कामधेनु : आदिवासी लोक-कथा
Kamdhenu : Adivasi Lok-Katha
प्राचीनकाल में एक मुनि हुए जिनका नाम था अष्टवक्र। उनके पास एक गाय थी जिसका नाम था कामधेनु। वह गाय सदैव दूध देती थी तथा उससे जो भी माँगा जाए वह भी प्रदान करती थी। ऐसी अनोखी गाय के बारे में जब इंद्र को पता चला तो उसे लगा कि ऐसी गाय तो उसके पास होनी चाहिए क्योंकि वह देवताओं का राजा है।
इंद्र अष्टवक्र के आश्रम में पहुँचा। उसने अष्टवक्र से कामधेनु माँगी तथा इस बात से आगाह कर दिया कि यदि वे शांतिपूर्वक गाय नहीं देंगे तो इंद्र गाय को बलपूर्वक ले जाएगा। यह सुनकर अष्टवक्र चिंतित हो उठे। वे इंद्र की शक्ति का सामना नहीं कर सकते थे। उन्हें कामधेनु से बहुत लगाव था। उन्होंने चिंतित दृष्टि से कामधेनु की ओर देखा तो कामधेनु ने उन्हें समझाया कि वे चिंता न करें और स्पष्ट मना कर दें। मुनि ने ऐसा ही किया।
मुनि अष्टवक्र का यह दुस्साहस देखकर इंद्र ने अपनी विशाल सेना बुला और युद्ध की दुंदुभि बजा दी। कामधेनु ने अपनी सींग से धरती पर प्रहार किया तो पाताल लोक से अनगिनत सेनाएँ निकल आई। फिर उसने अपनी पूँछ फटकारी तो अनेक गण निकल आए जो इंद्र की सेना पर टूट पड़े। कामधेनु ने नथुने फुलाकर फुँफकार भरी तो तेज़ हवाएँ चलने लगीं और इंद्र के सैनिकों के हथियार हवा उड़ने लगे।
अंततः इंद्र पराजित हुआ और उसने मुनि अष्टवक्र से क्षमा माँगी और वापस स्वर्गलोक चला गया।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)