खोलरौ : मणिपुरी लोक-कथा

Kholrau : Manipuri Lok-Katha

किसी गाँव में खोलरौ नाम की एक लड़की थी। वह घर का काम करने में कुशल, व्यवहार में सभ्य और रूप में सुंदर थी। जब उसकी माँ की मृत्यु हुई तो उसके पिता ने कुछ दिन बाद ही दूसरा विवाह कर लिया। उसकी सौतेली माँ ने थोड़े दिन तो उसके साथ ठीक व्यवहार किया किंतु फिर वह उसे सताने लगी। वह घर का सारा कार्य खोलरौ से ही कराती थी और स्वयं इधर-उधर घूमती रहती थी।

वैसे तो खोलरौ का पिता उसे बहुत प्यार करता था लेकिन वह अपनी दूसरी पली से बहुत डरता था। वह न चाहते हुए भी अपनी पत्नी के कारण खोलरौ को छोटी-छोटी बातों पर डाँटता था। खोलरौ की सौतेली माँ उसकी झूठी शिकायतें करती थी। इस कारण खोलरौ को कभी-कभी पिता की मार भी सहनी पड़ती थी।

खोलरौ अपनी सौतेली माँ के अत्याचार का खुलेआम विरोध नहीं कर पाती थी इसलिए जब वह अपने कमरे में रात को सोने जाती थी तो रात-भर रोती रहती थी । वह अपनी सगी माँ को याद करती रहती थी।

एक दिन खोलरौ जूट के हरे पौधे उखाड़ने के लिए जंगल में गई। वह चलते-चलते एक झील के किनारे पहुँची । वहाँ जूट के पौधे थे। वह उन्हें उखाड़ने लगी। अचानक उसकी कीमती चूड़ियां एक पेड़ में उलझकर झील में जा गिरीं। झील बहुत गहरी थी इसलिए वह पानी में घुसकर चूड़ियाँ नहीं निकाल सकी ! वह रोती हुई घर वापस आ गई । उसने अपने पिता से सारी कहानी सच-सच बता दी। इसके बाद वह सिसकने लगी। उसके पिता का हृदय भर आया। वह बोला, “बेटी, चिंता मत कर। मैं तुझे कुछ दिन बाद नई चूड़ियाँ बनवा दूंगा।”

यह सुनकर खोलरौ को संतोष हुआ । वह निश्चिंत होकर घर के काम में लग गई और रात को खाना खाकर सो गई । किंतु जब वह सुबह उठी तो उसे उसके पिता ने बुलाकर डाँटना शुरू किया, “खोलरौ, तुम मुझे धोखा देने की कोशिश मत करो। तुम्हारी चूड़ियाँ झील में नहीं गिरी हैं। सच-सच बताओ क्‍या हुआ है ?”

इससे पहले कि खोलरौ कुछ बोल पाती, उसकी सौतेली माँ बोल पड़ी, “आप सच कहते हैं। यह लड़की बहुत बिगड़ गई है। इसने अपनी चूड़ियाँ अवश्य ही अपने किसी प्रेमी को दे दी होंगी। इसे घर से निकाल देना चाहिए।”

खोलरौ अपनी सौतेली माँ के झूठे आरोप से तिलमिला गई। वह अपने पिता के व्यवहार पर भी चकित रह गई। उसने अपनी सगी माँ को याद करते हुए जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। उसके बाद वह बोली, “पिताजी, आप मेरे साथ झील पर चलिए। आपको पता चल जाएगा कि मैं निर्दोष हूं या दोषी ?”

खोलरौ अपने पिता के साथ झील पर पहुँची । वह झील से बोली, “हे राये (झील) ! यदि मैं सच्ची हूं तो तुम मेरी चूड़ियाँ मेरे पिता को वापस कर दो और मुझे अपने अंदर समा लो ।”

झील के पानी में अचानक भयंकर हलचल हुई। कुछ देर बाद पानी के बीच में से एक तेजवान व्यक्ति बाहर निकल आया। उसने चूड़ियाँ खोलरौ के पिता के हाथ पर रख दीं और पल-भर में ही खोलरौ का हाथ पकड़कर झील के अंदर चला गया । खोलरौ झील में समा गई । उसका पिता देखता ही रह गया। जब उसे होश आया तो वह रो-रोकर झील से कहने लगा- “हे राये, तुम ये चूड़ियाँ वापस ले लो और मेरी बेटी मुझे दे दो ।”

झील ने खोलरौ के पिता की बात नहीं सुनी। जब वह बहुत देर तक रो-रोकर प्रार्थना करता रहा तो झील के भीतर से खोलरौ की आवाज सुनाई दी, “पिताजी, मैं अब लौटकर आपके पास नहीं आ सकती। आप मेरी सौतेली माँ के साथ खुश रहिए। मैं कभी-कभी आपके सपने में आऊंगी।”
खोलरौ का पिता पश्चाताप की आग में जलता रह गया।

(देवराज)

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