John Galsworthy - Nobel Laureate (Hindi Nibandh) : Munshi Premchand

नोबल पुरस्कार-प्राप्तकर्ता जॉन गाल्सवर्दी (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद

जॉन गाल्सवर्दी का जन्म ता. 4 अगस्त, सन् 1860 में हुआ था। इनके पिता एक नामी वकील थे और उनकी इच्छा थी कि गाल्सवर्दी भी उनकी तरह नामी वकील बने। गाल्सवर्दी का बचपन बड़े सुख से व्यतीत हुआ और अनुकूल परिस्थिति के कारण स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा का उन्हें भली-भांति लाभ प्राप्त हुआ था। सन् 1889 में गाल्सवर्दी ने वकालत की परीक्षा पास की और आगामी वर्ष ही उन्हें वकालत के काम में जुट जाना चाहिए था। पर ऐसा न करके उन्होंने अगले दो वर्ष जगत्-भर का प्रवास करने में व्यतीत किये। इस प्रवासकाल में ही उन्हें जोसेफ कॉनराड से मैत्री का अवसर मिला। आधुनिक अंग्रेजी साहित्य में कॉनराड एक खास स्थान रखता है। सामुद्रिक सैर की हौंस रखने वाले, समुद्र से अनेक योजन दूर रहने वाले इस पोलिश महापुरुष ने अपनी मातृभूमि को छोड़कर जहाज पर खलासी का-सा साधारण काम करना स्वीकार किया था। अंग्रेजी और फ्रेंच, दोनों भाषाओं का उसे भली-भांति ज्ञान था, परंतु दोनों में से किस भाषा में लिखना आरंभ करना चाहिए, यह उसकी समझ में ही न आता था। एक दिन रुपये को फेंककर निश्चय किया और अंग्रेजी भाषा के सौभाग्य से अंग्रेजी में लिखना निश्चित किया। अंग्रेजी के लेखक-समुदाय में कॉनराड एक श्रेष्ठ लेखक माना जाता है और जे. सी. स्क्वायर सरीखे चतुर्मुखी साहित्य-समीक्षक ने भी उसके विषय में कहा है, कि "कालांतर में वर्तमान सभी प्रसिद्ध लेखक जब विस्मृत से हो आयेंगे, तब भी कॉनराड की कृतियाँ लोगों को आज की-सी नवीन प्रतीत होंगी।" कॉनराड और गाल्सवर्दी में साहित्यिक साधर्म्य लेशमात्र भी नहीं है, पर उनकी व्यक्तिगत मैत्री इतनी गाढ़ी थी, कि सन् 1924 में कॉनराड की मृत्य-ुपर्यन्त वह अखंड रही।

गाल्सवर्दी ने अपना साहित्य कार्य बहुत विलंब से अर्थात् जीवन के 29 वें वर्ष से आरंभ किया। उसके व्यावहारिक जीवन की सहचरी ने ही उसके साहित्यिक जीवन में स्फूर्ति का काम किया। ऐसा कहा जाता है कि साहित्यिकों को सहसा सांसारिक सुख का लाभ नहीं होता। गाल्सवर्दी इसके लिए अपवाद था। गाल्सवर्दी की पत्नी बड़ी सुशीला थी और उसकी बुद्धि, समीक्षण शक्ति पर उसे बड़ा गर्व था। ‘फॉरसाइट सागा’ ( Forsyte Saga) का समर्पण इस प्रेमी दंपती के प्रेम का प्रत्यक्ष प्रतीक है।

अपनी प्रारम्भिक कृतियाँ गाल्सवर्दी ने John Sinjohn नाम से लिखी थी। इस समय वे सब अप्राप्य हैं और किसी को उनका स्मरण भी नहीं रह गया। प्रथित-यश होने पर गाल्सवर्दी ने स्वतः उनका प्रचार रोक कर ‘मेरे पहले पाप’ शीर्षक से उनका उल्लेख किया है। अपनी साहित्यिक कीर्ति को अकलंकित रखने की यह जवाबदारी क्या कम स्पृहणीय है?

सन् 1895 से 1905 ई॰ के दस वर्षो के काल में गाल्सवर्दी ने एक कहानी- संग्रह, चार बड़ी कहानियाँ और दो तीन उपन्यास प्रकाशित करवाये। उनमें The Island Pharisees नामक उपन्यास महत्त्वपूर्ण है। इसमें काव्यमय वातावरण , व्याजोकिति, कार्य-कारणभाव की मीमांसा और मनोभावों का विश्लेषण आदि गाल्सवर्दी के उत्तरकालीन विशेषता के चिह्न देखने को मिलते हैं, पर गाल्सवर्दी का सच्चा और कलामय कीर्ति-स्तंभ तो सन् 1906 में ही प्रस्थापित हुआ। इस वर्ष उसका प्रथम नाटक The Silver Box और उसकी कीर्ति को दिगंतव्यापिनी बनाने वाला उपन्यास Forsyte Saga का प्रथम खंड Man of Property प्रकट हुआ। ये दोनों कृतियाँ आज 26 वर्षों के पश्चात् देखने पर भी , ज्यों की त्यों तेजोमयी प्रतीत होती हैं। बाद में गाल्सवर्दी ने ‘सिल्वर बॉक्स’ से भी अच्छे नाटक तो अवश्य लिखे , पर समीक्षकों का खयाल है, कि Man of Property से अधिक सुंदर उपन्यास नहीं लिखा गया। इस उपन्यास में पात्रों के जीवन-वृत्तांत को आगे बढ़ाकर, उस समय के आंग्ल जीवन का इतिहास ही लिख डाला है – यह कहना चाहिए। इस उपन्यास के दूसरेखंड को Forsyte Saga तथा Modern Comedy नाम दिया गया है।

इन चालीस वर्षों में होने वाली इंग्लैंड की अनेक उथल-पुथलों, आचारविचारों की अनेक क्रांतियों आदि का सूत्रबद्ध प्रतिबिम्ब, चलचित्रों की तरह इन उपन्यासों में दृष्टि पड़ जाता है। नाटककार के रूप में गाल्सवर्दी चाहे कितना ही प्रसिद्ध क्यों न ह जाएँ, पर उसकी कीर्ति को Forsyte Saga ने ही बढ़ाया है। उपर्युक्त उपन्यासों के अतिरिक्त भी गाल्सवर्दी ने पाँच-छ: उपन्यास लिखे हैं और उसमे Dark Flower तथा Saint’s Progress विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। गाल्सवर्दी की कहानियों का बृहत् संग्रह भी प्रकाशित हुआ है, जिसमे उसकी सभी कहानियों का संग्रह हो गया है। उसका नाम है – Caravan । कविता और प्रबंध लेखक के रूप में गाल्सवर्दी की प्रसिद्धि नहीं है, पर इस क्षेत्र में भी उसने अपनी कलम को थोड़ा बहुत चलाया है। नाटक और उपन्यास जैसे साहित्य के दोनों अंगों पर सुंदर से सुंदर लिखने वाला सव्यसाची लेखक मुश्किल से ही आपको मिलेगा, पर गाल्सवर्दी ने दोनों पर बड़ा ही उत्तम रूप में लिखा है। उसका सा संभाषण लेखन पटु दूसरा नहीं हैं। आधुनिक अंग्रेजों नाटककारों में नोएल काँवर्ड्स ही एक ऐसा नाटककार है, जो संभाषण लिखने में गाल्सवर्दी का मुकाबला कर सके । गाल्सवर्दी की भाषा प्रवाह में बड़ा संयम और तोल होता है। उसने अभी तक उपन्यास और कहानियों के अलावा 25 नाटक भी लिखे हैं।

उसको अभी अभी गतवर्ष (सन् 1932) का नोबल पुरस्कार मिला था। उसके साहित्य का इतना अधिक प्रचार है कि उस पर इस छोटे से परिचय में लिखना असंभव है। खेद है कि अभी-अभी जनवरी (31 जनवरी, 1933) में ही वह महापुरुष स्वर्गवासी हो गया।

[साप्ताहिक ‘जागरण’, 3 अप्रैल 1933]

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