काना राजा : असमिया लोक-कथा
Kana Raja : Lok-Katha (Assam)
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। वह बड़ा अहंकारी और क्रोधी था। वह छोटी-छोटी बातों में भी क्रोधित होता था। प्रजा के साथ वह कभी भी प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं करता था। वह क्रोध के वशीभूत होकर बड़े भयंकर काम किया करता था। वह छोटी-छोटी गलतियों के लिए भी अपनी प्रजा को मृत्युदंड देने में तनिक भी हिचकिचाता नहीं था। इसी कारण सभी प्रजा मन-ही-मन उसे घृणा करती थी।
एक दिन राजा अपने मंत्री और कई दरबारियों के साथ दूर कहीं घूमने निकला। चलते-चलते सभी एक जंगल के पास पहँचे। रास्ते के समीप एक लकड़हारा लकड़ी काट रहा था। दरबारियों ने उसे लकड़ी चोर के अभियोग में पकड़ लिया गया। उस समय राजा अपनी दाढ़ी-मूंछ पर ताव देते हुए एक पेड़ की छाँव में बैठा हुआ था। मंत्री और दरबारियों ने लकड़हारे के हाथ-पाँव बाँधकर उसे एक अभियुक्त के रूप में राजा के सामने उपस्थित किया। यह देखकर राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसके तन-बदन में जैसे आग लग गई हो। वह साँप की तरह फुफकारने लगा। गुस्से के मारे वह अपनी ही दाढ़ी-मूंछ के बाल उखाड़ने लगा। उसने लकड़हारे के जुर्म का दंड सुनाते हुए अपने मंत्री से कहा- “ले जाओ, इसे कुत्ते-सुअर की मौत मारो।”
फैसला सुनाते वक्त उसका गुस्सा पहले से चार गुना अधिक बढ़ गया था। वह अपने हाथों को पूरी ताकत से बेतरतीब ढंग से हवा में हिलाने लगा। इसी क्रम में उसने अपना दाहिना हाथ इतनी जोर से झटका कि उसका अंगूठा उसकी दाईं आँख में घुस गया। अंगूठा इतनी बुरी तरह घुस गया था कि राजा की आँख बाहर निकल आई। आँख लाल गड्ढे की तरह दिखने लगी। उससे बहती खून की धार देखकर मंत्री और दरबारी घबरा गए। उन्होंने तुरंत कविराज को बुलाया। कविराज के उपचार से रक्त-श्राव तो बंद हो गया लेकिन राजा अपनी दाहिनी आँख सदा के लिए गँवा बैठा। उस दिन से वह काना हो गया और काना राजा के नाम से पहचाने जाने लगा। बेरोक गुस्से के कारण राजा ने स्वयं ही अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली थी।
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)