काला साँप और अंडे : लाइबेरिया लोक-कथा

Kala Saamp Aur Ande : Liberia Folk Tale

मुर्गी चिल्लायी — “अरे मेरे अंडे? मेरा एक अंडा यहाँ नहीं है। कल यहाँ पर 12 अंडे थे और आज यहाँ पर केवल 11 ही अंडे हैं। कहाँ गया मेरा एक अंडा?”

वह अपने मुर्गे को ढूँढने के लिये अपने घर से बाहर निकली पर उसको इस बात का जरा सा भी अन्दाज नहीं था कि अगर वह वहाँ से गयी तो उसके और अंडे भी चोरी हो सकते हैं।

घर से दूर चोर अपनी छिपी हुई जगह से फिर से मुर्गी के जाने का इन्तजार कर रहा था सो जैसे ही मुर्गी ने फिर से अपना घर छोड़ा तो एक काला साँप धीरे से रेंग कर मुर्गी के घर के पास आया, अंडों की तरफ देखा और तुरन्त ही एक अंडा निगल लिया।

काला साँप अपने मन में मुस्कुराया कि उसकी यह तरकीब कितनी सादा सी थी और कितना अच्छा काम कर रही थी। उसने दूसरा अंडा निगला।

“मैं दूसरे अंडों के लिये फिर आऊँगा ओ मुर्गी। ” और एक हिस्स्स की आवाज के साथ वह वहाँ से खिसक गया। “दूसरे स्वादिष्ट खाने के लिये बहुत बहुुत धन्यवाद। ”

इस बीच में परेशान मुर्गी मुर्गे को ले कर अपने घर आ गयी।

वह मुर्गे से बोली — “सुनो जी, कोई मेरा अंडा क्यों चुराना चाहेगा?”

मुर्गा बोला — “क्या तुम्हें यकीन है कि तुमने अपने अंडे ठीक से गिने थे? ऐसा भी तो हो सकता है कि तुमको केवल ऐसा लगा हो कि तुमने 11 अंडे ही देखे। ”

मुर्गी का चेहरा देख कर मुर्गे को लगा कि उसको मुर्गी से ऐसा सवाल नहीं पूछना चाहिये था। मुर्गी ने मुर्गे की तरफ घूर कर देखा और बोली — “तुम जानते हो कि मुझे गिनना आता है। और तुम अपने आप ही देख लो कि मेरे घर में कितने अंडे रखे हैं। ”

सो मुर्गे ने मुर्गी के अंडे ज़ोर ज़ोर से गिनने शुरू किये — “ एक, दो, तीन , , ,” फिर वह रुक गया और उसने उनको ज़ोर ज़ोर से गिनना बन्द कर दिया तो मुर्गी ने पूछा — “क्यों क्या हुआ? क्या तुम अपनी गलती मानने से डरते हो?”

मुर्गा बोला — “नहीं, ऐसा नहीं है। पर यहाँ कुछ गड़बड़ जरूर है क्योंकि यहाँ तो केवल 9 ही अंडे हैं जबकि तुम कह रहीं थीं कि यहाँ 11 अंडे हैं। ”

मुर्गी चिल्लायी — “क्या कहा 9 अंडे? यह क्या हो रहा है? मेरे दो अंडे कहाँ गये? मेरे साथ ऐसा कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है?”

अगले कुछ दिन मुर्गी के लिये बहुत ही बुरे निकले क्योंकि वह हमेशा ही अपने बचे हुए 9 अंडों की चिन्ता करती रहती थी।

वह बहुत कोशिश करती कि वह हमेशा अपने अंडों के साथ ही रहे पर हमेशा तो ऐसा हो नहीं सकता था। कभी उसको खाना लाने के लिये जाना पड़ता था तो कभी अपने दूसरे बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ती थी।

वह किसी भी काम से अपने अंडों को छोड़ कर जाती तो उसके दूसरे अंडों के साथ भी वही होता जो पहले हुआ था। उसको एक या दो अंडे अपने घर में से गायब ही मिलते।

मुर्गी चिल्लायी — “लगता है कोई मुझे बराबर देख रहा है। क्योंकि जो भी मेरे अंडे चुरा रहा है उसको यह पता है कि मैं किस समय कहाँ हूँ। अब तो मेरे केवल तीन अंडे ही बचे हैं। ”

मुर्गे ने उसे तसल्ली देते हुए कहा — “हालाँकि मैं यह बात साबित नहीं कर सकता पर मुझे पूरा भरोसा है कि तुम्हारे अंडे जरूर काला साँप ही चुरा रहा है।

वह धीरज से तुमको देखता रहता है और जब तुम वहाँ नहीं होती हो तो वह उनको खा लेता है। और यह बात तो हम सब जानते हैं कि उसको अंडे खाना कितना अच्छा लगता है। ”

यह विचार आते ही कि काला साँप उसके अंडे खा रहा है मुर्गी काँप उठी। उसने इस बात की कई कहानियाँ सुन रखी थीं कि साँप किस तरह अंडे निगल जाता है और फिर अपनी लम्बी गरदन के नीचे ले जा कर कैसे उनको कुचल देता है। उसको लगा शायद मुर्गा ठीक कहता है।

यह सोचते हुए कि वह काफी देर से मुर्गे से बात कर रही थी मुर्गी बोली — “मुझे अब जल्दी घर वापस जाना चाहिये। मुझे अपने अंडे भी देखने हैं। ” कह कर वह अपने अंडों के पास भागी।

पर अब तक तो देर हो चुकी थी। उसके दो अंडे और गायब हो चुके थे।

वह वहीं से चिल्लायी — “ओ मुर्गे, यहाँ आओ और जरा देखो तो मेरे दो अंडे और गायब हो गये हैं और बस अब केवल एक ही अंडा रह गया है। ”

मुर्गा बेचारा भागता हुआ आया और बोला — “ऐसा लगता है कि वह काला साँप तुम्हारा यह आखिरी अंडा कल खा जायेगा। और जब तक हम उसको पकड़ेंगे नहीं यह भी मुमकिन है कि वह हर बार तुम्हारे अंडों के साथ यही करता रहेगा। हमको उसको अंडे खाने पर रोक लगानी चाहिये। ”

“यह तो तुम ठीक कहते हो पर हम करें क्या? हम उस काले साँप को रोकें कैसे?” मुर्गी बोली।

मुर्गा मुर्गी के कान में फुसफुसाया — “मेरे दिमाग में एक तरकीब आयी है। अगर हमारी वह तरकीब काम कर गयी तो शायद हमको उस काले साँप से ज़्यादा दिनों तक डरने की जरूरत नहीं है। ”

अगली सुबह अपनी उस तरकीब के अनुसार मुर्गी अपने अंडे की देखभाल करती रही जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। और दूर से काले साँप को भी पता नहीं चला कि उसके लिये एक भयानक जाल बिछाया गया है।

कुछ देर बाद मुर्गी ने अपना अंडा छोड़ा और वहाँ से कहीं और चली गयी। काला साँप मौका देख कर अपनी छिपी हुई जगह से निकला और तुरन्त ही उसने मुर्गी का आखिरी अंडा निगल लिया।

वह उसके गले से नीचे बड़ी आसानी से उतर तो गया पर जब उसने उसको तोड़ने की कोशिश की तो वह टूटा ही नहीं बल्कि उसके गले में फँस गया जिससे वह साँस ही नहीं ले सका।

वह साँप बहुत एँठा, बहुत इधर उधर पलटा ताकि वह उस अंडे को बाहर निकाल सके या कुचल सके और वह साँस ले सके पर वह कुछ भी नहीं कर सका।

थोड़ी ही देर में मुर्गी मुर्गे के साथ वापस लौट आयी। साँप की और अंडे की लड़ाई खत्म हो चुकी थी। वह मर चुका था। अब कोई उस मुर्गी के अंडे नहीं चुरायेगा।

मुर्गा बोला — “शायद वह यह बिना जाने ही मर गया कि वह यह अंडा क्यों नहीं तोड़ सका। ”

मुर्गी हँसी और बोली — “कैसे जानता? वह अंडा तो उबला हुआ था। ”

सो बच्चो अब तुम्हारी समझ में आया कि मुर्गी ने किस तरह अपने आखिरी अंडा उस काले साँप से बचायाÆ अपने अंडे की जगह एक उबला हुआ अंडा रख कर।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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