क्षमादान (रूसी कहानी) : लेव तोल्सतोय

Kshmadaan (Russian Story in Hindi) : Leo Tolstoy

दिल्ली नगर में भागीरथ नाम का युवक सौदागर रहता था। वहाँ उसकी अपनी दो दुकानें और एक रहने का मकान था। वह सुंदर था। उसके बाल कोमल, चमकीले और घुँघराले थे। वह हँसोड़ और गाने का बड़ा प्रेमी था। युवावस्था में उसे मद्य पीने की बान पड़ गई थी। अधिक पी जाने पर कभी कभी हल्ला भी मचाया करता था, परंतु विवाह कर लेने पर मद्य पीना छोड़ दिया था।
गर्मी में एक समय वह कुंभ पर गंगा जाने को तैयार हो, अपने बच्चों और स्त्री से विदा माँगने आया।
स्त्री- प्राणनाथ, आज न जाइए, मैंने बुरा सपना देखा है।
भागीरथ- प्रिये, तुम्हें भय है कि मैं मेले में जाकर तुम्हें भूल जाऊँगा ?
स्त्री- यह तो मैं नहीं जानती कि मैं क्यों डरती हूँ, केवल इतना जानती हूँ कि मैंने बुरा स्वप्न देखा है। मैंने देखा है कि जब तुम घर लौटे हो तो तुम्हारे बाल श्वेत हो गए हैं।
भागीरथ- यह तो सगुन है। देख लेना मैं सारा माल बेच, मेले से तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाऊँगा।
यह कह गाड़ी पर बैठ, वह चल दिया। आधी दूर जाकर उसे एक सौदागर मिला, जिससे उसकी जान पहचान थी। वे दोनों रात को एक ही सराय में ठहरे। संध्या समय भोजन कर पास की कोठरियों में सो गए।
भागीरथ को सबेरे जाग उठने का अभ्यास था। उसने यह विचार करके कि ठंडे ठंडे राह चलना सुगम होगा, मुँह अँधेरे उठ, गाड़ी तैयार कराई और भटियारे के दाम चुका कर चलता बना। पच्चीस कोस जाने पर घोड़ों को आराम देने के लिए एक सराय में ठहरा और आँगन में बैठकर सितार बजाने लगा।
अचानक एक गाड़ी आई- पुलिस का एक कर्मचारी और दो सिपाही उतरे। कर्मचारी उसके समीप आ कर पूछने लगा कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो? वह सब कुछ बतला कर बोला कि आइए, भोजन कीजिए। परंतु कर्मचारी बारबार यही पूछता था कि तुम रात को कहाँ ठहरे थे? अकेले थे या कोई साथ था? तुमने साथी को आज सवेरे देखा या नहीं। तुम मुँह अँधेरे क्यों चले आए?
भागीरथ को अचंभा हुआ कि बात क्या है? यह प्रश्न क्यों पूछे जा रहे हैं? बोला- आप तो मुझसे इस भाँति पूछते हैं, जैसे मैं कोई चोर या डाकू हूँ। मैं तो गंगास्नान करने जा रहा हूँ। आपको मुझसे क्या मतलब है?
कर्मचारी- मैं इस प्रांत का पुलिस अफसर हूँ, और यह प्रश्न इसलिए करता हूँ कि जिस सौदागर के साथ तुम कल रात सराय में सोए थे, वह मार डाला गया। हम तुम्हारी तलाशी लेने आए हैं।
यह कह वह उसके असबाब की तलाशी लेने लगा। एकाएक थैले में से एक छुरा निकला, वह खून से भरा हुआ था। यह देखकर भागीरथ डर गया।
कर्मचारी- यह छुरा किसका है ? इस पर खून कहाँ से लगा ?
भागीरथ चुप रह गया, उसका कंठ रुक गया। हिचकता हुआ कहने लगा- मेरा नहीं है। मैं नहीं जानता।
कर्मचारी- आज सवेरे हमने देखा कि वह सौदागर गला कटे चारपाई पर पड़ा है। कोठरी अंदर से बंद थी, सिवाय तुम्हारे भीतर कोई न था। अब यह खून से भरा हुआ छुरा इस थैले में से निकला है। तुम्हारा मुख ही गवाही दे रहा है। बस, तुमने ही उसे मारा है। बतलाओ, किस तरह मारा और कितने रुपये चुराए हैं ?
भागीरथ ने सौगंध खाकर कहा- मैंने सौदागर को नहीं मारा। भोजन करने के पीछे फिर मैंने उसे नहीं देखा। मेरे पास अपने आठ हजार रुपये हैं। यह छुरा मेरा नहीं।
परंतु उसकी बातें उखड़ी हुई थीं, मुख पीला पड़ गया था और वह पापी की भाँति भय से काँप रहा था।
पुलिस अफसर ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि इसकी मुस्कें कसकर गाड़ी में डाल दो। जब सिपाहियों ने उसकी मुस्कें कसीं, तो वह रोने लगा। अफसर ने पास के थाने पर ले जाकर उसका रुपया पैसा छीन, उसे हवालात में दे दिया।
इसके बाद दिल्ली में उसके चाल-चलन की जाँच की गई। सब लोगों ने यही कहा कि पहले वह मद्य पीकर बकझक किया करता था, पर अब उसका आचार बहुत अच्छा है। अदालत में तहकीकात होने पर उसे रामपुर निवासी सौदागर का वध करने और बीस हजार रुपये चुरा लेने का अपराधी ठहराया गया।
भागीरथ की स्त्री को इस बात पर विश्वास न होता था। उसके बालक छोटे-छोटे थे। एक अभी दूध पीता था। वह सबको साथ लेकर पति के पास पहुँची। पहले तो कर्मचारियों ने उसे उससे मिलने की आज्ञा न दी, परंतु बहुत विनय करने पर आज्ञा मिल गई। और पहरे वाले उसे कैद घर में ले गए। ज्यों ही उसने अपने पति को बेड़ी पहने हुए चोरों और डाकुओं के बीच में बैठा देखा, वह बेसुध होकर धरती पर गिर पड़ी। बहुत देर में सुध आई। वह बच्चों सहित पति के निकट बैठ गई और घर का हाल कह कर पूछने लगी कि यह क्या बात है ? भागीरथ ने सारा वृतांत कह सुनाया।
स्त्री- तो अब क्या हो सकता है ?
भागीरथ- हमें महाराज से विनय करनी चाहिए कि वह निरपराधी को जान से न मारें।
स्त्री- मैंने महाराज से विनय की थी, परंतु वह स्वीकार नहीं हुई।
भागीरथ ने निराश होकर सिर झुका लिया।
स्त्री- देखा, मेरा सपना कैसा सच निकला! तुम्हें याद है न, मैंने तुमको उस दिन मेले जाने से रोका था। तुम्हें उस दिन न चलना चाहिए था, लेकिन मेरी बात न मानी। सच सच बताओ, तुमने तो उस सौदागर को नहीं मारा न?
भागीरथ- क्या तुम्हें भी मेरे ऊपर संदेह है?
यह कह कर वह मुँह ढाँप रोने लगा। इतने में सिपाही ने आकर स्त्री को वहाँ से हटा दिया और भागीरथ सदैव के लिए अपने परिवार से विदा हो गया।
घर वालों के चले जाने पर जब भागीरथ ने यह विचारा कि मेरी स्त्री भी मुझे अपराधी समझती है तो मन में कहा- बस, मालूम हो गया, परमात्मा के बिना और कोई नहीं जान सकता कि मैं पापी हूँ या नहीं। उसी से दया की आशा रखनी चाहिए। फिर उसने छूटने का कोई यत्न नहीं किया। चारों ओर से निराश हो कर ईश्वर के ही भरोसे बैठा रहा।
भागीरथ को पहले तो कोड़े मारे गए। जब घाव भर गए तो उसे लोहग बंदीखाने में भेज दिया गया।
वह छब्बीस वर्ष बंदीखाने में पड़ा रहा। उसके बाल पककर सन के से हो गए, कमर मोटी हो गई, देह घुल गई, सदैव उदास रहता। न कभी हँसता, न बोलता, परंतु भगवान का भजन नित्य किया करता था।
वहाँ उसने दरी बुनने का काम सीखकर कुछ रुपया जमा किया और भक्तमाल मोल ले ली। दिन भर काम करने के बाद साँझ को जब तक सूरज का प्रकाश रहता, वह पुस्तक का पाठ करता और इतवार के दिन बंदीखाने के निकट वाले मंदिर में जाकर पूजापाठ भी कर लेता था। जेल के कर्मचारी उसे सुशील जानकर उसका मान करते थे। कैदी लोग उसे बू़्ढ़े बाबा अथवा महात्मा कहकर पुकारा करते थे। कैदियों को जब कभी कोई अर्जी भेजनी होती, तो वे उसे अपना मुखिया बनाते और अपने झगड़े भी उसी से चुकाया करते।
उसे घर का कोई समाचार न मिलता था। उसे यह भी न मालूम था कि स्त्री-बालक जीते हैं या मर गए।
एक दिन कुछ नए कैदी आए। संध्या समय पुराने कैदी उनके पास आकर पूछने लगे कि भाई, तुम कहाँ से आए हो और तुमने क्या क्या अपराध किए हैं ? भागीरथ उदास बैठा सुनता रहा। नए कैदियों में एक साठ वर्ष का हट्टा-कट्टा आदमी, जिसके दाढ़ी-बाल खूब छंटे हुए थे, अपनी रामकहानी यों सुना रहा था !
'भाइयो, मेरे मित्र का घोड़ा एक पेड़ से बंधा हुआ था। मुझे घर जाने की जल्दी पड़ी हुई थी। मैं उस घोड़े पर सवार होकर चला गया। वहाँ जाकर मैंने घोड़ा छोड़ दिया। मित्र कहीं चला गया था। पुलिस वालों ने चोर ठहराकर मुझे पकड़ लिया। यद्यपि कोई यह नहीं बतला सका कि मैंने किसका घोड़ा चुराया और कहाँ से, फिर भी चोरी के अपराध में मुझे यहाँ भेज दिया है। इससे पहले एक बार मैंने ऐसा अपराध किया था कि मैं लोहग में भेजे जाने लायक था, परंतु मुझे उस समय कोई नहीं पकड़ सका। अब बिना अपराध ही यहाँ भेज दिया गया हूँ।
एक कैदी- तुम कहाँ से आए हो?
नया कैदी- दिल्ली से। मेरा नाम बलदेव सिंह है।
भागीरथ- भला बलदेव सिंह, तुम्हें भागीरथ के घर वालों का कुछ हाल मालूम है, जीते हैं कि मर गए?
बलदेव- जानना क्या? मैं उन्हें भलीभाँति जानता हूँ। अच्छे मालदार हैं। हाँ उनका पिता यहीं कहीं कैद है। मेरे ही जैसा अपराध उनका भी था। बू़ढ़े बाबा, तुम यहाँ कैसे आए?
भगीरथ अपनी विपत्ति-कथा न कही। केवल हाय कहकर बोला- मैं अपने पापों के कारण छब्बीस वर्ष से यहाँ पड़ा सड़ रहा हूँ।
बलदेव- क्या पाप, मैं भी सुनूं?
भागीरथ- भाई, जाने दो, पापों का फल अवश्य भोगना पड़ता है।
वह और कुछ न कहना चाहता था, परंतु दूसरे कैदियों ने बलदेव को सारा हाल कह सुनाया कि वह एक सौदागर का वध करने के अपराध में यहाँ कैद है। बलदेव ने यह हाल सुना तो भागीरथ को ध्यान से देखने लगा। घुटने पर हाथ मारकर बोला- वाह वाह, बड़ा अचरज है! लेकिन दादा, तुम तो बिल्कुल बूढ़े हो गए।
दूसरे कैदी बलदेव से पूछने लगे कि तुम भागीरथ को देखकर चकित क्यों हुए, तुमने क्या पहले कहीं उसे देखा है? परंतु बलदेव ने उत्तर नहीं दिया।
भागीरथ के चित्त में यह संशय उत्पन्न हुआ कि शायद बलदेव रामपुरी सौदागर के असली मारने वाले को जानता है। बोला- बलदेव सिंह, क्या तुमने यह बात सुनी है और मुझे भी पहले कहीं देखा है।
बलदेव- वह बातें तो सारे संसार में फैल रही हैं। मैं किस तरह न सुनता; बहुत दिन बीत गए, मुझे कुछ याद नहीं रहा।
भागीरथ- तुम्हें मालूम है कि उस सौदागर को किसने मारा था?
बलदेव- (हँसकर) जिसके थैले में छुरा निकला, वही उसका मारने वाला। यदि किसी ने थैले में छुरा छिपा भी दिया हो, तो जब तक कोई पकड़ा न जाए, उसे चोर कौन कह सकता है? थैला तुम्हारे सिरहाने धरा था। यदि कोई दूसरा पास आकर छुरा थैले में छिपाता तो तुम अवश्य जाग उठते।
यह बातें सुनकर भागीरथ को निश्चय हो गया कि सौदागर को इसी ने मारा है। वह उठकर वहाँ से चल दिया, पर सारी रात जागता रहा। दुःख से उसका चित्त व्याकुल हो रहा था। उसे अनेक प्रकार की बातें याद आने लगीं। पहले स्त्री की उस समय की सूरत दिखाई दी जब वह उसे मेले जाने को मना कर रही थी। सामने ऐसा जान पड़ा कि वह खड़ी है। उसकी बोली और हँसी तक सुनाई दी। फिर बालक दिखाई पड़े, फिर युवावस्था की याद आई, कितना प्रसन्नचित्त था, कैसा आनंद से द्वार पर बैठा सितार बजाया करता था। फिर वह सराय दिखाई दी, जहाँ वह पकड़ा गया था। तब वह जगह सामने आई, जहाँ उस पर कोड़े लगे थे। फिर बेड़ी और बंदीखाना, फिर बु़ढ़ापा और छब्बीस वर्ष का दुःख। यह सब बातें उसकी आँखों में फिरने लगीं। वह इतना दुःखी हुआ कि जी में आया कि अभी प्राण दे दूँ।
'हाय, इस बलदेव चंडाल ने यह क्या किया! मैं तो अपना सर्वनाश करके भी इससे बदला अवश्य लूँगा।'
सारी रात भजन करने पर भी उसे शांति नहीं हुई। दिन में उसने बलदेव को देखा तक नहीं। पंद्रह दिन बीत गए, भागीरथ की यह दशा थी कि न रात को नींद, न दिन को चैन। क्रोधाग्नि में जल रहा था।
एक रात वह जेलखाने में टहल रहा था कि उसने कैदियों के सोने के चबूतरे के नीचे से मिट्टी गिरते देखी। वह वहीं ठहर गया कि देखूँ मिट्टी कहाँ से आ रही है। सहसा बलदेव चबूतरे के नीचे से निकल आया और भय से काँपने लगा। भागीरथ आँखें मूँदकर आगे जाना चाहता था कि बलदेव ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला- देखो, मैंने जूतों में मिट्टी भर के बाहर फेंककर यह सुरंग लगाई है, चुप रहना। मैं तुमको यहाँ से भगा देता हूँ। यदि शोर करोगे तो जेल के अफसर मुझे जान से मार डालेंगे, परंतु याद रखो कि तुम्हें मारकर मरुँगा, यों नहीं मरता।
भागीरथ अपने शत्रु को देखकर क्रोध से काँप उठा और हाथ छुड़ाकर बोला- मुझे भागने की इच्छा नहीं, और मुझे मारे तो तुम्हें छब्बीस वर्ष हो चुके। रही यह हाल प्रकट करने की बात, जैसी परमात्मा की आज्ञा होगी, वैसा होगा।
अगले दिन जब कैदी बाहर काम करने गए तो पहरे वालों ने सुरंग की मिट्टी बाहर पड़ी देख ली। खोज लगाने पर सुरंग का पता चल गया। हाकिम सब कैदियों से पूछने लगे। किसी ने न बतलाया, क्योंकि वे जानते थे कि यदि बतला दिया तो बलदेव मारा जाएगा। अफसर भागीरथ को सत्यवादी जानते थे, उससे पूछने लगे- बूढ़े बाबा, तुम सच्चे आदमी हो; सच बताओ कि यह सुरंग किसने लगाई है?
बलदेव पास ही ऐसे खड़ा था कि कुछ जानता ही नहीं। भागीरथ के होंठ और हाथ काँप रहे थे। चुपचाप विचार करने लगा कि जिसने मेरा सारा जीवन नाश कर दिया, उसे क्यों छिपाऊँ? दुःख का बदला दुःख उसे अवश्य भोगना चाहिए, परंतु बतला देने पर फिर वह बच नहीं सकता। शायद यह सब मेरा भरम मात्र हो, सौदागर को किसी और ने ही मारा हो। यदि इसने ही मारा तो इसे मरवा देने से मुझे क्या लाभ होगा?
अफसर- बाबा, चुप क्यों हो गए? बतलाते क्यों नहीं?
भागीरथ- मैं कुछ नहीं बतला सकता, आप जो चाहें सो करें।
हाकिम ने बार-बार पूछा, परंतु भागीरथ ने कुछ भी नहीं बतलाया। बात टल गई।
उसी रात भागीरथ जब अपनी कोठरी में लेटा हुआ था, बलदेव चुपके से भीतर आकर बैठ गया। भागीरथ ने देखा और कहा- बलदेव सिंह, अब और क्या चाहते हो? यहाँ तुम क्यों आए?
बलदेव चुप रहा।
भागीरथ- तुम क्या चाहते हो? यहाँ से चले जाओ, नहीं तो मैं पहरे वाले को बुला लूँगा।
बलदेव- (पाँव पर पड़कर) भागीरथ, मुझे क्षमा करो, क्षमा करो।
भागीरथ- क्यों?
बलदेव- मैंने ही उस सौदागर को मारकर छुरा तुम्हारे थैले में छिपाया था। मैं तुम्हें भी मारना चाहता था। परंतु बाहर से आहट हो गई, मैं छुरा थैले में रखकर भाग निकला।
भागीरथ चुप हो गया, कुछ नहीं बोला।
बलदेव- भाई भागीरथ, भगवान के वास्ते मुझ पर दया करो, मुझे क्षमा करो। मैं कल अपना अपराध अंगीकार कर लूँगा। तुम छूटकर अपने घर चले जाओगे।
भागीरथ- बातें बनाना सहज है। छब्बीस वर्ष के इस दुःख को देखो, अब मैं कहाँ जा सकता हूँ? स्त्री मर गई, लड़के भूल गए, अब तो मेरा कहीं ठिकाना नहीं है।
बलदेव धरती से माथा फोड़, रो-रो कर कहने लगा- मुझे कोड़े लगने पर भी इतना कष्ट नहीं हुआ था, जो अब तुम्हें देखकर हो रहा है। तुमने दया करके सुरंग की बात नहीं बतलाई। क्षमा करो, क्षमा करो, मैं अत्यंत दुःखी हो रहा हूँ!
यह कह बलदेव धाड़ मारकर रोने लगा। भागीरथ के नेत्रों से भी जल की धारा बह निकली। बोला- पूर्ण परमात्मा, तुम पर दया करें, कौन जाने कि मैं अच्छा हूँ अथवा तुम अच्छे हो। मैंने तुम्हें क्षमा किया।
अगले दिन बलदेव सिंह ने स्वयं कर्मचारियों के पास जाकर सारा हाल सुनाकर अपना अपराध मान लिया, परंतु भागीरथ को छोड़ देने का जब परवाना आया, तो उसका देहांत हो चुका था।
(अनुवाद: प्रेमचंद)

ईश्वर सत्य को देखता है : अनुवाद बी. एम. नंदवाना

व्लादिमीर कस्बे में इवान दमित्रिच एक्सिओनोव नामक एक युवा व्यापारी रहता था। उसकी खुद की दो दुकानें तथा एक मकान था।

एक्सिओनोव एक खूबसूरत, घने-घुँघराले बालोंवाला, गाने-बजाने का शौकीन मस्तमौला इनसान था। कुछ वर्षों पहले तक उसे शराब पीने की लत थी और जब अधिक पी लेता था तो उत्पात मचाता था; परंतु शादी के बाद उसने शराब छोड़ दी थी—कुछ खास अवसरों को छोड़कर।

एक बार गरमियों में एक्सिओनोव निजनी के मेले में जा रहा था, जब उसने परिवार से विदा लेनी चाही तो उसकी पत्नी ने उससे कहा, ‘‘इवान दमित्रिच, मेले के लिए आज मत निकलो, मैंने तुम्हारे बारे में एक बुरा सपना देखा है।’’

एक्सिओनोव ने हँसकर कहा, ‘‘तुम्हें कहीं इस बात का डर तो नहीं है कि मेले में जाकर मुझे शराब पीने का भूत सवार हो जाएगा।’’

पत्नी ने जवाब दिया, ‘‘मुझे नहीं मालूम कि मुझे किस बात का डर लग रहा है; मैं बस इतना जानती हूँ कि मैंने एक बुरा सपना देखा है। मैंने सपने में देखा कि तुम शहर से वापस आए हो, और जब तुमने अपनी टोपी उतारी, तो मैं देखती हूँ कि तुम्हारे बाल काफी सफेद हो गए हैं।’’

एक्सिओनोव हँसा, ‘‘अरे! यह तो शुभ संकेत है, देखना, मैं अपना सारा सामान बेचकर अच्छा मुनाफा कमाऊँगा और तुम्हारे लिए मेले से एक अच्छा सा तोहफा लेकर आऊँगा।’’ अंततः परिवार से विदा ले वह रवाना हो गया।

जब उसने आधा सफर तय किया, उसे एक व्यापारी मिला, जिसे वह पहले से जानता था, दोनों रात्रि-विश्राम के लिए एक ही सराय में ठहर गए। उन्होंने साथ-साथ चाय पी और फिर आस-पास के कमरों में सोने के लिए चले गए।

एक्सिओनोव की आदत देर रात को सोने की नहीं थी। सवेरे जल्दी ही सफर करने की इच्छा से उसने गाड़ीवान को पौ फटने से पहले ही उठा दिया और घोड़ों को गाड़ी में जोतने के लिए कह दिया था।

फिर वह सराय-मालिक (जो पीछे की तरफ की एक कॉटेज में रहता था।) के पास गया और बिल का भुगतान किया और अपनी आगे की यात्रा शुरू की।

करीब बीस-पच्चीस मील जाने के बाद वह घोड़ों को दाना-पानी देने के लिए ठहरा। कुछ समय के लिए सराय के गलियारे में सुस्ताया और फिर बाहर निकलकर पोर्च में दाखिल हो गया। समोवार (चाय की केतली) को गरम करने के लिए कहकर वह अपना गिटार निकाल उसे बजाने में मस्त हो गया।

अचानक एक तीन घंटोंवाली बग्गी घंटियाँ टनटनाती वहाँ आई और उससे एक अधिकारी नीचे उतरा, उसके साथ दो सिपाही थे। वह एक्सिओनोव के पास आया और उससे पूछताछ करने लगा कि वह कौन है, कहाँ से आया है। एक्सिओनोव ने उसे विस्तार से बताया और कहा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ चाय पीना पसंद करोगे?’’ परंतु वह अधिकारी सवाल-जवाब करता रहा और उससे पूछा, पिछली रात तुमने कहाँ बिताई थी? क्या तुम अकेले थे या साथी-व्यापारी के साथ? क्या आज सुबह तुमने उस व्यापारी को देखा था? तुमने सवेरा होने से पहले ही सराय क्यों छोड़ दी?

एक्सिओनोव को आश्चर्य हुआ कि ये सारे सवाल उससे क्यों पूछे जा रहे हैं। खैर, उसने जो कुछ हुआ था, उसका पूरा विवरण दिया और कहा, ‘‘क्यों, तुम मुझ से इस तरह की पूछताछ कर रहे हो, क्या मैं कोई चोर-उचक्का हूँ या कोई डकैत? मैं अपने व्यापार के सिलसिले में यात्रा पर हूँ, मुझ पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है।’’

तब उस अधिकारी ने सिपाहियों को बुलाते हुए कहा, ‘‘मैं इस जिले का पुलिस-अधिकारी हूँ, हम तुमसे इसलिए पूछताछ कर रहे हैं कि जिस व्यापारी के साथ तुमने पिछली रात बिताई थी, उसकी गला काटकर हत्या कर दी गई है, हमें तुम्हारी तलाशी लेनी पड़ेगी।’’

वे मकान के अंदर घुसे, सिपाहियों और पुलिस-अधिकारी ने एक्सिओनोव के सामान को खोला और तलाशी लेने लगे, अचानक उस अधिकारी ने चिल्लाते हुए एक बैग में से चाकू निकाला, ‘‘यह चाकू किसका है?’’

एक्सिओनोव ने नजर डाली और खून से सने उसके बैग से निकले चाकू को देखकर वह भयभीत हो गया।

‘‘इस चाकू पर खून, यह कैसे हुआ?’’

एक्सिओनोव ने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन वह एक शब्द भी मुश्किल से बोल पाया। केवल हकलाया, ‘‘मैं नहीं जानता, यह मेरा नहीं है।’’ फिर पुलिस-अधिकारी ने कहा, ‘‘आज सुबह व्यापारी अपने बिस्तर पर मृत पाया गया, उसका गला कटा हुआ था। यह घृणित कृत्य तुमने ही किया है। कमरा अंदर से बंद था और वहाँ कोई और नहीं था। खून से सना यह चाकू यहाँ तुम्हारे बैग में है और तुम्हारा चेहरा तथा तुम्हारे हाव-भाव सबकुछ बता रहे हैं! अब तुम मुझे बताओ, तुमने उसे कैसे मारा और उसका कितना धन चुराया?’’

एक्सिओनोव ने कसम खाई कि उसने कत्ल नहीं किया था कि उसने उस व्यापारी को, चाय पीने के बाद, देखा तक नहीं था; कि उसके पास खुद के आठ हजार रूबल के अलावा कोई धन-राशि नहीं थी, और कि वह चाकू उसका नहीं, परंतु उसकी आवाज खंडित थी और चेहरा सफेद-झक्क, वह भय के मारे इस कदर काँप रहा था, जैसे वह अपराध उसी ने किया था।

पुलिस-ऑफिसर ने सिपाहियों को एक्सिओनोव को बाँधने और बग्गी में बिठाने का आदेश दिया। जैसे ही उन्होंने उसके पाँव बाँधे और उसे बग्गी में ला पटका, एक्सिओनोव ने क्रॉस का चिह्न बनाया और रो पड़ा। उसके आठ हजार रूबल और सामान उससे ले लिये, उसे पास के कस्बे में बंदी बनाकर भेज दिया गया।

व्लादिमीर कस्बे में उसके चरित्र के बारे में छान-बीन की गई। उस कस्बे के व्यापारियों और दूसरे रहवासियों ने बताया कि कुछ वर्षों पहले वह शराब पिया करता था और अपना समय बरबाद किया करता था, लेकिन वह एक अच्छा व्यक्ति है। फिर मुकदमा चला, उस पर आरोप था कि उसने रयाजान कस्बे के एक व्यापारी का कत्ल किया था और उसके बीस हजार रूबल लूट लिये थे।

उसकी पत्नी विषाद में थी, नहीं जानती थी, किस पर विश्वास करे। उसके बच्चे बहुत छोटे थे; एक तो दूध-पीता बच्चा था। उन सबको साथ लेकर वह उस कस्बे में गई, जहाँ उसके पति को बंदी बनाकर रखा गया था। पहले तो उसे अपने पति से मिलने की अनुमति नहीं मिली; परंतु बाद में, बहुत अनुनय-विनय करने पर अधिकारियों के आदेश पर उसे बंदी के पास लाया गया। जब उसने अपने पति को कैदी के कपड़ों में जंजीरों में बँधे चोर-उचक्कों और अपराधियों के साथ जेल में देखा, वह बेहोश होकर गिर पड़ी और लंबे समय तक होश में नहीं आई। फिर उसने अपने बच्चों को अपने पास खींच लिया और उसके पास बैठ गई। उसने उसे घर-परिवार की बातें बताईं और उसके साथ जो बीती उसके बारे में पूछा। उसने उसे सबकुछ बताया और पत्नी ने पूछा, ‘‘अब हम क्या कर सकते हैं?’’

‘‘हम जार को याबिका दे सकते हैं कि एक निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं मिलनी चाहिए।’’

उसकी पत्नी ने उसे बताया कि वह पहले ही जार को याचिका दे चुकी है, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया है। एक्सिओनोव ने जवाब नहीं दिया, बस मायूसी के साथ नीचे की ओर देखता रहा।

तब उसकी पत्नी ने कहा, ‘वह ऐसे’ ही नहीं था कि मैंने तुम्हारे सफेद बाल हो जाने का सपना देखा था। तुम्हें याद है, तुम्हें उस दिन रवाना नहीं होना चाहिए था। ‘‘उसके बालों पर अपनी उँगलियाँ घुमाते हुए उसने कहा, ‘‘मेरे प्यारे वेन्या, तुम अपनी पत्नी को सच-सच बताओ; क्या वह तुम तो नहीं थे, जिसने वह सब किया?’’

‘‘अच्छा तो तुम भी मुझ पर संदेह करती हो!’’ एक्सिओनोव ने कहा। अपने हाथों से अपना मुँह छिपाते हुए वह रो पड़ा। उसी समय एक सिपाही यह कहने के लिए आया कि पत्नी और बच्चों को अब चले जाना चाहिए। एक्सिओनोव ने अपने परिवार को आखिरी बार अलविदा कहा और वे चले गए। एक्सिओनोव को पत्नी से हुई बातचीत याद आई। वह बहुत दुःखी हुआ कि उसकी पत्नी भी उस पर शक कर रही थी, उसने स्वयं से कहा, ‘ऐसा लगता है कि केवल भगवान् ही सत्य को जान सकता है; केवल वही है, जिसके सामने हमें अपील करनी चाहिए और केवल उसी से दया की आशा है।’

एक्सिओनोव ने फिर कोई अपील दायर नहीं की; कहीं कोई आशा न बाँधकर वह केवल भगवान् से प्रार्थना करता रहा। एक्सिओनोव को कोड़े से मारने की सजा दी गई और उसे खदानों पर भेज दिया गया। उसे कोड़े मारे गए और जब कोड़ों के घाव भर गए तो उसे दूसरे अपराधियों के साथ साइबेरिया ले जाया गया।

छब्बीस साल तक एक्सिओनोव साइबेरिया में एक अपराधी के रूप में रहा। उसके बाल बर्फ जैसे सफेद हो गए, उसकी दाढ़ी बढ़कर लंबी, विरल और सफेद हो गई। उसकी सारी हँसी-खुशी जाती रही; उसके कंधे झुक गए; वह धीरे-धीरे चलता, और कम बोलता, वह अकसर प्रार्थना करता दिखाई देता था।

कैदखाने में एक्सिओनोव जूते बनाना सीख गया था, कुछ कमा भी लेता था, उस थोड़ी-सी कमाई से उसने ‘द लाइव्ज ऑफ द सेंट्स’ खरीदी। जब भी जेल में पर्याप्त रोशनी रहती, वह उस पुस्तक को पढ़ता और रविवार को जेल के चर्च में पाठ पढ़ता; चर्च की गायन-मंडली के साथ वह भी गाता, उसकी आवाज अब भी अच्छी थी।

जेल के अधिकारी उसकी विनम्रता के कारण उसे पसंद करते थे, उसके साथी-कैदी भी उसका आदर करते थे, वे उसे ‘दादा’ अथवा ‘संत’ कहते थे। जब भी उन्हें जेल अधिकारियों को किसी भी प्रकार की फरियाद करनी होती, वे एक्सिओनोव को अपना प्रवक्ता बनाते और जब कैदियों में आपस में झगड़ा होता, निपटारे के लिए वे उसके पास आते थे।

एक्सिओनोव को अपने घर-परिवार की कोई सूचना नहीं थी, उसे यह भी मालूम नहीं था कि उसकी पत्नी और बच्चे जिंदा भी हैं या नहीं। एक दिन कैदियों की एक नई टोली कैदखाने में आई। शाम के समय पुराने कैदी नए कैदियों के इर्द-गिर्द जमा हुए और पूछने लगे कि वे किस कस्बे अथवा शहर से आए हैं और उन्हें सजा किन-किन कारणों से मिली है। साथी-कैदियों के साथ एक्सिओनोव भी उन नवागंतुकों के पास बैठ गया और खिन्न मन से उनकी बातें सुनने लगा।

उन नए अपराधियों में से एक ऊँचे कद का, साठ साल का मजबूत काठीवाला आदमी, जिसकी सफेद दाढ़ी करीने से छँटी हुई थी, दूसरे कैदियों को बता रहा था कि उसे क्यों गिरफ्तार किया गया था।

‘‘अच्छा, दोस्तो,’’ उसने कहा, ‘‘मैंने बस बर्फगाड़ी से बँधे एक घोड़े को खोल लिया था और मुझे पकड़कर मेरे ऊपर चोरी का इलजाम लगा दिया। बात यह थी कि मैंने जल्दी घर पहुँचने के लिए घोड़ा लिया था और फिर उसे छोड़ दिया था, इसके अलावा गाड़ी का चालक मेरा मित्र था। मैंने उनसे कहा, ‘मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है।’ उन्होंने कहा, ‘तुमने उसे चुराया है।’ पर मैंने उसे कैसे या कहाँ से चुराया था, वे नहीं बता पाए। एक बार जब वास्तव में मैंने कुछ गलत काम किया था, उस समय न्याय की दृष्टि से मुझे बहुत पहले यहाँ आ जाना चाहिए था। परंतु उस समय मैं नहीं पकड़ा गया। अब मुझे बिना किसी कारण के यहाँ भेज दिया गया...आह, लेकिन यह सब झूठे-सच्चे किस्से हैं! हाँ, मैं पहले भी साइबेरिया आ चुका हूँ, परंतु मैं ज्यादा समय नहीं रुका था।’’

‘‘तुम कहाँ से हो?’’ किसी ने पूछा।

‘‘व्लादिमीर से, मेरा परिवार उसी कस्बे से है। मेरा नाम माकर है, और वे मुझे सेम्योनिच कहकर भी बुलाते हैं।’’

एक्सिओनोव ने अपना सिर उठाया और कहा, ‘‘मुझे बताओ, सेम्योनिच, क्या तुम व्लादिमीर कस्बे के एक्सिओनोव व्यापारियों के बारे में कुछ जानते हो?’’

‘‘उन्हें जानते हो? अरे! अच्छी तरह से जानता हूँ, एक्सिओनोव परिवार काफी संपन्न है; हालाँकि उनके पिता साइबेरिया में हैं, हमारी तरह ही एक गुनाहगार! दादा, तुम अपने बारे में बताओ, तुम यहाँ कैसे आए?’’

‘‘एक्सिओनोव अपने दुर्भाग्य की चर्चा नहीं करना चाहता था, उसने बस आह भरी और कहा, ‘‘अपने कुकर्मों की वजह से मैं छब्बीस वर्षों से जेल में हूँ।’’

‘‘कौन से कुकर्म माकर?’’ सेम्योनिच ने पूछा।

एक्सिओनोव ने केवल इतना कहा, ‘‘शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था।’’ वह इसके अलावा कुछ नहीं कहना चाहता था, परंतु उसके साथियों ने नवागंतुकों को बता दिया कि एक्सिओनोव किस वजह से साइबेरिया लाया गया था; कैसे किसी ने एक व्यापारी की हत्या की और एक्सिओनोव के सामान में चाकू रख दिया और एक्सिओनोव को अन्यायपूर्वक अपराधी ठहरा दिया गया था।

जब माकर सेम्योनिच ने यह सुना, उसने हक्सिओनोव को ध्यान से देखा, अपने घुटनों पर धौल जमाया और चिल्ला उठा, ‘‘ओह, यह आश्चर्यजनक है! वास्तव में चकित कर देनेवाला! पर तुम कितने बूढ़े हो गए हो, दादा!’’

वहाँ इकट्ठे कैदियों ने उससे पूछा, वह इतना आचर्यचकित क्यों, उसने एक्सिओनोव को पहले कहाँ देखा था; परंतु माकर सेम्योनिच ने जवाब नहीं दिया। उसने केवल इतना कहा, ‘‘यह आश्चर्यजनक है कि हम यहाँ मिले, साथियो!’’

इन शब्दों ने एक्सिओनोव को अचंभित कर दिया, क्या यह आदमी जानता है कि व्यापारी की हत्या किसने की थी; अतः उसने कहा, ‘‘सेम्योनिच, क्या तुमने उस घटना के बारे में सुना है या तुमने मुझे पहले कहीं देखा है?’’

‘‘यह संसार अफवाहों का भंडार है। परंतु यह बहुत पुरानी बात है, जिसे मैं भूल चुका हूँ।’’

‘‘शायद तुमने सुना हो उस व्यापारी की हत्या किसने की थी?’’ एक्सिओनोव ने पूछा।

माकर सेम्योनिच हँसा और जवाब दिया, ‘‘हत्यारा वही होना चाहिए, जिसके बेग में चाकू पाया गया! अगर किसी और ने वहाँ चाकू छिपाया, जैसे कि कहावत है, ‘जब तक पकड़ा नहीं जाए, वह चोर नहीं है’ कोई कैसे तुम्हारे बेग में चाकू रख सकता था, जब कि वह तुम्हारे सिर के नीचे था, कोई ऐसा करता तो निश्चित रूप से तुम नींद से जाग जाते।’’

जब एक्सिओनोव ने इन शब्दों को सुना, उसे लगा कि निसंदेह यही वह आदमी है, जिसने उस व्यापारी की हत्या की थी। वह वहाँ से उठकर चला गया। पूरी रात एक्सिओनोव ने जागते हुए बिताई। उसे बहुत ही दुःख हुआ और तरह-तरह के चित्र उसके मस्तिष्क में उभरे। उसकी पत्नी का वह चित्र सामने आया, जब वह घर से मेले में जाने के लिए निकला था; उसने उसे देखा जैसे कि वह उसके सामने खड़ी थी; उसका चेहरा और उसकी आँखें, उसकी मुसकराहट उसके सामने उभरीं; उसने उसे बोलते हुए सुना। फिर उसने अपने बच्चों को देखा, बिल्कुल छोटे, जैसे वे उस समय थे; एक छोटा-सा झबला पहने हुए, दूसरा अपनी माँ की छाती से चिपका हुआ। फिर उसने अपने आप को याद किया, जैसा वह वर्षों पहले हुआ करता था, हँसता-मुसकराता मस्त-मौला युवक। उसे याद आया, कैसे वह सराय के अहाते में गिटार बजा रहा था, जहाँ उसे गिरफ्तार किया गया था। उसके मस्तिष्क में वह स्थान कौंधा, जहाँ उस पर कोड़े बरसाए गए थे, और याद आया वह जल्लाद, आस-पास खड़े लोग और जंजीरें, अपराधी, जेल में बीते समस्त छब्बीस वर्ष, और अपना असामयिक बुढ़ापा।

इन विचारों ने उसे इतना शोकसंतप्त कर दिया था कि वह स्वयं को मारने के लिए तैयार हो गया था।

यह सब उस बदमाश की करतूत है! एक्सिओनोव ने सोचा, वह माकर सेम्योनिच पर इतना अधिक क्रोधित था कि उसके भीतर माकर से बदला लेने की तीव्र इच्छा जाग्रत् हुई। रातभर वह प्रार्थनाओं को दोहराता रहा, लेकिन उसे शांति नहीं मिली। अगले दिन वह माकर सेम्योनिच से दूर-दूर ही रहा, उसकी ओर देखा तक नहीं।

इस तरह एक पखवाड़ा निकल गया। एक्सिओनोव रात को सो नहीं पाता था, वह इतना दुःखी और बैचेन था कि उसको सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे।

एक रात जब वह जेल में चहल-कदमी कर रहा था, उसने नोटिस किया कि जिन तख्तों पर कैदी सोते थे, उनमें से एक तख्त के नीचे से मिट्टी बाहर आ रही थी। वह देखने के लिए झुका कि अचानक माकर सेम्योनिचे उस तख्ते के नीचे से रेंगता हुआ बाहर आया और भयभीत नजरों से एक्सिओनोव को देखा। एक्सिओनोव ने बिना उसे देखे वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन माकर ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे बताया कि उसने दीवार के नीचे एक गड्ढा खोदा था, और मिट्टी को वहाँ से हटाने के लिए वह उसे अपने ऊँचे-बूटों में भर लेता था, और जब कैदियों को काम के लिए ले जाया जाता था, वह हर रोज उसे सड़क के किनारे खाली कर देता था।

‘‘बूढ़े आदमी, बस तुम चुप रहना, चाहो तो तुम भी भाग जाना, अगर तुमने यह भेद खोला, तो वे मेरी चमड़ी उधेड़-उधेड़कर मुझे मार डालेंगे, लेकिन उससे पहले मैं तुम्हें अवश्य खत्म कर दूँगा।’’

एक्सिओनोव ने जैसे ही अपने दुश्मन को देखा, वह क्रोध के मारे काँपने लगा। उसने यह कहते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया, ‘‘मेरा भागने का कोई इरादा नहीं है, तुम्हें मुझे मारने की आवश्यकता नहीं है; तुमने मुझे वर्षों पहले मार दिया था! जहाँ तक तुम्हारा भेद खोलने की बात है, मैं भेद खोल सकता हूँ और नहीं भी, जैसा भगवान् का आदेश होगा।’’

अगले दिन, जब कैदी काम पर ले जाए जा रहे थे, रक्षक-दल के सिपाहियों ने नोटिस किया कि उन कैदियों में से किसी एक ने अपने बूटों में से मिट्टी सड़क पर गिराई थी। कैदखाने में खोजबीन की गई तो सुरंग मिल गई। जेलर आया और सभी कैदियों से पूछ-ताछ की, यह जानने के लिए कि सुरंग किसने खोदी थी। उन सभी ने किसी भी प्रकार की जानकारी होने से इनकार किया, जिन्हें मालूम था वे भी प्रकट नहीं कर रहे थे। वे जानते थे कि माकर सेम्योनिच को कोड़े मार-मारकर अधमरा कर दिया जाएगा। आखिकार जेल नियंत्रक एक्सिओनोव की तरफ मुड़ा, जिसे वह एक अच्छा व्यक्ति समझता था, और कहा, ‘‘तुम एक सच्चे बुजुर्ग इनसान हो; ईश्वर को साक्षी मानकर मुझे बताओ, गड्ढा किसने खोदा है?’’

माकर सेम्योनिच जेलर की ओर ताकते हुए, कनखियों से एक्सिओनोव को देखते हुए इस तरह से खड़ा था मानो उसे कोई मतलब नहीं हो। एक्सिओनोव के होंठ और हाथ काँप रहे थे, काफी समय तक वह एक शब्द भी नहीं बोल पाया। उसने सोचा, ‘मैं उस व्यक्ति के कृत्य पर परदा क्यों डालूँ, जिसने मेरा जीवन बरबाद किया है? जो कुछ मुझे भुगतना पड़ा है, उसका मूल्य उसे चुकाने दो। लेकिन अगर मैं बताता हूँ, तो शायद कोड़े मार-मारकर वे उसे खत्म ही डालेंगे; हो सकता है कि मेरा उस पर संदेह गलत हो, आखिरकार इससे मेरा कौन सा भला होनेवाला है?’’

‘‘अच्छा बुजुर्ग व्यक्ति,’’ जेलर ने दोहराया, ‘‘मुझे सच-सच बताओ; दीवार के नीचे खुदाई कौन कर रहा था?’’ एक्सिओनोव ने एक उचटती नजर माकर सेम्योनिच पर डाली और कहा, ‘‘मैं नहीं बता सकता हूँ, मेरे हाकिम। भगवान् की यह मर्जी नहीं है कि मैं बताऊँ! आप जैसा चाहें वैसा मेरे साथ करें; मैं आपके हाथों में हूँ।’’

हालाँकि जेलर ने पूरी कोशिश की, एक्सिओनोव ने आगे कुछ नहीं कहा, इसलिए उस मामले को छोड़ देना पड़ा।

उस रात, जब एक्सिओनोव अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था और उसे झपकी आई ही थी कि कोई चुपके से आया और उसके बिस्तर पर बैठ गया। उसने अँधेरे में ध्यान से देखा तो माकर को पहचान लिया।

‘‘तुम मुझसे अब और क्या चाहते हो?’’ एक्सिओनोव ने पूछा, ‘‘तुम यहाँ क्यों आए हो?’’

माकर सेम्योनिच कुछ नहीं बोला, एक्सिओनोव उठकर बैठ गया और कहा, ‘‘तुम क्या चाहते हो? चले जाओ, नहीं तो मैं गार्ड को बुलाऊँगा!’’

माकर सेम्योनिच एक्सिओनोव के करीब आया और झुककर दबी जबान में कहा, ‘‘इवान दमित्रिच, मुझे माफ कर दो!’’

‘‘किसलिए?’’ एक्सिओनोव ने पूछा-

‘‘वह मैं ही था, जिसने उस व्यापारी की हत्या की थी और चाकू तुम्हारे सामान के बीच में छिपा दिया था। मैं तुम्हें भी मार डालना चाहता था, लेकिन बाहर कुछ शोर-गुल सुनाई दिया, इसलिए मैंने चाकू तुम्हारे थैले में छिपा दिया और खिड़की से कूदकर भाग गया।’’

एक्सिओनोव चुप था, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। माकर सेम्योनिच उसके बिस्तर से नीचे खिसक गया और घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया, ‘‘इवान दमित्रिच,’’ उसने कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो! ईश्वर के लिए मुझे माफ कर दो। मैं अपने गुनाह कबूल करूँगा कि मैंने ही उस व्यापारी की हत्या की थी, तुम छोड़ दिए जाओगे और घर जा सकोगे।’’

‘‘तुम्हारे लिए यह कहना बहुत सरल है’’, एक्सिओनोव ने कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारे कारण मैंने इन छब्बीस वर्षों में असहनीय दुःख भोगा है। अब मैं कहाँ जा सकता हूँ? मेरी पत्नी मर चुकी है, मेरे बच्चे मुझे भूल चुके हैं, मुझे कहीं नहीं जाना है।’’ माकर सेम्योनिच खड़ा नहीं हुआ, बस अपना सिर फर्श पर पटकने लगा।

‘‘इवान दमित्रिच मुझे माफ कर दो!’’ वह चिल्लाया, ‘‘जब वे मुझ पर कोड़े बरसा रहे थे, उसे सहन करना इतना मुश्किल नहीं था, जितना अब तुम्हें देखकर, फिर भी तुमने मुझ पर दया दिखाई और भेद नहीं खोला। क्राइस्ट के खातिर मुझे माफ कर दो, मुझ कमीने को!’’ और वह सुबक-सुबककर रोने लगा।

जब एक्सिओनोव को उसके सुबकने की आवाज आई, वह भी रोने लगा।

‘‘ईश्वर तुम्हें क्षमा करेगा!’’ उसने कहा, ‘‘हो सकता है, मैं तुमसे सौ गुणा अधिक बुरा होऊँ।’’ इन शब्दों के साथ उसका हृदय हल्का हो गया, और उसकी घर जाने की चाहत खत्म हो गई। जेल से छूटने की इच्छा भी शेष नहीं थी, उसे बस अपने अंतिम समय का इंतजार था।

एक्सिओनोव ने जो कुछ कहा था। बावजूद उसके माकर सेम्योनिच ने अपना गुनाह कबूल कर लिया, लेकिन जब उसकी रिहाई के आदेश आए, उससे पहले एक्सिओनोव की मृत्यु हो चुकी थी।

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