कहानी राजा यूनान के वजीर और रय्यन हकीम की : मुनीश सक्सेना
मछुए न कहा, सदियों पहले रूस देश में फॉर्स नाम के शहर में यूनान नाम का राजा रहता था। वह एक अमीर और ताकतवर राजा था, जो एक कुशल योद्धा और सेनापति भी था। सब पड़ोसी राजा उसके मित्र थे। वह यदि चिन्तित था, तो अपने कोढ़ के कारण, जिसका इलाज कोई हकीम नहीं कर पाया था।
एक दिन एक अन्य देश का एक नामी हकीम, जिसका नाम रय्यन था, फॉर्स शहर में आया। वह एक ज्ञानी हकीम था, जिसने ग्रीक, लेटिन, फारसी और अरबी भाषाओं में लिखी चिकित्सा-सम्बन्धी पुस्तकों का अध्ययन किया था। वह सब रोगों के बारे में सबकुछ जानता था। उसे मालूम था कि वे रोग कैसे होते हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता था। वह हर प्रकार की वनस्पति के गुण-दोषों से भी परिचित था।
जब उसे राजा यूनान के रोग के बारे में पता चला तो उनके कोढ़ के बारे में नये सिरे से सब जानकारी प्राप्त की, और कीमती वस्त्र धारण कर, राजा यूनान के महल में पहुँचा।
राजा को अदब से सलाम करने के बाद, हकीम यूनानी ने अपना परिचय दिया, और फिर बोला, “हुजूरेआला, मैंने सुना है कि आपको कोढ़ की शिकायत है, और कोई भी हकीम उसे ठीक नहीं कर सका है। आप इजाजत दें, तो मैं आपका रोग बिना किसी पीने वाली दवा और शरीर पर लगाये जानेवाले मलहम के ठीक करूँ?”
“क्या तुम सफलतापूर्वक मेरा इलाज कर सकोगे? यदि तुम सचमुच मेरे इलाज में सफल हो गये, तो विश्वास मानो कि मैं तुम्हें इतना धन दूँगा कि तुम्हारी सात पीढ़ियाँ उसके सहारे आराम की जिन्दगी बिता सकेंगी। मगर मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम बिना किसी दवा या मलहम के मेरा इलाज कैसे करोगे?”
“यह आप मुझ पर छोड़ दीजिए,” हकीम ने बड़ी आजिजी से कहा, “मैं चौबीस घण्टे के अन्दर खेल-खेल में आपको ठीक कर दूँगा।”
“खेल-खेल में? चौबीस घण्टे में?”
“जी हाँ। मैं कल सुबह हाजिर हो जाऊँगा, और आते ही आपका इलाज शुरू कर दूँगा!”
राजा यूनान के महल के सामने एक घर किराये पर लेकर हकीम रय्यन ने कई वनस्पतियों के रस निकालकर उसे एक खोखली मुँगरी में भरा, और उसमें एक हैण्डिल लगाया। फिर, उसने एक खोखली गेंद में भी रस को ऐसा ठसाठस भरा कि लगता नहीं था कि खोखली गेंद में कुछ भरा गया है। अगले दिन सुबह, वह इन दोनों वस्तुओं को लेकर महल में गया, और राजा से कहा, “मैं जानता हूँ कि आपको पोलो का बहुत शौक है। आज आप मेरे कहने से इस हैण्डिल लगी मुँगरी और गेंद की मदद से पोलो खेलें, और तब तक खेलते रहें, जब तक आप पसीने से तरबतर न हो जाएँ। मुँगरी और गेंद को जब भी पकड़ें बहुत दबाकर जोर से पकड़ें। जैसे ही आपका पसीना इन दोनों वस्तुओं को छुएगा, आपके शरीर का कोढ़ अपने आप मिटना शुरू हो जाएगा।”
राजा ने अपने साथी-खिलाड़ियों के साथ उसी ढंग से पोलो खेली, जैसी हकीम रय्यन ने बतायी थी। वे तब तक पोलो खेलते रहे, जब तक कि पसीने और वनस्पतियों के रस के मिले-जुले प्रभाव से उसका कोढ़ दूर होना आरम्भ नहीं हो गया।
जब खेल खत्म हुआ, तो हकीम ने कहा, “अब महल में जाते ही, आप सीधे हमाम में पहुँच जाइएगा। वहाँ जी भरकर के नहाइए और बाद में बिना कुछ खाये-पिये सोने के लिए चले जाइएगा। कल सुबह मैं आपके दर्शन करूँगा।”
राजा ने वैसा ही किया, जैसा हकीम रय्यन ने करने को कहा था।
जैसे ही वे स्नान करके हमाम से बाहर आने लगे, उन्होंने अपने शरीर की त्वचा को ध्यानपूर्वक देखा। कोढ़ के सब निशान गायब हो गये थे, और उनकी त्वचा एकदम साफ-सुथरी दिखाई दे रही थी। वे खुशी-खुशी सोने गये।
सुबह जब हकीम रय्यन साहब उनसे मिलने गये, तो उन्होंने अपने सिंहासन से उठकर, हकीम साहब को अपने गले लगा लिया, और कहा, “आपने अपना वादा पूरा किया, अब मैं अपना वादा पूरा करता हूँ।”
दुपहर का खाना राजा और हकीम ने एक साथ खाया। इसके बाद, राजा ने भरे दरबार में हकीम साहब का सम्मान किया, और उन्हें अनेक कीमती उपहारों के अलावा दो हजार स्वर्ण-मुद्राएँ (दीनार) इनाम में दीं। रय्यन खुशी-खुशी अपने निवास-स्थान को लौटे। लौटते समय उन्हें राजा का आदेश मिला था कि वे अगले दिन सुबह भी दरबार में मौजूद रहें।
अगले दिन भी, राजा ने हकीम का बड़े स्नेह और सम्मान से स्वागत किया, उसे अपने बगल में बैठाया, और उसके साथ ही खाना खाया। अपने दरबारियों से राजा ने हकीम रय्यन की बहुत प्रशंसा की, उसे अपना घनिष्ठतम मित्र और शुभचिन्तक बताया, और कहा, “मैं हकीम साहब को कितने भी उपहार क्यों न दे दूँ, उनके अहसानों का बदला कभी नहीं चुका सकूँगा।”
राजा के दरबारियों में एक वजीर ऐसा था, जो दुष्ट प्रकृति और ईर्ष्यालु स्वभाव का था। उसे हकीम रय्यन के सौभाग्य से ईर्ष्या होने लगी। रय्यन के जाने के बाद, वह राजा के पास पहुँचा, और कहने लगा, “हुजूर-ए-आला! आप जानते ही हैं कि इस नाचीज ने जब भी आपको सलाह दी है, आपके कुशल-मंगल की खातिर दी है। आज चूँकि आपकी जान को और हमारे मुल्क की सुरक्षा को खतरा है, इसलिए आपसे तल्खिए में यह नाचीज कुछ अर्ज करना चाहता है। मौका दें, बन्दापरवर!”
राजा ने एकान्त का आदेश दिया, और सबके चले जाने के बाद उस वजीर से कहा, “जो कहना चाहते हो, बेखौफ कहो।”
वजीर ने राजा के कान भरते हुए कहा, “हुजूर, बेअदबी माफ हो, मगर जिन हकीम साहब पर आप इतने ज्यादा फिदा हो रहे हैं, वे हकीम तो आला दर्जे के हैं, मगर हैं असल में आपके जानी दुश्मन!”
“जानी दुश्मन? यह क्या बक रहे हो तुम?”
“बक नहीं रहा हूँ, बन्दापरवर! हकीकत बयान कर रहा हूँ, मुझे अपने जासूसों से पक्की और पूरी तरह विश्वसनीय खबर मिली है कि ये हकीम साहब आपके एक दुश्मन राजा के जासूस हैं। आपका सफल इलाज करके फिलहाल उन्होंने आपका विश्वास जीत लिया है, मगर बाद में मौका देखकर वह आपकी हत्या की कोशिश करेंगे, वह इसी उद्देश्य से यहाँ आये हैं।”
राजा यूनान को अपने वजीर की बातों पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “वजीर, तुम जो कुछ कह रहे हो, ईर्ष्यावश कह रहे हो। तुम्हारी बातें सुनकर मुझे उस बाज की कहानी याद आ गयी, जो मैंने बहुत पहले सुनी थी, और इस वक्त मौजूँ बैठ रही है।”
सुबह होनेवाली थी, इसलिए शहरजाद ने यह कहानी नहीं सुनायी। उसने बस इतना कहा कि बाज की कहानी और भी ज्यादा दिलचस्प है, इस पर शहरयार ने मन ही मन फैसला किया कि वह बिना यह कहानी सुने, शहरजाद की हत्या का आदेश नहीं देगा।