केरन (नार्वेजियन कहानी) : अलेक्जेंडर कीलैंड
Karen (Norwegian Story in Hindi) : Alexander Kielland
करारुपर इन (inn) में एक समय केरन नाम की युवती थी। वह स्वयं अथितियों की सेवा करती थी क्योंकि मालकिन रसोई में बरतनों में लीन रहती थी। करारुपर इन में काफी लोग आते थे जब शरद् ऋतु की शामें अंधकारमय होती तो पड़ोसी इकट्ठे होकर गरम कमरे में बैठते और इच्छा भर कॉफी पीते थे। पर्यटक और घुमक्कड़ लोग भी, जो जुकाम से नीले हुए रहते थे, अपने पैर पटकते और गरम चीज की याचना करते थे जिससे वे अपने अगले पड़ाव पर पहुँच सकें।
केरन बिना जल्दी किए, चुपचाप इधर-उधर हर-एक को बारी-बारी परोसती जाती थी। वह छोटी और कोमल थी, केवल बच्ची, सच्ची और रक्षित, और युवा लोग उसकी ओर ध्यान नहीं देते थे, परंतु अपने पुराने ग्राहकों के लिए, जिनका इन में आना महत्त्वपूर्ण अवसर होता था, बहुत प्रिय थी। उनके लिए शीघ्रता से कॉफी बनाती और सात गुना गरम परोसती। जब वह नौकरों के साथ अतिथियों में घूमती तो भद्दी तरह से पोशाक पहने मोटे व्यक्ति एक ओर खड़े हो जाते और इसको जाने देते तथा कई इसे प्रशंसा से देखते। केरन की आँखों का रंग गहरा भूरा था। वह हर चीज देखती थी और दूर तक देखती थी। उसकी भौहें अद्भुत और विस्मित रूप से कमानीदार थीं। अनजाने लोग खयाल करते थे कि वह उनकी आज्ञा नहीं समझती थी, परंतु वह सबकी सुनती थी और कभी कोई गलती नहीं करती थी। उसका यह अपना ढंग था, भले ही वह दूर तक देखती, अथवा सुनती या प्रतीक्षा करती या स्वप्न देखती थी!
पछुवा हवा जोर से चल रही थी और पश्चिमी समुद्र की लंबी और भारी लहरों को उछाल दे रही थी। नमक, नमी और झाग को रेत पर फेंक रही थी, परंतु जब हवा करारुपर इन पहुँचती तो इसका जोर केवल अस्तबल के दरवाजे को चीरता या फिर उस दरवाजे को, जो अस्तबल और रसोई को मिलाता था। हवा का झोंका फटा और उस स्थान को भर दिया, छत से लटक रही लालटेनों को इधर-उधर झुलाया, साईस की टोपी उड़ाकर अँधेरे में फेंक दी, घोड़ों के कंबलों को उनके मुँह पर डाल दिया और अंत में एक सफेद मुरगी को उसके दड़बे से उठाकर पानी के टब में डाल दिया; मुरगी डर के मारे कुड़कुड़ करने लगी, साईस ने कसम खाई, चूजे कूकने लगे। रसोई धुएँ से भरा था। घोड़े बेचैन होकर अपने खुरों को पत्थरों पर मारकर चिनगारियाँ निकालने लगे। यहाँ तक कि बतखें, जो इकट्ठी होकर टर्रा रही थीं, नाँद के निकट जई डालने पर कुड़कुड़ करने लगीं और इस बीच लगातार हवा भयानक रूप से गरजती रही। अंत में दो आदमी इन के कमरे से निकले और अपनी चौड़ी पीठों से दरवाजे को धकेलने लगे जबकि उनके पाइपों से चिनगारियाँ उड़कर उनकी काली दाढियों पर गिर रहीं थीं। हर संभव नुकसान करने के बाद, हवा बड़े तालाब को पार करती हुई, समतल भूमि की ओर उड़ गई और यहाँ से आधा मील दूर जाती हुई डाक गाड़ी को हिला गई।
"करारुपर इनके लिए हमेशा कितनी जल्दी करता है।" घुड़सवार एंडरस हाँफते घोड़े को चाबुक मारते हुए बड़बड़ाया। प्रबंधकर्ता बीस बार खिड़की को नीचा करके उसे पुकार चुका था। पहले तो कॉफी के प्याले के लिए मित्रतापूर्ण निमंत्रण था, फिर धीरे-धीरे अच्छा स्वभाव लुप्त हो गया। अंत में, खिड़की धड़ाम से नीचे गिरी तथा चालक और घोड़ों पर सांत्वनारहित टिप्पणी की गई।
हवा भूमि पर नीची चल रही थी और हीदर झाडियों में से लंबी, अजीब आहों की मंद ध्वनि आ रही थी। चाँद पूरा था, परंतु गहरे बादल उसकी रोशनी को ढक रहे थे। करारुपर इन के पीछे सड़ी लकड़ी के ढेरों और गहरे कपटी गड्ढों से ढकी दलदल थी। हीदर झाडियों के बीचोबीच घास की एक पट्टी थी जो रास्ते की तरह दिखाई देती थी, परंतु यह रास्ता नहीं था क्योंकि औरों से अधिक गहरे और पानी से भरे गड्ढे के किनारे जाकर समाप्त हो जाता था। घास में एक चमकीली लोमड़ी छिपी हुई बैठी प्रतीक्षा कर रही थी और समतल भूमि पर एक खरगोश आराम से उछल-कूद रहा था। लोमड़ी को विश्वास था कि खरगोश शाम को देर तक चक्कर नहीं लगाएगा। उसने सावधान नाक को फैलाया और आ रही हवा की दिशा में सूंघा। निरीक्षण के लिए स्थान ढूँढ़ा तो विचार किया कि लोमड़ियाँ हमेशा कितनी बुद्धिमान् रही हैं और खरगोश कितने मूर्ख!
इन में गैर-मामूली हलचल हुई! कुछ पर्यटकों ने भूने खरगोश का ऑर्डर दिया था। मालिक एक नीलामी में थिस्टेड गया था और उसकी पत्नी रसोई का दायित्व निभाने की आदी थी। अब दुर्भाग्य से ऐसा हुआ कि कारोबार के बारे में वकील मालिक से बात करना चाहता था और चूँकि वह घर पर नहीं था। अतः अच्छी औरत को उसका लंबा भाषण सुनना पड़ा और एक जरूरी पत्र लेना पड़ा—इस प्रक्रिया ने उसकी शांति भंग कर दी। एक अजनबी स्टोव के पास नाविक की तेलपुती पोशाक पहने सोडावाटर की बोतल की प्रतीक्षा कर रहा था। दो मछली बेचनेवाले तीन बार ब्रांडी का ऑर्डर दे चुके थे। अस्तबल का लड़का खाली लालटेन थामे मोमबत्ती की राह देख रहा था और एक लंबा तथा भद्दा किसान ललचाई आँखों से केरन का पीछा कर रहा था–केरन को उसको बकाया रुपए देना था। केरन बिना जल्दी और गलती किए आई। कोई कठिनाई से अनुमान लगा सकता है कि इतनी चीजों को वह तुरंत कैसे निभा सकती थी। बड़ी आँखें और कमानीदार भौंहें हैरानी और आशाओं से भरी थीं। छोटा सुंदर सिर सीधा और शांत था। यदि वह कोई गलती नहीं करती थी तो अपने विचारों को भी एकत्र रखती थी। उसकी नीली ऊनी पोशाक उसके लिए छोटी थी। तंग गलेबंद ने बालों के नीचे उसके मांस पर झुर्रियाँ डाल दी थीं। "युवती की चमड़ी गोरी है।'' मछली बेचनेवालों में से एक ने दूसरे से कहा। वे युवा थे और केरन की बाबत समझदारों की तरह बोले।
किसी ने खिड़की के पास खड़े, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, "आज रात डाक जल्दी आ गई है।" यह पैदलपथ पर हड़बड़ाई, द्वार खोल दिए गए और हवा ने स्टोव से निकले धुएँ को उड़ा दिया। ज्यों ही प्रबंधक ने दरवाजे पर कदम रखा, केरन रसोई से निकली और हृदय से 'शुभ प्रभात' कहा! वह लंबा, सुंदर, काली आँखोंवाला तथा कुरकुरी भूरी दाढ़ीवाला व्यक्ति था और उसके धुंघराले बालों ने उसके छोटे सिर को ढका हुआ था। सुंदर लाल शाही डेनिश कपड़े से बना उसका ओढ़ना लंबा और भारी था और कंधे से काली फर लटक रही थी। मेज के ऊपर दीवार से लटके मोम के दो दीयों की सारी मध्यम रोशनी उसी श्रेष्ठ और लाल रंग के स्थान पर केंद्रित हो रही थी और बाकी काले और भूरे स्थान को काला और भूरा रहने के लिए छोड़ दिया था। सुंदर और काले, घुघराले बालोंवाले लंबे व्यक्ति के लाल ओढ़ने की परतें तेज और अद्भुत रंग के साथ चमक रही थीं।
केरन अपने वेटर के साथ शीघ्रता से रसोई में आई। जब वह एक अतिथि से दूसरे के पास गई, उसने अपना सिर झुकाया हुआ था ताकि कोई उसका चेहरा न देख सके। उसने मछली बेचनेवालों के सामने भुना खरगोश रखा और व्यापारी पर्यटक के लिए, जो साथवाले कमरे में बैठा था, सोडावाटर की बोतल लाई। उत्सुक किसान को चरबी की बत्ती दी और स्टोव के पास खड़े अजनबी को बकाया रुपए हाथ में थमाया।
मालकिन बड़ी निराश थी क्योंकि रसोई में प्रत्येक वस्तु उथल-पुथल कर रही थी। उससे वकील का पत्र गुम हो गया था और यहाँ भारी गड़बड़ी मची थी। पर्यटक जोर से घंटी बजाकर मेज को पीट रहा था। मछली बेचनेवाले सामने रखे खरगोश को देखकर इतने हँसे कि अधमरे हो गए। व्याकुल किसान ने मालकिन के कंधे पर मोमबत्ती से थपथपाया और अपने आपको पेरु पक्षी की तरह फुला लिया।
इस सारी उन्मत्त व्याकुलता में केरन गायब हो चुकी थी। घुड़सवार एंडरस चालक के स्थान पर बैठा था। अस्तबल का लड़का द्वार खोलने को तैयार था। डाकगाड़ी में बैठे पर्यटक घोड़ों की तरह बैचेन हो रहे थे, भले ही उनके देखने के लिए कोई प्रीतिकर वस्तु नहीं थी। हवा अब भी अस्तबल से सीटी बजाती हुई खड़खड़ा रही थी। अंत में प्रबंधक, जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे, आया। जब उसने गाड़ी में प्रवेश किया, उसका ओढ़ना उसकी बाँह पर था। उसने विनम्र शब्दों में देरी के लिए क्षमा माँगी। ज्यों ही उसने अपना स्थान ग्रहण किया, वह अपने ओढ़ने को देखकर अपने आप पर हँसा। द्वार बंद कर दिया गया और डाकगाड़ी चल पड़ी। एंडरस ने घोड़ों को नरमी से चलाया। अब जल्दी की कोई जरूरत नहीं थी। समय-समय पर उसने कपटपूर्वक प्रबंधक की ओर देखा जो अब भी अपने आपपर हँस रहा था जबकि हवा उसके बालों को परेशान कर रही थी। घडसवार भी हँस रहा था। उसे कुछ संदेह हुआ। एक मोड़ तक हवा ने गाड़ी का पीछा किया, फिर हीदर झाडियों में नि:श्वास भरती हुई समतल भूमि की ओर चली गई।
लोमड़ी अपने स्थान पर लेटी हुई थी। अब सबकुछ तैयार था; खरगोश भी जल्दी आने वाला था। दूर तक इन में शांति स्थापित हो गई थी। उत्तेजित किसान को उसकी बत्ती से निजात मिल गई थी, वह बकाया ले चुका था; पर्यटक अपना खरगोश चट कर चुके थे। मालकिन ने थोड़ी शिकायत की, परंतु केरन को दोष नहीं दिया। संसार में किसी ने भी केरन को बुरा-भला नहीं कहा था। चुपचाप अचेतावस्था में वह एक से दूसरे के पास शीघ्रता से गई और स्वच्छ संतुष्टि, जो हमेशा उसके कदमों का पीछा करती थी, इन के आधे अँधेरे बड़े कमरे में फैल गई।
दोनों मछली बेचनेवाले, जिन्होंने पहले ऑर्डर के बाद शराब और कॉफी के लिए दूसरा ऑर्डर दिया था, उसके साथ विशेषकर बहुत खुश थे। उसके पीले गाल पर लालिमा थी, होंठों पर मुसकराहट की टिमटिमाहट थी और एक बार जब अपनी आँखें उठाती तो उनकी (आँखों की) रोशनी चकाचौंध कर देती थी। जब उसे आभास होता कि पुरुषों की आँखें उसे ताक रही हैं तो अलमारी से चम्मच लाने का बहाना करके दूसरे कमरे में चली जाती थी।
"क्या तुमने प्रबंधक को देखा?" उनमें से एक ने पूछा।
"नहीं, तब तक वह बाहर चला गया! वह बहुत जल्दी चला गया।" भुने खरगोश से भरे मुँह से दूसरे ने उत्तर दिया।
"बहुत सुंदर व्यक्ति! मैं उसके विवाह पर गया था।"
"तो उसका विवाह हो चुका है?"
"हाँ, उसकी पत्नी अलस्ट्रप के जमींदार की बेटी है और विवाह की रात, मैं वहाँ गया था। मजेदार समय था, मैं तुम्हें विश्वास से कहता हूँ। मेरा विश्वास है उनके दो बच्चे हैं।"
केरन ने चम्मच गिरा दिए और बाहर चली गई। अपने पीछे इन में कही गई बातों को उसने नहीं सुना। वह सेहन पार करके अपने कमरे में चली गई और यंत्र की तरह अपना बिस्तर बिछाने लगी। उसने अँधेरे को घूरा; अपने हाथों से सिर को दबाया, छाती को दबाया; वह कराही। वह कुछ समय भी आराम के लिए नहीं निकाल पा रही थीकुछ भी नहीं! अपनी मालकिन की शिकायत भरी आवाज को उसने सुना—"केरन, प्यारी केरन!" वह सेहन पार करके इनके पीछे दलदल की ओर दौड़ गई।
चक्कर खाती हुई घास की पट्टी आधी रोशनी में नजर नहीं आ रही थी, परंतु वह रास्ता नहीं था। कोई भी इसपर चलने का साहस नहीं करता था, क्योंकि वह एकाएक बड़े तालाब के किनारे की ओर जाता था। खरगोश ने अपने कदम तेज कर दिए। उसने खड़खड़ाहट सुनी और लंबी छलाँग लगाई, जैसे अपने बचाव के लिए पागल हो बिना यह जाने कि वह किस चीज से डर रहा है, समतल भूमि की ओर भाग गया। लोमड़ी ने अपनी तेज नाक फैलाई और हैरानी से खरमोश की ओर देखा। उसने कुछ नहीं सुना। अपनी जाति की स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण वह गड्ढे में दुबका पड़ा रहा–उसने कोई गलती नहीं की थी। वह खरगोश की साहसी क्रिया को समझ नहीं पाई। वह देर तक सिर को बढ़ाए लज्जित शरीर के साथ खड़ा रहा। उसकी घनी पूँछ हीदर झाड़ियों से ढकी हुई थी और वह हैरान हुआ कि लोमडियाँ इतनी सुस्त हो गई हैं अथवा खरगोश बुद्धिमान् हो गए हैं! जब पश्चिमी हवा अपना लंबा रास्ता तय कर चुकी तो उत्तरी हवा में बदल गई, फिर पूरब की हवा बनकर दक्षिणी हवा का रूप ले लिया और पुनः सागर पर पश्चिमी हवा बन गई तथा अजीब निःश्वासों के साथ हीदर झाडियों से होती हुई बालू के टीलों पर छा गई!
परंतु करारुपर इन में दो हैरान-भूरी आँखों, एक हलके नीले ऊनी चोगे की, जो छोटा पड़ गया हो, जरूरत थी और मालकिन पहले से अधिक शिकायत करती थी। वह बिलकुल समझ नहीं पाई। घुड़सवार एंडरस और एक दूसरे व्यक्ति के सिवा कोई भी समझ नहीं पाया।