कोयल का कूजन (असमिया बाल कहानी) : अतुलानन्द गोस्वामी/অতুলানন্দ গোস্বামী

Koyal Ka Koojan (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Atulananda Goswami

परिवार का सबसे नटखट लड़का सबुल सभी को चकित कर इस बार आठवीं श्रेणी की परीक्षा में प्रथम आया। दिन के ज्यादातर समय खेलकूद में लगे रहने वाले सतुल के लिए पढ़ने का समय ही कहाँ ? लेकिन जो थोड़ा बहुत वह पढ़ता है, उसी से परीक्षा में अच्छा नम्बर ले लेता है।

उसने अपने भैया तथा पिताजी से कह रखा था कि यदि इस बार की परीक्षा में वह प्रथम आया तो उसे टेपरिकार्डर देना होगा। भैया तथा पिताजी जानते थे कि वह प्रथम नहीं आ सकेगा। सबुल के कहने पर कह दिया, 'आँ-हाँ, क्यों नहीं- जरूर टेपरिकार्डर दे देंगे।' अब जब रिजल्ट निकला और उसने जो कहा था, करके दिखा दिया तो रिकार्डर दिये बिना चैन कहाँ ।

सबुल को एक छोटा-सा टेप रिकार्डर खरीद दिया गया। वह नटखट जरूर था, लेकिन साथ-साथ यह भी था कि वह जिस काम को करना तय कर लेता था उसे करके ही दिखा देता था। लगनशीलता ही तो सफलता की कुंजी है। इसी कारण उसे घर के सभी सदस्यों से प्यार भी मिलता था।

टेप रिकार्डर के आ जाने के प्रथम दस दिन तो उसने सभी को तंग कर रखा था। वह अपने घर की किसी भी बात को टेप द्वारा पकड़ लेता तथा उसे बड़े स्वर में सभी को बजा-बजा कर सुनाता। इससे घर का चैन ही समाप्त हो गया। हाँ, उससे कभी-कभी बड़ा आमोद भी मिलता था। इस तरह आमोद के नाम पर सारे घर में ऊटपटांग मचा रखता था। कभी-कभी अपने पिताजी के गुस्से तथा गालियाँ भी टेप करके अपने भैया-भाभी और माँ को सुना, आनन्द देता था। एक दिन उसकी माँ ने यह बात हँसते-हँसते अपने पति से कही। बाप ने गुस्सा होकर सबुल को वह टेप वापस देने को कहा, नहीं तो वह उसे तोड़ डालेंगे।

एक दिन उसकी दादी ने मबुल को एकांत में बुलाकर समझाया 'वह इस तरह बेकार बैटरी सेल क्यों खर्च करता है। उससे अच्छा होगा अच्छे- अच्छे गाने, बड़े-बड़े नेताओं के भाषण, किसी बड़े आदमी की वाणी को अपने टेप में पकड़ रखने की कोशिश करे, फिर विभिन्न जीव जन्तुओं पशु- पक्षियों की बोलियों को ही अच्छी तरह रिकार्ड कर ले तो कितना अच्छा हो। पकड़ सकोगे सबुल -- सुबह की चिड़ियों का मधुर कूजन ?' दादी ने पूछा था ।

सबुल को यह बात अच्छी लगी। किसी ने सोचा ही नहीं था कि सबुल ऐसे काम के लिए तैयार हो जाएगा।

परीक्षा का फल अभी- अभी निकला ही था । कक्षाएँ तक शुरू नहीं हुई थीं। यह तो बच्चों के लिए आराम का समय था ।' बिहू' के बाद से ही तो अच्छी तरह पढ़ाई शुरू होती हैं और 'बिहू' के पहले ही कोयल कूकने लगती है।

चिड़ियों को अपने घोसले तक लौटने का जब समय होता तो कोयल की कुहू कुहू उसे सुनाई देती। उसकी दादी कह उठती, 'वाह वाह, सुनो न कोयल का कूजन कैसी मीठी है।' सबुल झट बाहर निकलता, किन्तु वह कोयल को देख न पाता, न ही वह कोयल को पहचानता । हाँ, उसने यह जान लिया कि कोयल जंगल के बड़े-बड़े पेड़ों पर रहती है । उसको याद है, किसी ने एक बार कहा था कि कोयल आम के पेड़ों पर रहती है।

घर में एक नौकर है-नगम है मदन उम्र में सबुल से एक-दो साल का बड़ा होगा । वह सबुल का साथी है। काम से थोड़ी फुर्सत मिलते ही वह सबुल के इर्द-गिर्द घूमता रहता है।

एक रोज सुबह ही सबुल अपने घर से निकल गया। हेम बरुआ के घर के पिछवाड़े एक बाग है। वहाँ कई आम के पेड़ भी हैं। देखभाल न होने के कारण अब वह बाग नहीं, जंगल ही बन गया है। सबुल वहाँ चला गया। साथ में वह नया टेप रिकार्डर भी था। लेकिन सबुल के वहाँ पहुँचते ही चिड़ियों को पता चल गया और वे हवा हो गयीं। फिर भी सबुल ने सारे जंगल को छान मारा। वह आम का पेड़ पहचानता था। वहाँ एक बहुत बड़ा आम का पेड़ था । उस जंगल में कुल कितने पेड़ हैं, इसकी गणना उसने कर ली। एक आम का पेड़ उसे बड़ा अच्छा लगा। उसमें एक निशान लगाकर वह घर चला आया।

सबुल के पिता अपने काम के लिए महीने में कम-से-कम एक बार दो-चार दिनों के लिए गुवाहाटी जाया करते हैं। उन दिनों बच्चे स्वतंत्र हो जाते हैं। सबुल ऐसे मौके के इन्तजार में था। आज उसे वह मौका मिल गया ।

शाम को उसने मदन को यह कह रखा था कि वह आज रात को कहीं जाएगा और उसे भी उसका साथ देना होगा। कब और कहाँ यह सब उसने नहीं बताया। केवल एक ही बात कही कि भूख लगने से खाने के लिए चार-पाँच पैकेट लोजेंस ले लेगा ।

अवसर देख कर उसने अपनी दीदी बन्ती का स्कूल बैग छिपा लिया था । अपनी माँ की एक छोटी-सी टार्च भी उसने रात को घड़ी में समय देखने के लिए ले ली थी । रसोई घर के बड़े से चाकू को भी किसी बहाने हथिया लिया । एक पानी की बोतल भी दोपहर को ही भरकर रख दी। पिछवाड़े बरामदे में कपड़े सुखाने के लिए एक नाइलान की रस्सी थी, उसने उसे लेने की सोच लिया था ।

खाने-पीने के बाद, सोने के पहले सबुल ने मदन को इशारे से तैयार रहने को कहा। अपने मझले भैया के साथ सबुल एक ही कमरे में सोता था । वैसे सोने के साथ ही सबुल को नींद आ जाती है, पर उस दिन वह जागता ही रहा। उसके मन में छटपटाहट थी। इसी कारण उसको नींद नहीं आई। उसको यह लूम होता रहा कि रसोई का काम समाप्त कर मनोबाई तक सभी सो गये हैं । मदन बरामदे में सोता है। सभी के सोने का इन्तजार करते- करते उसकी आँख भी लग गई थी। हठात उसकी आँखें खुल गयीं तो वह उठ बैठा।

उसने पहले से ही तैयार रखे हुए दीदी के बैग तथा खटिया के नीचे रखे कपड़े के जूते उठा लिये। कमरे का दरवाजा इस तरह खोला कि किसी को कुछ पता ही नहीं चल सका।

मदन गहरी नींद में था । सबुल ने जब उसे जगाने के लिए हिलाया तो वह चौंक उठा । नसीब अच्छा था। उसके द्वारा कौन है कहकर चिल्लाने से पहले ही सबुल ने उसके मुँह पर हाथ रख कर कहा, 'मदन मैं हूँ, मैं सबुल। दोनों चुपचाप वहाँ से चल दिये। फाटक के बाहर सबल ने अपना जूता पहन लिया।

कपड़े सुखाने के लिए बरामदे में टँगी हुई नाइलान की रस्सी को भी बैग में ले लिया । कंधे पर लटका कर लिया हुआ बैग भी काफी वजनदार बन गया था।

अँधेरी रात थी। मदन सबुल के पीछे-पीछे जा रहा था। अचानक उसके पैर रुक गये। सबुल की पीठ पर हाथ रखकर उसे थमने के लिए कहा। कहीं से आया हुआ एक स्वर उसे सुनाई पड़ा था । सबुल ने उसे नहीं सुना था । मदन को उसने रुक कर आगे बढ़ने को कहा।

हेम बरुआ के बाग तक तो उनके घर के सामने से ही जाना पड़ता था, लेकिन सबुल ने बाग में घुसने के लिए दूसरी एक पगडंडी दिन ही में देख ली थी ।

बैग से अपनी माँ की टार्च लाइट निकाल कर वह आगे बढ़ता चला जा रहा था। जंगल का गंभीर-सा रूप देखकर मदन को कुछ डर लग रहा था । सबुल ने उसे डाँटा तथापि मदन सबुल के ऐसे साहस को अच्छा नहीं मान रहा था।

पग-पग चल कर दोनों उस आम के पेड़ के नीचे पहुँच गये। इशारे से सबुल ने मदन को समझा दिया कि उसका काम उसी पेड़ के नीचे है। दोनों जमीन पर बैठ गये । मदन ने हाथ में टार्न देकर रोशनी देते रहने को कहा । इसके बाद बैग से एक-एक कर लाई चीजें निकालीं। एक पैकेट चॉकलेट मदन को दिया और जेब में रखे रहने के लिए बोला।

सबुल को पेड़ पर चढ़ने की आदत है। लेकिन रात को चढ़ने की आदत उसकी नहीं थी । फिर झोली कंधे पर लटका कर पैर का जूता खोल सबुल पेड़ पर चढ़ने को तैयार हुआ। 'न न यह पेड़ तो बहुत बड़ा है। दोनों हाथों में पकड़ने से भी पकड़ में नही आता।' मदन को मदद के लिए कहा। मदन दोनों हाथों से पेड़ को पकड़ कर खड़ा हो गया। सबुल को उस पर पैर रखकर ऊपर चढ़ने को कहा। सबुल ने हाथ ऊपर उठाकर पेड़ की डाल पकड़ पाने की कोशिश की, लेकिन संभव नहीं हुआ। मदन ने इस बार कंधा दिया । सबुल ने कंधे पर चढ़कर फिर कोशिश की। मदन के कंधे पर एक पैर रखकर दोनों हाथों से पेड़ को पकड़ लिया। उसने एक पैर उठा दिया। वह सरक आया। मदन ने सोचा था कि शायद सबुल ने डाल पकड़ लिया। लेकिन सरक आने के बाद मदन ने देखा कि सबुल लटका हुआ है। मुँह से कुछ बोल भी नहीं सकता, शायद कोई सुन ले। बहुत देर तक झूलते रहने के बाद किसी तरह एक छोटी-सी डाल पकड़ में आई। उसे पकड़े हुए कुछ देर तक लटका रहा फिर शरीर का सारा बल लगाकर थोड़ा और ऊपर उठ गया। इतना करने के बाद वह हाँफने लगा। थोड़ी देर रुककर दूसरी एक डाली उसकी पकड़ में आ गयी। तब कुछ और ऊपर उठ सका। अब वह उस डाली पर बैठा, जैसे घोड़े पर आदमी सवार होता है ।

नीचे कुछ भी दिखता नहीं है। मदन क्या कर रहा है, यह भी मालूम नहीं हो रहा था । पेड़ पर चढ़ते समय सबुल सिर्फ यह कह कर आया था कि वह बाघ देखने पर भी मुँह से कुछ न बोलेगा। हाँ यह जरूर सच है कि हेम बरुआ के बाग में बाघ नहीं हो सकता । हाँ, एकाध सियार कहीं दिखाई दे जाये, यह बात अलग है।

अच्छी तरह बैठने के बाद सबुल को लगा कि उसके घुटनों में दर्द-सा हो रहा है । हाथ से छूकर देखा तो मालूम हुआ, उसका चमूड़ा छिल गया है । ऐसा कुछ होगा, उसने सोचा भी न था, नहीं तो एक मलहम भी साथ ले आता। कोई उपाय न देख मुँह का थूक हाथ में लेकर पैर पर लगा दिया। इसके बाद कंधे पर लटके बैग को पेड़ की डाली पर बाँध लिया। बैग के भीतर ही टार्च लाइट जलाकर उसमें से रस्सी निकाल ली। चाकू से उसके तीन टुकड़े बना दिये। पानी की बोतल, चाकू और माँ की चद्दर को एक- एक डाली पर रस्सी से बाँध लिया। उसके बाद टेप रिकार्डर निकाल कर रिकार्डिंग के लिए तैयार हो गया। उस समय टार्च को वह मुँह से पकड़े रहा ।

अब चिड़ियों के कूजन के लिए इंतजार करना था। इस तरह कितना समय बीता होगा, मदन नीचे क्या करता रहा होगा, उससे बोल कर पूछने का भी अवसर नहीं था । कहीं कोई जग जाये तो गजब हो जायेगा ।

इस प्रकार पेड़ के ऊपर बैठे-बैठे उसको झपकी लग गयी थी। उसने माँ की चद्दर से अपने को पेड़ की डाली पर मजबूती से बाँध लिया था। हाथों से पेड़ को भी पकड़े रहा। दूसरी बार उसे फिर झपकी लगी, लेकिन हठात एक चिड़िया का स्वर सुनाई पड़ा तो वह सजग हो उठा।

आँखें खुलीं तो वह चौंक गया। यह तो सुबह है। अपने टेप रिकार्डर का स्विच उसने आन कर दिया। चारों दिशाओं में आँखें दौड़ायीं । दाहिनी ओर पूरब है। सूरज तब तक उगा नहीं था। सारा आकाश लाल था । पक्षीगण अपने सुरीले स्वर से मानो सूरज को जगा रहे थे । एक कोयल का स्वर हवा में तैरता हुआ सुनाई पड़ा। पेड़ के नीचे कीड़े-मकोड़े अपने-अपने कामों में लग गये। इतनी सुबह अपने घर में कोई आदमी जगता नहीं है। लेकिन इस सुनसान माहौल में इतनी लगनशीलता। समय मानो यहीं रुक जाने वाला है। चारों ओर के पेड़ों से नाना रंग की, नाना आकार की चिड़ियाँ उड़ती-उड़ती इधर-उधर मंडरा रही हैं। जाते समय दूसरो चिड़ियों से मानो विदा लेती जा रही हैं। सबुल जिस पेड़ पर चढ़ा था, उस पर भी किसी पक्षी का बसेरा था। उसमें कई छोटे बच्चे भी थे। उनकी चिल्लाहट बहुत तेज थी। कोई चिड़िया मानो सूरज को ही खदेड़ती हुई आ रही है, ऐसा लगा सबुल को । शायद उसी कारण सूरज एक बार जब निकलता है तो अपनी किरणों से सारे संसार को जगा देता है।

सबुल बिलकुल अपने को खो बैठा। टेप का स्विच आन किया हुआ था। वह यह भी भूल गया कि वह यहाँ क्यों आया था। अब चारों ओर अच्छी तरह प्रकाश फैल गया था । पेड़ के नीचे उतर आने के लिए, वह अपने को तैयार करने लगा। एक-एक कर सारा सामान झोली में भरने लगा। लेकिन ज्योंही नीचे की ओर देखा, डर के मारे वह काँप गया। मदन वहाँ था, किन्तु इतने नीचे | अब वह कैसे उतरे । रस्सी के टुकड़ों को जोड़कर उसमें झोले को बाँध उसने नीचे उतार दिया। मदन ने उसे पकड़ लिया। लेकिन ज्योंही उसने उतरना चाहा तो वह जड़ सा बन गया ! वह उतर नहीं सकता । डर के मारे उसकी आँखों में आँसू आ गये।

ऐसा होना ही था । चढ़ते समय उत्साह के बल पर चढ़ा जाता है, किन्तु उतरते समय अनेक मुश्किलें आ पड़ती हैं !

इधर घर में क्या हुआ ? हर रोज की तरह सबुल की माँ बिस्तर छोड़ते ही मदन को जगाने लग जाती हैं। लेकिन आज देखती हैं कि मदन की खटिया खाली है। माँ को कुछ शक हुआ। वह सबुल के कमरे में जाकर देखती है कि उसकी भी खटिया खाली पड़ी हुई है। माँ ने दो-एक बार सबुल को पुकारा । लेकिन कहीं से जवाब नहीं आया। इस प्रकार समय बीतने के साथ माँ सोच में पड़ गई। औरों को भी माँ ने जगा दिया। सभी को चिंता हुई लोग चारों ओर खोजने लगे ।

उधर सबुल ने कोई चारा न देख मदन को घर भेज दिया। मदन जंगल सेतो निकल आया, लेकिन घर लौटने का साहस नहीं जुटा पाया । रास्ते के किनारे ही बैठा रहा ।

सबुल को खोजते खोजते मदन मिल गया और उसी से सारी बातें मालूम हुईं। सब लोग हेम बरुवा के बाग की ओर दौड़ पड़े। हेम बरुवा के नौकर द्वारा उसे पेड़ पर से नीचे उतरवाया गया। किसी ने उसे डाटा-डपटा नहीं। घर में माँ ने केवल इतना ही कहा कि अपने पिताजी को लौट आने दो। उसकी दीदी ने उसके हाथ से अपनी झोली झपट कर ले ली। सबुल ने अपना टेप किसी तरह निकाल लिया, लेकिन चाकलेट झोली में ही रह गयी।

उसके पिता उसी दिन घर वापस लौट आये। आते ही किसी ने कुछ नहीं कहा। चाय-नाश्ते के बाद बैठक में सबुल की माँ ने सबुल की सारी कहानी सुनाई। सारी रात वह पेड़ पर बैठा रहा । 'साँप आदि कुछ काट लेता तो।' माँ ने कहा, 'आप कैसी-कैसी अशुभ बातें करते हैं जी।' असल में उनके मन में अभी-अभी ऐसी बातें आने लगी थीं।

पिताजी ने सबुल को टेप रिकार्डर ले आने को कहा। सबुल भय से काँप रहा था - यदि पिताजी टेप रिकार्डर ही तोड़ दें। 'क्या रिकार्ड किया, सुनाओ!' पिताजी ने आदेश दिया। एक बड़े अपराधी की तरह वह टेप बजाने को प्रस्तुत हुआ । इसी बीच माँ दीदी - भैया-भाभी सभी कुर्सी - मूढ़ा आदि पर बैठ गये। शाम होने वाली थी। सबुल के टेप से चकित करने वाले स्वर निकलने लगे।

किसी के मुँह में जबान नहीं थी । वातावरण रात के घने जंगलों की तरह हो गया। डर के मारे वह आँखें ही नहीं उठा पा रहा था। टेप का स्वर ऊँचा उठ गया। कमरे के किसी कोने से कोयल की कुहू कुहू का स्वर निकल आया। सभी ने सिर उठाकर एक ही दिशा की ओर देखा । परिवेश भूलकर सबुल चिल्ला उठा, यह कोयल है, कोयल ।

कौन-सी चिड़िया की कौन-सी बोली है, वह तो जान ही नहीं पाया। -अलग चिड़ियों की चहक से घर के भीतर का परिवेश ही बदल गया ।

सबुल को तो पिताजी सजा देने वाले थे, पर इस परिवेश में वह उसे भूलकर आनन्द विभोर हो चिल्ला उठे । पिताजी के चेहरे पर एक मीठी मुस्कान पड़ गयी। सबुल के भैया ने लाइट का एक स्विच आन कर दिया।

सभी को सहज रूप में देखकर सबुल शरमा गया। पिताजी ने पूछा, 'वह घर से कब निकल गया था?' लेकिन सबुल को यह याद नहीं था । काश उसके हाथ में घड़ी होती ...।

अगले वर्ष प्रथम श्रेणी में पास होगे तो उसे भी दे दूँगा । कह कर पिताजी खड़े हो गये। दीदी मुँह टेढ़ा कर सबुल की ओर देख कर और बोली, 'कुहू- कुहू ।'

इसके बाद जब भी उसके घर में कोई मेहमान आता तो सबुल की माँ चिड़ियों की चहक सुनाना नहीं भूलतीं। ऐसा करते समय सबुल की माँ का मुँह उज्ज्वल हो उठता ।

(अनुवाद : चित्र महंत)

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