ख़ज़ाना (रूसी कहानी) : कोंस्तांतीन पाउस्तोव्स्की

Khazana (Russian Story in Hindi) : Konstantin Paustovsky

ओका के उत्तर की ओर सारा जंगल सदा से ही ‘‘द्रेमूची’’¹ के नाम से पुकारा जाता है।

आज से कई बरस पहले, तीसरे दशक के आरम्भ में, मैं और अरकादी गैदार, इन जंगलों में मीलों तक दूर-दूर तक घूमे थे।

इस जगह का भ्रमण करते हुए हमने कई बार पुराने और लोकप्रिय रूसी शब्द ‘‘द्रेमूची’’ की चर्चा की। हमें रूसी भाषा की सही अभिव्यक्ति की क्षमता से बेहद खुशी होती थी क्योंकि वास्तव में ही घना जंगल ऐसा लगता था मानों ऊँघ रहा हो। न केवल जंगल ही ऊँघते थे, बल्कि झीलें और लाल झलक वाली धीरे-धीरे बहती हुई नदियाँ भी अलसाई हुई थीं। इन नदियों के दोनों किनारों पर दूर तक ऐसे पौधों की पाँतें थीं जिन्हें ‘‘ऊँघनचन्द’’ के नाम से भी पुकारा जाता है और ये पौधे इस घने जंगल के अत्यधिक उपयुक्त भी थे। इनके सिर मानों ऊँघते हुए भूमि तक झुके हुए थे।

कई जगह दावानल ने बहुत-से वृक्षों को जला दिया था और झँझावाज ने उलझी-उलझाई शाखाओं को जड़ से उखाड़ फेंका था। ऐसे बहुत से क्षेत्र वीरान पड़े थें। सर्दी की भाप दलदलों के ऊपर बल खा रही थी। मच्छरों और घुड़मक्खियों के दल के दल हवा में भनभनाते फिर रहे थे। वन के बहुत से भागों पर कीड़ों और मकड़ी के लाखों घने जालों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा था।

हमने अनेक बार यह आशा व्यक्त की थी कि सोवियत सरकार शीघ्र ही इन उपेक्षित क्षेत्रों की ओर ध्यान देने का समय निकालेगी और आखि़रकार मनुष्य उस प्राकृतिक धन को अपने अधिकार में ले लेगा जो नष्ट हो रहा था।

एक जंगली मैदान को ‘‘सरकारी खड्ड’’ के नाम से पुकारा जाता था। वहाँ एक छिछली नहर के तट पर पुरानी और एक कमरे वाली एक कुटिया थी। इसके सभी ओर ऊँची-ऊँची नुकीली घास उगी हुई थी। इसी ‘‘सरकारी खड्ड’’ अथरात छोटी नहर के कारण इस मैदान का नाम भी ‘‘सरकारी खड्ड’’ ही पड़ गया था।

¹ रूसी शब्द ‘‘द्रेमूची’’ का अर्थ है: ‘‘घना, पुराना’’। यह शब्द ‘‘द्रेमात्’’ धातु से निकला है जिसका एक और अर्थ ऊँघना भी है।-सं

यह नहर पिछली शताब्दी के सातवें दशक में ‘‘महान दलदल’’ को सुखाने के लिए बनाई गयी थी। किन्तु इंजीनियरों ने अवश्य ही अपना काम ढंग से नहीं किया होगा क्योंकि दलदल सूखी नहीं थी। यह नहर इस भूमि को सुधारनेवाले स्थानीय कार्यकर्ताओं की असफलता की याद दिलाती थी।

गर्मी के मौसम में यह कुटिया तारकोल पकानेवाले वृद्ध वसीली और उसके नौ वर्ष क बेटे तीशा का निवासस्थान बन जाती थी।

एक बार हम रात भर वसीली के साथ ठहरे।

संध्या हो रही थी और पीली-पीली धुन्ध मैदान में फैली हुई थी। टिड्डे टीं-टीं करते ओर फुर्ती से राल के वृक्षों के ठूँठों में कूदते फिर रहे थे। धुँधला सूर्य झाड़ियों के पीछे अस्त हो रहा था। नहर में छोटी-छोटी मछलियाँ पानी छपछपाती इधर-उधर फिर रही थीं और जलमूषकों का किकियाना सुनाई पड़ रहा था।

बहुत उमस थी। कुटिया की दीवार पर एक धुँधला सा शिलामुद्रित चित्र लटक रहा था जिस पर लिखा था: ‘‘शिशिर-प्रसाद पर क़ब्जा’’।

हम अपने साथ रस्क और चीनी लाए थे। वसीली ने तीशा को समोवार गर्म करने के लिए कहा।

चाय पीते-पीते वसीली ने अपनी आस्तीन से माथे का पसीना पोंछते हुए कहा:

‘‘हमारे काम में एक खूबी है कि हम काफ़ी लम्बी उम्र तक जीवित रह सकते हैं। तारकोल पकानेवाले हम लोग बहुत स्वस्थ होते हैं, क्योंकि हम हर समय तारकोल से तर-ब-तर रहते हैं। कोई भी बीमारी हमारे पास तक नहीं फटकती। यहाँ तक कि मच्छर भी दूर रहते हैं। किन्तु अगर आप जरा अधिक गौर से सोचें तो हमारी ज़िन्दगी में है ही क्या! तारकोल, कोयला, ऊसर, धुआँ और बस। सिर्फ यही ऊसर भूमि!’’ उसने दुहराया और बड़ी सावधानी से बर्फ़ जैसी सफ़ेद चीनी को पर्याप्त मात्रा में तारकोल से काली हुई उँगलियों से उठा लिया। ‘‘देश का यह कोना सदा से ही उपेक्षित है। ऐसा लगता है कि सरकार इसे बिल्कुल भूल चुकी है।’’

"हो सकता है, अभी हमारी बारी ही न आई हो,’’ तीशा ने सुझाया।

‘‘यदि केवल एक बार मुझे मास्को में बुलाकर इस बारे में मेरी राय ली जाती तो मैं उन्हें बहुत कुछ बता सकता! अरकादी पेत्रोविच, क्यों न एक बार मास्को जाने की योजना बनाई जाये? मास्को में चन्द दिन ठहरने की योजना, क्यों?’’

‘‘यह आसान काम नहीं है,’’ गैदार ने कहा। ‘‘और इसके अतिरिक्त यहाँ तो तुम बड़े जोश में हो, पर वहाँ जाते ही तुम्हारे मुँह में ताला पड़ जायेगा, तुम एक शब्द भी नहीं बोलोगे।’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ तीशा ने विरोध करते हुए कहा। ‘‘दादा बड़े दिलेर आदमी हैं।’’

‘‘बहुत खूब, तीशा! तुम ही करो दादा की वकालत!’’ वसीली चिल्लाया।

‘‘और मास्को में तुम उन्हें क्या बताओगे?’’ गैदार ने पूछा।

‘‘सबसे पहले अपने जंगल के बारे में बताऊँगा। कैसा अद्भुत है यह जंगल! फिर हमारे इस जंगल में जीर्णक ही जीर्णक भरा पड़ा है। ढेरों जीर्णक हर प्रकार के किटाणुओं की जन्मस्थली बना हुआ है। ये कीड़े वृक्षों को काटते रहते हैं। जहाँ तक झीलों का सम्बन्ध है तो वे गिरे हुए बलूत के वृक्षों से ऐसे अटी पड़ी हैं कि नाव को थोड़ी दूर तक भी अबाध गति से चला पाना असम्भव है! और उन बलूत के ठूँठों के नीचे डाकुओं की भाँति छिपी हुई इस तश्तरी जैसी बड़ी-बड़ी काली मछलियाँ हैं।’’ और वसीली ने धातु की बनी उस तश्तरी की ओर संकेत किया जिस पर समोवार रखा था और किसी कारुणिक गीत में डूबा हुआ उसाँसें भर रहा था।

‘‘दलदल जीर्णक से भरपूर है! नदियाँ छछूँदरों, ऊदबिलावों तथा बड़ी बड़ी मछलियों से भरी पड़ी हैं। फिर सिर्फष्जंगल की ही क्या बात है! ओका नदी के साथ साथ सैकड़ों मीलों तक फैले हुए तटीय चरागाहों की कल्पना करो, ये चरागाह फूलों की सुगन्धि से कुछ ऐसे महके हुए हैं कि मन बस वहीं का होकर रह जाता है! पर मैं देखता हूँ कि चरागाहों की घास भी अब खराब होती जा रही है। ऊँचा-ऊँचा मोथा, बबूल की झाड़ियाँ और छोटी छोटी सरई जड़ जामाती जा रही है। और इस प्रकार, जैसा कि कहा जाता है, हमारा प्रदेश नष्ट-भ्रष्ट हो रहा है। एक बार कोई इसकी सुध तो ले। यह तो सोने की खान बन जाये!’’

अगली सुबह हम जल्दी ही उठ बैठे। ऐसा गहरा सन्नाटा था कि उल्टी हुई बाल्टी पर छत से गिर रही ओस की बूँदों की आवाज़ तक भी सुनी जा सकती थी।

सूर्योदय हुआ ही था। सूर्य इस समय पिछली शाम की भाँति धुँधला नहीं था बल्कि उजला था। रात्रि के समय भरपूर नींद लेने के बाद बहुधा सभी के चेहरे पर ऐसी चमक होती है!

हम नहर के साथ साथ किसी ऐसे स्थान की खोज में चल रहे थे जहाँ ग़ोता लगाने लाय़क गहरा पानी हो।

‘‘जरा ठहरो,’’ गैदार ने चैंक कर कहा, ‘‘वह उन झाड़ियों के पीछे क्या है?’’

‘‘वह’’ सात साल की एक लड़की निकली। हमें देखकर वह पीत-हरी झाड़ी के पीछे छिप गयी थी।

हम उसके पास गये। वह घास में छिपी, अपनी सहमी-सहमी, बड़ी-बड़ी और नीली आँखों से हमारी ओर देख रही थी। उसके पास ही साफ़ कपड़े के टुकड़े से ढका हुआ दूध का एक घड़ा रखा था।

लड़की लम्बा काला साया पहने थी और पीला शाल ओढ़े थी जिसका रंग फीका पड़ चुका था। जाहिर था कि यह पोशाक उसे अपनी बड़ी बहन से ‘‘उतार-पुतार’’ के रूप में मिली थी।

‘‘कौन हो तुम?’’ गैदार ने पूछा।

‘‘मैं शमूरिनों की रहनेवाली हूँ,’’ लड़की ने जल्दी से कहा, उछलकर खड़ी हुई और साये के पल्ले पर पैर आ जाने के कारण गिरते गिरते बची। ‘‘हमारा गाँव वहाँ नहर के उस पार है। वहाँ कुल मिलाकर केवल नौ मकान हैं।’’

‘‘ओह, तो तुम तीशा की बहन हो।’’

‘‘जी हाँ, लीज़ा हूँ। तीशा जाड़ों में स्कूल जाता है। वह चैथी श्रेणी में पढ़ता है।’’

‘‘और तुम?’’

‘‘मैं अभी पढ़ने नहीं जाती। मैं बहुत छोटी हूँ। मैं हर सुबह यहाँ दूध लेने के लिए आती हूँ। कृपया बतायें, आप कौन हैं?’’

‘‘हम दिलेर मुसाफ़िर हैं,’’ गैदार ने कहा, ‘‘हम उस जलते हुए सफेष्द पत्थर की खोज कर रहे हैं जिसके नीचे एक तिलस्मी ख़ज़ाना छिपा है। क्या तुमने ऐसा पत्थर देखा है?’’

‘‘नहीं, मैंने तो नहीं देखा,’’ उसने व्यग्रता से जवाब दिया। ‘‘हो सकता है, किसी अन्य ने देखा हो, मैंने नहीं। वह ख़ज़ाना देखने में कैसा लगता है?’’

‘‘बड़ी होने पर सब जान जाओगी।’’

उस दिन हम मैदान में अधिक देर नहीं ठहरे। फिर से हमारे सम्मुख चीड़ की नुकीली-सिन्दुरी पत्तियों के कारण फिसलनी बनी हुई सूनी वन-पगडण्डी थीं। चीड़ के वृक्षों की चोटियाँ ताल देती हुई झूम रही थीं। आकाश में बादल धीरे-धीरे लुप्तप्रायः होते जा रहे थे और कठफोड़वा चिड़ियाँ क्रोधपूर्ण वक्र दृष्टि से हमारी ओर देखकर सूखे वृक्षों पर चोंच-प्रहार कर रही थीं।

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यह बीस वर्ष पूर्व की बात है। इन पिछले वर्षों की, शताब्दियों से तुलना की जा सकती है। हमारे देश का एक भी तो ऐसा कोना नहीं जिसका रूप-रंग न बदला हो।

जहाँ कई बरस पहले मैंने और गैदार ने चक्कर लगाया था, ओका के उस पार के बारे में मेरी जिज्ञासा स्वाभाविक ही थी। मैं संध्या को काफ़ी देर से एक लारी में बैठकर अस्थायी पुल पर पहुँचा। पुल अभी-अभी ऊपर उठाया गया था। शक्तिशाली बड़ी नाव, जो बजरों की कतार को खींच रही थी, बहाव की उल्टी दिशा में बढ़ पाने के लिए अपना पूरा कस-बल लगा रही थी। बजरों के डेकों पर नई ‘‘पोबेदा’ कारें लदी हुई थीं।

मैं लारी से बाहर निकला। मैंने नदी के पास से आती हुई असाधारण रूप से सुगन्धित हवा को जी भरकर अपनी साँसों में समेटा।

‘‘यह त्रिपत्ती घास की सुगन्ध है,’’ बड़ी आयु के मोटर ड्राइवर ने कहा। ‘‘यहाँ अब सभी चरागाहों में त्रिपत्ती घास उगायी जा चुकी है।’’

शीघ्र ही हम इन चरागाहों में पहुँच गये। मैं उनमें उगी गीली ठण्डी घास को अनुभव कर सकता था यद्यपि अंधकार के कारण वह दिखायी न दे रही थी।

‘‘यहाँ कहीं आस-पास ही तीखोन चेरनोव से आपकी भेंट होना निश्चित है,’’

ड्राइवर ने कहा। ‘‘वह स्थानीय जिला कार्यकारिणी का प्रधान है। क्या कभी उसका नाम सुना है?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘गज़ब का आदमी है! नई रोशनी, नये जमाने का प्रतिनिधि है।’’ (मेरा ड्राइवर एक वैज्ञानिक की सी सही भाषा में बात करना पसन्द करता था। वह अपनी मोटर को ‘‘आन्तरिक अग्निदग्ध इंजन’’ कहता था और पौधों की यों चर्चा करता था:

‘‘वनस्पति हमारी नज़रों के सामने प्रगति कर रही है।’’

‘‘तो आपने चेरनोव के बारे में कुछ नहीं सुना?’’

‘‘मैं पिछले बीस वर्षों से इन प्रदेशों में नहीं आया। भला मैं कैसे सुन सकता था?’’

‘‘बीस वर्ष तो काफ़ी लम्बा अरसा है,’’ ड्राइवर ने सहमति प्रकट की और कहा:

‘‘तब तो आप इन प्रदेशों को कभी नहीं पहचान सकेंगे। अब तो आप हमारे इन चरागाहों में मशीनों की फौज की फौज देखेंगे-कीचड़ सुखाने, झाड़ियाँ काटने, घास बोने तथा खन्दकें खोदनेवाली मशीनों की एक अच्छी खासी प्रदर्शनी आपको यहाँ देखने को मिलेगी। चरागाहों से सम्बन्धित सभी मशीनरी यहाँ जुटा दी गयी है। इसे ही तो मैं प्रकृति का पुनर्निर्माण कहता हूँ।

‘‘किन्तु पोल्यानी में हम रात कहाँ गुजारेंगे? हमें काफ़ी अबेेर हो चुकी है,’’ उसने कुछ देर तक चुप रहकर कहा।

हमने यह निर्णय किया कि जिस किसी मकान में हमें सबसे पहले बत्तियाँ जलती दिखायी देंगी हम वहीं ठहर जायेंगे।

गाँव आरम्भ होते ही हमें दो प्रकाशपूर्ण खिड़कियों वाला एक मकान दिखायी दिया।

‘‘ओह, यह तो स्कूल है,’’ ड्राइवर खुशी से चिल्लाया। ‘‘यहाँ एक अध्यापिका रहती है। लोगों का कहना है कि वह भी नई रोशनी की प्रतिनिधि है।’’

हमने दस्तक दी। लम्बी काली चोटियों वाली एक लड़की ने दरवाज़ा खोला। उसने हमें स्कूल के खाली भवन में ठहरने की स्वीकृति दे दी। और साथ ही चाय पीने का निमंत्रण भी दिया।

हमने चाय का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। किन्तु वह बहुत नम्रतापूर्वक हमें अपने कमरें में ले गयी। मैंने रोशनी में उसे देखा तो ऐसा लगा कि उस जैसा सुन्दर चेहरा मैंने पहले कभी देखा ही नहीं। उसकी शर्मीली गहरी नीली आँखें तो विशेष रूप से सुन्दर थीं।

मेज़ पर गैदार का एक छायाचित्र रखा था। मैंने गौर से लड़की की ओर देखा।

‘‘क्या आप मुझे पहचानती हैं?’’

लड़की ने मेरी ओर देखा और सिर हिलाकर इंकार किया।

‘‘क्या आपको गैदार का स्मरण है?’’

‘‘बेशक,’’ लड़की ने कहा। ‘‘तनिक रुकिये, तब शायद आप ही उनके साथ ‘सरकारी खड्ड’ में आये थे। ओह, यह भी खूब भेंट हुई आपसे!’’

‘‘और आप लीज़ा हैं न?’’

‘‘हाँ, मैं लीजा हूँ। मैं ज़रा केतली चढ़ा दूँ-हम अवश्य ही कुछ देर बातचीत करेंगे। मेरा भाई भी जिला कार्यकारिणी समिति से लौटनेवाला ही है।’’

‘‘तीशा ही न?’’

‘‘हाँ, हाँ, वही? वह हमारा प्रधान है।’’

‘‘तो हमारा तीर ठीक निशाने पर ही बैठा,’’ ड्राइवर ने अपनी सफलता पर खुश होते हुए कहा।

‘‘यह तो सचमुच कमाल ही हो गया,’’ लीजा ने मेज लगाते और खुलकर हँसते हुए कहा। उसके गाल गुलाब की तरह खिले हुए थे और खुशी से साँस फूली हुई थी। ‘‘आप जानते हैं, यहाँ से जाने के बाद गैदार ने तिलस्मी ख़ज़ाने के बारे में मुझे मास्को से एक पत्र लिखा था। तब मैं बहुत छोटी थी और पढ़ना न जानती थी। इसलिए तीशा ने मुझे वह पत्र पढ़कर सुनाया था। मुझे उस पत्र में जो बात सबसे अधिक पसन्द आई थी, वह यह थी-‘हमें ख़ज़ाना नहीं मिला यद्यपि हमने पास से गुजरनेवाले जंगली जानवरों और पक्षियों तक से उसका पता पूछा। और तब हमारी भेंट नाटे कश्द के श्वेत केशों वाले एक वृद्ध से हुई जो खुमियाँ इकट्ठी कर रहा था। उसने हमें विश्वास दिलाया कि सफ़ेद पत्थर के नीचे दबा हुआ कोई ख़ज़ाना न तो है और न पहले कभी था। उसने कहा कि दुनिया में केवल एक ही असली ख़ज़ाना है और वह है नेकदिल। इसलिए लीजा, नेकदिल बनो, और खूब पढ़ो भी।’ जब कभी कोई अवांछित बात हो जाती है तो मैं उस पत्र को फिर से पढ़ लेती हूँ और तब मैं फिर से अपने हृदय को शान्त पाती हूँ।’’

‘‘मनुष्य की मनोवृत्ति पर सदुपदेश का प्रेरणादायक प्रभाव होता है,’’ ड्राइवर ने विचार प्रकट किया।

‘‘और वसीली कैसा है? जीवित है?’’ मैंने पूछा।

‘‘नहीं, उनका देहान्त हो चुका।’’

‘‘क्या वह अन्त समय तक यही कहता रहा कि मौत तारकोल साफ़ करने वालों के निकट कभी फटकती तक नहीं ?’’

‘‘यह तो उनके कहने का एक ढंग ही था। वे तो दुनिया के किसी भी स्थान को अपने जन्मस्थान जैसा श्रेष्ठ नहीं मानते थे। वे सदा यही कहते थे कि यहाँ की भूमि सोने की खान है। काश! वे अब इस प्रेदश को आकर देख सकते! अब चरागाहों में से झाड़ियाँ साफ़ की जा रही हैं और उन ज़मीनों को उपजाऊ बनाकर और उनमें हल चलाकर चारे के काम आनेवाली अच्छी किस्म की घास उगाई जा रही है। अब आप उन चरागाहों को पहचान नहीं सकेंगे, वे तो वास्तविक उपवन बन गये हैं। अब यहाँ एक पन-बिजलीघर है और वनों की अच्छी देखरेख होती है। तमाम सड़ी हुई लकड़ी हटाई जा चुकी है, आग बुझाने के मार्ग साफ़ कर दिये गये हैं और खाली पड़ी भूमि पर देवदार के वृक्ष उगाए जा चुके हैं। ‘सरकारी खड्ड’ के क्षेत्र में भी जंगल खड़ा हो गया है-रोंएदार चीड़ के वृक्ष झोपड़ी के बराबर ऊँचे हो चुके हैं और इतने घने हैं कि बड़ी कठिनाई से उनके बीच में से गुजरा जा सकता है।’’

‘‘सारा श्रेय तीखोन इवानोविच को है,’’ ड्राइवर ने कहा।

‘‘हाँ, तीशा बहुत अधिक मेहनत करता है,’’ लीज़ा ने स्वीकार किया। ‘‘वह भूमि सुधारनेवाला इंजीनियर है, और मैं अध्यापिका हूँ। मैं रूसी भाषा और साहित्य पढ़ाती हूँ।’’

हम बहुत देर तक बातचीत करते रहे, पर तीशा नहीं लौटा। मैं अगली सुबह जिला कार्यकारिणी के दफ़्तर में उससे मिला। दफ्तर का कमरा प्रकाशपूर्ण था और रगड़कर धोया गया फर्श उस समय धूप में सूख रहा था। खिड़कियाँ पूरी खुली हुई थीं और उनके पीछे धुन्ध में लिपटे हुए चरागाह थे। झीलें जहाँ-तहाँ अभ्रक की भाँति चमक रही थीं।

मैं पहली ही नज़र में इस दुबले-पतले आदमी यानी तीशा को पहचान न पाया। वह फौजी वर्दी पहने था जिसके कन्धे पर की फीतियाँ ग़ायब थीं। उसकी छाती पर ‘‘लाल सितारे’’ वाला पदक लगा था। वह दाढ़ी बनाए हुए और साफ़-सुथरी पोशाक पहने था। हाँ, रात भर के जागरण की छाप उसके चेहरे पर स्पष्ट अंकित थी।

तीशा (मेरे लिए वह अब भी तीशा था, यद्यपि अन्य सभी के लिए वह तीखोन इवानोविच था) इस विषय पर बातचीत करता हुआ संकोच अनुभव कर रहा था कि कैसे एक तारकोल पकानेवाला लड़का इंजीनियर और जिला कार्यकारिणी समिति का प्रधान बन गया है। उसने यह कहकर मेरा मुँह बन्द कर दिया:

‘‘इसमें कौन सी विशेष बात है? मेरे जैसे अनेक हैं...’’

दागों वाले एक लम्बे आदमी ने जो ड्राइवर था, खुली खिड़की में से अपना सिर अन्दर बढ़ाते हुए कहा:

‘‘तीखोन इवानोविच, अब चलना चाहिये। वे बन्द रहकर तंग आ गये हैं और शीघ्र ही पिंजरों को टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे। उनके थूथने ऐसे भयानक हैं कि देखने से डर लगता है।’’

‘‘फ़िक्र मत करो, वे तुम्हें हड़प नहीं जायेंगे,’’ तीशा ने कहा। ‘‘हम अभी चलते हैं।’’ मेरी ओर मुड़ते हुए उसने बताया, ‘‘हमने श्वेत नदी में ऊदबिलाव पालने शुरू कर दिये हैं। कुछ लोग वोरोनेज के निकट से उनका एक नया झुण्ड पकड़कर लाए हैं। क्या आप वहाँ चलना पसन्द करेंगे? आप पुरानी जगहों को देख सकेंगे।’’

मैंने हामी भरी और हम लारी में जा बैठे। बड़े-बड़े बक्सों में बन्द ऊदबिलाव, बेचैनी से इधर-उधर घूमते हुए गुर्रा रहे थे। गाँव की समाप्ति पर लारी एक जंगल में दाखिल हुई और एक सख़्त और रेतीली सड़क पर चढ़ी।

बीस बरस पहले यह जगह गिरे हुए वृक्षों के ढेर से अटी पड़ी थी। अब वहाँ अखरोट तथा हपुषा के घने झुरमुट थे।

इस वातावरण में साँस लेकर तो मनमोर खुशी से नाच उठा। शायद इसीलिए अप्रत्याशित ही तीशा ने कहा:

‘‘ ‘कुसुमित उपवनों के समान सुरभित हे वनस्थलों,’ निस्सन्देह वे कुसुमित उपवन ही हैं।’’

हमने लारी को पन-बिजलीघर के समीप वन की एक नदी के तट पर रोक दिया। ऊपर ऊँचे-ऊँचे चीड़ के वृक्षों के बीच से दुपहरी की तेज हवा बह रही थी जिसके कारण सारा जंगल समुद्र की लहरों की भाँति सरसराता हुआ झूम रहा था। किन्तु नीचे की ओर बिल्कुल निश्चलता थी क्योंकि हवा भूमि को तो छू ही नहीं पाती थी। पन-बिजलीघर चुपचाप काम कर रहा था। केवल बाँध की ओर से पानी की धीमी कल-कल ध्वनि आ रही थी और भवन के भीतर कोई ‘सादको’ का यह गीत गा रहा था-‘‘अगणित हीरे छिपे हुए हैं, बीच गुफाओं के!’’

मैंने इससे पहले कभी इतना छोटा पन-बिजलीघर नहीं देखा था। देवदारू के लट्ठों से बना हुआ यह बिजलीघर भीतर से ठण्डा और इतना साफ़ था कि कहीं एक धब्बा तक भी दिखायी न देता था। वहाँ राल की गन्ध आ रही थी। खुली हुई खिड़कियों में से अखरोट के वृक्ष की शाखाएँ अन्दर घुस आई थीं। कत्थई रंग का एक युवक खिलाड़ियों की कमीज पहने एक स्टूल पर बैठा था।

‘‘हमारा विद्युत-विशेषज्ञ,’’ उसका परिचय देते हुए तीशा ने कहा।

‘‘तीखोन इवानोविच, मैं अभी गीति-नाट्य के वे सभी गीत गा रहा था जो मैं जानता हूँ,’’ उसने कुछ असमंजस के साथ कहा, ‘‘सिर्फ वक़्त काटने के लिए।’’

‘‘मतलब यह कि घर बैठे-बैठे ही बोल्शोई थियेटर का मजा ले रहे हो,’’ तीशा तनिक मुस्कराया और फिर मेरी ओर मुड़कर कहने लगा: ‘‘यह बिजलीघर हमने खुद बनाया है, स्थानीय सामूहिक किसानों ने-अच्छा-खासा खिलौना है न! शीघ्र ही हम लिन्योवोये झील के समीप एक बड़े अन्तर्सामूहिक फार्म बिजलीघर का निर्माण आरम्भ करने वाले हैं। उसमें जीर्णक जलाया जायेगा और तब हम बिजली की सहायता से भूमि जोतेंगे, दूध दुहेंगे और बिजली के आरों से जंगल में काम करेंगे।’’

मैं लिन्योवोये झील के पहले भी देख चुका था और मेरे लिए यह कल्पना तक करना कठिन था कि थोड़े ही समय में वहाँ एक बिजलीघर बन जायेगा। बीस बरस पहले लिन्योवोये झील इतनी वीरान थी कि बनवासियों के अनुसार वहाँ कोई पंछी तक बसेरा नहीं करता था।

हवा में कुछ अज़ीब-सी ताजगी थी जो हमें दिन भर महसूस होती रही। यह ताजगी हर वस्तु-देवदारू और बर्च वृक्षों के तनों, घास और पत्तों, यहाँ तक कि हवा और बन-झीलों के पानी में चमचमाती, चमकती और फैलती देखी जा सकती थी।

‘‘हैरान हुए जा रहे हैं न?’’ तीशा ने कहा। ‘‘आपको याद है कि यहाँ कैसा अँधेरा-अँधेरा सा था-और फिर वह सड़ायंध? अब यह जंगल खुलकर साँस ले सकता है।’’

पन-बिजलीघर से हम श्वेत नदी की ओर गये। वहाँ की प्रकृति वनप्रदेश की विशिष्ट नीरवता लिए, शान्त थी। बहते हुए पानी में हरे-हरे देवदार वृक्षों की परछाइयाँ दिखायी दे रही थीं। मौन और गम्भीर प्राणीविज्ञान शास्त्री आया और उसने पिंजरों के दरवाज़े खोलकर ऊदबिलावों को बाहर निकाला। पानी में जाने से पहले उन्होंने तैयार होने में काफ़ी समय लगाया। हमारी तनिक भी परवाह न करते हुए उन्होंने पंजों से अपनी रोयेंदार खाल को सँवारा।

‘‘क्या सलीकेदार जानवर हैं,’’ ड्राइवर ने प्रशंसा करते हुए ऊँचे स्वर में कहा,

‘‘पानी को गन्दा नहीं करना चाहते।’’

शाम होने तक हम ‘‘सरकारी खड्ड’’ पर पहुँच गये। जंगल में काम करनेवाले लोग लट्ठों की बनी अनेक झोपड़ियों में रहते थे, किन्तु वह पुरानी झोंपड़ी अभी भी कायम थी और देवदार के फलों को सुखाने के काम में लायी जाती थी।

तीशा और मैं, थोड़ी देर के लिए नहर के किनारे बैठकर पूरब की ओर से बढ़ते हुए रात्रि के अंधकार को देखते रहे। बड़ी-बड़ी मछलियाँ पानी में छपछपा रही थीं।

‘‘मेरे ख़्याल में ये विशेष किस्म की बड़ी मछलियाँ हैं,’’ तीशा ने कहा। ‘‘जब वसीली दादा जीवित थे तो यहाँ केवल छोटी-छोटी मछलियाँ थीं। आप ठीक ऐसे समय आये हैं जब यहाँ की हर चीज़ अपने जोबन पर है। सबसे अच्छा मौसम है। क्या आपने चरागाह देखे हैं?’’

‘‘नहीं, अभी तक नहीं।’’

कुछ देर रुककर तीशा ने कहा:

‘‘यहाँ कोई ऐसा जिला नहीं, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जिसका उज्ज्वल, बहुत उज्ज्वल भविष्य न हो। सम्भवतः आप लीजा से ख़जाने की कहानी सुन चुके हैं। निस्सन्देह ‘नेक दिल’ खुद भी एक बहुत बड़ा खजाना है। लेकिन जैसे मैं देखता हूँ, हर जिले में एक खजाना दबा पड़ा है और मैं अपनी इस धरती को दुनिया की अन्य किसी जगह से बदलने को तैयार नहीं हूँ। इसे निकृष्ट और दलदली कहा जाता था। यहाँ भूरी मिट्टी, आलू, मच्छर, गीली और सड़ी हुई लकड़ी के अतिरिक्त कुछ न होता था। किन्तु अब इसे देखें तो! और याद है लोग कैसे उसकी उपेक्षा करते हुए कहा करते थे-‘फिर कभी देखा जायेगा’, ‘अब नहीं’, ‘यह हमारे लिए नहीं’, ‘यह हमारे बस का रोग नहीं’ इत्यादि। किन्तु देखते हैं अब वही लोग कैसे बदल चुके हैं? उन्हें अपने पर और अपने उज्ज्वल भविष्य पर विश्वास है। मैं हरेक को जल्दी-जल्दी करने को कहता हूँ और और हरेक मुझे जल्दी करने को कहता है-‘आइये, अब चलना चाहिये’, यही शब्द मैं हर समय सुनता रहता हूँ। लोग नये जीवन के लिए बेकरार हैं-वे हर चीज़ के इच्छुक हैं। वे जल-विद्युत स्टेशन, नये स्कूल, प्रादेशिक केन्द्र से मिलानेवाली सड़कें बनाना चाहते हैं। वे जीर्णक के ज़खीरों का उपयोग करना चाहते हैं और औषधियों के काम में आनेवाली जड़ी-बूटियों को एकत्रित करना चाहते हैं। वे नई नसल के पशु पालना और जंगल और बाग लगाना चाहते हैं। यहाँ तक कि मधुमक्खियों को पालने का काम भी योजना में शामिल है। इस तरह करने के लिए लाखों काम हैं, यद्यपि यह ठीक है कि सरसरी नज़र से देखने से जिले की क्षमता बहुत अधिक दिखायी नहीं देती। किन्तु निस्सन्देह, हमारी मुख्य चीज़ चरागाह है। चन्द दिनों तक प्रादेशिक समिति का मन्त्री, क्रेमलिन जाकर ओका की बाढ़वाली भूमि को मास्को के दूध-केन्द्र में परिवर्तित करने के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करेगा। हमने एक सम्मेलन में यह निर्णय किया है कि सरकार को अपने साधनों और काम की सम्भावनाओं से परिचित करायें और अपने चरागाहों को उनके वास्तविक स्वरूप में प्रदर्शित करें। केवल विवरणमात्र प्रस्तुत करने से काम नहीं चलेगा। हम वह दिखाना चाहते हैं जो हमारे पास है। इसलिए हम यहाँ पैदा होने वाली सभी तरह की घास और सभी तरह के फूल मास्को भेज रहे हैं। हर सम्भव किस्म-सो भी ताजा काटकर।’’

‘‘किन्तु ताजा काटी गयी घास और फूलों को मास्को कैसे भेजा जायेगा?’’

‘‘पानी के टबों में, कार द्वारा। और ये केवल फूलों के गुच्छे ही नहीं होंगे, बल्कि पूरी की पूरी टहनियाँ।’’

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कुछ ही दिनों बाद उन्होंने तरह-तरह की घास और फूल इकट्ठे करने शुरू करने शुरू कर दिये।

इस काम का उत्तरदायित्व लीजा को सौंपा गया था। उसने स्कूल के सभी बड़े बच्चों को एक साथ बुला लिया था और जब मैं वहाँ पहुँचा तो लगभग तीस लड़के और लड़कियाँ स्कूल-भवन के समीप पड़े हुए लट्ठों पर बैठे इस विषय पर गर्मागर्म बहस कर रहे थे कि अधिकतम किस्मों के अधिकतम फूल एकत्रित करने के लिए कौन से चरागाह सर्वोत्तम रहेंगे। कुछ ने स्तारित्सा के तट का सुझाव दिया, दूसरों ने स्टुडेनेत्स झील का, जबकि अन्य ने ख्वोश्ची नामक रहस्यमय क्षेत्र के हक में दलीलें दीं।

माथे पर हिलती हुई बालों की लटवाली सबसे छोटी लड़की का अपना अलग-अलग मत था।

‘‘तुम सब बिल्कुल ग़लत हो,’’ वह रुआँसी-सी आग्रहपूर्वक कह रही थी। ‘‘हमें ‘शान्त नदी-घाटी’ की ओर जाना चाहिये। वहाँ हर किस्म के फूल मिल जाते हैं।’’

हाँ, फूलों को या तो सूरज निकलने से पहले ही इकट्ठा कर लेना चाहिये या गर्मी के कम होने के बाद सूर्यास्त होने से पहले। अन्यथा वे शीघ्र ही मुरझा जाते हैं।

सूर्यास्त होने से पहले जाने का निर्णय हुआ, और यह भी कि तोड़ने के बाद उन्हें पोल्यानी में लाकर छाँटा जाये और उसी रात मास्को के लिए रवाना कर दिया जाये।

मैं, लीजा और बालकों के साथ शामिल हो गया। मेरे ड्राइवर समेत बड़ी आयु के अन्य कई लोग भी साथ थे।

हरेक ने बड़े से बड़ा फूल तोड़ने का यत्न किया। हरेक ने अपने फूल को सर्वोत्तम समझा।

जब हम चरागाहों से लौटे तो रात हो चुकी थी। सूरज छिप चुका था और झीलों की सतह पर कुहरा जम चुका था। तराई में सस्य कुक्कुटियाँ शोर मचा रही थीं। जंगली गुलाब जो जून की चाँदनी रातों में खिलता है, फूला हुआ था।

साफ़ और धुँधले पड़ते आकाश में एक जेट हवाई जहाज श्वेत रंग का धुआँ पीछे छोड़ता हुआ गुजरा। धुआँ ऊपर मन्द-मन्द चमकते सितारे की ओर तेजी से चला गया। इस धुएँ और सितारे का प्रतिबिम्ब स्तारित्सा के पानी में दिखायी दिया और साँयकालीन आकाश की अथाह गहराई उसमें झलक उठी।

रात्रि के सहमे-सहमे साये झील के तट पर दिखायी देने लगे थे, किन्तु फूल अभी तक छिपते सूर्य की अन्तिम छवि में चमक रहे थे। किसी बुलबुल ने एक धीमी-सी तान हवा में छोड़ी और फिर इस डर से कि कहीं रात की नीरवता भंग न हो जाये, चुप हो गयी।

वृहस्पति-ग्रह क्षितिज पर काले जंगल के ऊपर दिखायी दिया और चरागाहों, सरपत की झाड़ियों, धुन्ध और हमारी अत्यधिक परिचित और प्यारी भूमि के ऊपर, धीरे-धीरे आकाश में ऊँचा चढ़ने लगा।

1953

('समय के पंख' में से)

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