कोदे की रोटी : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Kode Ki Roti : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
शहनाई बजाने के बाद माठू राम ने चक्की में अनाज पीसती दर्शणु देवी से रोटी खाने की दीनता से आग्रह किया तो उसने रसोई से कोदे की रोटी में भूने आलू की चटनी परोस कर दे दी। पानी की भरी एक गड़बी भी उसके पास रख दी। माठू राम ने रोटी का एक-एक कौर बड़े ही प्रेम और आनन्द से खाया। रोटी खाने के बाद अत्यन्त प्रफुल्लित हुए, उसने पानी पिया। उसका मुरझाया चेहरा अब खिला-खिला सा हो गया था।
“मां जी यह कोदे की रोटी इतनी स्वाद बनी थी कि मैंने आज तक इतनी स्वाद रोटी चखी ही न थी। मेरी जान में इसे खाने से जिन्दगी भर गई है। आपकी बहुत-बहुत मेहरबानी है मां जी।”
चक्की चलाना छोड़ दर्शणु देवी ने कहा- “यह वही रोटी थी माठू, जिसे तुमने एक माह पहले यह कहकर फेंक दिया था कि मैं ऐसी काली कोदे की रोटी नहीं खाता। सम्भाल कर रखी वह अन्न परमेश्वर रोटी आज फिर तुम्हें दी है। आदमी की आंखें रोटी से ही खुलती हैं और अन्न से बड़ा आदमी नहीं है।”
हेस्सी माठू राम को जैसे काठ मार गया। आत्मग्लानि से अब वह गढ़ा जा रहा था। रोटी के बहाने वह अन्न का महत्व समझ गया था।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)