कलंकित उपासना (कहानी) : धर्मवीर भारती

Kalankit Upasana (Hindi Story) : Dharamvir Bharati

मनुष्य ईश्वर से पूर्णता का वरदान माँगने गया ।

ईश्वर अपने कुटिल ओठ दबाकर मुसकराया और बोला- “मेरी उपासना करो, मैं तुम्हें पूर्णता का वरदान दूँगा।”

मनुष्य ने असीम श्रद्धा से पुलकित होकर भगवान के चरणों पर अपना रजत मस्तक रख दिया और देर तक उपासना करता रहा।

थोड़ी देर बाद मनुष्य ने सर उठाया और भगवान की ओर प्रार्थनाभरी निगाहों से देखा ।

भगवान ने अपनी नीलकमल सी पलकें उठायीं और मौत के रेशों से बुनी हुई मुसकराहट बिखेरकर मनुष्य के मस्तक पर लगी हुई अपनी चरण रज की ओर संकेत कर कहा – “देखो तुम्हारे मस्तक पर कलंक है। अभी तुम पूर्ण नहीं हो सकते, और उपासना करो।”

मनुष्य ने फिर चरणों पर सर रखा। चरणरज का चिन्ह और भी गहरा हो गया । उसने फिर सर उठाया ।

भगवान ने फिर कहा – “तुम्हारा कलंक तो और गहरा हो गया । "

उसने फिर पैरों पर सर रख दिया।

तब से आज तक उपासना की अनन्यता और कलंक की गम्भीरता का क्रम बदस्तूर जारी है।

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