कैसे बनी तोबा झील : इंडोनेशिया लोक-कथा
Kaise Bani Toba Jheel: Indonesian Folk Tale
बहुत पुरानी बात है। उत्तरी सुमात्रा में एक छोटी-सी
झील के पास एक गरीब किसान रहता था। सारे
दिन वह खेतों में काम करता था। कभी-कभी
जंगल जाकर लकड़ियाँ भी काटता था, जिनमें से
वह कुछ अपने लिए रख लेता था और शेष बेच
देता था। जो पैसा मिलता, उससे वह नमक, सूखी
मछली, तेल आदि जरूरत का सामान खरीदता
था। यदि इसके बाद भी कुछ पैसा बच जाए तो
अपने लिए कपड़े या टोपी आदि खरीद लेता था।
वह बड़ा मेहनती था। भोर से ही उठकर काम
में लग जाता था।
अपनी आदत के अनुसार एक
दिन वह सुबह जागा तो उसने देखा कि चूल्हा
सुलगाने के लिए लकड़ियाँ नहीं बची हैं। यानी यह
बहुत जरूरी था कि वह खेत में जाने से पहले
कुछ लकड़ियाँ काटकर लाए। पर उस दिन पहली
बार ऐसा हुआ कि उसका कुछ करने को मन नहीं
हुआ। उसे स्वयं पर आश्चर्य हुआ कि आज उसे
हो क्या गया है, वह तो ऐसा आलसी कभी नहीं
रहा कि काम पर न जाए? मगर उसका मन उस
दिन बिलकुल राजी नहीं हुआ। अंततः उसने मछली
पकड़ने का काँटा उठाया और झील की तरफ चल
दिया। उसने अपने आप से कहा- ‘चलो, कम-से-
कम मछली ही पकड़ूँ!’
झील पर आकर उसने एक जगह काँटा पानी
में डाला और एक बड़े पत्थर पर बैठ गया।
तरह-तरह के विचार उसके दिमाग में आ-जा रहे
थे, जैसे-पेट भरने लायक चावलों के लिए मुझे
कितना श्रम करना पड़ता है जबकि मेरे कुछ मित्र
बहुत कम परिश्रम करने के बावजूद बेहतर हाल में
हैं। अपनी-अपनी किस्मत है, वगैरह, वगैरह।
‘अरे ! क्या मैं कोई सपना देख रहा हूँ? काँटा
इतनी जोर से क्यूँ हिल रहा है ? झील में क्या
इतनी बड़ी मछली है ?’ वह हैरान था और जब
काँटा बाहर निकाला तो और भी हैरान हुआ।
उसके काँटे में फँसी मछली आम मछलियों जैसी
नहीं थी। उसकी त्वचा धूप में हीरों की तरह चमक
रही थी। जब वह मछली को उठाने को आगे बढ़ा
तो वह इंसानी आवाज में बोली, ‘प्यारे किसान,
मुझे पकाकर खाने के लिए घर मत ले जाओ। मुझे
किसी ऐसे धान के खेत में छोड़ दो जिसमें पानी
भरा हो और फिर कल दोपहर से पहले मुझे देखने
आ जाना। यदि कल न आ सको तो भी कोई बात
नहीं, अगले दिन आ जाना।’
हैरानी के मारे किसान से बोला भी नहीं जा
रहा था। किसी तरह अटक-अटककर उसने पूछा,
‘‘तुम हो कौन?’’
‘‘इसकी फिक्र मत करो कि मैं कौन हूँ! कृप्या
मेरा कहना मानो।’’
‘‘ठीक है,’’ किसान ने कहा और उसे उठाकर
पानी भरे धान के खेत की तलाश में चल दिया।
दुर्भाग्य से ज्यादातर खेतों में पानी न के बराबर
था। वह चलता गया, चलता गया और गाँव के
लगभग आखिरी खेत तक पहुँच गया। इस खेत में
एक जगह उसे पानी भरा गड्ढा नजर आया।
अभी वह यह सोच ही रहा था कि यदि मछली को
यहाँ डाल दूँ तो क्या वह जिंदा रह पाएगी, तभी
मछली ने कहा, ‘‘प्यारे किसान, मैं जानती हूँ कि
तुम क्या सोच रहे हो। मुझे इस पानी में छोड़ दो,
लेकिन सुबह मुझे देखने आना मत भूलना।’’
‘‘मैं जरूर आऊँगा,’’ किसान ने कहा और
मछली को पानी में छोड़कर घर लौट आया। रास्ते
भर वह उस विचित्र मछली के बारे में सोचता रहा।
यहां तक कि रात भर वह सो भी नहीं सका।
अगले दिन वह बड़े सबेरे ही उठकर उस खेत
की ओर चल पड़ा। उसे बड़ी उत्सुकता थी इसलिए
वह लंबे-लंबे डग भरते हुए चल रहा था। अभी
सूरज नहीं निकला था। मटमैला-सा अंधेरा था
और सन्नाटा, जिसे पक्षियों के और जानवरों के
स्वर बीच-बीच में भंग कर देते थे।
जब वह खेत के पास पहुँचा तो उसने देखा
कि किनारे पर एक सुंदर महिला अकेली बैठी है।
किसान को देखकर वह मुस्काई तो किसान डर
गया। उसने भागना चाहा। उसे भागने का उपक्रम
करते देख वह महिला बोली, ‘‘प्यारे किसान, भागो
मत, डरो मत। मैं भूत नहीं हूँ, वही मछली हूँ जिसे
तुम कल शाम यहाँ छोड़ गए थे। अब मैं मनुष्य के
रूप में हूँ । मुझे घर ले चलो और अपनी पत्नी
बना लो।’’
‘‘पत्नी! क्या तुम मेरी पत्नी बनकर रहोगी?’’
किसान ने थूक गटकते हुए पूछा।
‘‘हां,’’ उसने उत्तर दिया।
‘‘क्या तुम उस टूटे-फूटे झोंपड़े में रह सकोगी,
जहाँ न तो...’’ किसान हैरान-परेशान था।
‘‘कुछ मत कहो। मैं जानती हूँ कि तुम एक
गरीब किसान हो।’’ वह किसान की बात काटते
हुए बोली।
‘‘ठीक है, यदि तुम सब जानती हो और फिर
भी एक गरीब व्यक्ति के साथ बसर करने को
राजी हो, दुःख-तकलीफें बाँटने को राजी हो तो
मेरे घर में, मेरे जीवन में तुम्हारा स्वागत है।’’
किसान बोला।
‘‘तुम्हें केवल एक बात का ध्यान रखना होगा,
भूलकर भी किसी से न कहना कि मैं आई कहाँ
से।’’ औरत में बदल गई मछली बोली।
‘‘इतनी-सी बात! निश्चिंत रहो, मैं कभी, किसी
से नहीं कहूँगा।’’ किसान ने उसे भरोसा दिलाया।
‘‘किसी से भी न कहना, कभी भी नहीं,’’
मछली ने दुहराया।
‘‘हाँ, हाँ, नहीं कहूँगा।’’ किसान ने मुस्कुराकर
उसे आश्वस्त किया। किसान को लगा कि यह तो
मामूली-सी बात है लेकिन किसी भी राज को पचा
पाना कोई मामूली बात नहीं होती है।
सुबह जब पड़ोसियों ने देखा तो उन्हें आश्चर्य
हुआ कि यह फटेहाल किसान ऐसी सुंदर पत्नी
कहाँ से पा गया! लेकिन न किसी ने पूछा न उसने
बताया कि वह कौन है, कहाँ से आई है। उसका
परिवार कहाँ है। उनकी मुलाकात कैसे, कहाँ हुई।
शादी कहाँ हुई।
वे दोनों सूखपूर्वक रहने लगे। दो वर्ष बाद
उनके घर बेटा पैदा हुआ। वह भी अपनी माँ जैसा
ही सुंदर था। उजला-उजला रंग, काले घुँघराले
बाल, मछली जैसी गोल-गोल आँखें। जब वह
खाना खाने लायक बड़ा हुआ तो मछली खाने का
शौकीन निकला। उसे और कुछ न मिले बस एक
छोटा-सा मछली का टुकड़ा मिले तो भी वह
संतुष्ट हो जाता था।
अब भी किसान हमेशा की तरह ही खेतों में
काम करता था। उसकी पत्नी उसके लिए खाना
बनाती और स्वयं ही खेत पर लेकर जाती। एक
दिन उसने अपने बेटे से कहा, ‘‘बेटा, आज जरा
देर हो गई है, मुझे बहुत से काम निपटाने हैं, ये
खाना लेकर तुम जल्दी से अपने पिता के पास
जाओ। वे प्रतीक्षा कर रहे होंगे और भूखे भी
होंगे।’’
बेटे ने खाने की टोकरी ली और चल दिया
पर रास्ते में उसके साथी मिल गए और वह सब
भूल-भालकर उनके साथ खेलने लग गया। वह
कई घंटों तक खेलता रहा। जब उसे ध्यान आया
तो उसने सोचा कि अब तो बहुत देर हो चुकी है,
फिर उसे भूख भी लग आई थी। सो, सारा खाना
उसने खुद ही खा लिया। बाद में वह पिता के
पास गया और उसने सारी बात उन्हें बताई।
सुनकर पिता को बड़ा गुस्सा आया। उसने एक
थप्पड़ उसकी कनपटी पर जड़ दिया और बोले,
‘‘मछली की औलाद, शैतान लड़का, अब तू यहाँ
क्या करने आया है? जा भाग यहाँ से।’’
बेटा रोते-रोते घर लौटा तो माँ ने पूछा कि
क्या हुआ? बेटे ने सारा किस्सा सुनाया और पूछा,
‘‘पिताजी ने मुझे मछली की औलाद क्यों कहा?
क्या यह सच है?’’
‘‘हाँ बेटा, ये सच है। मुझे अफसोस है कि
तुम्हारे पिता ने राज खोल दिया। अब मैं कुछ नहीं
कर सकती। तुम जल्दी करो, दौड़कर उस सामने
वाली पहाड़ी तक पहुँचो और जितनी जल्दी उस
पर चढ़ सकते हो चढ़ जाओ। मैं भी आती हूँ। अब
जल्दी ही यह सारा क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा ।
जल्दी करो, दौड़कर जाओ।’’ उसकी माँ ने कहा।
बेटे के जाते ही माँ ने जितनी शक्ति से बजा
सकती थी, उतनी शक्ति से ड्रम बजाना शुरू कर
दिया। देखते-ही-देखते सारा आसमान काले बादलों
से ढक गया । बादलों के गर्जन और बिजली की
चमक ने लोगों में दहशत भर दी। तेज हवा ने
बड़े-बड़े पेड़ उखाड़ डाले। मूसलाधार बारिश होने
लगी। थोड़े ही समय में सारे क्षेत्र में एक-एक
मीटर पानी भर गया।
लोग घबरा रहे थे। चीख-पुकार मच गई
थी। सुरक्षित क्षेत्र की तलाश में लोग बदहवास
भाग रहे थे। जो लोग ऊँची जगहों पर पहुँच सके
वे बच गए, शेष बाढ़ की भेंट चढ़ गए। कितने ही
मवेशी मारे गए।
कुछ दिनों बाद बाढ़ का पानी उतर गया
लेकिन जहाँ किसान की झोंपड़ी थी, वहाँ पानी
भरा रहा, बल्कि उसका स्तर लगातार बढ़ता ही
गया। अंततः उसने एक झील की शक्ल अख्तियार
कर ली। बाद में इस झील का नाम पड़ा-तोबा
झील।
इस झील के पास के निवासियों का मानना है
कि वह मछली, जो औरत बनकर गाँव में रही थी,
अब भी इसी झील में रहती है और जब वहाँ कोई
नहीं होता तब वह सतह पर भी आती है।
(प्रीता व्यास)