कंधल : तमिल लोक-कथा

Kandhal : Lok-Katha (Tamil)

(कंधल तमिलनाडु का राज्य पृष्प है)

बहुत समय पहले की बात हैं। एक नेक और परोपकारी राजा था। वह हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के कार्य करता रहता था। अतः प्रजा उससे बहुत खुश रहती थी। राजा बाढ़, अकाल, महामारी आदि के समय खजाने का मुँह खोल देता था। ऐसे समय में वह प्रजा का लगान माफ कर देता था और अपनी ओर से प्रजाजनों को अनाज, कपड़ा तथा इसी प्रकार की आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ देकर उनकी सहायता करता था। ईश्वर की कृपा और राजा के सद्प्रयासों के कारण राज्य में लम्बे समय से कोई दैवी विपत्ति नहीं आई थी, अतः राज्य की प्रजा दिन-दूनी, रात चौगुनी प्रगति कर रही थी।

राजा में एक गुण और भी था। वह बुद्धिमान, ज्ञानी और साधु पुरुषों का बड़ा सम्मान करता था और उनकी सुख-सुविधाओं का पूरा-पूरा ध्यान रखता था। उसके राज्य में बहुत बड़ा जंगल भी धा। इस जंगल में अनेक ऋषि-मुनियों के आश्रम भी थे। ये ऋषि-मुनि राज्य के सच्चे हितैषी भी थे। ये लोग राजपरिवार के साथ ही प्रजाजनों के होनहार बच्चों को अपने आश्रम में रखकर शिक्षा देते थे और शेष समय में तप करते थे। सभी ऋषि-मुनि राजा से बहुत प्रसन्‍न रहते थे और ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि नेक राजा और उसका राज्य सभी प्रकार के दैवी प्रकोपों से बचा रहे और खूब फूले-फले ।

नेक राजा के पड़ोस में भी एक राज्य था। इस राज्य का राजा बहुत दुष्ट, चालाक और अत्याचारी था। वह अपनी प्रजा को तरह-तरह से सताया करता था। महामारी, अकाल, बाढ़ जैसी दैवी आपदाओं के समय प्रजा की सहायता करना तो दूर की बात, वह उनसे पूरा-पूरा लगान वसूल करता था और न दे पाने की स्थिति में कोड़ों से मारता था। दुष्ट राजा के राज्य में लुटेरे और दुष्कर्म करनेवाले खुलेआम घूमते थे। उसके राज्य में स्त्रियों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं थी। अतः चारों ओर व्यभिचार फैला हुआ था। ऋषि-मुनियों और साधु-सन्‍तों ने उसका राज्य न जाने कब का छोड़ दिया था।

दुष्ट राजा में सभी दुर्गुण थे। वह हमेशा बीमार और परेशान रहता था। किन्तु उसे अपनी परेशानी की कोई चिन्ता नहीं थी। वह तो हमेशा नेक राजा और उसकी प्रजा की खुशहाली से चिन्तित रहता था। दुष्ट राजा हमेशा ऐसे प्रयास करता रहता था, जिससे नेक राजा और उसकी प्रजा को कष्ट हो। वह कभी अपने राज्य के अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को नेक राजा के राज्य में भेजकर लूट और चोरी कराता तो कभी मवेशी छोड़कर उसके राज्य की फसलें नष्ट करवा देता। लेकिन नेक राजा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसके अपने सैनिक दुष्ट राजा के अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को पकड़कर बंदीगृह में डाल देते और मवेशियों को पकड़कर जरूरतमन्द लोगों को दे देते।

इस प्रकार दुष्ट राजा नेक राजा की प्रजा और नेक राजा को परेशान करने के लिए अनेक प्रयास कर चुका था। लेकिन अभी तक के उसके सारे प्रयास बेकार गए थे। एक बार दुष्ट राजा ने नेक राजा के राज्य पर आक्रमण करने का विचार भी बनाया, लेकिन वह इसके लिए हिम्मत नहीं जुटा पाया। दुष्ट राजा की प्रजा उससे डरती अवश्य थी, लेकिन मन-ही-मन उससे घृणा करती थी। उसके राज्य के कर्मचारी और सैनिक भी विश्वास के नहीं थे। अतः दुष्ट राजा ने नेक राजा पर आक्रमण करने का विचार अपने मन से हमेशा के लिए निकाल दिया। लेकिन वह नेक राजा के राज्य को हड़पने का विचार अपने मन से कभी नहीं निकाल सका। इसके लिए उसे एक सुअवसर की प्रतीक्षा थी।

इधर नेक राजा बहुत बूढ़ा हो गया था। अब उससे राज-काज नहीं सँभलता था। नेक राजा के एक बेटा था। राजकुमार अपने पिता के समान नेक और परोपकारी था। उसकी आयु बीस वर्ष की हो चुकी थी। उसने अपने राज्य के ज्ञानी-ध्यानी, ऋषियों-मुनियों से सभी प्रकार की विद्याएँ सीख ली थीं और राज्य के सभी कार्य कुशलतापूर्वक करने योग्य हो गया था।

एक बार नेक राजा बीमार पड़ा। उसकी बीमारी बहुत गम्भीर थी। अतः उसके बचने की कोई आशा नहीं थी। राज्य भर के हकीमों और वैद्यों ने उसे देखा और उसका इलाज किया। किन्तु सफलता नहीं मिली और एक दिन उसकी मृत्यु हो गई।

नेक राजा के मरने के बाद उसके बेटे को राजा बनाया गया। नया राजा सभी प्रकार से नेक, परोपकारी और प्रजा का हितैषी था। अतः किसी को कोई परेशानी नहीं हुई और राज्य का कार्य पहले की ही तरह आराम से चलता रहा।

नए राजा का अभी तक विवाह नहीं हुआ था। नेक राजा ने सोचा था कि वह राजकुमार की शिक्षा पूरी होते ही किसी अच्छी, सुन्दर, सुशील राजकुमारी से उसका विवाह कर देगा और उसे राज-काज सौंप देगा। किन्तु राजकुमार की शिक्षा पूरी होते ही वह गम्भीर रूप से बीमार हो गया और मर गया। राजकुमार की माँ बहुत सीधी और सरल थी। फिर भी उसने राज्य के कर्मचारियों की सहायता से राजकुमार के लिए राजकुमारी की खोज आरम्भ कर दी।

दुष्ट राजा को भी यह समाचार मिल गया कि नेक राजा के विवाह के लिए एक राजकुमारी की खोज की जा रही है। वह ऐसे ही अवसर की प्रतीक्षा में था। उसके एक बेटी थी। दुष्ट राजा ने अपनी बेटी और नए राजा के विषय में बड़ी देर तक सोच-विचार किया और फिर एक भयानक निर्णय लिया-अपनी बेटी को विषकन्या बनाने का निर्णय ।

दुष्ट राजा ने अपना निर्णय किसी को नहीं बताया। उसने यह बात अपनी रानी और राजकुमारी को भी नहीं बताई।

दुष्ट राजा ने अपने एक विश्वासपात्र गुप्तचर को बुलाया और उसके साथ गुप्तचर विभाग के प्रमुख के पास आ पहुँचा ।

दुष्ट राजा के गुप्तचर विभाग का प्रमुख एक वृद्ध आदमी था। वह नगर के बाहर जंगल में एक खंडहर के नीचे बने शानदार तहखाने में रहता था। इस खंडहर और इसके नीचे बने तहखाने की जानकारी दुष्ट राजा और उसके कुछ विश्वासपात्र लोगों को छोड़कर किसी को नहीं थी। पूरे राज्य में इस खंडहर को अभिशप्त समझा जाता धा। लोगों का विश्वास था कि यहाँ दुष्ट आत्माएँ रहती हैं, जो जीवित व्यक्ति का खून पीती हैं। इस खंडहर के पास दिन या रात किसी भी समय, जो व्यक्ति गया; वह मारा गया। अतः लोगों ने खंडहर की ओर जाना छोड़ दिया था।

दुष्ट राजा ने खंडहर के नीचे बने तहखाने में पहुँचकर वृद्ध आदमी से बात की। उसने उसे अपनी योजना के बारे में बताया। उसने गुप्तचर विभाग के प्रमुख को बताया कि वह अपनी राजकुमारी को विषकन्या बनाना चाहता है। उसने अपनी योजना को स्पष्ट करते हुए कहा कि वह नए राजा के पास जाकर पहले अपनी गलतियों के लिए क्षमा माँगेगा और इसके बाद अपनी बेटी के विवाह का प्रस्ताव रखेगा। राजकुमार बहुत नेक और दयावान है, अतः वह उसे माफ कर देगा। इसके साथ ही रूपवान होने के कारण वह उसकी बेटी से विवाह भी कर लेगा। इस प्रकार नए राजा की पत्नी एक विषकन्या बन जाएगी। इस विषकन्या के विष के प्रभाव से नया राजा अगले दिन की सुबह नहीं देख पाएगा। इसी समय दुष्ट राजा नए राजा के राज्य पर आक्रमण कर देगा और उसे अपने राज्य में मिला लेगा।

गुप्तचर विभाग के प्रमुख व्यक्ति के मन में थोड़ी इंसानियत बची हुई थी। उसने राजा को समझाया कि वह इस कार्य के लिए अपनी बेटी की जिन्दगी न बरबाद करे। लेकिन राजा ने उसकी बात नहीं मानी। राजा का कहना था कि उसके राज्य में कोई सुन्दर लड़की नहीं है, और यदि कोई सुन्दर लड़की मिल भी जाए तो उसे विषकन्या बनाने से कोई लाभ नहीं होगा। क्योंकि नया राजा किसी राजकुमारी से विवाह करेगा, साधारण घर की लड़की से नहीं।

गुप्तचर विभाग के प्रमुख ने राजा को अनेक सुझाव दिए। लेकिन राजा ने उसका एक भी सुझाव नहीं माना और अपनी जिद्द पर अड़ा रहा। अन्त में विवश होकर वृद्ध गुप्तचर प्रमुख राजकुमारी को विष कन्या बनाने के लिए तैयार हो गया। दुष्ट राजा खुश हो गया और अपने महल वापस आ गया।

दुष्ट राजा ने अगले दिन अर्धरात्रि के समय अपनी बेटी को बुलाया और उसे अपने साथ चलने को कहा। उसने राजकुमारी को केवल इतना बताया कि वह उसे एक गुप्त स्थान पर ले जा रहा है, जहाँ उसे कुछ समय तक रहना होगा। यहाँ उसका एक विशेष ढंग से उपचार किया जाएगा। इससे उसके रूप में निखार आ जाएगा और वह अधिक सुन्दर हो जाएगी। बेचारी राजकुमारी सुन्दरता बढ़ाने के चक्कर में दुष्ट राजा की बातों में आ गई और उसके साथ महल के एक गुप्त मार्ग से चल पड़ी । इस समय दुष्ट राजा और राजकुमारी के साथ कोई सैनिक अथवा गुप्तचर नहीं था।

दुष्ट राजा अपने घोड़े को रात के अँधेरे में बड़ी तेजी से दौड़ा रहा था। उसके पीछे उसकी बेटी बैठी थी। दुष्ट राजा ने नगर की सीमा पार की और जंगल में आ गया। वह कुछ समय तक एक जंगली रास्ते पर आगे बढ़ता गया और इसके बाद उस खंडहर तक पहुँचा, जहाँ प्रधान गुप्तचर रहता था।

प्रधान गुप्तचर को दुष्ट राजा की योजना की जानकारी थी। वह पहले से ही उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने दुष्ट राजा का स्वागत किया और राजकुमारी सहित उसे खंडहर के नीचे बने तहखाने में ले गया।

राजकुमारी बहुत भयभीत थी। वह दुष्ट राजा से बहुत डरती थी। अतः कुछ भी पूछने का साहस नहीं कर पा रही थी।

दुष्ट राजा ने प्रधान गुप्तवर को अलग ले जाकर उससे कुछ बात की और फिर राजकुमारी को वहीं छोड़कर महल लौट आया।

वृद्ध प्रधान गुप्तचर ने राजकुमारी के साथ अपनी बेटी जैसा व्यवहार किया। उसने उसे थोड़ा-बहुत खाने के लिए दिया और फिर विशेष रूप से तैयार किए गए एक कक्ष में उसे सुला दिया।

अगले दिन से राजकुमारी को विषकन्या बनाने का काम आरम्भ हो गया । उसे सबसे पहले साधारण प्रकार के विष दिए गए। इसके बाद धीरे-धीरे तेज असरवाले विष दिए जाने लगे और इनकी मात्रा भी बढ़ती गई। राजकुमारी को आरम्भ में विष लेने के बाद बड़ी बेचैनी होती थी। उसके शरीर में आग सी पैदा हो जाती थी और उसे लगता था कि उसका सिर फट जाएगा । कई बार तो उसे विष लेने के बाद उल्टियाँ भी हुईं। लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य होता गया और कुछ समय बाद विष लेना राजकुमारी की आदत बन गई। उसे विष मिलने में थोड़ा-सा भी विलम्ब हो जाता तो वह बेचैन हो उठती।

यह सब लगभग आठ माह तक चलता रहा। इसके बाद विषकन्या तैयार करने का दूसरा चरण आरम्भ हुआ। राजकुमारी के लिए खतरनाक घातक विषवाले कोबरा साँप मंगाए गए तथा इनका विष निकालकर उसे दिया जाने लगा। यह क्रम लगभग दो माह तक चला। राजकुमारी इतनी विषैली हो चुकी थी कि उस पर कोबरा साँप के विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।

एक दिन एक कोबरा को राजकुमारी के सामने लाया गया। प्रातःकाल का समय था। राजकुमारी कोबरा को देखकर पहले तो कुछ डरी, लेकिन कुछ ही पलों में सामान्य हो गई। अब वृद्ध प्रधान गुप्तचर के कहने पर उसने अपना मुँह खोला और जीभ बाहर निकाल दी। इसी क्षण कोबरा साँप ने उसकी जीभ पर पूरी ताकत से फन पटककर डसा। कोबरा साँप को शायद पहले से ही जीभ पर डसने का अभ्यास कराया गया था।

राजकुमारी के शरीर में आग-सी जल उठी और उसका सिर फटने लगा। वह लहराई और जमीन पर लेट गई। वृद्ध प्रधान गुप्तचर ने उसे एक बिस्तर पर लिटाया और पास खड़ा उसे देखता रहा।

राजकुमारी अचेत नहीं थी। वह कोबरा के विष के नशे में थी। आज उसे बहुत आनन्द आ रहा था। दुनिया को भयानक दिखाई देनेवाला कोबरा उसे बड़ा प्यारा लग रहा था। वह नशे की स्थिति में दोनों आँखें बन्द किए कोबरे के साथ खेलती रही। वह कोबरे को पकड़ती, कोबरा उसे काटता; वह कोबरे को छोड़ देती | राजकुमारी यह स्वप्न पूरे दिन और पूरी रात देखती रही।

अगले दिन जब राजकुमारी उठी तो वह सामान्य स्थिति में थी। वह स्नान करके वृद्ध प्रधान गुप्तचर के पास पहुँची। वहाँ कोबरा पहले से मौजूद था। पिछले दिन के समान कोबरा ने राजकुमारी की जीभ पर पुनः डसा। राजकुमारी पहले की तरह नशे में अचेत होकर गिर पड़ी । लेकिन इस बार उस पर कोबरे के विष का कम प्रभाव पड़ा और रात होते-होते वह होश में आ गई। कोबरे का विष लेना धीरे-धीरे उसकी आदत बन गई।

यह क्रम दो माह तक चलता रहा। इसके बाद राजकुमारी के सौन्दर्यवर्धन के प्रयास आरम्भ हो गए। उसके लिए तरह-तरह की जड़ी-बूटियों के लेप तैयार किए गए और मानव रक्‍त तथा गधी के दूध की व्यवस्था की गई। राजकुमारी को प्रतिदिन पहले जड़ी-बूटियों का लेप लगाया जाता था। इसके बाद मानव रक्त से और फिर गधी के दूध से स्नान कराया जाता था तथा अन्त में कोबरे से डसवाकर सुला दिया जाता था। राजकुमारी पर अब कोबरे के विष का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता था। वह एक-दो घंटे कोबरे के विष के नशे में रहती थी और फिर सामान्य हो जाती थी। कुछ ही समय में यह स्थिति भी समाप्त हो गई और राजकुमारी कोबरे के साथ इस प्रकार खेलने लगी, मानो वह बच्चों का खिलौना हो।

राजकुमारी को खंडहर के नीचे बने आरामदायक तहखाने में रहते-रहते लगभग एक वर्ष हो चुका था। इस मध्य उसे विष लेने के साथ ही साथ और भी बहुत कुछ सिखाया गया था। उसे संगीत, गायन और नृत्य की शिक्षा दी गई, मदिरापान का भी अभ्यास कराया गया। इसके साथ ही उसे पुरुषों को सम्मोहित करने की कला का भी प्रशिक्षण दिया गया। इन सब चीजों ने राजकुमारी का पूरा जीवन ही बदल दिया था। राजकुमारी अब पहले जैसी राजकुमारी नहीं रह गई थी। अब उसका रूप और सौन्दर्य पहले से कई गुना बढ़ गया था तथा उसकी आँखों में गजब की सम्मोहन शक्ति पैदा हो गई थी। राजकुमारी की सुन्दर आँखें इस प्रकार की हो गई थीं कि यदि कोई उसकी आँखों में आँखें डाल देता तो फिर अपनी आँखें हटा नहीं सकता था। इतना ही नहीं, राजकुमारी की आँखों की सम्मोहन शक्ति इतनी प्रबल थी कि वह अपनी सम्मोहन शक्ति के बल पर धीरे-धीरे सामनेवाले व्यक्ति को नियन्त्रित कर सकती थी।

एक दिन राजकुमारी वृद्ध प्रधान गुप्तचर के कक्ष में बैठी कोबरे के विष की प्रतीक्षा कर रही थी। कोबरे को लाने में विलम्ब के कारण वह कुछ अशान्त-सी दिखाई दे रही थी। एक कोबरा साँप की कुछ दिन पहले मृत्यु हो गई थी तथा दूसरा कोबरा कुछ सुस्त दिखाई दे रहा था।

कुछ समय बाद एक सेविका कोबरा साँप लेकर आ गई । कोबरे को थैले से बाहर निकाला गया तथा राजकुमारी के मुँह के पास लाया गया। राजकुमारी ने कोबरे को देखते ही अपना मुँह खोल दिया था और जीभ बाहर निकाल ली थी। कोबरे ने राजकुमारी की ओर देखा। राजकुमारी की साँसें कोबरे के फन से टकराई और कोबरें ने अपना फन पीछे कर लिया। उसे देखकर ऐसा लग रहा था, मानो वह राजकुमारी से भयभीत हो।

इधर समय पर राजकुमारी को विष न मिलने के कारण उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वृद्ध प्रधान गुप्तचर और सेविका, जो कि स्वयं एक विषकन्या थी, ने कोबरे को उत्तेजित करने का बहुत प्रयास किया, किन्तु कोबरा टस से मस नहीं हुआ और उसने अपना फन नीचा कर लिया तथा भागने लगा।

कोबरे को भागता देखकर राजकुमारी की बेचैनी क्रोध में बदल गई। उसने दोनों हाथ बढ़ाकर कोबरे को पकड़ा और चबा डाला।
एक आश्चर्य हुआ! कोबरा तड़पा और मर गया।

पास खड़े प्रधान गुप्तचर ने यह देखा तो उसकी आँखों में चमक आ गई। राजकुमारी पूरी तरह से विषकन्या बन चुकी थी। उसके विष के प्रभाव से ही कोबरे की मौत हुई थी। वास्तव में राजकुमारी की साँसें तक इतनी घातक हो चुकी थीं कि उसके विष के प्रभाव से किसी की भी मौत हो सकती थी।
प्रधान गुप्तचर ने यह शुभ समाचार दुष्ट राजा के पास भेज दिया।

दुष्ट राजा ने जब यह सुखद समाचार सुना कि उसकी बेटी सफल विषकन्या बन गई है तो वह बहुत खुश हुआ। उसने समय बिलकुल नष्ट नहीं किया और अगले दिन मध्य रात्रि के समय प्रधान गुप्तचर के पास जाकर राजकुमारी को महल में ले आया। उसने एक दिन पहले ही राजकुमारी के महल में बड़े ही गुप्त ढंग से एक दर्जन कोबरा साँपों तथा अन्य आवश्यक चीजों की व्यवस्था कर दी थी।

दुष्ट राजा ने विषकन्या बनी राजकुमारी के विषय में किसी को नहीं बताया था। अतः राजकुमारी से किसी को भी नहीं मिलने दिया गया। रानी भी अपनी बेटी से नहीं मिल सकी। अभी तक उसने रानी तथा राज परिवार के सभी लोगों को यह बता रखा था कि राजकुमारी कुछ विशेष प्रकार के प्रशिक्षण लेने हेतु एक वर्ष के लिए दूर देश गई है। अब राजकुमारी के आ जाने के बाद उससे मिलने पर लगे प्रतिबन्ध से राजकुमारी की असलियत कभी भी खुल सकती थी और दुष्ट राजा की घातक योजना का भंडाफोड़ हो सकता था। अतः दुष्ट राजा ने शीघ्र ही राजकुमारी का विवाह करने का निश्चय किया।

दुष्ट राजा ने अपने विश्वासपात्र महामन्त्री और सेनापति को बुलाया तथा उनके साथ मन्त्रणा करने के बाद नए राजा के पास राजकुमारी के विवाह का सन्देश भेजा।

नया राजा अपने पिता के समान बड़ा नेक और सहृदय था। उसने दुष्ट राजा के महामन्त्री और सेनापति का स्वागत किया और विवाह प्रस्ताव पर चर्चा हेतु अपने राज्य के महामन्त्री, सेनापति, राजपुरोहित तथा अन्य गणमान्य नागरिकों को आमन्त्रित किया। सभी ने दुष्ट राजा की राजकुमारी के साथ विवाह के विषय को बड़ी गम्भीरता से लिया और इस पर खुलकर अपने मन की बात कहीं। इसमें दो प्रकार के मत थे। कुछ लोगों का विचार था कि दुष्ट राजा बहुत चालाक और मक्‍कार है। इस विवाह के पीछे निश्चित रूप से उसकी कोई चाल होगी। अतः इस विवाह से इनकार कर देना चाहिए।

दूसरी तरफ कुछ लोगों का मत था कि राजकुमारी बहुत सुन्दर है तथा इस विवाह से दो शत्रु राज्य एक-दूसरे के रिश्तेदार बन जाएँगे। अतः यह विवाह अवश्य किया जाना चाहिए। पूरे दिन इस विषय पर तरह-तरह की बातें होती रहीं, किन्तु कोई निर्णय नहीं हो सका। नया राजा नेक और सहदय था। किन्तु उसके पास अनुभव की कमी थी। अतः वह कुछ भी तय नहीं कर पा रहा था। अन्त में यह निर्णय किया गया कि पहले रानी दुष्ट राजा के पास जाएगी और राजकुमारी से स्वयं मिलेगी। इसके बाद विवाह के सम्बन्ध में विचार किया जाएगा।

नए राजा ने दुष्ट राजा के महामन्त्री और सेनापति को इस निर्णय से अवगत करा दिया और उन्हें सम्मान के साथ विदा कर दिया।

दुष्ट राजा को नए राजा का यह निर्णय अच्छा लगा। उसे राजकुमारी के गुणों के विषय में प्रधान गुप्तवर ने सब बता दिया था। अतः दुष्ट राजा अपनी बेटी को नए राजा की रानी माँ को दिखाने के लिए तैयार हो गया। उसने राजकुमारी के महल के पीछे के बाग को बहुत अच्छी तरह साफ कराया और उसकी सजावट कराई। इसके बाद नए राजा की रानी माँ को निमन्त्रण भेज दिया।

दुष्ट राजा ने रानी के आगमन पर राजकुमारी के महल के बगीचे में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें दुष्ट राजा के सीमित लोग और रानी माँ के अतिरिक्त कोई नहीं था। सजकुमारी ने इस आयोजन में एक गीत गाया, संगीत की एक धुन बजाई और नृत्य किया। रानी माँ राजकुमारी के रूप के साथ ही उसके गुणों पर भी मोहित हो गई और रिश्ता पक्का करके अपने राज्य में वापस लौट गई।

राजकुमारी और नए राजा का रिश्ता तय हो जाने के बाद दोनों राज्यों के राजपुरोहित एक-दूसरे से मिले और विवाह की तिथि निश्चित हो गई। राजकुमारी के विवाह के अवसर पर पूरे राज्य को सजाया गया और दुष्ट राजा के महल में शानदार प्रकाश की व्यवस्था की गई। यह पूरा कार्य दुष्ट राजा के महामन्त्री ने स्वयं अपनी देखरेख में कराया। विवाह के दिन दुष्ट राजा और राजकुमारी के राजमहल और उसके आसपास के भवन ऐसे जगमगा रहे थे मानो स्वर्ग स्वयं धरती पर उतर आया हो।

निर्धारित समय पर नए राजा के साथी आ गए और रात का अँधेरा होते-होते बारात तैयार हो गई। इस बारात में नए राजा के कुलगुरु भी आए थे। कुलगुरु बड़े दिव्य और चमत्कारी शक्तियों के स्वामी थे। वह जंगल में रहते थे और जप-तप करते थे। वह नए राजा के विशेष अनुरोध पर इस बारात में आए थे। कुलगुरु के पास एक पालतू भेड़िया था। वह भेड़िया उनके साथ हमेशा रहता धा। इस बारात में भी कुलगुरु का भेड़िया उनके साथ आया था।

नए राजा की बारात बड़ी शानदार थी। आगे-आगे नया राजा घोड़ी पर सवार था और उसके पीछे गुलाबी पगड़ी पहने सजे-धजे बाराती थे। दुष्ट राजा ने बारात का बड़े प्रसन्‍न मन से स्वागत किया। आज वह बहुत खुश धा। उसके मन की मुराद पूरी होनेवाली थी।

बारात के स्वागत सत्कार की व्यवस्था राजकुमारी के महल के बगीचे में की गई थी। यहाँ एक शानदार मंडप सजाया गया था। बारात के स्वागत सत्कार के बाद एक खुले मंच पर नए राजा को बैठाया गया। इसी समय वरमाला लिए हुए राजकमारी आ गई और दूल्हा बने नए राजा की ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगी।

नए राजा के पास उसके कुलगुरु अपने भेड़िये के साथ खड़े थे, जो बड़े ध्यान से राजकुमारी की ओर देख रहे थे। राजकुमारी दृष्टि नीचे किए थी। अतः कुलगुरु कुछ समझ नहीं पा रहे थे। किन्तु उन्हें राजकुमारी कुछ असामान्य दिखाई दे रही धी।

इसी समय राजकुमारी ने दृष्टि ऊपर उठाई। वह नए राजा को देखना चाहती थी, किन्तु उसकी दृष्टि नए राजा के स्थान पर कुलगुरु से जा टकराई।

राजकुमारी से दृष्टि मिलते ही कुलगुरु की समझ में सब कुछ आ गया। हमेशा शान्त रहनेवाले कुलगुरु के चेहरे पर कुछ क्षणों के लिए तनाव के लक्षण उभर आए। उन्होंने पल भर में ही एक कठोर निर्णय ले लिया।

राजकुमारी नए राजा के बहुत निकट आ गई थी और उन्हें जयमाला पहनाने जा रही थी।

अचानक कुलगुरु ने अपने भेड़िए को संकेत दिया। भेड़िया अपने स्थान से उछला और सीधा राजकुमारी की छाती पर सवार हो गया।

राजकुमारी भेड़िए के आक्रमण को सह न सकी और घबराकर जमीन पर गिर पड़ी। लेकिन वह तुरन्त सँमल गई। उसने जयमाला फेंकी और भेड़िए का सिर पकड़कर गर्दन अपने मुँह में भर ली। इसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसे देखनेवाले देखते ही रह गए।

भेड़िया जमीन पर पड़ा था और विष के प्रभाव से उसके मुँह से झाग निकल रहा था। वह कुछ पल तड़पा और फिर शान्त हो गया।

राजकुमारी अब पूरी तरह सँभल चुकी थी। उसे नए राजा के कुलगुरु पर बड़ा क्रोध आ रहा था। इसी कुलगुरु के भेड़िए ने उस पर आक्रमण किया था, अतः वह फुफकारती हुई कुलगुरु की ओर बढ़ी।

कुलगुरु के पास ही रक्षक खड़ा था। उसने कुलगुरु की जान खतरे में देखी तो वह राजकुमारी पर झपटा। राजकुमारी क्रोध में थी। उसने रक्षक का भी वही हाल किया, जो कुलगुरु के भेड़िए का किया था।

इन दो मौतों से दोनों पक्षों के लोगों की समझ में आ गया था कि राजकुमारी विषकन्या बन चुकी है। वे दुष्ट राजा की दुष्टता से पहले से ही परिचित थे। वे यह अच्छी तरह समझ गए कि दुष्ट राजा ने नए राजा के राज्य को हड़पने के लिए यह षड्यन्त्र रचा है।


इधर राजकुमारी का क्रोध सातवें आसमान पर आ पहुँचा था। उसने मुस्कराते हुए कुलगुरु की ओर देखा और उनकी ओर झपटी। तभी कुलगुरु का दाहिना हाथ ऊपर उठा और वह कुछ बुदबुदाए।
अचानक फिर एक चमत्कार हुआ और राजकुमारी झाड़ी जैसे एक छोटे से पौधे में बदल गई। इस पौधे पर सुन्दर फूल खिले हुए थे।
दुष्ट राजा और उसके साथियों ने राजकुमारी की यह हालत देखी तो उन्होंने रौद्र रूप धारण करके कुलगुरु पर आक्रमण कर दिया।

कुलगुरु अभी भी शान्त खड़े मुस्करा रहे थे। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से दुष्ट राजा और उसके साथियों को काँटेदार बबूल जैसे वृक्ष और झाड़ियों में बदल दिया।

इस प्रकार दुष्ट राजा और उसके साथियों का आतंक समाप्त हो गया। उसकी प्रजा ने सुख और चैन की साँस ली और कुलगुरु को प्रणाम करके उनसे अनुरोध किया कि नया राजा उनके राज्य की बागडोर भी सँभाल ले।

नया राजा अभी तक कुलगुरु के पास खड़ा विस्मय से सब देख रहा था। उसकी समझ में सब आ गया था। आज कुलगुरु ने उसके साथ ही उसके राज्य की भी रक्षा की थी। उसने कुलगुरु को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा से दुष्ट राजा के राज्य को अपने राज्य में शामिल कर लिया।

कहते हैं कि राजकुमारी के शरीर के सभी अंगों में विष ही विष भरा था, इसीलिए कंधल के सभी अंग-फूल, पत्तियाँ, जड़ आदि विषैले होते हैं।

(डॉ. परशुराम शुक्ल की पुस्तक 'भारत का राष्ट्रीय
पुष्प और राज्यों के राज्य पुष्प' से साभार)

  • तमिल कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां