कर्मफल का महत्व : लोककथा (उत्तराखंड)

Karmfal Ka Mahatva : Lok-Katha (Uttarakhand)

किसी गाँव में रूपा नाम की एक स्त्री रहती थी। लोग उसके बारे में कहते थे- ‘‘आसमान से तारे तोड़कर लाना आसान है किन्तु रूपा से मदद लेना कठिन।‘‘ कोई भूखा उसके घर आता तो वह उसे डांटकर भगा देती थी।

एक दिन वह गाँव की अन्य स्त्रियों के साथ लकड़ी लेने जंगल गई। उसके साथ गई रैजा के कण्डे (लकड़ी रखने के लिए रिंगाल से बनी वस्तु ) की डोरी अचानक टूट गई। रूपा अपने साथ बबले (एक प्रकार का घास ) से बनी एक डोरी भी लेकर गई थी। रैजा ने रूपा से वह डोरी मांगी। रूपा उसे डोरी देने को तैयार नहीं हुई। उसने रूपा से कहा,‘‘बहिन ! इस समय मुझे बबले की डोरी दे दो। कभी तुझ पर भी संकट आएगा तो मैं भी तेरी सहायता करूंगी।‘‘

रूपा रैजा की बातों में आ गई। उसने न चाहते हुए भी वह डोरी रैजा को दे दी। यह उसके जीवन का पहला पुण्यकार्य था।

समय बीतता गया। एक दिन रूपा अचानक बीमार पड़ गई। वह बेहोश हो गई। उसका सूक्ष्म शरीर यमलोक चला गया। यमलोक में उसे बहुत भूख लगी। उसने देखा एक जगह पर कुछ लोग स्वादिष्ट खाना खा रहे थे। उसने खाना बांटने वाले से खाना मांगा। वह बोला, ‘‘तुम्हें खाना देने के लिए महाराज ने मना कर रखा है।‘‘

रात हो गई थी। वहां बहुत ठण्ड थी। वह सोना चाहती थी। उसने देखा कुछ लोग नएं बिस्तरों में सो रखे हैं। वह बिस्तर की व्यवस्था करने वाले आदमी के पास जाकर बोली, ‘‘मुझे नींद आ रही है। मेरे लिए सोने की व्यवस्था करो।‘‘

‘‘तुम यहाँ पर सो जाओ।‘‘- जमीन की ओर संकेत करते हुए वह रूपा से बोला।

‘‘ मेरे लिए चारपाई और रजाई गद्दे कहाँ हैं ?‘‘

‘‘ तुम्हें चारपाई और रजाई गद्दे देने के लिए महाराज ने मना कर रखा है। ‘‘ रूपा की बात को सुनकर वह आदमी बोला।

रूपा यमलोक के राजा यमराज के पास चली गई।

‘‘ महाराज ! मुझे आपके लोक में न तो खाने के लिए भोजन मिल रहा है और न सोने के लिए बिस्तर। ऐसा क्यों ?‘‘- रूपा सूक्ष्म शरीर के रूप में यमराज से बोली।

‘‘रूपा ! यह लो तुम्हारे खाने-पीने और सोने का सामान।‘‘- यह कहकर यमराज ने रूपा को बबले की डोरी दे दी।

बबले की डोरी को देखकर रूपा को अपने गाँव के जंगल की बात याद आ गई। उसे याद आया कि जंगल में लकड़ी लेने जाते समय उसने रैजा के कन्डे की डोरी टूटने पर उसे बबले की डोरी दी थी।

‘‘रूपा ! कहां खो गई हो ? ‘‘- यमराज की बात को सुनकर रूपा अपनी यादों से बाहर आ गई।

‘‘ महाराज ! बबले की डोरी ? खाने-पीने और सोने का सामान ?- रूपा ने आश्चर्य प्रकट किया।

‘‘ रूपा ! यमलोक में आए शरीरों को जो कुछ भी मिलता है, वह धरती में उनके द्वारा किए कर्मों के अनुसार मिलता है।‘‘

‘‘ महाराज ! कैसे?‘‘

‘‘ तुमने देखा कुछ शरीर यहां स्वादिष्ट खाना खा रहे थे। यह खाना उनको इसलिए मिला कि उन्होंने धरती में गरीब और भूखे लोगों को खाना खिलाया था। ‘‘

‘‘महाराज ! इसका मतलब जिनको सोने के लिए यहां अच्छे बिस्तर और पलंग मिल रहे हैं, उन्होंने धरती में गरीबों को कपड़े और बिस्तर दान किए होंगे ?‘‘- यमराज की बात को सुनकर रूपा ने कहा।

‘‘ तुम ठीक समझी हो। याद करो तुमने अपने जीवन में एक ही काम नेक किया था। तुमने जंगल में बबले की डोरी देकर रैजा की सहायता की थी। यमलोक में तुम्हारे खाने-सोने और पहनने में यही डोरी काम आएगी। ‘‘

यमराज की बात को सुनकर रूपा एक स्थान पर सोने लगी। उसने यमराज की दी हुई बबले की डोरी को बिछाया। वह भूख और प्यास से तड़पने लगी। रात को भयंकर ठण्ड पड़ी। वह ठण्ड से थर-थर कांपने लगी।

सुबह हुई। वह यमराज के पास जाकर रोकर बोली, ‘‘ महाराज ! मैं जब से यहां आई हूं ,मैंने न कुछ खाया। मैं रात को भी सो न पाई। मैं पछता रही हूं कि मैंने सद्कर्म न करके अपना जीवन बरबाद कर लिया है। मुझे एक बार सुधरने का अवसर दीजिए। ‘‘

‘‘ सुधरने का अवसर ? क्या मतलब है तुम्हारा ?‘‘

‘‘महाराज ! मुझे एक बार धरती में फिर से भेज दो।‘‘- यमराज की बात को सुनकर रूपा ने कहा।

यमराज को रूपा पर दया आ गई। उसने उसके सूक्ष्म शरीर को धरती में वापस भेज दिया।

जैसे ही रूपा का सूक्ष्म शरीर धरती में उसके शरीर में गया, उसके शरीर में हलचल सी होने लगी।

लोग रूपा की अर्थी तैयार कर ही रहे थे। तभी गाँव के एक आदमी की नजर उसके शरीर पर पड़ी। वह बोला, ‘‘ आश्चर्य है। कुछ देर पहले इसकी धड़कन बन्द हो गई थी। अब शरीर में हलचल.........

रूपा कुछ देर के बाद उठकर खड़ी हो गई। अब वह बदल गई थी। उसने गरीब और भूखे लोगों को खाना खिलाना शुरू कर दिया। वह लोगों की सहायता करने लगी। उसके व्यवहार में आए परिवर्तन से लोग आश्चर्य चकित थे।

(साभार : डॉ. उमेश चमोला)

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