करामाती भाले : इथियोपिया की लोक-कथा
Karamati Bhaale : Ethiopia Folk Tale
बहुत समय पुरानी बात है कि एक बार इथियोपिया में एक बहुत ही ताकतवर आदमी रहता था। वह भाला बहुत अच्छा फेंकता था।
उसका निशाना अचूक था और वह जहाँ भी भाला फेंकना चाहता था उसका भाला भी वहीं जा कर लगता था। सब लोगों को उसकी यह होशियारी देख कर बहुत अचरज होता था।
पर उसके इस अचूक निशाने से नुकसान भी कई थे इसलिये उसके रिश्तेदार तथा गाँव के लोग उससे बहुत दुखी थे। "तुम इस धन्धे को छोड़ते क्यों नहीं?" "तुम ऐसा क्यों करते हो?" आदि आदि सवाल उससे पूछे जाते पर वह कहता "मैं मजबूर हूँ यह मेरे हाथ में नहीं है।"
पर वह मजबूर क्यों था और वह उसको क्यों नहीं छोड़ सकता था यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था। जब किसी को कुछ नहीं सूझा तो एक दिन सबने मिल कर निश्चय किया कि उसकी यह आदत छुड़ायी जाये, पर कैसे? इस बारे में वे किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाये।
वह आदमी गाँव वालों को चिन्ता में देख कर खुद भी बहुत दुखी था सो उसने भी एक निश्चय किया। एक दिन उसने अपने सभी गाँव वालों को बुलाया और बोला - "मैं अपनी मरजी से किसी को नहीं मारता यह तो मेरी और उस मरने वाले की तकदीर है।
अगर आप सब लोग इस बात से इतने दुखी हैं कि मैं ऐसा क्यों करता हूँ तो मैं ऐसा करता हूँ कि अभी आपके सामने ही मैं अपनी झोंपड़ी में से ये सारे भाले निकाल कर फेंक देता हूँ और मैं फिर कभी भाला नहीं फेंकूँगा।"
ऐसा कह कर वह अपनी झोंपड़ी में गया और सबके सामने अपने सारे भाले ला कर बाहर फेंक दिये और उन भालों से बोला - "ओ भालों, आज मैं तुम सबको बाहर फेंकता हूँ। तुम मेरे हाथ से चले जाओ और मेरी नजरों से दूर हो जाओ।"
इत्तफाक से वहीं उसकी झोंपड़ी की चहारदीवारी के बाहर ही एक चोर खड़ा था जो उस आदमी के घर में चोरी करने के इरादे से आया था। जब उस आदमी ने अपने भाले अपनी झोंपड़ी से बाहर फेंके तो वे सारे के सारे भाले उसके शरीर में जा लगे और वह मर गया।
अगले दिन जब उस आदमी ने चोर की लाश देखी तो गाँव वालों को बुलाया और कहा - "देखिये, ये वही भाले हैं जिनको मैंने कल आपके सामने अपनी झोंपड़ी से बाहर फेंका था और यह आदमी बिना मेरे मारे ही मेरे भालों से मर गया है। अब आप ही बताइये कि मैं क्या करूँ।"
ऐसा कह कर उसने उस चोर की लाश उनको दिखायी तो गाँव के सभी लोग आश्चर्य में डूब गये।
गाँव वालों ने यह सब देख कर उससे कहा - "बेटा, तुम ठीक कहते थे। ऐसा लगता है कि यह तो तुमको वरदान है। अब हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। तुम अपने भाले अपने घर ले जाओ और सुख से रहो।" और वे सब अपने अपने घर चले गये।
वह आदमी भी अपने भाले अपने घर ले आया। इस घटना के बाद फिर कभी किसी ने उससे भालों के बारे में कोई शिकायत नहीं की।
(साभार : सुषमा गुप्ता)