कृतज्ञ साँप : सूडान लोक-कथा
Kritagya Saamp : Sudan Folk Tale
एक बार एक आदमी कहीं जा रहा था कि रास्ते में उसको दो साँप लड़ते हुए मिले। वह उनके पास गया तो उसने देखा कि उनमें से एक साँप की लड़ते लड़ते बहुत ही बुरी हालत हो गयी थी।
उस आदमी को उस घायल साँप पर बहुत दया आयी सो उसने एक डंडी उठायी और उन दोनों लड़ते हुए साँपों को अलग अलग कर दिया।
उसने बड़े वाले साँप को धमकी दी तो वह वहाँ से बड़ी तेज़ी से भाग गया। फिर उसने दूसरे साँप को डंडी से छू कर देखा कि वह अभी भी ज़िन्दा था कि नहीं। भगवान का लाख लाख धन्यवाद कि वह अभी भी ज़िन्दा था।
साँप बोला — “बहुत बहुत धन्यवाद आदमी। अगर तुम यहाँ न आते तो अब तक तो मैं मर ही गया होता। तुम्हारे इस उपकार के बदले मैं तुमको एक ताकत देता हूँ कि तुम सारे जानवरों की भाषा समझ सको कि वे क्या कह रहे हैं। ”
आदमी ने पूछा — “क्या तुम सच कह रहे हो?”
“हाँ बिल्कुल। तुम वह सब जान जाओगे जो मच्छर, चूहा और गाय आदि जानवर बात करेंगे। पर ध्यान रखना कि यह बात तुम किसी से कहना नहीं नहीं तो तुम मर जाओगे। ”
यह भेंट पा कर वह आदमी बहुत खुश हो गया। दोनों ने एक दूसरे को प्यार से विदा कहा और अपने अपने रास्ते चले गये।
उस शाम सोने से पहले उस आदमी ने अपने सारे दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर लिये और सोने के लिये बिस्तर पर लेट गया।
कुछ देर बाद एक मच्छर दरवाजे से अन्दर आने की कोशिश करने लगा। जब वहाँ से उसको अन्दर आने का रास्ता नहीं मिला तो वह खिड़की पर गया। पर वहाँ भी उसको अन्दर आने की कोई जगह नहीं मिली तो गुस्से में आ कर वह बहुत ज़ोर से भिनभिनाने लगा।
“सत्यानाश हो इस जगह का। यह घर तो ताबूत की तरह से कस कर बन्द है। अब मैं इसके अन्दर कैसे घुसूँ?”
घर के अन्दर आदमी ने जब मच्छर की यह बात सुनी तो उसको हँसी आ गयी। उसकी पत्नी ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा — “अरे तुम क्यों हँस रहे हो?”
अपनी दूसरी हँसी को रोकते हुए आदमी बोला — “कुछ नहीं कुछ नहीं। ” और फिर वे सो गये।
कुछ देर बाद एक चूहे ने उसके घर में घुसने की कोशिश की। उसने भी घर का दरवाजा और खिड़कियाँ देखीं पर उसको भी वे घुसने के लिये नामुमकिन लगीं।
चूहे ने थोड़ी देर तो सोचा फिर वह सीधा छत की तरफ भाग गया। वहाँ उसको तख्तों के बीच में घर में घुसने की एक छोटी सी जगह मिल गयी सो वह वहाँ से घर में घुस गया।
उसने खाने वाली चीज़ के लिये उस आदमी के घर के सारे कमरे छान मारे। उसके लिये उसने इधर चीज़ें गिरायीं उधर चीज़ें गिरायीं पर उसको खाने वाली चीज़ कहीं नहीं मिली।
यह देख कर वह गुस्से में चिल्लाया — “हुँह। सत्यानाश हो इस घर का। यह किस तरह का घर है कि मुझे यहाँ चीज़ का एक ज़रा सा टुकड़ा भी नहीं मिल रहा। ”
बिस्तर में लेटे लेटे उस आदमी ने भी यह सुना तो वह फिर बहुत ज़ोर से हँस पड़ा। उसको हँसता सुन कर उसकी पत्नी ने फिर पूछा — “अब क्या हुआ? अब क्यों हँस रहे हो?”
आदमी ने अपने आपको बड़ी मुश्किल से रोकते हुए कहा — “ओह कुछ नहीं, कुछ नहीं। सचमुच में कुछ नहीं। ”
रात गुजर गयी और सुबह हो गयी। जैसे वह रोज करता था उसी तरह उस सुबह को भी वह गायों के बाड़े में गया और उनको हरे हरे घास के मैदान में चराने के लिये ले गया।
रास्ते में सब गायें आपस में बात करती जा रही थीं और वह आदमी बड़े आराम से उनकी बातें सुनता हुआ चला जा रहा था। उसके बाद उनके दूध दुहने का समय आया तो उसकी पत्नी बैठने के लिये एक स्टूल और दूध दुहने के लिये एक बालटी ले आयी।
उसको देख कर सबसे बड़ी गाय रँभायी और बोली — “ओ गायों देखो ज़रा, यह स्त्री हमारा दूध चुराने आ गयी। ”
यह सुन कर वह आदमी फिर ज़ोर से हँस पड़ा।
इस बार उसकी पत्नी को गुस्सा आ गया — “तुम फिर हँस रहे हो? क्या बात है कल से तुम हँसे ही जा रहे हो। ”
“नहीं नहीं कोई खास बात नहीं, बस ज़रा यूँ ही। ” पर उसके पास ऐसा कोई बहाना नहीं था जिस पर कोई दूसरा उस पर विश्वास कर लेता।
उसी समय गाय ने फिर से रँभाना शुरू कर दिया — “नहीं नहीं, आज नहीं। आज मैं अपना दूध अपने बछड़े के लिये रखना चाहती हूँ। ” और वह उसकी पत्नी से दूर हट गयी।
आदमी ने उसकी बात फिर से समझ ली तो वह फिर हँस पड़ा।
इस बार पत्नी से रहा नहीं गया तो वह बोली — “तुम क्या सोचते हो कि तुम किसका मजाक उड़ा रहे हो?”
उसने फिर से उसको यह कर शान्त किया — “ओह मेरी प्यारी पत्नी, किसी का नहीं, किसी का नहीं। तुम तो यूँ ही बस ज़रा सी बात पर नाराज हो जाती हो , , ,। ”
वह बोली — “कल से तुम एक बेवकूफ की तरह से बरताव कर रहे हो। ” और अपना स्टूल और बालटी ले कर घर के अन्दर चली गयी।
शाम को वह स्त्र्ी फिर से गायों को दुहने के लिये आयी तो वह बहुत थोड़ा दूध ही दुह पायी सो वह अपने पति से बोली — “देखना ये गायें मुझे दूध ही नहीं दुहने दे रहीं। ”
गाय बोली — “क्या तुम यह दूध मेरे बछड़े को पिलाने के लिये ले जा रही हो?”
यह सुन कर तो आदमी हँसते हँसते दोहरा ही हो गया।
पत्नी बोली — “यह क्या कोई हँसने की बात है जो तुम इतनी ज़ोर से हँस रहे हो? तुम मेरा मजाक बना रहे हो। तुम मेरी बिल्कुल भी परवाह नहीं करते। ”
एक बार फिर गाय रँभायी — “हो सकता है कि उसके पास इसकी कोई वजह हो। ”
पति फिर हँस पड़ा। इस बार तो उससे अपनी हँसी रोकी ही नहीं गयी।
पत्नी बोली — “अगर तुम्हारा यही ढंग रहेगा तो मैं गाँव के अक्लमन्द लोगों के पास जाती हूँ और उनसे कहती हूँ कि वे रात को हमारे घर आयें। तब मैं उनको अपनी समस्या बताऊँगी और उनसे तलाक की प्रार्थना करूँगी।
अब पति के पास कहने को कुछ नहीं था। वह फिर से बहुत ज़ोर से हँस पड़ा कि शायद हँस कर वह अपनी पत्नी को शान्त कर सके पर ऐसा नहीं हुआ। वह शान्त नहीं हुई।
शाम को गाँव के बड़े लोग आये और आग के चारों तरफ बैठ कर उस स्त्री से बोले — “तुमने हमें यहाँ क्यों बुलाया है। बताओ तुम्हें क्या परेशानी है। ”
“मेरा पति मेरे ऊपर बिना किसी वजह के हँसता रहता है। हम सोने जाते हैं तभी भी यह हँसता है। जब यह जानवर चराने ले जाता है तभी भी हँसता है जब मैं दूध दुहती हूँ यह तभी भी हँसता है। मुझे अच्छा नहीं लगता कि इस तरह से कोई मेरा मजाक बनाये। ”
बड़े लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा और हाँ में सिर हिलाया कि हाँ यह स्त्री कह तो ठीक रही है। उन्होंने उसके पति से पूछा — “क्यों भाई क्या बात है? हमें बताओ कि तुम अपनी पत्नी पर हर समय क्यों हँसते रहते हो?”
पति बोला — “नहीं मैं उस पर नहीं हँसता। ”
“तो फिर तुम किस पर हँसते हो?”
“मुझे यह बताने की इजाज़त नहीं है। ”
“तुम हमारा बेवकूफ नहीं बना सकते। यह क्या बात हुई कि मुझे यह बताने की इजाज़त नहीं है। और इसमें न बताने की इजाज़त की क्या बात है। बताओ तुम किस पर हँसते हो। ”
“अगर मैं थोड़े में कहूँ तो मैं जानवरों पर हँसता हूँ अपनी पत्नी पर नहीं। ”
इस पर उन बड़े आदमियों ने फिर एक दूसरे की तरफ देखा और ना में सिर हिलाया। मामला बिल्कुल साफ था कि यह आदमी पागल हो गया था। इसके बाद वे सब वहाँ से एक दूसरे कमरे में चले गये और एक नतीजे पर पहुँचे।
उसके बाद वे सब वापस लौटे और बोले — “ओ स्त्री, आज से तुम आजाद हो। तुमको आज से इस आदमी से तलाक दिया जाता है क्योंकि तुम्हारा पति पागल हो गया है। ”
पत्नी ने यह सुन कर रोना शुरू कर दिया और पति ने उसे फिर से टालमटोल करके समझाना शुरू किया कि यह सब क्या था। पर बड़े लोगों का फैसला किसी तरह से टाला नहीं जा सका। और अब उनका दिमाग भी बदला नहीं जा सकता था।
इस तरह से यह शादी खत्म हो गयी। गाँव के लोगों ने उस दुखी जोड़े से सहानुभूति प्रगट की और पति अपनी पत्नी से बचने के लिये वह गाँव छोड़ कर एक अकेली जगह चला गया।
वह वहाँ कुछ दिन रहता रहा कि उसको वही साँप फिर से मिल गया जिसको उसने बचाया था।
साँप बोला — “हलो आदमी, तुमसे फिर से मिल कर बहुत खुशी हुई। पर तुम यहाँ इस जगह क्या कर रहे हो?”
आदमी बोला — “काश तुम जानते कि मेरे साथ क्या हुआ है। मुझे तुम्हारी दी हुई भेंट अपने गाँव वालों को बतानी पड़ी और उन सबने सोचा कि मैं पागल हो गया हूँ।
मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली गयी, मुझे अपना गाँव भी छोड़ना पड़ा। इस बात को कोई नहीं मान सकता कि तुम मेरे लिये कितनी खुशकिस्मती ले कर आये। ”
साँप बोला — “तुम आदमी लोग भी कितने बेवकूफ होते हो। तुम लोग यह तो देखते नहीं कि क्या सच है। तुम लोगों को तो बस जो कुछ ऊपर से दिखायी देता है तुम लोग उसी को सच समझ लेते हो।
सुनो। जो लोग तुमको पागल कह रहे है वे खुद ही सबसे बड़े पागल हैं। उनके बारे में सोचना छोड़ो। तुम एक ऐसी पत्नी से बच गये जो तुमको समझ ही नहीं सकी। अच्छा हुआ कि तुम अपने बेवकूफ साथियों से भी बच गये।
तुमसे ज़्यादा किस्मत वाला और कौन होगा। खुश रहो और देवता तुम्हारी रक्षा करें। ”
आदमी ने सोचा “यह तो ठीक है। यह साँप ठीक कह रहा है। अब मैं एक आजाद और खुशकिस्मत आदमी हूँ। ”
और खुशी से सीटी बजाते हुए वह आजाद चिड़ियों की बातचीत सुनने के लिये एक मक्का के खेत की तरफ चल दिया।
(साभार : सुषमा गुप्ता)