कोटू का दाना (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
Kotu Ka Dana (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen
कई बार तूफान के बाद कोटू के खेत ऐसे काले दिखाई देते हैं जैसे जल गए हों। किसान से पूछो तो वह कहता है कि कोटू बिजली से जल गया है, पर वह सही बात नहीं जानता। मैं बताता हूँ क्योंकि मैंने एक गौरेया से सुना था, उसने कोटू के खेत के बिल्कुल पास खड़े बेंत के पेड़ से सुना था। (अगर तुम देखना चाहो तो वह आज भी वहाँ है।) बेंत का यह पेड़ बहुत पुराना और बड़ा है। उसका तना गठीला है पर बीच में से फटा हुआ है। उस दरार में घास और काले बेरी के फल लगे हैं। तना एक तरफ को झुका है और उसकी शाखाएँ लंबे-लंबे बालों की तरह ज़मीन की तरफ झुकी हुई हैं।
उसके चारों तरफ जौ, राई तथा जई के खेत हैं। जई बहुत सुंदर लगती है। उसके पके हुए दाने डाल पर बैठी पीली चिड़िया जैसे लगते हैं। जई का दाना कटने से पहले भारी हो जाता है। उसे देखकर लगता है कि ज़मीन की तरफ अपना सिर झुकाए खड़ा है।
बेंत के पेड़ के सबसे पास कोट्र का खेत है। कोट अपना सिर नीचा न करके ऊँचा रखता है। लगता है कि गर्व की वजह से हमेशा अकड़कर सीधा खड़ा रहता है।
वह कहता है, 'हम भी दूसरों की तरह फल देते हैं और उनसे ज्यादा सुंदर हैं। हमारे फूल सेब के पेड़ जैसे सुंदर हैं। हमें देखकर लोगों को खुशी होती है। ओ बूढ़े बेंत के पेड़, क्या तुम किसी ऐसे को जानते हो जो हमसे ज्यादा सुंदर है?'
बेंत के पेड़ ने तेज़ी से ऐसे सिर हिलाया जैसे यह कहना चाहता हो कि हाँ जानता हूँ, कोटू इतना नाराज़ हुआ कि और सीधा तन गया और बोला, 'बेवकूफ पेड़! तुम तो इतने बूढ़े हो कि तुम्हारे पेट में घास उग आई है।'
इतनी-सी देर में मौसम बिगड़ गया। तूफान आने के आसार दिखने लगे। जब हवा तेज़ी से चलने लगी तो खेतों के फूलों ने अपने पत्ते मोड़ लिए और अपने सिर नरमाई से झुका लिए। पर कोटू गर्व से सीधा खड़ा रहा।
फूलों ने आवाज़ लगाई, 'हमारी तरह सिर झुका लो।'
कोटू ने जवाब दिया, 'मुझे ज़रूरत नहीं है।'
दूसरे अनाज के पौधे चिल्लाए, 'झुको, झुको।
एक मिनट में तूफान का देवता अपने पंख बादलों से ज़मीन तक फैला लेगा। वह यहाँ आता ही होगा! अगर तुम उससे दया की भीख नहीं माँगोगे तो वह तुम्हें चीरकर दो हिस्सों में कर देगा।'
'मैं नहीं झुकूँगा,' कोटू चिल्लाया।
बूढ़े बेंत ने चेतावनी दी, 'अपने फूलों को बंद करके पत्तों को मोड़ लो। जब बादलों के बीच में बिजली कौंधे तो उसकी तरफ मत देखना। इंसान भी उसे देखने की हिम्मत नहीं करते, क्योंकि बिजली के बीच में से सीधा स्वर्ग ‘दिखता है और वह दृश्य आदमी को अंधा कर देता है। जरा सोचो, हम आदमी से कहीं कम, सिर्फ मामूली पेड़-पौधे हैं। अगर हम देखने की हिम्मत करेंगे तो हमारा क्या होगा।'
कोटू ने भौंहें टेढ़ी करके कहा, 'क्या होगा? मैं सीधा स्वर्ग देखूगा!' और उसने वही किया। जब सारा आकाश बिजली की चमक से जल रहा था तब उसने बड़े गर्व और विश्वास के साथ उधर देखा।
फिर वह खराब मौसम खत्म हो गया। सारे अनाज के खेत और उनके फूल बारिश से नहाकर ताज़े हो गए, साफ और रुकी हुई हवा में उन्होंने अपने सिर ऊँचे कर लिए। पर कोटू जलकर काला हो गया था। वह मर चुका था। वह बेकार हो गया था, काटने के लायक नहीं रहा था। अब वह सिर्फ बोने के काम में आ सकता था।
बूढ़े बेंत के पेड़ ने हवा में अपनी शाखाएँ धीरे-से हिलाईं। उसके पत्तों से पानी की बूंदें गिर रही थीं। छोटी गौरैया ने पूछा, 'तुम क्यों रो रहे हो? देखो, मौसम कितना अच्छा हो गया है। सूरज चमक रहा है, बादल हमारे ऊपर से तैरते हुए जा रहे हैं। क्या तुम्हें झाड़ियों और फूलों की मीठी खुशबू नहीं आ रही? बूढ़े बेंत के पेड़, क्या तुम सचमुच रो रहे हो?'
बूढ़े पेड़ ने गौरैया को कोटू के अहंकार, ढिठाई और फलस्वरूप मिलने वाली सज़ा के बारे में बताया, क्योंकि ढिठाई के बाद सज़ा ज़रूर मिलती है।
एक शाम को मैंने गौरैया से परियों की कहानी के लिए जिद की थी, तब उसने मुझे यह कहानी सुनाई थी जो मैंने अब तुम्हें सुनाई है।