Kaun Basein Kaun Ujdein
कौन बसें : कौन उजड़ें
यात्रा करते-करते गुरु नानक जी और मरदाना एक ऐसे नगर में से गुजरे जहां
एक धनी व्यक्ति के यहां पुत्र-जन्म की खुशियां मनाई जा रही थीं। दूसरे ही
दिन उस बच्चे की मृत्यु हो गई। जहां एक दिन पहले गाना-बजाना था, वहीं
अब रोना-पीटना मचा था। यह देखकर मरदाना ने गुरु नानक से पूछा-''गुरु
जी ! क्या बात है कि मनुष्य कभी आनन्द में मग्न होता है और कभी दुख
में डूब जाता है । आखिर इस जीवन का उद्देश्य क्या है ?"
गुरु जी ने कहा-"ज्ञान के अभाव के कारण ही मनुष्य जीवन के सुखों में दुख
को भूल जाता है जब सुख चले जाते हैं तब दुख उसे बहुत भारी लगता है,
परन्तु ईश्वर की आराधना करने वाला व्यक्ति न सुख में फूलता है और न
दुख में दुखी होता है । वह दोनों स्थितियों में सन्तुष्ट रहता है।"
वहां से गुरु नानक मरदाना के साथ घूमते-फिरते एक गांव में पहुंचे। वहाँ के
लोग उन्हें देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने उनकी बहुत आवभगत की। गांव के
सभी स्त्री-पुरुषों ने उनको बड़ी सेवा की और उनके उपदेशों को बड़े ध्यान से
सुना। जब गुरु नानक उस गांव से विदा लेने लगे तो उन्होंने उस गांव के
रहने वालों को आशीर्वाद दिया, "इस गांव में रहने वाले लोग उजड़ जाएं।"
फिर यात्रा करते-करते वे एक दूसरे गांव में पहुंचे। वहां के लोगों ने उनके
साथ बिलकुल उल्टा व्यवहार किया। किसी ने उनका स्वागत नहीं किया यहां
तक कि किसी ने उन्हें पानी तक के लिए नहीं पूछा । गुरु नानक जी और
उनका साथी मरदाना जल्दी उस गांव से विदा हो गए ! जाते-जाते गुरु जी
उस गांव के लोगों को आशीर्वाद देते गए-"ये सब यहीं बसते रहें!"
उनके इस प्रकार के आशीर्वाद से मरदाना बड़े चक्कर में पड़ा । गुरु नानक
जी के वचनों का रहस्य उसकी समझ में नहीं आया । उसने पूछ ही तो
लिया-"गुरुजी, आपकी बात मेरी समझ में नहीं आई।"
गुरु जी ने पूछा-"कौन-सी बात, मरदाना ?"
"यही-" मरदाना बोला-"जिस गांव में हमारी आवभगत हुई, जहां के लोगों ने
हमारी सेवा की, आपके उपदेश सुने-उन्हें आपने उजड़ जाने का आशीर्वाद
दिया। और जिस गांव में हमारा तिरस्कार हुआ, जहां के लोगों ने आपका
उपदेश ग्रहण करना तो दूर आपको पानी तक के लिए नहीं पूछा- उन्हें आपने
वहीं पर सदा बसते रहने का आशीर्वाद दे दिया। इसका क्या अर्थ है ?"
मरदाना की बात सुनकर गुरु नानक जी मुसकराए । बोले—'मरदाने बात बड़ी
सीधी-सादी है । जो लोग अच्छे हैं, सेवा भाव वाले हैं उन्हें एक ही जगह पर
नहीं रहना चाहिए । ये लोग उजड़कर नई-नई जगहों पर बसेंगे और वहां
अपने गुणों का प्रसार करेंगे । परन्तु जो लोग बुरे हैं, जो दूसरों की सेवा करने
की बजाय उनका तिरस्कार करते हैं और अपने स्वार्थों में ही डूबे रहते हैं, ऐसे
लोगों को एक ही स्थान पर रहना चाहिए। यदि ये लोग फैलेंगे तो अपने
आचरण से दूसरे लोगों को भी भ्रष्ट करेंगे।'
(डॉ. महीप सिंह)