किस्सा सौदागर और जिन्न का : मुनीश सक्सेना
(यह कहानी ‘अलिफ लैला’ से ली गयी है। इसका रचनाकाल 11वीं शताब्दी है। ये कहानियाँ मूलतः संस्कृत से फारसी में अनूदित हुईं और वहाँ से अरब पहुँचीं। इस लम्बी यात्रा में उनका स्वरूप बदलता गया। प्रस्तुत कहानी परी-कथा के ढंग की एक मनोरंजक कथा है। जो प्रकारान्तर से प्राचीन नैतिक मूल्यों की ओर भी संकेत करती है।)
एक बार एक धनी सौदागर सुनसान रेगिस्तान के रास्ते लम्बे सफर पर निकला। एक दिन थककर और गरमी से परेशान होकर थोड़ी देर आराम करने के लिए छायादार पेड़ों के नीचे रुक गया। वहाँ साफ पानी का एक झरना भी था।
उसने अपने घोड़े को एक पेड़ से बाँध दिया और वहीं घास पर बैठकर अपने थैले में से रोटी और खजूर निकालकर खाने लगा। खजूर खाकर वह गुठलियाँ लापरवाही से इधर-उधर फेंक रहा था।
खाना खा लेने के बाद वह फिर आगे चलने को तैयार ही हुआ था कि उसके सामने एक खौफनाक जिन्न प्रकट हुआ और अपने हाथ में एक बड़ी-सी तलवार चमकाते हुए उसने डरावनी आवाज में कहा, “उठो, मैं तुम्हारा खून करूँगा।”
“मगर मेरा कसूर क्या है?” सौदागर डरकर चीखा।
“तुमने मेरे बेटे का खून किया है।” जिन्न की आँखों से गुस्सा बरस रहा था। उसने कहा, “मेरा बेटा जब इस झरने के पास से उड़ रहा था, तब तुम्हारी फेंकी हुई खजूर की गुठली से वह घायल हुआ और मर गया।” भयभीत सौदागर की आँखें आश्चर्य से फटी जा रही थीं। उसने गिड़गिड़ाकर जिन्न से माफ कर देने के लिए कहा। मगर जब जिन्न किसी भी तरह उसकी जान बख्शने को तैयार नहीं हुआ, तो उसने कहा, “कम-से-कम मुझे एक साल की मोहलत दे दीजिए, ताकि मैं अपने सारे काम-काज निपटा लूँ और अपने परिवारवालों से रुख्सत हो आऊँ। मैं वादा करता हूँ, जिस दिन मोहलत का एक साल पूरा होगा, उस दिन मैं ठीक इसी जगह आपसे मिलूँगा और फिर आपकी जो मरजी हो, वह मेरे साथ कीजिएगा।”
काफी मिन्नत-खुशामद के बाद जिन्न इस बात के लिए राजी तो हुआ, मगर उसने सौदागर को सख्त चेतावनी दी, “लेकिन याद रखो, मुझसे भागने की कोशिश न करना। अगर तुम वादे पर यहाँ न आए, तो तुम जहाँ भी रहोगे, मैं तुम्हें खोज निकालूँगा।”
इतना कहकर जिन्न गायब हो गया और सौदागर जल्दी से अपने घोड़े पर सवार होकर आगे बढ़ा। सफर पूरा करके जब वह घर पहुँचा, तो उसके मायूस चेहरे और ढले-थके शरीर को देखकर उसकी बीवी और बच्चों को एक धक्का-सा लगा। सौदागर ने जब उन्हें जिन्न से अपने वादे की बात बतायी, तो उन पर गम का पहाड़ टूट पड़ा।
सौदागर जानता था कि जिन्न से बचने का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए वह अपने काम निपटाने में लग गया। और जिस दिन मोहलत का एक साल खत्म होने को आया, वह उदास मन से अपनी बीवी और बच्चों से विदा हुआ।
जब वह रेगिस्तान में, उस झरने के पास पहुँचा, उसी वक्त वहाँ एक बूढ़ा आदमी पहुँचा, जिसके पीछे-पीछे एक हिरनी चल रही थी। बूढ़े ने जब सौदागर से उस सुनसान जगह में आने की वजह पूछी, तो सौदागर ने उसे जिन्न से उसकी पिछली मुलाकात और उससे अपने वादे का सारा किस्सा सुनाया। अभी ये दोनों बात कर ही रहे थे कि एक और बूढ़ा दो काले कुत्तों के साथ वहाँ आया। पहले वाले बूढ़े ने दूसरे बूढ़े को सौदागर की दर्दभरी दास्तान सुनायी। थोड़ी ही देर बाद वहाँ एक और बूढ़ा आया और उसे भी सौदागर की दर्दभरी दास्तान सुनायी गयी।
तीनों बूढ़े सौदागर का मन अपनी बातों से बहला ही रहे थे कि अचानक वहाँ धुएँ का एक घना गुबार-सा उठा और उसमें से वह भयानक जिन्न अपने हाथ में तलवार चमकाता हुआ निकला। उसने डर से काँपते हुए सौदागर की बाँह पकड़कर बिजली-सी कड़कती हुई आवाज में कहा, “उठो, मैं तुम्हारा खून करूँगा, क्योंकि तुमने मेरे बेटे का खून किया है।”
ये खौफनाक लफ्ज सुनते ही हिरनी वाला बूढ़ा, जिन्न के पैरों पर गिर पड़ा और बोला, “ऐ जिन्नों के सरताज, मेरी इल्तिजा है कि अभी आप अपने हाथ इस सौदागर पर न उठाएँ, पहले मुझे अपनी और इस हिरनी की हैरतअंगेज दास्तान सुनाने दीजिए। और अगर आपको पसन्द आए, तो मुझे उम्मीद है, आप सौदागर का कम-से-कम एक तिहाई कसूर माफ कर देंगे।”
जिन्न को किस्से सुनने का शौक था। वह इस बात पर राजी हो गया। बूढ़े ने अपनी दास्तान कहनी शुरू कर दी।
“हुजूर, यह हिरनी, जो आप देख रहे हैं, दरअसल मेरी बीवी है। मैंने जब इससे शादी की थी, तब यह बड़ी खूबसूरत थी और हम दोनों ने बड़ी खुशी और मौज में एक साथ रहकर कई साल गुजारे। चूँकि इससे मेरी कोई औलाद नहीं हुई, इसलिए मैंने दूसरी शादी की, जिससे एक लड़का हुआ। मगर तभी से मेरी बीवी में एक तब्दीली आना शुरू हुई। हालाँकि उसके लिए मेरे दिल में पहले जैसी ही मुहब्बत थी, मगर अपने लड़के के लिए मेरे दिल में जो एक कुदरती प्यार था, उससे वह जलने लगी। और जैसे-जैसे साल गुजरने लगे, उसके दिल में न सिर्फ मेरे बेटे के लिए, बल्कि उसकी माँ के लिए भी नफरत की ऐसी आग भड़क उठी कि उसने दोनों का खून करने का फैसला कर लिया। मगर वह चाहती थी कि इस खूनी साजिश का पता किसी को न चल पाए।
“जब मेरा बेटा बढ़ते-बढ़ते एक सजीला खूबसूरत नौजवान हुआ, तो एक दिन मुझे एक लम्बे सफर पर निकलना पड़ा और मैं एक साल घर से बाहर रहा। मैं जिस दिन सफर पर निकला था, उसी दिन से मेरी बीवी अपनी खूनी साजिश पूरी करने में जुट गयी। सबसे पहले उसने जादू सीखना शुरू किया। और उसने अपनी साजिश को कामयाब बनाने के लिए इस इल्म को अच्छी तरह सीखकर मेरे बेटे को बछड़ा और मेरी बीवी को गाय बना दिया। फिर उन दोनों को मेरे यहाँ काम करनेवाले किसानों के मुखिया को सौंप दिया कि कुरबानी के लिए उन्हें खिला-पिलाकर मोटा कर दे। जब मैं सफर से घर आया, तो मेरी उस खूनी बीवी ने बताया कि मेरी दूसरी बीवी मर चुकी है और मेरे बेटे का महीनों से कोई अता-पता नहीं है। मेरा दिल दर्द से भर उठा, मगर फिर भी मेरे दिल के किसी कोने में यह उम्मीद बाकी रही कि मेरा बेटा एक-न-एक दिन जरूर लौटेगा।
“कुछ ही हफ्ते बाद, एक बहुत बड़ा त्यौहार मनाया जा रहा था। और उस मौके पर कुरबानी देने के लिए मैंने एक मोटी-तगड़ी गाय लाने का हुक्म दिया। जो गाय लायी गयी, वह जादू से गाय बनी हुई मेरी बीवी ही थी। और जब मैंने उसे बाँधकर कुरबानी के लिए तैयार किया, तो वह बड़े जोरों से रँभा उठी। मुझे देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। मुझे उस बेचारी पर जाने क्यों बड़ा तरस आया और मैंने उसकी कुरबानी देने से इनकार कर दिया। मेरी पहली बीवी ने जब देखा कि उसके सब मनसूबों पर पानी फिरनेवाला है, तो उसने मुझे हजार तरह से समझाना-बुझाना शुरू किया कि ऐसे मुबारक मौके पर ऐसी नापाक बात क्यों कर रहे हो।
“मैंने फिर एक बार छुरा अपने हाथ में लिया, मगर उसकी आँखों से बहती हुई आँसुओं की धार में मैं फिर बह गया और अपने नौकर से यह काम करने के लिए कहा, जिसने फौरन ही यह काम अंजाम दे दिया। फिर मैंने उसे सबसे तगड़ा बछड़ा लाने के लिए कहा। उसके पास सबसे तगड़ा बछड़ा तो मेरा बेटा ही था। वह बछड़ा जब लाया गया, तो मेरी हैरत का ठिकाना न रहा, क्योंकि उस बछड़े ने सीधे मेरी आँखों में आँखें डालकर देखा और रस्सी तुड़ाकर झपटता हुआ मेरे पास आ खड़ा हुआ। बड़े प्यार से अपना सिर मेरे जिस्म से रगड़ने लगा और आँसुओं से तर, फरियाद भरी अपनी आँखों से मेरे चेहरे को देखता रहा। मेरा दिल उसकी इस फरियाद से पसीज उठा और मुझे लगा कि मैं उस भोले-भाले मासूम बछड़े की कुरबानी नहीं दे सकूँगा। इस पर मेरी बीवी गुस्से में आकर मुझे भला-बुरा कहने लगी। मैंने उसे खुश करने के लिए फिर छुरा उठाया, मगर उस मासूम बछड़े की फरियादी आँखों ने मेरी सारी ताकत छीन ली और मैंने अपनी बीवी की बक-झक के बावजूद कुरबानी के लिए दूसरा बछड़ा लाने के लिए कहा।
“दूसरे दिन वह किसान दौड़ा-दौड़ा मेरे पास आया और कहने लगा कि उसकी जवान बेटी को, जिसने लोगों का भला करने के लिए ही जादू सीखा है, यह पता चला है कि जिस बछड़े की जान आपने बख्शी है, वह और कोई नहीं, आपका बेटा ही है। उसे आपकी बीवी ने नापाक इरादों से जादू से बछड़ा बना दिया है। और जिस गाय की कुरबानी दी गयी है, वह बदनसीब आपके बेटे की माँ थी।
“यह सुनकर मैं दंग रह गया और फौरन किसान की बेटी के पास जाकर उससे पूछा कि क्या वह मेरे बेटे को अपने जादू के इल्म से फिर से इनसान बना सकती है? उसने कहा कि हाँ, इतना इल्म तो मेरे पास जरूर है, मगर दो शर्तें हैं। एक तो यह कि जब आपका बेटा फिर इनसान बन जाए, तो उसके साथ मेरी शादी करनी होगी, और दूसरी यह कि आपकी खूनी बीवी को वही सजा दी जाएगी, जो उसने आपकी दूसरी बीवी और बच्चे को दी थी।
“चूँकि किसान की बेटी बड़ी खूबसूरत थी, मैंने उसकी शर्तें मंजूर कर लीं। और तब सचमुच उसने जादू से मेरे बेटे को बछड़े से इनसान बना दिया। मैंने अपने प्यारे बेटे को लपककर सीने से लगा लिया। फिर किसान की लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मैं चाहता हूँ कि तुम उससे शादी कर लो, क्योंकि उसी ने तुम्हें इनसान की जिन्दगी बख्शी है, तुम पर उसका पूरा हक है।’
“मेरा बेटा भी उस खूबसूरत लड़की को देखते ही उस पर लट्टू हो गया और उससे शादी करने पर राजी हो गया। चन्द दिनों बाद ही दोनों की शादी हो गयी। फिर उस लड़की ने अपने जादू के जोर से दूसरी शर्त पूरी की। उसने मेरी बीवी को हिरनी बना दिया। जिसे आप अपने सामने देख रहे हैं। जब भी मैं सफर पर निकलता हूँ, यह हिरनी मेरे साथ-साथ चलती है।
“यही है हमारी दास्तान। हुजूर को अगर यह किस्सा पसन्द आया हो, तो क्या मैं इनाम पाने की उम्मीद कर सकता हूँ?”
जिन्न को सचमुच किस्सा बहुत अच्छा लगा, और अपने वादे के मुताबिक उसने सौदागर का एक तिहाई कसूर माफ कर दिया।
यह सुनते ही कुत्तोंवाला बूढ़ा आगे आया और जिन्न से बोला, “अगर हुजूर सौदागर का एक तिहाई कसूर और माफ करने का वादा करें, तो मैं इससे भी लाजवाब किस्सा सुनाऊँगा।” जिन्न ने दूसरे बूढ़े की शर्त भी मान ली और उसने अपना किस्सा कहना शुरू कर दिया :
“ये दोनों कुत्ते दरअसल मेरे भाई हैं। जब मेरा बाप मरा, तो हम तीनों भाइयों के हिस्से में एक-एक हजार मुहरें आयीं और हम लोगों ने उससे कारोबार करना शुरू किया। कुछ दिनों के बाद मेरे सबसे बड़े भाई ने कारोबार का अपना हिस्सा बेच दिया और उससे जो पैसा मिला, उसे लेकर वह और दौलत कमाने सफर पर निकल पड़ा। मगर सालभर बाद ही वह बिलकुल तबाह होकर घर लौटा। मैंने तब तक काफी पैसा कमा लिया था। मैंने उसे फिर तिजारत करने के लिए पैसा दिया और वह फिर खुशहाल हो उठा। मेरे दूसरे भाई के साथ भी कुछ ऐसी ही वारदात हुई। वह भी सालभर सफर पर बाहर रहने के बाद घर लौटा, तो बिलकुल फटेहाल था। मैंने उसकी भी मदद की और वह फिर से खुशहाल हो उठा।
“थोड़े दिनों बाद उन लोगों ने सलाह दी कि तिजारत के लिए दूर-दूर के देशों में चला जाए। पहले तो मैं इनकार करता रहा, फिर बाद में मैं भी तैयार हो गया। हम लोगों ने दूर-दूर के देशों का सफर किया और खूब दौलत कमायी। बाहर निकले काफी अरसा हो चुका था, इसलिए अब हम घर लौटना चाहते थे। पर तभी एक अजीब किस्सा हुआ। एक दिन मैं समन्दर के किनारे घूम रहा था कि फटे-चिटे कपड़ों में एक बड़ी खूबसूरत लड़की मेरे पास आयी और उसने मुझसे शादी करने की ख्वाहिश जाहिर की। मैंने बहुत हीला-हवाला किया, पर वह इतनी खूबसूरत और नेक लगी कि मैंने उससे शादी कर ली।
“मगर मेरे भाई मेरी दौलत और खुशनसीबी से बड़े जलते थे। एक रात जब हम गहरी नींद में सोये थे, मेरे भाइयों ने मुझे और मेरी बीवी को उठाकर समन्दर में फेंक दिया। इस तरह वे दोनों मेरी सारी दौलत हड़पना चाहते थे।
“मगर मेरी खुशकिस्मती देखिए कि मेरी बीवी परी निकली। उसने मुझे बचा लिया। मगर वह मेरे भाइयों से इतनी नाराज हुई कि उन्हें जान से मार देना चाहती थी। मैंने बड़ी मिन्नतें कीं, तो वह जान बख्शने को तो राजी हो गयी, मगर उसने अपने जादू से मेरे दोनों भाइयों को कुत्ता बना दिया और मुझसे कहा कि ‘ये दस साल तक इसी तरह कुत्ते बने रहेंगे। जिस दिन दस साल पूरे होंगे, उस दिन मैं उन्हें फिर से इनसान बना दूँगी।’ और वह अपने मिलने का पता बताकर गायब हो गयी।
“अब दस साल पूरे हो रहे हैं। मैं अपने भाइयों को फिर से इनसानी शक्ल में देखना चाहता हूँ, इसलिए उस परी को ढूँढ़ता फिर रहा हूँ। हुजूर, यही है मेरी दास्तान, और अगर आपको यह पसन्द आयी हो, तो मैं इल्तिजा करता हूँ कि इस गरीब सौदागर का एक तिहाई कसूर और माफ कर दिया जाए।”
जिन्न को यह किस्सा भी पसन्द आया और उसने सौदागर का एक तिहाई कसूर और माफ कर दिया। तभी तीसरा बूढ़ा भी सामने आया और उसने जिन्न से उसी तरह सौदागर का बाकी एक तिहाई कसूर भी माफ कर देने की इल्तिजा की।
जिन्न मान गया। फिर उस बूढ़े ने सचमुच इतना दिलचस्प और हैरतअंगेज किस्सा सुनाया कि जिन्न बेहद खुश हुआ और उसने सौदागर का बाकी एक तिहाई कसूर भी माफ कर दिया। जिन्न ने कहा, “मैं अपनी जिन्दगी में कभी इतना खुश नहीं हुआ, जितना आज हुआ।”
फिर एक धुएँ का बादल उठा और जिन्न उसमें गायब हो गया। खुश होकर सौदागर ने तीनों बूढ़ों को सीने से लगा लिया। उनका बेहद शुक्रिया अदा किया।
सौदागर के इन नये दोस्तों ने कहा, “हमें तो बेहद खुशी सिर्फ इस बात की है कि हम मुसीबत में पड़े हुए किसी इनसान के काम आ सके।” यह कहकर तीनों सौदागर से रुख्सत हुए और अपने-अपने सफर पर चल पड़े।
सौदागर सही-सलामत घर लौटा, तो सारा घर जैसे खुशियों से भर उठा, चहक उठा। अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उसने बीवी और बच्चों के साथ बड़े सुख-चैन से गुजारे।