खरगोश, हयीना और शेर : ज़ांज़ीबार (तंजानिया) लोक-कथा
Khargosh Hyena Aur Sher : Zanzibar (Tanzania) Folk Tale
एक बार की बात है कि सिम्बा शेर, फीसी हयीना और कीटीटी खरगोश ने मिल कर यह फैसला किया कि वे सब मिल कर खेती करेंगे।
सो वे तीनों एक खुले मैदान में चले गये और वहाँ जा कर एक बागीचा बनाया और उसमें उन्होंने कई किस्म के बीज लगाये। बीज बो कर वे सब घर वापस आ गये और फिर कुछ दिन तक इन्तजार किया।
कुछ दिनों के बाद जब उनकी फसल तैयार हो गयी और उसको काटने का समय आया तो तीनों ने अपने खेत पर जाने का विचार किया। सो एक सुबह वे सब जल्दी उठे और अपने बागीचे की तरफ चल दिये। बागीचा थोड़ी दूरी पर था।
कीटीटी खरगोश बोला — “जब हम लोग अपने बगीचे की तरफ जा रहे होंगे तो हम सड़क पर बिल्कुल नहीं रुकेंगे। अगर कोई रुकता है तो कोई भी उसको खा सकता है। ठीक?”
अब कीटीटी खरगोश के साथी तो इतने चालाक नहीं थे जितना कि वह खुद, और उनको यह भी यकीन था कि वे उससे ज़्यादा चल सकते थे सो वे सब उसकी बात मान गये।
तीनों चल दिये। पर वे अभी कुछ ही दूर गये थे कि कीटीटी खरगोश रुक गया। फीसी हयीना बोला — “देखो यह खरगोश रुक गया। अब हम इसको खा लेते हैं। ”
सिम्बा शेर बोला — “हाँ यही तो तय हुआ था।
कीटीटी खरगोश बोला — “मैं सोच रहा था। ”
सिम्बा शेर और फीसी हयीना एक साथ बोले — “तुम क्या सोच रहे थे खरगोश भाई?”
कीटीटी खरगोश दो पत्थरों की तरफ इशारा कर के बोला — “मैं उन दो पत्थरों के बारे में सोच रहा था जो वहाँ पड़े हैं। छोटा वाला पत्थर ऊपर नहीं जा सकता और बड़ा वाला पत्थर नीचे नहीं आ सकता। ”
सिम्बा शेर और फीसी हयीना भी उन पत्थरों को देखने के लिये रुक गये और बस इतना ही कह सके “हाँ यह तो तुम ठीक कह रहे हो। ”
इतनी देर मे कीटीटी खरगोश सुस्ता चुका था सो वे सब फिर आगे बढ़े।
वे लोग थोड़ी दूर ही और चले थे कि कीटीटी खरगोश फिर रुक गया। फीसी हयीना फिर बोला — “यह कीटीटी खरगोश तो फिर रुक गया। अब की बार हमें इसको जरूर खा लेना चाहिये। ”
सिम्बा शेर बोला — “यह तो तुम ठीक कह रहे हो। ”
कीटीटी खरगोश फिर बोला — “मैं फिर कुछ सोच रहा था। ”
उसके साथी एक बार फिर उत्सुकता से बोले — “अब की बार तुम क्या सोच रहे थे खरगोश भाई?”
कीटीटी खरगोश बोला — “मैं सोच रहा था कि हम जैसे लोग जब अपना कोट बदलते हैं तो हमारा वह पुराना वाला कोट कहाँ जाता है। ”
सिम्बा शेर और फीसी हयीना ने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। पर बाद में वे यह भी सोचने लगे कि हालाँकि खरगोश रास्ते में रुक गया था फिर भी दोनों में से कोई भी कीटीटी खरगोश को नहीं खा सका।
इतनी देर में कीटीटी खरगोश फिर थोड़ा सुस्ता लिया था सो फिर तीनों आगे बढ़े।
थोड़ी देर बाद फीसी हयीना ने भी अपने कुछ विचार रखने चाहे सो वह भी रुक गया। उसको रुकता देख कर सिम्बा शेर चिल्लाया — “यह नहीं हो सकता। फीसी हयीना इस बार हमें तुमको खाना ही होगा। ”
फीसी हयीना बोला — “नहीं नहीं, मैं सोच रहा था। ”
“क्या सोच रहे थे तुम?”
फीसी हयीना अपने आपको चतुर दिखाते हुए बोला — “अरे मैं तो कुछ भी नहीं सोच रहा था। ”
कीटीटी खरगोश बोला — “तुम इस तरीके से हमें बेवकूफ नहीं बना सकते। ”
और सिम्बा शेर फीसी हयीना के ऊपर कूद पड़ा और उसे मार डाला। कीटीटी खरगोश और सिम्बा शेर दोनों ने मिल कर फीसी हयीना को खा लिया। इसके बाद कीटीटी खरगोश और सिम्बा शेर फिर आगे बढ़े।
चलते चलते वे एक गुफा के पास आये। वहाँ आ कर कीटीटी खरगोश फिर रुक गया। इस बार सिम्बा शेर बोला — “हालाँकि मुझे अब भूख नहीं है पर तुमको खाने के लिये मुझे अपने पेट में कुछ जगह तो बनानी ही पड़ेगी, ओ छोटे कीटीटी। ”
कीटीटी खरगोश बोला — “मेरा ख्याल है कि नहीं, इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि मैं फिर कुछ सोच रहा हूँ। ”
सिम्बा शेर बोला — “इस बार तुम क्या सोच रहे हो?”
कीटीटी खरगोश सामने की गुफा की तरफ इशारा करते हुए बोला — “इस बार मैं इस गुफा के बारे में सोच रहा हूँ। पुराने जमाने में हमारे बड़े लोग इधर से जाया करते थे और उधर को निकल जाया करते थे। मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी कुछ ऐसा ही करूँ। ”
सो वह उस गुफा के अन्दर एक तरफ से गया और दूसरी तरफ से निकल आया। ऐसा उसने कई बार किया।
फिर उसने सिम्बा शेर से कहा— “देखते हैं कि तुम ऐसा कर सकते हो या नहीं। ”
अब शेर को तो इतनी अक्ल नहीं थी कि खरगोश तो छोटा था इसलिये उसमें से निकल गया वह तो बड़ा था वह तो उतनी छोटी जगह में से नहीं निकल सकता था। सो शेर उस गुफा के अन्दर घुसा पर बहुत जल्दी ही वह बीच में फँस गया। अब न तो वह आगे ही जा सका और न पीछे ही आ सका।
बस पल भर में ही कीटीटी खरगोश सिम्बा शेर की पीठ पर था और उसे खा रहा था। थोड़ी ही देर में सिम्बा शेर चिल्लाया — “तुम मुझे पीछे से ही खाते रहोगे या आगे से भी खाओगे?”
पर कीटीटी खरगोश भी इतना बेवकूफ नहीं था। वह बोला — “मैं तुम्हारे सामने नहीं आ सकता क्योंकि मुझे तुम्हारा चेहरा देखने में शरम आती है। ”
कीटीटी खरगोश से उस शेर को जितना खाया गया उसने उसे उतना खाया और फिर अपने बागीचे की तरफ चला गया। अब वह उस बगीचे का अकेला मालिक था।
तो देखी तुमने खरगोश की चालाकी?
(साभार : सुषमा गुप्ता)