जूएं : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
Juen : Lok-Katha (Uttar Pradesh)
बहुत पुराने समय की बात है, रातकू कार्य करने में बहुत कम श्रम लगाता था। वह सब-कुछ बैठे-बिठाए पाना चाहता था। बस वह अपनी दादी मां से मुफ्त और हर वस्तु मिलने के लिए पूछता रहता था। उसकी दादी ने उसे कई बार समझाया कि परिश्रम के साथ कमाया हुआ ही फलता-फूलता है। जो आदमी मेहनत करता है, उसे ही सब कुछ मिलता है। निकम्मों को कुछ भी नहीं मिलता। आज उसकी दादी ने उसे बताया कि रात को कभी यक्षिणी मिल जाए तो कभी डरना मत और तुरन्त उसके बालों से पकड़ लेनी है। अगर उसके लम्बे बाल नहीं पकड़े गए तो उसकी ही शामत आएगी। तभी ही दांत पक्के चिपक जाएंगे और मृत्यु हो जाएगी। यक्षिणी बहुत ताकत वाली होती है। जो आदमी जैसा मांगता है वैसा ही दे देती है। रातकू यक्षिणी मिलने के सपने देखने लगा। वह बड़ी-बड़ी कल्पनाओं में खो जाता था।
रातकू ने घर का कार्य लगाया था। उसे छप्पर के लिए जुआं अर्थात लद्दा चाहिए था। पर उसे कहीं भी लद्दा नहीं मिलता था। आलसी तो वह पहले ही था फिर जंगल से लद्दा लाता भी कैसे। एक दिन वह सोचते-सोचते नाले की ओर निकल गया था। वहां न तो कोई घर था न ही घराट। बस सुनसान और सन्नाटा था। रातकू को बैठे और सोचते रात के करीब बारह बज गए होंगे। अचानक उसे छन-छन की आवाज सुनाई दी। उसने सामने देखा. बांकी-सन्दर लम्बे-लम्बे बालों वाली औरत उसकी ओर आने लगी थी। आंखें फाड़-फाड़ कर उसने चांद के प्रकाश में देखा कि महिला के बाल उसकी एड़ी तक पहुंचे थे। उसका पूरा तन सिहर गया। वह झट अपने स्थान पर खड़ा हो गया। एक घड़ी तो उसकी बोलती बन्द हो गई। परन्त उसने तुरंत अपने को सम्भाला और साहस कर किसी विपत्ती से लड़ने को तैयार हो गया। उसने सोचा रात को महिला आ नहीं सकती, ये अवश्य यक्षिणी है। इसके पहले कि वह उसे कस कर पकड़ ले, उसके लम्बे बाल उसको पकड़ने ही होंगे। रातकू ने अपना सारा भय खत्म किया और यक्षिणी के बाल पकड़ने को तैयार हो गया। उसने चांदनी को देखकर अन्दाजा लगाया कि यक्षिणी की छाया उस पर नहीं पड़ेगी। उसने निडर होकर आव देखा न ताव। आंख के झपकने के भीतर यक्षिणी के बालों को पकड़ लिया। यक्षिणी ने बाल छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर रातकू ने बाल नहीं छोड़े। यक्षिणी ने थक-हार कर कहा- “तू जैसा मांगेगा वह मैं दूंगी किन्तु बाल छोड़ दे। रातकू ने सोचा कि घर का निर्माण कार्य लगाया तो है यदि जुआं (लद्दा) मुझे मिल जाए तो आंनद आ जाएगा। उसने यक्षिण गी से कहा- ठीक है, मुझे जुआं चाहिए।”
“जुआं मांगी तो दे दी। अब घर जा। मेरे बाल छोड़।”
रातकू ने यक्षिणी के बाल छोड़ दिए। वह तुरन्त आंख झपकने के बीच अदृश्य हो गई। रातकू खुरकते घर पहुंचा। उसने दीपक की लौ में देखा कि घर में जूएं ही जूएं थी। उसे भी जूएं ही जूएं चिपकी हुई थी। उसे लद्दे की जगह जुएं मिली थी। जैसा मांगा वैसा ही मिला था। अब पछताने से क्या मिलना था। उसे अब बुद्धि आई कि जो आदमी मेहनत नहीं करता, उसे जुएं ही मिलती हैं। (साभार : प्रियंका वर्मा)