केंचा की बुद्धिमानी : कर्नाटक की लोक-कथा

Kencha Ki Buddhimani : Lok-Katha (Karnataka)

एक शहर में एक लड़का रहता था। उसका नाम था केंचा। वह अपनी माँ के साथ रहता था। उसका बाप कई साल पहले गुजर गया था। इसी तरह दिन बीत रहे थे। केंचा स्कूल में दाखिल होता है। लड़के समूह में स्कूल जाते रहते हैं। वे लड़के केंचा को पसंद नहीं करते, इसलिए कि केंचा उन सबसे ज्यादा बुद्धिमान था। सभी लड़के उसको देखकर जलते थे। कक्षा में मास्टर जो भी प्रश्न पूछते, केंचा उन सबका तुरंत सही जवाब देता था। मास्टर उसको शाबाशी देते रहते थे।

एक दिन ऐसा होता है कि बाकी लड़के केंचा की हँसी उड़ा रहे थे। कह रहे थे कि केंचा की माँ का किसी पराए इनसान के साथ रिश्ता है। यह सुनकर केंचा को बहुत बुरा लगता है। एक दिन वह परीक्षा करने के लिए अपनी माँ से झूठ बोलता है। माँ से कहता है कि वह स्कूल जाएगा, मगर सबकी आँख बचाकर घर की अटारी पर जाकर बैठ जाता है। थोड़ी देर बाद देखता क्या है कि कोई पराया इनसान घर आता है। उसकी माँ के साथ राजी-खुशी चलती रहती है। यह देख केंचा को खूब गुस्सा चढ़ता है, मगर उसके हाथ में कुछ नहीं था। वह कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था।

माँ का चरित्र इस तरह का था, उधर लड़के उनके बारे में बहुत हलके तरीके से बात करते। यह सब केंचा के लिए असहनीय था, इस वजह से वह शहर छोड़ने का मन बना लेता है।

वह चलता रहता है, तभी रास्ते में उसे एक ग्राम मुखिया मिलता है। वह उससे कहता है, “रे बालक! गाय को इस तरफ भगाओ।” केंचा सुनता है, सोचता है, मेरे ग्रह-नक्षत्र ठीक नहीं, इसलिए मैं उसे नहीं भगाऊँगा। वह इनसान कहता है, “ग्रह-गति क्या चीज होती है?” एक उव पर फेंका केंचा उसकी बात मानकर गाय पर पत्थर फेंकता है। उससे गाय की टाँग टूट जाती है। तब ग्राम मुखिया यह कहकर कि तुमने मेरी गाय की टाँग तोड़ी है, उसे न्यायालय की तरफ खींचकर ले जाता है।

आगे जाते समय वहाँ सड़क पर एक लड़की अपने सिर पर दही का मिट्टी का घड़ा उठाकर ले जा रही थी। केंचा का स्कूल का बेग देख उससे एक प्रश्न करती है, “आगे गरम होता है, पीछे ठंडा होता है, बता वह क्या है?” तब केंचा अपने अज्ञान को बताता है, “कहता है, मुझे इसकी जानकारी नहीं है।”

वह लड़की केंचा को छेड़ती है, “तेरे स्कूल की पढ़ाई का यही नतीजा निकला है? क्या फायदा, तू तो बुद्धू है।”

यह सुनकर केंचा चिढ़ जाता है। वह सोचता है, ‘मुझे बुद्धू कहती है, मैं दूँगा इसके प्रश्न का जवाब।’ वह लड़की को सूर्य के सामने की तरफ खड़े होने को कहकर पीछे की तरफ से दही की हाँड़ी पर इशारा कर पत्थर फेंकता है। इससे घड़ा फूट जाता है। दही लड़की की पीठ पर झरता है, आगे की तरफ यह गरमी की वजह से गरम होता है। केंचा कहता है, “तुम्हारे प्रश्न का यही उत्तर है।” तब लड़की यह कहकर हल्ला मचाती है कि इस लड़के ने दही का मेरा घड़ा फोड़ दिया। इस तरह वह लड़की भी केंचा को कोर्ट ले जाने लगती है।

इस तरह वे लोग आगे बढ़ते रहते हैं। अभी शहर पहुँचने में काफी समय लग सकता था। तब संध्या का समय होता है। तीनों लोग रास्ते पर एक गाँव में ठहर जाते हैं। उस गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। ये लोग वहीं पर खाना, नाश्ता-पानी कर लेते हैं। तब वह बुढ़िया एक प्रश्न आगे रखती है, “बेटा, आंजनेय ने लंका नगर किस तरह जलाया?”

जवाब में रामायण की कहानी कहकर लंका दहन की रीति का वर्णन करता है, मगर बुढ़िया इस जवाब से खुश नहीं होती, वह कहती है, “बेटा, मुझे भी यह कहानी मालूम है। इसलिए इस जवाब से कोई फायदा नहीं। तू यह दिखा कि उसने किस तरह लंका को जलाया?” तब केंचा ने कहा, “दादी, मैं तुम्हें दिखाकर बताऊँगा कि किस तरह हनुमान ने लंका को जलाया। एक काम करो, यहाँ कहीं से एक बंदर को पकड़कर ले आओ, साथ ही तीन गज कपड़ा भी लाना।” बुढ़िया केंचा की बात मानकर ये सारी चीजें ला देती है। केंचा बंदर को पकड़कर उसकी पूँछ में तीन गज कपड़ा गोल-गोल बाँधकर उस पर दीयासलाई की डिबिया से सलाई निकालकर आग पैदा कर उसे जला देता है। बंदर आग से घबराकर मकान के चारों तरफ भागता है। तब बुढ़िया चिल्लाकर बंदर के पीछे-पीछे भागती है। ये चारों लोग घर में इस तरह भागते हैं। तब तक सुबह हो जाती है। चारों लोग तब नाश्ते के लिए चल पड़ते हैं। नाश्ता कर वे लोग पान भी खाते हैं। केंचा भी पान लेकर खाता है। उन चारों लोगों की जीभ इससे लाल रंग की हो जाती है। केंचा की जीभ लाल रंग नहीं पकड़ती। तब पान खिलानेवाली कहती है कि जिन लोगों की जीभ लाल हो चुकी है, उनके चेहरे पर थूको तो तुम्हारी जीभ भी लाल रंग की हो जाएगी। तब केंचा देखता है कि पान बनानेवाली का लाल रंग है, तो वह उसी के चेहरे पर ही थूकता है। तब वह भी केंचा पर क्रोधित होती है। शोर मचाकर वह भी इसे लेकर कोर्ट के लिए निकलती है।

इन तरह चारों लोग और केंचा कोर्ट के रास्ते चल निकलते हैं। आते समय ही केंचा जज को अपनी पाँच उँगलियों से इशारा करता है। छोटे शहरों में सामान्य रूप से एक मात्र जज होते हैं। उनके पास ज्यादा काम भी नहीं रहता। इन पाँचों लोगों को आते हुए अपनी खिड़की से ही देखकर पाँच उँगलियों के इशारे को उसके साथ जोड़कर हिसाब लगता है कि उसे जैसे पाँच सौ रुपए मिलनेवाले हैं।

फिर कोर्ट शुरू होता है। उसमें से हर एक अपनी-अपनी शिकायत पेश करता है। यह जानकर भी कि खुद गलत फैसला सुना रहा हूँ, वह केंचा को ही निर्दोष ठहराता है। सभी निकल जाते हैं। वहाँ पर अंत में केंचा ही अकेला रह जाता है। जज फिर केंचा से पैसा माँगता है। केंचा कहता हैउँगलियों के इशारे से मतलब उन पाँचों लोगों के आने की बात कर रहा था।

अब जज को भी गुस्सा आ जाता है, मगर उसे भी कुछ दूसरा रास्ता नहीं सूझता, गुस्से में केंचा को वहाँ से निकल जाने को कहता है। केंचा तुरंत वह शहर छोड़कर मैसूर की तरफ बढ़ जाता है।

मैसूर आकर राजमहल में नौकरी करने लगता है। नौकरी में केंचा को वे लोग घुड़साल भेजते हैं। वहाँ पर वह घोड़ों को घास खिलाना, कुल्थी पकाकर खिलाने, घोड़ों की मालिश करना आदि काम करता रहता है।

दिन बीतते हैं। एक दिन रानी घुड़साल आती है। रानी वहाँ के कार्यवाहकों के साथ बहुत हलकी-हलकी बातें करती रहती है। केंचा जब इसे देखता है तो उसे यह सोचकर क्षोभ होता है कि रानी हो या मामूली इनसान, झोंपड़ी हो या महल, हर कोई चरित्रहीन होता है। इसी तरह दिन बीतते समय एक दिन राजा प्रजा को उद्देशित कर नित्युपदेश देता है। प्रजा के चरित्र के लिए आवश्यक सत्य चरित्र, सत्य व्यवहार आदि पर भाषण देता है। केंचा भी यह सब सुनता है। बीच में खड़े होकर वह कहता है—राजा, आप प्रजा को इतना सारा उपदेश दे रहे हैं, मैं भी सुन रहा हूँ, मगर आपकी पत्नी घुड़साल में आकर छोटों के साथ इतना हलका व्यवहार करती है, उसके लिए आप क्या कहेंगे? यह ठीक है क्या? वह इतना बोलकर बैठ जाता है। प्रजा बोलती नहीं। सभी बिल्कुल चुप हो जाते हैं।

मगर राजा का पारा खूब चढ़ जाता है। वह अपने सिपाहियों को केंचा को पानी में डुबो देने का आदेश देता है। तब सिपाही केंचा को उठाकर एक बोरी में भर लेते हैं। पानी में डुबोने के लिए उसे उठाकर ले जाते हैं, मार्ग में उन सिपाहियों को एक शराबखाना दिखाई देता है। शराब के लोभ में वे सिपाही मुँहबंद उस बोरी को रास्ते में छोड़कर शराब पीने निकल जाते हैं। उसके थोड़ी देर बाद उधर से एक लड़का गुजरता है। वह चुपचाप नहीं आता, गाना गाता हुआ आता है। वह आवाज सुनकर केंचा एक ड्रामा शुरू करता है, “राजा की बेटी से मैं शादी नहीं करता...मैं राजा की बेटी से शादी नहीं करता” कहना शुरू कर देता है। यह सुनकर वह लड़का पहले यह सोचता है, यह बोरी के अंदर से कैसी आवाज आ रही है? फिर वह पूछता है, “तुम कौन हो, कहाँ हो और क्या कह रहे हो कि तुम राजा की बेटी से शादी नहीं करना चाहते। ठीक है, तुम राजकुमारी से शादी नहीं करना चाहते हो तो? मैं उससे शादी करूँगा।” कहकर वह बोरी का मुँह खोलता है। तब केंचा बोरी से बाहर निकलता है और सिपाहियों से बच निकलने के लिए वह उस लड़के को ही बोरी में बंद कर खुद भाग निकलता है।

थोड़ी देर में सिपाही खूब शराब पीकर धुत्त होकर लौटते हैं, उस नशे में बोरी को उठाकर कुएँ के पास जाते हैं, अभी उसे फेंकने वाले होते हैं, तभी वह लड़का बोरी के अंदर से, “देखो रे, मैं वह नहीं, वह यहाँ नहीं”, कहकर चिल्लाता है। शराब के नशे में सिपाही उसकी बात का मतलब नहीं समझ पाते। वह उस लड़केवाली बोरी को ही कुएँ में फेंककर मैसूर के राजमहल लौटते हैं। इन सैनिकों के पहुँचने से पहले केंचा वहाँ पहुँच जाता है। तब राजा उन सैनिकों को दंडित कर दूसरे सैनिकों को आदेश देता है। राजा सैनिकों को केंचा का सिर फोड़ने का आदेश देता है। तब दूसरे सैनिक केंचा को पकड़कर उसका सिर फोड़ने के लिए काफी दूर ले जाते हैं। वहाँ वे एक इनसान के समाने लायक गड्ढा खोदते हैं। उसमें केंचा को उतारकर उसके कंधों तक मिट्टी भरते हैं। वे सिपाही लोग भी यह सोचकर कि शराब पीने के बाद केंचा का सिर फोड़ेंगे, शराब पीने निकलते हैं। उस जगह पर थोड़ी देर बाद एक कुबड़ा बूढ़ा आता है। गले तक मिट्टी में धँसे केंचा को देखकर वह बूढ़ा, “इस तरह तुम मिट्टी में धँसकर क्यों बैठे हो?” तब केंचा जवाब देता है कि “मैं यहाँ गड्ढा खुदवाकर मिट्टी में धँसकर बैठा हूँ, क्योंकि मेरी भी कमर तुम्हारी तरह झुकी हुई थी, अब इस उपचार के बाद मेरा कूबड़ हवा हो जाएगा।” बूढ़ा केंचा की बातों पर विश्वास कर कहता है, मुझे भी अपनी तरह मिट्टी में गाड़ दो। मुझे भी अपना कूबड़ दूर करना है। केंचा कहता है, “मुझे बाहर निकाल दो तो मैं यही उपचार तुम्हारा भी करूँगा।”

खुद मिट्टी से बाहर निकलकर केंचा अब उस बूढ़े को अपनी जगह गाड़ देता है। केंचा उसको उस हालत में छोड़कर निकल जाता है। उसके थोड़ी देर बाद सिपाही शराब पीकर लौटते हैं। देखे बिना बूढ़े के सिर पर हथौड़ा मारते हैं।

इस बार केंचा राजमहल न जाकर एक हाट की तरफ बढ़ता है। वहाँ पर एक बुढ़िया पेड़े, मँगोड़ी, भजिया आदि वस्तुएँ बेच रही है। केंचा वहाँ पर जाता है। केंचा से बुढ़िया पूछती है कि तुम्हारा नाम क्या है? केंचा जवाब में कहता है, ‘दे सकता हूँ’, इतना कहकर उसकी दुकान की सभी वस्तुएँ उठाकर खाता है। उसे पैसा नहीं देता। चला जाता है। बुढ़िया ‘धोखेबाज’ कहकर चिल्लाने लगती है। फिर कहती है, ‘दे सकता हूँ’ कहनेवाला चला गया। बुढ़िया अपनी पोती से कहती है, “वह दे सकता हूँ वाला चला गया।” पोती किसी तरह दादी को शांत करने की कोशिश कर थक जाती है।

इस तरह केंचा बचा सारा नाश्ता उठाकर एक तालाब के पास पहुँचता है। वहाँ पर कुछ धोबी अपने साथ एक बच्चे को बिठाकर कपड़े धो रहे हैं, वे कपड़े और किसी के नहीं, राजमहल के थे। धोबियों का बच्चा नाश्ते को देखकर हठ करने लगता है कि वह नाश्ता उसे चाहिए। तब केंचा बच्चे को नाश्ता नहीं देता, मगर धोबियों से झूठ बोलता है। कहता है, “पीछे की तरफ थोड़ी दूर जाने पर वहाँ नाश्ते की बारिश हो रही है। मैं यह नाश्ता वहीं से ले आया हूँ।”

वे धोबी राजा के कपड़े साफ कर रहे थे। उन्हें दूर भेजकर वह राजा के कपड़े पहनकर निकलता है।

केंचा इस वेशभूषा के साथ आगे बढ़ रहा था, तभी वहाँ पर एक कुलकर्णी लोगों से कर वसूल कर उसे खजाने में जमा कराने के उद्देश्य से जा रहा था। केंचा को राजसी वेशभूषा में देखकर वह केंचा को ही राजा समझकर भ्रमित हो प्रणाम करता है; झुककर बात करता है। कुलकर्णी को प्यास लगती है, पानी पीने का मन करता है। वह पानी पीने उधर गया और इधर केंचा सारे पैसे उठाकर घोड़े पर चढ़कर भागा। उसी तरह आगे बढ़ते वक्त तेज बारिश हुई। इससे जलाशय तथा नदी में बाढ़ आ गई।

वह घोड़े पर चढ़कर निकल गया। तभी एक औरत अपनी बेटी को साथ लेकर घर जा रही थी। नदी पार करने की उसमें हिम्मत नहीं थी, वह सोच में डूबी थी। उसी समय केंचा का वहाँ पर आगमन होता है। वह औरत केंचा से नदी पार कराने की विनती करती है। वह उसे पार कराने को तैयार होता है। वह औरत केंचा से उसका नाम पूछती है, अपना नाम नहीं कहता, मगर ‘उसका पति हूँ’ कहता है और ‘मैं तुम लोगों को अलग-अलग नदी पार कराऊँगा’ कहकर औरत की बेटी को पहले अपने कंधों पर बिठाकर पार चला गया। औरत को वहीं छोड़ दिया। वह खूब शोर मचाती है। उसका रोना सुनकर वहाँ पर खूब लोग जमा हो जाते हैं। वह रोते-रोते कहती है, “मेरी बेटी को उसका पति ले गया है।”

फिर केंचा आगे एक गाँव में पहुँचकर ग्राम मुखिया के घर ठहराता है। वहाँ अपने घोड़े की पूँछ से पैसे बाँधकर सुबह होते ही देखता है, ‘मेरा घोड़ा पैसा देता है।’ ग्राम मुखिया आकर देखता है। केंचा की बात को सच मानकर घोड़े से वह आकर्षित होता है। चाव होता है। वह केंचा से घोड़ा माँगता है। केंचा कहता है, “इस घोड़े का दाम दस हजार रुपया है।” वह आगे बढ़कर कहता है, “मुखिया, आप रोज घोड़े से पैस मत निकालना। सब पैसे आप धन बक्से में भरते जाइए, महीने में एक बार ही निकालना,” कहकर मुखिया से दस हजार रुपए वसूलकर निकल जाता है। एक महीने बाद मुखिया घोड़े के गोबर में हाथ डालकर पैसे निकालने की कोशिश करता है, मगर उसे पैसे नहीं मिलते।

केंचा मुखिया के पैसे, कुलकर्णी के पैसे इकट्ठा कर शहर में एक मकान खरीदता है। उस लड़की के साथ ब्याह करके आराम से रहता है।

(साभार : प्रो. बी.वै. ललितांबा)

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