कैदियों की गाड़ी (अंग्रेजी कहानी) : चार्ल्स डिकेंस
Kaidiyon Ki Gaadi (English story in Hindi) : Charles Dickens
एक दिन दुपहरिया के बाद हम बो-स्ट्रीट के कोने से गुजर रहे थे कि हमने देखा कि वहाँ पर पुलिस चौकी के सामने बहुत से लोग इकट्ठा थे। वहाँ पर लगभग तीस-चालीस लोग थे। कुछ लोग फुटपाथ पर खड़े थे तो कुछ सड़क के दूसरी ओर। यह साफ जाहिर था कि वे सब लोग किसी के आने की आशा में वहाँ खड़े थे। हमने भी कुछ मिनट वहाँ ठहरकर इंतजार किया, पर कुछ भी नहीं हुआ। फिर हमने वहीं पास में बैठे मोची, जो फटे-पुराने कपड़े पहने था और जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, से पूछा, "क्या मामला है, भाई, आपको कुछ पता है?"
उस मोची ने हमें ऊपर से नीचे तक देखा, फिर बोला, "कुछ भी नहीं।"
अब हमें यह पता था कि यदि दो आदमी कहीं पर खड़े होकर किसी दिशा में देखने लगें तो वहाँ कुछ ही देर में सौ-दो सौ आदमियों की भीड़ इकट्ठा हो जाएगी और सब लोग उसी ओर देखने लगेंगे तथा आपस में खुसुर-फुसुर करने लगेंगे। पर हमें यह पता था कि लोगों की कोई भीड़ भी किसी सड़क या गली में ज्यादा देर तक बिना आपस में कुछ हँसी-मजाक किए रुक सकती थी।
उसके बाद हमने उस मोची से फिर पूछा, "आखिरकार ये सब लोग यहाँ पर किस चीज का इंतजार कर रहे हैं?"
"उसने जवाब दिया। हर मैजेस्टीस कैरियेज।" (रानी की गाड़ी के लिए)। इस जवाब ने हमें और भ्रमित कर दिया। हमें कुछ भी नहीं समझ में आया कि 'हर मैजेस्टीज कैरियेज' इस वक्त यहाँ इस पुलिस स्टेशन के पास क्यों आएगी? हम अभी इस सोच-विचार में पड़े थे कि भीड़ में से कुछ लोग और लड़कों की आबादी आई,
"यह रही गाड़ी! ये वैन आ गई।"
फिर हमने सिर उठाकर सड़क की ओर देखा।
बंद गाड़ी, जिसमें अलग-अलग पुलिस थानों में से कैदियों को भिन्न-भिन्न जेलों में भेजा जाना था, पूरी रफ्तार से आ रही थी। तब जाकर मुझे समझ में आया कि बंदी गाड़ी, जिसमें कैदियों को ले जाया जाता था, उसे ही On the Majesty's Service बोलते थे, जिससे लोगों को लगे कि उन्हें सम्मानपूर्वक ले जाया जा रहा था और राजकीय कोष से उसका खर्च दिया जा रहा था तथा जेलों में उन्हें उन दिनों (पता नहीं क्यों) 'हर मैजेस्टीज जेल' कहते थे।
वैन पुलिस ऑफिस के सामने आकर रुक गई और सारे आवारा टाइप के लौंडे-लफंगे और हमारी तरह के अन्य लोग सीढियों के इर्द-गिर्द खड़े हो गए। वैन में से ड्राइवर और एक अन्य आदमी, जो उसके साथ बैठा था, उतरकर पुलिस ऑफिस में जाने के लिए सीढियों पर चढ़ने लगे। लोगों ने उनके लिए रास्ता छोड़ दिया। हमारे मित्र और वह मोची भी आगे बढ़े। पुलिस ऑफिस का दरवाजा खुला और वे लोग फटाफट अंदर दाखिल हो गए तथा दरवाजा खट से बंद हो गया। अन्य लोग आशापूर्ण निगाहों से दरवाजे की ओर देखने लगे।
कुछ मिनटों बाद दरवाजा खुला और वहाँ से दो बंदी निकले। वे दोनों लड़कियाँ थीं, जिसमें से बड़ी सोलह साल की रही होगी और दूसरी छोटी अभी चौदह वर्ष की शायद नहीं हुई थी। उनके चेहरे-मोहरे से लगता था कि शायद वे बहनें थीं और उनको देखने से भी लगता था कि वे दोनों ही बहुत गरीब घर की थीं। पर उन दोनों ने उस वक्त सस्ते व भड़कीले कपड़े पहने हुए थे और पुलिस ने उन दोनों को एक ही हथकड़ी से जकड़ रखा था। छोटीवाली लड़की बहुत बुरी तरह रो रही थी, इसलिए नहीं कि उसका कोई असर पड़े या दिखाने के लिए, बल्कि इसलिए कि वह बहुत शर्मिंदा थी। उसने अपना सिर अपने रूमाल में छुपा रखा था और वह बहुत दुःखी प्रतीत हो रही थी।
"एमिली, यहाँ पर तुम्हें कितने दिन रखा जाएगा?" लाल मुँहवाली एक महिला ने भीड़ में से चिल्लाकर पूछा।
"छह हफ्ते की कैद बमशक्कत।" बड़ी बहन ने कुछ हँसते हुए उत्तर दिया। "और यह 'स्टोन जग' से बेहतर है, सेशन की डील 'मिल' से बेहतर है और यह बेला है, जो पहली बार जेल जा रही है। अपना सिर उठाओ, बेबी।" उसने कुछ हँसते हुए कहा और अपनी छोटी बहन के चेहरे पर से रूमाल हटा दिया। अपना सिर ऊपर उठाओ और उन लोगों को दिखाओ। मैं ईर्ष्यालु हूँ।
"ठीक है, ठीक है...।" एक आदमी, जिसने कागज की टोपी पहनी हुई थी, भीड़ में से चिल्लाया, जो इस प्रकरण से खुश था। ओह इस सब में क्या गड़बड़ी है...?" बड़ी लड़की फिर बोली, "अंदर आ जाओ, तुम दोनों...।" ड्राइवर बीच में बोला, "कोचमैन, तुम कोई जल्दी नहीं करना और याद रखना, मैं कोल्ड बाथ कोल्ड में बड़े से घर में, जिसमें अच्छा लॉन हो और सामने गार्डन में ऊँची दीवार हो—में रहना चाहूँगी।" हैलो बेला, तुम यह क्या कर रही हो? तुम तो मेरी बाँह ही उखाड़ दोगी।" वह भीड़ की आँखों से बचने के लिए जल्दी से कोच की सीढियों पर चढ़ गई थी तथा एक ही हथकड़ी से बँधी रहने के कारण बड़ी बहन का हाथ भी जोर से खिंचा जा रहा था और वे दोनों फिर किसी तरह से खींच-तान कर गाड़ी में बैठ गई।
इन दोनों लड़कियों को इनकी अधम और लालची माँ ने सड़कों पर खाने-कमाने के लिए फेंक दिया थाचाहे जिस प्रकार से वे रहें। जो पहले बड़ी बहन करती थी छोटे-छोटे अपराध, वही अब वह छोटी बहन से करवाती थी। एक ट्रैजिक ड्रामा, पर उसका कई बार मंचन होता था। खुदा जाने, उनका क्या भविष्य होगा! आप लंदन की पुलिस और गलियों की ओर देखिए, ये सब चीजें आम हो गई हैं और इनकी ओर शायद ही कोई ध्यान देता है। इन लड़कियों (या लड़कों) की अपराधी प्रवृत्ति इतनी तेजी से बढ़ेगी, जैसे कि प्लेग जैसी महामारी। ये अधिकतर अकेली होती हैं समाज द्वारा तिरस्कृत व उपेक्षित और न ही इनके ऊपर किसी को दया आती है।
फिर और कैदी लड़के हैं—दस साल या इनसे ऊपर की उम्र के पर अपराध की दुनिया में ये इतने पक्के हो चुके हैं, जैसे कोई 40-50 साल का अपराधी हो। ये लोग बड़ी ही आसानी से जेल चले जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि वहाँ पर रहने-खाने को तो मिल ही जाएगा और भयानक सर्दी से भी बच जाएँगे। इन लोगों का भविष्य बरबाद हो चुका है। वे चरित्रहीन हो जाते हैं। उनके परिवार नष्ट हो जाते हैं। उनके पहले जुर्म के साथ ही। तथापि हमारी जिज्ञासा शांत हुई थी। पहले दल ने हमारे ऊपर जो छाप डाल दी, वही काफी था।
भीड़ तितर-बितर हो गई। बंदियोंवाली गाड़ी चली गई, जिसमें वे अभागे लोग बैठे थे और हमने उसे फिर कभी नहीं देखा।