काठ के बच्चे : तमिल लोक-कथा
Kaath Ke Bachche : Lok-Katha (Tamil)
पत्नी की झील सी आँखों में गहरा प्यार और चेहरे पर स्निग्धना, भोलेपन के साथ-साथ पावनता की झलक वह महसूस कर रहा है। फिर भी मन और बुद्धि का संघर्ष अनवरत चल रहा है—उठते, बैठते, सोते। उसे समझ नहीं आ रहा अपने मित्र की बात पर विश्वास करे या न करे। न करने का कारण भी तो नहीं है? वह क्यों झूठ बोलेगा मेरे साथ? उसे क्या लाभ होने वाला है? किंतु फिर भी! वह कैसे विश्वास करे? दांपत्य जीवन विश्वास पर आधारित होता है। यदि मैं ही अविश्वास का मैल मन में लाऊँगा तो वह क्या सोचेगी?
उसने चेन्नईराम को अपनी दुविधा और समस्या सुनाई। चेन्नईराम ने कहा, ‘पशुपति! व्यक्ति कितना भी समीपस्थ और प्रिय क्यों न हो, उसकी कही बात सुनकर उस पर अपनी समझ, बुद्धि तथा विवेक से विचार कर ही निर्णय लेना चाहिए। अंधविश्वास तुम्हें उस राजा के भाँति जीवन के उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगा, जहाँ से बीता हुआ कल सिर्फ हँसता है, हमारी नादानी और नासमझी पर।’
‘यह कौन सी नादानी और किस राजा की बात कर रहे हो, चेन्नईराम? और उसकी कर्म घटना का मेरी समस्या से क्या संबंध?’ पशुपति ने कहा।
‘देखो पशुपति! हमारे बुजुर्गों ने जो हमें लोककथाएँ सुनाई, उनमें जीवन का सार तथा शिक्षा छिपी है। अब यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है कि लोककथाओं को कपोल-कल्पित, मनोरंजन का साधन मात्र समझता है या उस मनोरंजन से शिक्षा भी ग्रहण करता है। अस्तु, सुनो—
शताब्दियों पहले एक राजा था। वह बहुत दयालु था। शक्ति से जीता हुआ प्रदेश भी पुन: राजाओं को लौटा देता था। उसके इस सद्-आचरण एवं दयालु भावना के कारण उसे न केवल उसकी प्रजा प्यार करती थी, अपितु वे राजा भी सम्मान देते थे, जिनके राज्य वह उन्हें लौटा देता था। उसके राज्य में धन-धान्य की कमी नहीं थी। प्रजाजन खुश व संतुष्ट थे। किंतु वह राजा सदैव दु:खी रहता था।
राजा की अति प्यारी सुंदर राजकुमारी से शादी हुई थी। किंतु छह वर्ष बीतने के बाद भी उसके आँगन में बच्चों की किलकारी नहीं गूँजी। तब सभी सभासदों ने उनसे पुन: विवाह करने का आग्रह किया। उन्होंने भी सोचा कि इतनी सब संपदा का वारिस एवं भोग करनेवाला राज चलाने के लिए उत्तराधिकारी चाहिए ही, अत: उसने अपनी ही पत्नी की बहन से विवाह कर लिया। किंतु दुर्भाग्य से वह भी बाँझ निकली। कुछ दिनों बाद फिर सभासदों ने राजा को एक और विवाह करने की सलाह दी, किंतु राजा ने सोचा, लगता है, मेरे भाग्य में संतान सुख नहीं है। इसलिए उसने सभासदों की सलाह विनम्रता से टाल दी। अब उन्होंने अपना समय शिकार-आखेट पर देना शुरू कर दिया। इस प्रकार कई वर्ष बीत गए और राजा भी अपने दु:ख को भूलकर आखेट में ही आनंद लेने लगा।
एक बार राजा आखेट के लिए एक गाँव से गुजर रहा था कि उसने एक नारी का स्वर सुना। नारी के शब्दों को सुनकर राजा वहीं थम गया। वह कह रही थी—‘तुम्हें मालूम नहीं, मेरी कोख दो सुंदर लड़के और एक लड़ी को जन्म देने में सक्षम है और तुम गुलेल से इस पर कंकड मार रहे हो?’ राजा ने देखा 16 वर्षीय एक सुंदर कन्या अपना पेट पकड़े साथियों को डाँट रही थी। कन्या के नैन-नक्श आकर्षित करने वाले थे तथा रूप में भी वह सुंदर थी।
राजा उस रात्रि सो नहीं सका। उसके कानों में उस कन्या के वे शब्द गूँज रहे थे—‘मेरी कोख दो सुंदर लड़कों और एक कन्या को जन्म देने में सक्षम है।’ प्रात: होते ही उसने अपने राजदूतों से उस लड़की का पता-ठिकाना मालूम कराया और उस घर में पहुँच गया। चमार अपने घर में राजा को देखकर भयभीत हो उठा। उसने राजा के पाँव पकड़ लिये। राजा ने उससे खड़े होने के लिए कहा, लेकिन उसने अपने अपराध की क्षमा याचना की। तब राजा ने कहा कि वह उसकी कन्या से विवाह का प्रस्ताव लेकर आया है। चमार हैरान रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो कुछ वह सुन और देख रहा है, वह सत्य है या महज स्वप्न तो नहीं।
राजा ने उस कन्या को परिणय-सूत्र में बाँध लिया। सही समय पर तीसरी रानी ने गर्भधारण किया। राजा बहुत खुश हुआ। लेकिन राजा की दोनों बाँझ रानियों के हृदय पर साँप रेंगने लगे। उन्होंने बहुत चाहा कि तीसरी रानी का गर्भ गिर जाए, किंतु असफलता ही हाथ लगी। उनके सभी प्रयत्न बेकार गए। प्रसव काल की घड़ी आई। दाई ने प्रसव कराया, बाहर राजा व्यग्रता से समाचार की प्रतीक्षा कर रहा था। रानी ने दो सुंदर राजकुमारों एवं एक राजकुमारी को जन्म दिया और अचेत हो गई। दाई ने प्रसव कमरे का गुप्त दरवाजा खोल दिया। दोनों बाँझ रानियों ने प्रवेश किया। उन्होंने दाई को द्रव्य-मुद्राओं की थैली के साथ-साथ काठ के बने तीन पुतले दिए और उन नवजात शिशुओं को जंगल में हिंस्र पशुओं का शिकार बनने के लिए छुड़ा दिया। दाई ने घोषणा कर दी कि रानी ने काठ के दो लड़के और एक लड़की को जन्म दिया है। राजा ने सुना तो विश्वास नहीं हुआ, किंतु राज ज्योतिषी ने कहा, ‘महाराज, जब अशुभ घड़ी आती है तो ऐसा ही होता है। रानी तथा उसके बच्चे अशुभ हैं इस राज्य के लिए।’
रानी जब होश में आई और सुना कि उसने काठ के बच्चों को जन्म दिया है तो अविश्वास से भर उठी। किंतु उसकी सुनने वाला कोई न था। राजा ने उसे पशुशाला में डलवा दिया—शेष जीवन वहीं व्यतीत करने के लिए।
उधर जंगल में एक शैतान बुढ़िया रहती थी। अधिकतर वह अपनी गुफा में ही रहती थी, लेकिन उस दिन जब वह बाहर आई तो तीन नवजात शिशुओं का रुदन सुना। वह जंगल में गई और उन बच्चों को उठा लाई। उसने अपने जादुई काँच में देखा और जाना कि वे उस राज्य के राजा के राजकुमार तथा राजकुमारी थे। उसने काँच में पुन: देखा और इन बच्चों की दुर्दशा का कारण समझ गई। उसने सोचा, राजा को सत्यता बता देनी चाहिए। फिर उसने उन बाँझ रानियों के बारे में सोचा, जो इन्हें जीवित नहीं देखना चाहतीं। अत: उसने निश्चय किया कि उचित समय पर वह राजा को सच बातएगी और उसने राजकुमारों की भाँति उन शिशुओं का लालन-पालन शुरू कर दिया। राजकुमार तथा राजकुमारी पाँच वर्ष के हो गए। एक दिन वे जंगल में नदी किनारे खेल रहे थे कि उन्होंने किसी के आने की आहट सुनी। वह राजा था। उन्होंने कभी अन्य इनसान को अपने समीप से नहीं आते देखा था, अत: वे डरकर अपनी गुफा में भाग गए। राजा ने जंगल में इससे पहले कभी इतने सुंदर बालक नहीं देखे थे। तीनों के चेहरों में भी सौम्यता थी। उनमें से दो लड़के तथा एक लड़की थी। राजा के मन में उथल-पुथल मच रही थी। किंतु वे बालक तो भाग गए।
बुढ़िया को जब बालकों ने भागकर आने का कारण बताया तो उसने अपने जादुई काँच से जान लिया कि राजा ने इन राजकुमारों को देख लिया है। उसने सोचा, सत्य उद्घाटित करने का समय आ रहा है। उसने लकड़ी के तीन पुतले, दो लड़के और एक लड़की बनाए और उन बालकों से कहा, इन पुतलों को अपनी गोद में रखकर थपथपाते हुए गाओ—
‘ओ! अमोल राजा के काठ के बच्चो,
जागो! जागो! जागो!!’
मन में उत्सुकता लिए दूसरे दिन राजा पुन: उसी स्थान पर आया और झाड़ियों में छिप गया। बालकों ने भी राजा को देख लिया था। अत: उन्होंने एक-एक पुतले को अपनी गोद में रखकर थपथपाते गाना शुरू किया—
‘ओ! अमोल राजा के काठ के बच्चो,
जागो! जागो! जागों!!’
राजा यह गीत सुनकर हैरान रह गया। इतने में वे बालक अपनी गुफा की ओर चल दिए। राजा ने उनका पीछा किया।
बुढ़िया ने अपने जादुई दर्पण में देख लिया था कि राजा बच्चों का पीछा कर रहा है। वह गुफा के द्वार पर आ गई। उसने राजा का स्वागत किया। अंदर आने का आग्रह किया और फिर उसे सारी सच्चाई बताई, जो उसने अपने जादुई काँच के जरिए प्राप्त की थी। उसने राजा को यह भी याद दिलाया कि उसने राजा को चेतावनी दी थी कि उसकी होने वाली रानी बाँझ निकलेगी। किंतु तब राज-ज्योतिषी ने उस राज्य से उसे शैतान कहकर निकलवा दिया था। इन राजकुमारों की हत्या के षड्यंत्र में दाई और राज-ज्योतिषी की भूमिका भी उसने स्पष्ट कर दी। राजा ने कहा कि वह यह सच्चाई कैसे सिद्ध करे कि ये बालक तीसरी रानी से ही जनमे हैं। तब बुढ़िया ने उसे एक योजना सुझाई और कहा कि कल तुम इन बालकों के साथ मुझे भी ले चलना और फिर चमत्कार देखना।
राजा ने दूसरे दिन शाही महल में एक भोजन रखा। उसमें सभी को आमंत्रित किया। ठीक समय पर राजा ने इन तीन बच्चों तथा बुढ़िया के साथ भोजन-हॉल में प्रवेश किया। राजा के साथ तीन सुंदर बालक, दो लड़के, एक लड़की को देखकर तीनों बाँझ रानियाँ, दाई तथा राज-ज्योतिषी सकते में आ गए। उन्हें लगा कि उनका षड्यंत्र अब खुलने ही वाला है। तभी राजा ने उन तीनों बालकों को हॉल में सुसज्जित एक ऊँचे मंच पर बैठाया। इतने में दासियाँ मिठाई-फलों के थाल लिये हुए आईं। राजा ने कहा, इन अतिथि बालकों से शुरू हो यह भोज और मेरी दोनों रानियाँ इन्हें अपने हाथों से खिलाएँगी।
रानियाँ मिठाई लेकर बालकों के समीप गईं। रानियों की आँखों में क्रोध और नफरत देखकर वे सहम गए और मिठाइयों को छुए बिना सिर नीचा कर लिया। राजा सावधानी से यह सब देख रहा था। रानियाँ बालकों की मनुहार करके हार गईं। राजा ने तब आदेश किया कि पशुशाला से तीसरी रानी को लाया जाए। दीन-हीन हालत में रानी लाई गई। उसकी निगाह मंच पर बैठे बालकों पर पड़ी। उसकी आँखों में वात्सल्य उमड़ आया और चेहरे पर खुशी दौड़ आई। राजा के कहने पर वह बच्चों के पास पहुँची। बच्चों ने उसकी आँखों में प्रेम देखा और खाने के लिए मुँह खोल दिया। लेकिन तभी चमत्कार घटित हुआ। जैसे कि बुढ़िया ने कहा था, राजा ने देखा, रानी के वक्ष से दूध की धार निकल रही थी, जो तीनों बालकों के मुख में पड़ रही थी। राजा सच्चाई को समझ गया। पाँच वर्षों से वंचित दूध सीमाएँ तोड़ रहा था।
राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने यह भी नहीं सोचा था कि काठ के बच्चे कैसे पैदा हो सकते हैं? उसने राज-ज्योतिषी और दाई पर विश्वास किया बिना तर्क के।
राजा ने आज्ञा दी, दाई के दोनों हाथ काट दिए जाएँ तथा राज-ज्योतिषी की जीभ, ताकि फिर से झूठ का सहारा न ले सकें। अपनी बाँझ रानियों को षड्यंत्र के लिए सजा दी कि वे अब जीवनपर्यंत पशुशाला में ही रहेंगी।
इस प्रकार राजा के काठ के बच्चे जाग उठे। कथा समाप्त कर चेन्नईराज ने कहा, ‘देखा अपनों पर अंधविश्वास का नतीजा।’
‘बेहतर है, तुम्हारी जो भी समस्या है या जिस किसी ने भी तुमसे तुम्हारी पत्नी के बाबत कुछ कहा है, उसे बता दी, फिर देखो, पत्नी की निगाह में तुम्हारा सम्मान भी बढ़ेगा और सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। फिर जैसा उचित समझो निर्णय लेना। कम-से-कम, तुम इस तरह काठ के पति कहलाने से तो बच जाओगे।’ चेन्नईराम ने हँसकर कहा।
(साभार : डॉ. ए. भवानी)