क्रोध (जर्मन कहानी) : पॉल हेसी

Krodh (L’Arrabiata-German Story in Hindi) : Paul Heyse

1

पौ फटने का समय था । 'विमुसुवियस' पर्वत के ऊपर से दिगन्त-व्यापी कोहरे का घना आवरण फैला हुआ था। समुद्र तट के छोटे-छोटे गाँव स्तब्ध, शब्दहीन थे। सागर निद्रित शिशु की भाँति शान्त और स्थिर था।

पहाड़ से लगे हुए समुद्र तट पर मछुए जाड़े की उपेक्षा करके अपने-अपने कामों में लगे हुए थे। कोई जल से जाल खींचकर उठा रहा था; कोई पार उतारने वाली नाव पर बैठकर यात्रियों की प्रतीक्षा कर रहा था, और कोई नाव साफ़ कर रहा था। इन लोगों की कर्म- चंचलता निद्रित प्रकृति को जागृत कर रही थी।

शहर के पुजारी आकर टोनियो मल्लाह की नाव पर बैठ गए और बोले, "भैया, क्या आज दिन भर आसमान ऐसा ही रहेगा ?"

"जी नहीं, सूरज निकलते ही कोहरा साफ़ हो जाएगा। कोई घबराने की बात नहीं है।"

पुजारी निश्चिन्त होकर बोले, "तब चलो, हम लोग चलें।"

टोनियो को नाव में बैठे पसोपेश करते देखकर पुजारी ने पूछा, "क्यों देरी किसलिए?"

टोनियो ने सामने की ओर ताक कर कहा, “और एक यात्री है। यह भी केप्री शहर जाएगी। हाँ, बग़ैर आपकी इजाजत, मैं उसे नाव पर नहीं बैठा सकता।... वह आ रही है!"

पुजारी सामने देखते हुए बोले, "अरे... यह तो लरेला है। केप्री क्यों जा रही है ?"

टोनियो ने सिर हिलाया। वह नहीं जानता था ।

तेजी से एक नवयुवती नाव के पास आ पहुँची।

पुजारी बोले, "नमस्ते लरेला ! क्या तुम हम लोगों के साथ केप्री जाओगी?"

"जी, हाँ अगर आपको एतराज़ न हो, तो?"

"टोनियो से पूछो। नाव उसी की है।"

“मेरे पास कुल चार पैसे हैं। क्या इतने में मैं जा सकती हूँ?” कहकर लरेला पुजारी की ओर ताकने लगी।

"मुझे पैसे नहीं चाहिए। तुम अपने पास रखो।” कहकर टोनियो कई लकड़ी के बॉक्स हटाकर लरेला के बैठने के लिए जगह करने लगा।

युवती भौंहें सिकोड़कर बोली, "मैं मुफ्त नहीं जाना चाहती।”

पुजारी बोले, "आओ, आओ, लरेला बैठ जाओ। टोनियो बहुत नेक लड़का है। वह मुफ्त ही तुम्हें ले जाएगा। आओ, चली जाओ।"

उन्होंने लरेला को हाथ पकड़कर नाव पर बैठा लिया और कहने लगे, "यहाँ बैठो। देखो, टोनियो ने अपना नया दुशाला तुम्हारे बैठने के लिए बिछा रखा है।...नहीं, टोनियो, इसमें शरमाने की कोई बात नहीं है। दुनिया का नियम ऐसा ही है। एक अठारह साल की युवती के लिए एक युवक जितना आत्म-त्याग कर सकेगा, और किसी के लिए इतना नहीं। सृष्टि के आदि युग से यही स्वाभाविक नियम चला आ रहा है।"

लरेला टोनियो का दुशाला एक तरफ हटाकर, पुजारी के पास बैठ गई ।

टोनियो यह देखकर, गम्भीर चेहरा बना नाव खेने लगा।

पुजारी और युवती बातें करने लगे- "तुम्हारी इस छोटी गठरी, मैं क्या है, लरेला ?”

"रेशम और सूत है। केप्री में दो ग्राहक हैं; उनके पास बेचने के लिए ले जा रही हूँ ।"

"तुम्हारा अपना बनाया हुआ सूत है?"

"जी हाँ।"

"तुम्हारी अम्माँ की तबीयत कैसी है?"

"दिन पर दिन हालत बिगड़ती ही जा रही है। अब वह नहीं बचेगी..."

घर-गृहस्थी की और भी कई बातें होने के पश्चात् पुजारी बोले, “तुम्हारी शादी क्या अभी तक तय नहीं हुई? वह चित्रकार कहाँ गया? तुमने उसे क्यों अस्वीकार किया "

लरेला बोली, “इसलिए कि वह शादी करके मुझको बहुत तकलीफ़ देता। शायद मार ही डालता।"

पुजारी स्निग्ध-स्वर में बोले, "अरे, नहीं...नहीं... ऐसा नहीं ! कभी इस तरह की दुखदायक चिन्ता मन में आने भी न दो क्या तुम नहीं जानतीं, तुम परमात्मा के अधीन हो। उनकी इच्छा के प्रतिकूल कोई कुछ नहीं कर सकता। तुम्हें छू नहीं सकता; मगर जहाँ तक हमें मालूम है, वह लड़का सज्जन है..."

लरेला दृढ़ स्वर से बोली, “मुझे पति की आवश्यकता नहीं है। मैं कभी भी शादी नहीं करूँगी।"

"शादी नहीं करोगी! तुम इस दुनिया में अकेली, रक्षक-हीन रहकर जीवन काटोगी ? यह नहीं हो सकता; क्यों नहीं शादी करोगी?... जवाब दो ।"

लरेला पसोपेश करने लगी।

पुजारी ने सवाल किया, "क्या मुझसे कहने में तुम्हें संकोच हो रहा है?"

लरेला ने सिर हिलाया और फिर पीछे की ओर मुड़ कर, पुजारी की ओर ताकने लगी। पुजारी समझ गए कि नाव पर दूसरे आदमी के रहने से उसे संकोच हो रहा है। लरेला के पास वे और सट कर बैठ गए। तब लरेला दूसरा कोई सुनने न पाए, ऐसे धीमे स्वर में अपनी जीवनी कहने लगी।

किस तरह उसका पिता शराब पीकर, रात को लौटकर माँ को मारता था; किस तरह माँ के छिपा कर जमा किए हुए रुपए, उसका प्रत्येक गहना, सब सुन्दर कपड़े, उसका पिता जबरदस्ती छीन कर ले जाता था; कैसे उसकी माँ पति का यह निर्दय आचरण मुँह बन्द करके सहती थी।

स्त्री पर किए गए पुरुष के अत्याचार की वह एक लम्बी, करुणाजनक कहानी थी।

जीवनी समाप्त करते हुए लरेला बोली, “पिता के मरने के समय, माँ ने उनके सभी अपराध क्षमा किए। मगर यह सब देखकर पुरुषों पर मेरी घृणा हो गई है। मेरे ख्याल में सभी इसी तरह के निर्दयी हैं। इसलिए महाराज, में किसी पुरुष के पंजे में नहीं जाना चाहती ।"

नाव टापू के घाट पर आ गई थी। पुजारी ने नाव पर से उतरते हुए लरेला से कहा, "तुम एक दिन मुझसे मिलना!”

फिर टोनियो से उन्होंने कहा, "मैं आज नहीं लौट सकूंगा। हाँ, लरेला लौट जाएगी। तुम उसके लिए प्रतीक्षा करना।"

टोनियो बोला, "मैं दोपहर तक यहाँ ठहरूँगा। इसके अन्दर तुम आ जाओ तो..."

लरेला टोनियो को कोई जवाब न देकर शहर की ओर जाने लगी।

कुछ दूर पर आकर एक दूसरी सड़क की ओर मुड़ते हुए उसने क्षण-भर के लिए पीछे देखा । टोनियो उसकी ओर एकटक देख रहा था और उसके मुँह पर एक गहरी वेदना छाई हुई थी।....

लरेला जब समुद्र तट पर लीटकर आई, दोपहर बीत चुका था।

टोनियो शहर में जाकर भोजन कर आया था। लौटते समय सस्ती कीमत के कुछ सन्तरे खरीद लाया था और नाव की एक तरफ एक छोटे लकड़ी के बक्स में रखकर, लरेला के लिए बैठा-बैठा प्रतीक्षा कर रहा था।

लरेला आकर चुपचाप नाव पर बैठ गई। टोनियो भी मौन भाव से नाव खेने लगा।

लरेला नाव के दूसरी ओर घूम कर जरा तिरछी बैठी हुई थी। उसके मुँह का एक भाग टोनियो देख पाता था। दोपहरी की तेज धूप ने उसके चेहरे पर गुलाबी रंग ला दिया था।

कुछ देर तक नाव खेने के पश्चात् टोनियो ने डाँड़ चलाना रोक दिया और उठकर सन्तरों का बॉक्स निकाला। फिर लरेला के सामने रखकर बोला, “लो, एक चखो प्यास रुक जाएगी। बड़ी गर्मी है। हम लोगों को काफ़ी दूर जाना है। "

"तुम खाओ; मुझे जरूरत नहीं है।"

कुछ देर तक चुप रहकर टोनियो बोला, “अपनी माँ के लिए कुछ साथ ले जाना । मैंने सुना है, वे बीमार हैं।"

"हमारे घर पर सन्तरे रखे हैं, और बाजार भी दूर नहीं... और फिर माँ तुम्हें नहीं पहचानती हैं। मैं कैसे तुम्हारे सन्तरे उन्हें दे सकती हूँ?"

"तुम उनसे मेरे बारे में कहना।" टोनियो बोला।

"मैं... मैं भी तो तुम्हें नहीं जानती !”

टोनियो ने और कुछ नहीं कहा। क्रोध, अपमान और दुख से उसका शरीर जल रहा था।...लरेला उसे नहीं जानती है? कैसे झूठ बोलती है! जब से वह और उसकी माँ यहाँ आकर रहने लगे हैं, तब से टोनियो उसे खुश करने के लिए न जाने कितनी कोशिश कर रहा है, फिर भी लरेला उसे नहीं जानती है! टोनियो चुप बैठकर क्रोध से फूलने लगा।

कुछ देर तक इसी भाव से रह सहसा टोनियो डाँड़ खेना रोककर बोला, "आज मैं तुमसे पूरा-पूरा जवाब लूँगा। लरेला, तुम मुझे क्यों नहीं जानना चाहती हो ?... तुम मेरी उपेक्षा क्यों करती हो? तुम मेरे हृदय की बात बहुत दिनों से जानती हो, फिर भी तुम मुझे क्यों अपमानित करती हो?"

लरेला ने स्थिर स्वर में जवाब दिया, "तुम्हें कभी भी मैंने अपमानित नहीं किया है। सिर्फ तुम्हें जता दिया है कि तुम्हें पति का स्थान नहीं दे सकती किसी को भी नहीं दे सकती।"

"क्यों नहीं दे सकती ?"

"तुम्हें यह बात पूछने का अधिकार नहीं है।"

"अधिकार नहीं है ?..."

टोनियो का चेहरा देखकर लरेला चौंक पड़ी। उसके चेहरे पर एक भयानक, विषाक्त मुस्कान थी और धीरे-धीरे मुँह अस्वाभाविक रूप से सिकुड़ रहा था।

पागल की तरह टोनियो बोला, "अपने जीवन को मैं किसी तरह व्यर्थ नहीं होने दूँगा। मैं आज, यहीं, इसी क्षण, अपना अधिकार प्रमाणित कर लूँगा। तुम मेरे अधिकार में हो, यह बात तुम्हें याद दिलाने की जरूरत है क्या?"

लरेला ने चकित होकर टोनियो के क्रोध से लाल मुँह की ओर देखा। वह समझ गई कि भोले-भाले टोनियो के हृदय में आज सहसा जो पशुत्व जागृत हुआ है उसे वह किसी तरह रोक नहीं सकती। मगर फिर भी उसने साहस के साथ कहा, "हाँ... मैं जानती हूँ, मैं पूरी तरह से अब तुम्हारे पंजे में हूँ। तुम चाहो तो अब मेरी हत्या भी कर सकते हो। मगर फिर भी..."

“हाँ, मैं कर सकता हूँ। कोई काम करते-करते बीच ही में छोड़ देना मेरा सिद्धान्त नहीं है। इस विशाल समुद्र के बीच में अनायास ही हम दोनों रह सकते हैं। हम दोनों की समाधि इसी के अन्दर हो सकती है। आज इसी क्षण।"

टोनियो ने, पागल पशु की तरह कूद कर लरेला का एक साथ पकड़ा और उसे जोर से अपनी तरफ खींचा; फिर एक क्षण में वह चीख कर उसे छोड़कर पीछे हट गया। उसके दाहिने हाथ की कलाई में खून बह रहा था। लरेला ने आत्मरक्षा के लिए अपनी सारी शक्ति लगा कर उसका हाथ काट लिया था।

लरेला बोली, "मैं तुम्हारे पंजे में! कभी भी नहीं..." कहकर समुद्र में कूद पड़ी। क्षण भर के लिए टोनियो का होश ग़ायब हो गया। फिर होश में आकर देखा - लरेला समुद्र-तरंगों पर धीरे-धीरे तैर रही है।

झट डाँड़ उठाकर टोनियो उसकी ओर नाव खेने लगा। उसकी कलाई से खून बहता जा रहा था।

लरेला के पास नाव ले जाकर टोनियो कातर स्वर में बोला- "लरेला, नाव पर आ जाओ! मुझे होश नहीं था, इसलिए तुम्हें बेइज़्ज़त करने जा रहा था।... तुम मुझे क्षमा न करना। सिर्फ नाव पर आकर अपनी जीवन रक्षा करो। यहाँ से घाट बहुत दूर है; तुम यहाँ तक नहीं पहुँच सकोगी। चली आओ... नहीं आओगी लरेला !"

लरेला ने चारों ओर देखा। फिर नाव पकड़ ली।

दोनों फिर चुपचाप बैठे रहे। लरेला के नाव पर चढ़ने के समय नाव के एक तरफ झुक जाने से, टोनियो का दुशाला जल में गिर पड़ा था। टोनियो की दृष्टि उस पर न पड़ने पर भी लरेला ने देख लिया था।

देह पोंछते पोंछते सहसा लरेला नाव के फ़र्श की ओर देखकर चौंक पड़ी। ताजे खून से वह जगह लाल हो गई थी। फिर आँखें उठा कर टोनियो की कलाई देखकर वह मन-ही-मन काँप उठी। सहसा उसके हृदय में एक तीव्र पश्चात्ताप झाँक कर विलीन हो गया।

सिर बाँधने के जिस रूमाल से लरेला अपना शरीर पोंछ रही थी, उसे टोनियो की ओर बढ़ाकर वह बोली, "इसे लो... इससे जख्म बाँध लो ।”

टोनियो ने सिर हिला कर 'नहीं' की और नाव खेने लगा।

थोड़ी देर में लरेला उठकर उसके पास आकर, रूमाल की पर्त बना कर टोनियो की कलाई में बाँधने लगी। दो-एक बार टोनियो हल्की अनिच्छा प्रकट करके दूसरी ओर मुँह फेरकर बैठा रहा।

नाव घाट के पास आ गई थी।

2

टोनियो अपनी कोठरी की खुली खिड़की के पास बैठा था। रात्रि का समय था। समुद्र की ओर से ठंडी, गीली हवा आकर उसके बालों के साथ खेल रही थी। क्लान्ति, निराशा और वेदना टोनियो के चेहरे की चमक को निष्प्रभ कर रही थी।

वह अँधेरे में आँखें गड़ा कर सुबह की बातें सोच रहा था :

लरेला ने ठीक ही कहा था- मैं एक पशु हैं; मुझे उचित सजा मिल गई। कल उसका रूमाल वापस कर दूँगा और कभी भी वह मुझको अपने सामने नहीं देख पाएगी।

उसने रूमाल को बड़ी सावधानी से साबुन से धोकर, धूप में सुखा कर रखा था।

सहसा दरवाज़े पर पैरों की आहट सुनकर टोनियो ने मुँह फेर कर देखा। क्षण-भर में लरेला कोठरी के अन्दर आकर खड़ी हो गई।

टोनियो बोला, "क्या रूमाल लेने के लिए आई हो? अगर तुम तकलीफ़ न भी करतीं, तो भी मैं कल सुबह ही किसी के हाथ जरूर भेज देता।"

लरेला अधीर स्वर से बोली, "नहीं, नहीं, रूमाल के लिए नहीं पहाड़ पर के खानाबदोशों से ये पत्ते लाई हूँ। इनसे तुम्हारा घाव जल्द ठीक हो जाएगा। देखो!"

उसने अपने हाथ पर रखी हुई डलिया का ढक्कन खोल कर दिखलाया ।

टोनियो ने स्निग्ध स्वर में कहा, "क्यों तुमने इतनी तकलीफ़ उठाई ! यह घाव मामूली है, मुझे कोई कष्ट नहीं है। और यह तो मेरी उचित सजा है। इसके लिए ऐसे बेवक्त आने की जरूरत नहीं थी। यों तो लोग बिना जाने-सुने ही कितनी बातें कहने लग जाते हैं-"

“कहने दो! मैं उसकी परवाह नहीं करती। मैं तुम्हारा घाव देखने के लिए आई हूँ, और इन पत्तों को कलाई पर बाँधने के लिए आई हूँ। बाएँ हाथ से अच्छी तरह से यह सब नहीं बाँधा जा सकता।"

"कोई जरूरत तो नहीं है! घाव बिलकुल मामूली है।"

"दिखाओ तो अपना हाथ ऐ माई कह रहे थे जरूरत नहीं है! अरे, यह तो बहुत फूल गया है-"

लरेला एक प्याले में पानी भर कर टोनियो के पास आई। फिर उसे खाट पर बैठा कर, उसके सामने एक नीची कुर्सी पर बैठकर बड़े यत्न से उसका घाव धोने लगी। टोनियो आँखें बन्द करके भोले बालक की तरह बैठा रहा।

कलाई पर पट्टी बँध जाने पर टोनियो ने एक सुखदायी साँस फेंक कर, कोमल स्वर में कहा, “तुम्हें हज़ारों धन्यवाद, लरेला ! तुम मुझ पर एक और कृपा करो। तुम मुझे क्षमा कर दो। मैंने जो कुछ कहा है, जो कुछ किया है, कृपया सब भूल जाओ। कैसे और किस तरह वह सब हो गया था, मैं अब तक नहीं समझ सका। मगर तुम्हारा कोई क़सूर नहीं था। यह मैं अच्छी तरह से समझ रहा हूँ। खैर, अब कभी तुम मेरी जुबान से खिझानेवाली बात नहीं सुन पाओगी। तुम मुझे क्षमा करो !”

टोनियो के कोमल स्वर की क्षमा-प्रार्थना से लरेला अधीर होकर बोली, "तुम क्यों इस तरह कह रहे हो? अपराध तो मेरा ही था! तुमसे मुझे क्षमा माँगनी चाहिए। तुमसे अगर मैं वैसा कठोर व्यवहार न करती, तो कुछ भी न होता। फिर तुम्हें उस तरह से काट लेना...."

टोनियो बोला, "अपने को बचाने के लिए तुमने जो कुछ किया था, वह ठीक ही था। मेरे पशुत्व का विनाश करने के लिए ठीक उतनी ही जरूरत थी। तुम अपनी जुबान पर क्षमा माँगने की बात न लाओ। मेरे लिए तुमने जो तकलीफ़ की है, उसके लिए धन्यवाद ! यह लो अपना रूमाल ।"

टोनियो उठकर रूमाल की पर्त करके लरेला के हाथ में देने गया, मगर पसोपेश करता रहा। उसके हृदय में न जाने कैसी हलचल मची हुई थी, जिसे वह किसी तरह से शान्त नहीं कर पाता था।

आखिर लरेला अपनी ओढ़नी के अन्दर से एक छोटा, सुन्दर फूलदान निकाल कर बोली, "मेरी ही वजह से तुम्हारा दुशाला समुद्र में गिर गया था। उसे तो मैं तुम्हें नहीं दे सकती। उसके बदले में यह फूलदान लो। यह मेरा है। इसे बेच कर ..."

उसकी बात ख़त्म होने के पहले ही टोनियो ने कहा, "मैं यह नहीं लूँगा।"

"क्यों नहीं लोगे? मैं तुम्हें उपहार के रूप में यह नहीं दे रही हूँ। मैंने तुम्हें जो हानि पहुँचाई थी, उसका हर्जाना..."

मगर टोनियो के विहल- वेदना से भरे मुँह की ओर ताक कर वह अपनी बात नहीं ख़त्म कर सकी। सिर नीचा करके जमीन की ओर आँखें गड़ा कर खड़ी रही।

करुण भरे तथा कोमल स्वर से टोनियो बोला...." लरेला ! तुम घर जाओ। तुमने मेरे लिए आज जो तकलीफ़ की है, उसे मैं कृतज्ञता से हमेशा याद रखूंगा। मगर तुम्हारी चीज़ मैं नहीं ले सकता। तुम अब घर जाओ पर याद रखो, टोनियो और किसी दिन भी तुम्हें दिक करने के लिए, तुम्हारे सामने... अरे यह क्या! लरेला, तुम रो रही हो.....!"

टोनियो के और कुछ कहने के पहले ही लरेला उसके पैरों के पास बैठकर जोर से रो पड़ी। फिर आँसुओं से दबे हुए स्वर में बोली, "मुझसे और सहा नहीं जाता! तुम क्यों इतने प्यार से बोल रहे हो? तुम क्यों मुझे चले जाने के लिए कह रहे हो? मैंने तुम पर अन्याय किया है...तुम्हें तकलीफ़ दी है। तुम मुझे सजा दो... चाहे जैसी निष्ठुर सज़ा हो! और...और....” लरेला का स्वर और भी दब गया, “और अगर तुम अभी तक मुझको प्यार करते हो, तो तुम मुझे स्वीकार करो...मुझ पर जितना अधिकार स्थापित करना चाहो, कर लो.... पर यहाँ से इस तरह चले जाने के लिए न कहो।"

आँसुओं के आवेग से उसका स्वर बिलकुल दब गया।

क्षण भर तक टोनियो चकित होकर खड़ा रहा। फिर लरेला के दोनों हाथ पकड़, उसे उठा कर, हृदय के पास लाकर बोला, "मैं तुम्हें अभी तक प्यार करता हूँ। तुम क्या यह सोच रही हो लरेला कि मेरे इस घाव से हृदय का सब खून निकल गया है? मगर लरेला क्या यह सच है?"

लरेला अपनी भोली आँखें टोनियो के मुँह पर गड़ाकर बोली, "सच है! मैं हमेशा तुमको प्यार करती थी। तुम्हें देखते ही हृदय में दुर्बलता अनुभव करती थी, और इसीलिए मैं तुमसे निर्दय व्यवहार करती थी। मगर अब कभी भी तुम्हें देखकर मुँह नहीं फेरूँगी अब तुम मेरी..."

बात ख़त्म करके लरेला ने अपने दोनों फूल की तरह कोमल हाथों से टोनियो की गर्दन घेर ली.... फिर आवेग से उसकी आँखें बन्द हो गई।

टोनियो की आँखों के सामने से दुनिया लुप्त हो गई। बड़े अर्से से आकांक्षित प्रियतमा को दोनों हाथों से घेरकर उसने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

डलिया उठाकर लरेला बोली, “मैं अब जा रही हूँ। शायद माँ मेरे लिए घबरा रही होंगी। तुम अब सो जाओ और तुम यह जान लो लरेला अपने पति के सिवा किसी को चुम्बन करने नहीं देती!"

तेजी से वह कमरे से निकल गई।

टोनियो खिड़की के पास आकर बहुत देर तक चुपचाप खड़ा रहा। दूर से सागर की अधीर तरंगों की ध्वनि उसके कानों में एक मीठा, हृदय में कँपकँपी लेने वाला गाना सुनाने लगी।

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