कथा जगन्नाथ स्वामी की : अवधी लोककथा (उत्तर प्रदेश)

Katha Jagannath Swami Ki : Avadhi Lok-Katha (Uttar Pradesh)

एक दुर्बल ब्राह्मण थे। उनकी पत्नी और एक पुत्र था। निर्धनता के कारण उनका परिवार भर पेट भोजन भी न पाते थे। मांग जांच कर अपना काम चलाते थे। दिन भर मागै तो दिया भर पावैं, रात भर मांगैं तौ दिया भर पावैं। ब्राह्मणी उपलब्ध आटे से रोटी बनाकर तरे रख दे। खोलैं तो तीनैं रहि जांय। वह अपने पुत्र और पुरखा को खिला दे, स्वयं संतोष करके रह जांय। किसी तरह पुत्र का विवाह हुआ, बहू घर आई। उसके आगे भी यही हाल चलता रहा। गरीबी का यह रूप देखकर वह बहुत दुखी हुई। उसने अपनी सास से कहा, ‘का अम्मा जगन्नाथन की पूजा, उनकी रोटियां कोचिया घर मां नहीं होत, उनके नाम की मटकी नहीं भरी जात।’ उनकी सास ने कहा, ‘बहुरिया घर मा ना जानी कउन सनीचर का बास है, रोटी बनाओ तो तीनैं रहि जांय, बरक्कतै नहीं ना। पूजा कउन करी।’ बहू ने सुझाव दिया, अम्मा जाओ मांग जांच के ही सही जगन्नाथ स्वामी का नाम लेकर उनकी पूजा घर में करो। और पिताजी से कहो जगन्नाथ स्वामी की यात्रा कर आवें। सास ने विधि पूछी, बहू ने कहा एक सोमवार को उनके नाम की ‘रोटिया कोचिया’ करे और दूसरे सोमवार को यात्रा पर जाये। सास ने ऐसा ही किया। जंगल से कुसुम का फूल (बर्रे का फूल) ले आई, अंबिया और गेहूं-जौ की बाली मांग कर लाई किसी तरह उनके नाम की मटकी भरी। उनके पति दुर्बल ब्राह्मण जगन्नाथ स्वामी की यात्रा को तैयार हुये। कहने लगे, रास्ते में अपनी लड़कियों से मिलकर कह दें, जगन्नाथ जी जा रहे हैं जो कुछ सन्देश कहना हो कह दो और जगन्नाथ के भोज का निमन्त्रण दे दें।

पहले वह बड़ी लड़की के यहां गये। वह घर नहीं थी। गरीबी के कारण (मजूरी) मजदूरी करके पेट पालती थी। लड़के बाहर खेल रहे थे। ब्राह्मण ने उन बच्चों से कहा, जाओ अपनी मां को बुला लाओ कह दो नाना आये हैं। बच्चे बड़े खुश हुए, वह दौड़े गये अपनी अम्मा को बुला लाये। वह प्रसन्न हो घर आई। जो कुछ गहना था ‘गिरों’ रखकर सीधा सामान लाई (खाने का सामान राशनादि) और बड़े प्रेम से अपने पिता के भोजन का प्रबन्ध किया। कहा, ‘‘बप्पा या खाय का बना रखा है खाय लिह्यो हम काम पर जा रहिन हैं, लउटि के आउब।’ और चली गयी। उस ब्राह्मण ने भोजन किया, बच्चों को कराया और कुछ भौंरी कठौती के नीचे मूँद कर रख दिया। बच्चों से कहा इन्हें अपनी अम्मा को खिला देना हम जगन्नाथ यात्रा पर जा रहे हैं। तुम सब भोज में आना। वह अपनी यात्रा पर चले गये। इधर वह लड़की आई। लड़कों ने उससे नाना का समाचार कहा, किन्तु लड़के फिर भोजन का आग्रह करने लगे। उसने कठौती खोली तो वह सब भौरियां सोने की हो गईं थीं। वह बहुत खुश हुई। उनके घर लक्ष्मी आई।

ब्राह्मण आगे अपनी छोटी लड़की के यहां गये। वहां भी उन्होंने वैसा ही कहा। किन्तु छोटी लड़की ने उनका सम्मान नहीं किया, और कुवाच्य भी कहे। खैर ब्राह्मण संतोष कर आगे बढ़ गये और जाते समय जगन्नाथ के भोज का न्यौता दिया। रास्ते में नदी नाले मिले जो भारी वर्षा में भी मिलते न थे। उन्होंने पूछा, ब्राह्मण देवता कहां जा रहे हो ? उन्होंने कहा ‘जगन्नाथ’। कहा अरे हमारौ सन्देश कहि दिह्या, भरी बरखौ मां हमार संगम नहीं होत, हम भरित है उमड़ाइत है तबौ अलगै रहित है।’ ब्राह्मण ने कहा, अच्छा। आगे चले तो बाल का बंधा हाथी मिला। उसने कहा, विप्र हमारा भी संदेश कह देना। इतना भारी शरीर और बंधा बाल से है। आगे चले तो एक जने थे जिनके पाटा चिपका था। उन्होंने भी अपना संदेश कहा। और आगे चले तो एक आम का पेड़ मिला, वह फलता फूलता पर पकने के समय कीड़े लग जाते। उसने कहा, महाराज कहां जा रहे हो। विप्र ने अपना गन्तव्य बताया, कहा हमारा भी संदेश कह देना। विप्र ने कहा अच्छा। सभी संदेश ले वह जगन्नाथ जी पहुंचे। वहां जगन्नाथ स्वामी की माया से विप्र को उनका द्वार ही न मिले, आगे ‘भार’ जल रहा था। वह बहुत दुखी हुए, रास्ते में एक ब्राह्मण मिला पूछा बाबा कहां जा रहे हो। कहा, हम तो जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने आये हैं। परन्तु हमें राह नहीं मिल रही है। विप्र रूप में आये देवता ने कहा, यहां तो ‘भार’ जल रहा है। मंदिर कहां है। इतने में दुर्बल ब्राह्मण ने कहा, ‘हम तो अब दर्शन करिन के जाब’ और उसी ‘भार’ में गिर पड़ा। उनको स्वयं जगन्नाथ स्वामी ने आगे बढ़कर उठा लिया। कहने लगे कि यही जगन्नाथ पुरी है हम जगन्नाथ स्वामी हैं। ब्राह्मण उनके चरणों में गिर पड़े, अपने अपराधों की क्षमा मांगी, अपना सारा दुख कह सुनाया। जगन्नाथ स्वामी ने उनके पांच बेंत मार दिये और कहा, अच्छा अब जाओ। वह दुखी मन लौट पड़े, सोचने लगे, हमको तो जगन्नाथ स्वामी ने कुछ भी नहीं दिया। लौटने लगे तो वह गूंगे, बहरे और अन्धे हो गये। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। फिर वही जगन्नाथ स्वामी ब्राह्मण देवता के रूप में आगे खड़े हो गये। बोले तुम कहां जा रहे हो। दुर्बल ब्राह्मण ने कहा, हम तो जगन्नाथपुरी गये थे, लौटने में हमारी यह दशा हो गयी। ब्राह्मण के रुप में जगन्नाथ स्वामी ने कहा, तुम कुछ भूल तो नहीं रहे हो। दुर्बल ब्राह्मण ने कहा, अरे हमसे बड़ी भूल हो गई, बहुतों ने हमसे अपने संदेश कहे थे। विप्र देवता ने कहा, चलो फिर उनके संदेश कहो। जगन्नाथ स्वामी की कृपा से उन्हें सब कुछ दिखने लगा, वहां पहुंच कर उन्होंने पहले अपना ही हाल कहा फिर सभी की दशा और संदेश सुनाया। जगन्नाथ स्वामी ने कहा, हमने तुम्हारे पांच बेंत मार दिये हैं, उसी से सब अपराध क्षमा हो गये, और जिनके संदेश तुम लाये हो उनके पांच-पांच बेंत मार देना और ये अक्षत छिड़क देना, अपराध क्षमा हो जायेंगे। और सबका कारण समझाने लगे।

पूर्व जनम की ये नदी-नाले देवरानी-जिठानी हैं। इन्होंने परस्पर प्रेम नहीं किया, एक दूसरे का बायन नहीं लौटाया। इसीलिए इस जनम में नदी नाले बनकर अलग-अलग हैं। बाल का बंधा हाथी : ये फूहड़ स्त्रियां हैं जो बाल झाड़ते समय कंघा साफ करके नहीं रखती थीं। इसलिये इस दिशा में हैं। बोझ से लदा आदमी : पूर्व जनम का अभिमानी। इसने अपने अहंकार में दूसरे को कुछ नहीं समझा। पाटा चिपका आदमी : इसने बड़ों का सम्मान नहीं किया। बड़ों के आने पर बैठा रहता था। इसलिये इनका यह हाल है। आम का पेड़ : पूर्व जनम के ये सम्पन्न लोग कभी दूसरों को छाया नहीं दिया। अपनी सम्पत्ति का दान नहीं किया।

अब दुर्बल ब्राह्मण वहां से लौटे। सभी के पांच-पांच बेंट मार दिये, अक्षत छिड़क दिये। कह दिया तुम्हारे अब सब अपराध क्षमा। अब वह अपनी बड़ी लड़की के यहां आये, उनको जगन्नाथ स्वामी का प्रसाद दिया और न्यौता दिया। बड़ी लड़की को धनधान्य से सम्पन्न देखकर बड़े खुश हुये। छोटी लड़की के यहां जाकर यही व्यवहार किया। परन्तु उसे अपनी गृहस्थी में परेशान लाकर दुखी हो गये। लौट कर घर आये, ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई। जगन्नाथ स्वामी की कृपा से उनके बुरे दिन मिट गये। उन्होंने धूम से जगन्नाथ स्वामी की पूजा और भोज किया। दोनों लड़कियां आयीं। बड़ी लड़की के सामने जो कुछ परोसा जाय वह अच्छा अच्छा रहे। छोटी लड़की के पत्तल में सब राख मिट्टी हो जाय। छोटी लड़की बहुत कुछ चिंतित हुई। उसने कहा, हमारे पिता हमारे साथ दुर्भाव करते हैं। ब्राह्मण बहुत दुखी हुये। उन्होंने लड़की को समझाया पर वह न मानी। विदा का समय आया। दोनों का समान मान सम्मान हुआ, परन्तु छोटी लड़की को जो सामग्री विदा के समय दी गई। वह राख मिट्टी हो गई। इस पर वह फिर बुरा भला कहने लगी। हमारे पिता हमारे साथ कपट व्यवहार करते हैं। ब्राह्मण को बहुत बुरा लगा। वह दुखी हो जगन्नाथ स्वामी से प्रार्थना की, भगवन ! इनके भी अपराध क्षमा करो। उनके पांच बेंत मारे और अक्षत छिड़क दिये। वह सुखी हो अपने घर गई। ब्राह्मण अपने घर में सुखपूर्वक रहने लगे। ‘जैसे उनके दिन लौटे भरे पुरे हुए वैसे सब के हों।’ ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की प्रतिध्वनि !

(- जगदीश पीयूष)

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