किस्सा पनचक्कीवाले का : ज्यॉफ्री चॉसर

(अँग्रेजी में साहित्यिक कहानियों की शुरुआत करनेवाली चॉसर (1340-1400) की ‘केण्टरबरी टेल्स’ से यह किस्सा लिया गया है। अलग धन्धों के चौबीस यात्री केण्टरबरी के प्रसिद्ध मेले में जा रहे हैं। रास्ते में समय काटने के लिए हर आदमी एक किस्सा सुनाता है। एक बढ़ई ने एक पनचक्की वाले का किस्सा सुनाया, जिसमें पनचक्कीवाले की टाँग घसीटी गयी थी। तब पनचक्कीवाले ने जो किस्सा बयान किया। -)

आक्सफर्ड में एक बढ़ई रहता था। पैसा उसके पास था, पर अक्ल नहीं। उसकी बीवी बड़ी हसीन थी। उम्र में उससे आधी। मस्तूल की तरह लम्बी थी वह। मछली की तरह चपल और चिकनी। ताज्जुब की इसमें बात ही क्या कि वह एक रँगीले विद्वान की आँखों में गड़ गयी। उस विद्वान का नाम था निकोलस और तखल्लुस ‘चिनगारी’। चिनगारी साहब के घर में ही हसीना का पति किराये पर रहता था। उस हसीना ने चिनगारी साहब को इतना सता दिया कि एक दिन उन्होंने उसे पकड़ लिया - “नाजनीन! अगर तुम मुझे प्यार नहीं करोगी, तो मैं मर जाऊँगा।”

हसीना बिगड़ गयी। उसने चिनगारी साहब को दुत्कार दिया, पर आशिक कहाँ माननेवाला था। आखिर हसीना मान गयी और मिलने का एक दिन और वक्त मुकर्रर हुआ। हसीना ने कहा, “पर मेरा मर्द बड़ा शक्की है... उसे हवा भी लग गयी, तो मेरी बोटी-बोटी उड़ा देगा!”

चिनगारी साहब ने तब एक तरकीब सोची। हसीना को बतायी और निश्चिन्त हो गये। पर मोहब्बत करनेवालों के रास्ते में काँटे बिछे होते हैं। एक और दिलफेंक साहब थे। उनका नाम था एबसलोन। वह भी इस हसीना पर मरते थे। जरा महीन और धनी आदमी थे। वह जानते थे कि कुछ औरतों को पैसे से पाया जा सकता है, कुछ को चिकनी-चुपड़ी बातों से और कुछ को चूमा-चाटी करके।

बढ़ई कभी बाहर नहीं जाता था, इसलिए हसीना और चिनगारी साहब बात तक नहीं कर पाते थे। आखिर एक रोज बढ़ई कुछ देर के लिए बाहर गया, तो चिनगारी साहब और हसीना ने तरकीब सोची कि कैसे ‘मिलन की रात’ आए। चिनगारी साहब तेज आदमी थे। जैसे ही बढ़ई आया, उन्होंने जाकर फौरन उससे कहा, “दोस्त, किसी से कुछ कहना मत। बड़े भेद की बात है। मुझे ईश्वरीय ज्ञान से पता चला है कि अगले सोमवार की रात को प्रलय आने वाली है। बाढ़ में सारी दुनिया डूब जाएगी जैसा कि हजरत नूह के वक्तों में हुआ था।”

“खुदा हमारी हिफाजत करे!” बढ़ई चीखा।

“अगर तुम बचना चाहते हो,” चिनगारी साहब ने कहा, “तो एक काम करो। छत से तीन टब लटकाओ। अपने तीनों के लिए। उनमें एकाध रोज का खाना रख लो, क्योंकि यह जल-प्रलय छोटी होगी। एक कुल्हाड़ी भी रखो, ताकि जब बाढ़ का पानी टबों के पेंदों तक आ जाए, तब हम रस्सियाँ काट सकें, बस, हम तीनों टबों में होंगे और हमारे टब हजरत नूह के बक्से की तरह तैरते रहेंगे।”

सोमवार की शाम को आने पर बढ़ई ने वैसा ही किया और तीनों टबों में लेट गये। जब बढ़ई अपने टब में सो गया, तो अपनी तरकीब के अनुसार चिनगारी साहब और हसीना रस्सी के सहारे उतर आये और कमरे में जाकर रँगरेलियाँ मनाने लगे।

उधर दिलफेंक साहब रातों को परेशान घूम रहे थे। वह भी उसी रात आहें भरते हुए उन दोनों के कमरे की खिड़की पर आये और उन्होंने धीरे से आवाज लगायी, “मेरे दिल की मलिका! मुझे सिर्फ एक बोसा दे दो!”

उसे टरकाने के लिए हसीना ने यही सोचा कि कुछ किया जाए; नहीं तो रंग में भंग हो जाएगा। अँधेरा तो था ही, वह खिड़की के पास गयी और अपनी पीठ करके खिड़की पर बैठ गयी और धीरे से बोली, “लो, अपने दिल की बात पूरी करो!”

दिलफेंक साहब ने उसकी पीठ पर अपने ओठ रख दिये, पर जब वह अँधेरे में लौटने लगे, तो उन्हें लगा कि हसीना ने ओठों का बोसा न देकर, कहीं और का बोसा देकर बड़ी ज्यादती की है। वह उन्हें समझती क्या है? वह ताव में आ गये।

थोड़ी देर बाद दिलफेंक साहब एक गरम सलाख लिये हुए लौटे और खिड़की पर आकर बोले, “मेरे दिल की मलिका! एक बोसा और मिल जाए, बस!”

चिनगारी साहब के मन में जलन हुई। अँधेरा तो था ही। चिनगारी साहब ने सोचा, वह आदमी-औरत में क्या फर्क कर पाएगा, इसलिए वह जाकर खिड़की पर अपनी पीठ करके बैठ गये।

बस फिर क्या था, दिलफेंक साहब ने वह गरम सलाख उनकी पीठ पर चिपका दी और भाग लिये। बेहद तकलीफ में चिनगारी साहब “पानी! पानी!” चिल्लाते हुए भागे।

इस हड़बोंग में बढ़ई की आँख खुल गयी। वह समझा प्रलय आ गयी। एकदम वह चीखा, “प्रलय, प्रलय!” और उसने अपनी रस्सियाँ काट दीं। टब समेत वह फर्श पर आ गिरा। वह इतनी जोर से गिरा कि उसकी हड्डी-पसली चूर-चूर हो गयी।

“मार डाला! मार डाला!” आवाजें सुनकर पड़ोसी जुड़ गये। तब चिनगारी साहब और हसीना ने पड़ोसियों से कहा, “बढ़ई का दिमाग बिगड़ गया है, यह प्रलय-प्रलय चिल्ला रहा था।”

तब कराहते हुए बढ़ई ने उन दोनों की कारस्तानी बतायी। पर पड़ोसी उसकी कहानी पर भरोसा नहीं कर पाये। “यह पगला गया है!” कहते हुए पड़ोसी चले गये।

और इस तरह बढ़ई का सब कुछ चला गया। उसकी ईर्ष्या और चौकसी भी उसकी बीवी को नहीं रोक पायी। “भगवान हम सबकी रक्षा करे!” पनचक्कीवाले ने कहा।

  • मुख्य पृष्ठ : कमलेश्वर; हिंदी कहानियां, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां