते हैं।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)