जोगी और किसान : कश्मीरी लोक-कथा

Jogi Aur Kisan : Lok-Katha (Kashmir)

बहुत पहले की बात है, एक गाँव में एक सीधा-सादा किसान रहता था। छोटा-सा जमीन का टुकड़ा था उसके पास। वह भी खुश्क। उसका गुजारा कठिनाई से चलता था। परिवार में काफी सारे सदस्य और धन का अभाव। जीवन से ऊबा और कर्जे में डूबा हुआ था। रात-दिन चिन्ता में घिरा प्रभु से प्रार्थना करता रहता था।

उसने अपने छोटे-से खेत को हल से जोत कर बीजा था और अब ढेले तोड़ रहा था। प्रभु की करनी वहाँ से एक जोगी गुज़रा। हाथ में एक अजीब एवं अनेक कोणों पर मुडी लाठी जैसे साँप, गर्दन में लटका झोला, कमर में घुटनों तक कपड़ा लपेटे और एक हाथ में कठौती। जोगी ने किसान के मिट्टी सने शरीर से पसीना बहते देखा। जोगी को देखकर किसान ने भी ढेला तोड़ना बन्द कर दिया तथा आश्चर्यचकित हो उसे टकुर-टुकुर देखने लगा। जोगी ने उसे अपने पास आने का संकेत किया। किसान हौले-हौले कदम बढ़ाता उसके समीप आया और कहा-"क्या साऽ छुख वनान (क्या कहते हो महाराज!)" जोगी बोला- "तुम्हारे पास चिलम तो नहीं? मैं चरस का सूटा लगाना चाहता हूँ।" किसान को उसकी भाषा समझ न आई। जोगी को भी लगा कि इसे मेरी भाषा समझ में नहीं आती है, अत: उसने इशारों से चिलम पीना और धुआँ छोड़ना दिखा दिया। किसान को अब समझ आया कि जोगी हुक्का चाहता है।

किसान संकेत करते हुए जोगी को एक वृक्ष की छाया तले ले गया और वहाँ उसे अपना मिट्टी का हुक्का दिखाया। उसने हुक्का में पास ही बहती छोटी-सी कुल्या को ताजा पानी से भरा तथा प्रेम से जोगी के सामने रख दिया। अलाव से एक मिट्टी के टूटे बर्तन के टुकड़े पर अंगारे ले आया। जोगी यह सब देख रहा था और उसे किसान की हालत पर बहुत तरस आ रहा था। वह उसका आतिथ्य देखकर प्रसन्न भी हो रहा था। किसान ने जेब से ताँबे का एक पैसा निकाला और चिलम के छेद में डाल दिया क्योंकि चिलम का छेद बड़ा और खुला था। यह जंग-लगा पैसा भी उसने अपने खेत से ही पाया था। जोगी ने चरस की एक गोली निकाली और तम्बाकू के साथ, तथा कुछ और मिलाकर चिलम में भर दिया। चिलम पर दहकते अंगारे रख कर वह आकाश की ओर देखते हुए वह कश लगाने लगा। धुएँ के बादल उठे और जोगी की आँखें दहकते अंगारों से भी लाल हो गईं। किसान को सम्बोधित करते हुए वह कहने लगा, "आप गरीब है, आप गरीब है।" किसान को इसका अर्थ समझ न आया पर गरीब शब्द सुनकर। उसने 'हाँ' में सिर हिलाया। "हाँ गरीब सख (बहुत) है।" इसी के साथ जोगी उठ खड़ा हुआ। किसान को हाथ से सलाम की और चलता बना। किसान ने उसे जाते हुए दूर तक देखा फिर किसान ने चिलम खाली की। जंग लगा पैसा जो पहले लाल था अब पीला यानी सोने जैसा बन गया था।

उसी समय उस ओर उस गाँव का सुनार आ गया। किसान ने सुनार से कहा, "अरे उस्ताद जी, जरा यहाँ आइए और इसे देखिए।" किसान ने यह मजाक में ही कहा था। सुनार, जिसका नाम अहमद था, किसान के पास आया और पूछा, "किसे?" किसान ने पैसा दिखाया। अहमद सुनार बैठ गया। कसौटी जेब से निकाली और पैसे को पूरी तरह देखा और कहा, "ठीक है। शुद्ध है। क्या इसे बेचना है ?"

"जी हाँ, पैसों की आवश्यकता है।"

सुनार ने एक सौ ग्यारह रुपये निकाले और किसान को देने लगा। किसान हैरान हुआ और सुनार से कहा, "अजी, मज़ाक क्यों करते हो?"

"मैं मज़ाक क्यों करने लगा। लो, और पाँच रुपए देता हूँ। बस इससे अधिक न दूंगा।"

किसान को लगा कि सुनार मज़ाक कर रहा है। इस ताँबे के पैसे का इतना मोल ? जब सुनार पाँच रुपए और देने लगा तो किसान ने बिस्मिल्लाह करके पैसे लिये। सुनार उठ खड़ा हुआ और सोने का पैसा लेकर वहाँ से चल दिया।

किसान हैरान था कि जोगी ने इस ताँबे के पैसे को आन-की-आन में ही सोने में कैसे परिवर्तित कर दिया! काम छोड़ कर वह जोगी की खोज में उसी दिशा में गया जिधर वह गया था। दिन ढलने से पहले उसने एक स्थान पर जोगी को लेटे, नींद में मस्त पाया। उसे पाकर वह बहुत खुश हआ और उसके जागने की प्रतीक्षा करता रहा। जोगी किसान को देखकर चकित हुआ। किसान उसके चरण पकड़ कर अनुनय-विनय करने लगा कि "मुझ पर कृपा कीजिए। मैं बहुत गरीब हूँ।" और ज़ार-ज़ार रोने लगा।

जोगी को किसान पर दया आ गई और उसने कहा कि "तुम्हें मेरे साथ सात दिन रहना होगा।" किसान तैयार हो गया। फिर जोगी ने किसान को सूखी लकड़ियाँ लाने और धूनी जलाने को कहा। किसान ने तुरन्त ही इसे कार्यान्वित किया। जोगी ने भूमि में एक छेद बना दिया। इस छेद में अपनी लाठी का निचला हिस्सा घुसेड़ा और अगले भाग पर अपना माथा टिकाकर साधना करने लगा।

किसान धूनी में लकड़ियाँ डालता गया। अपने लिए थोड़ा बहुत कुछ-न-कुछ बनाता गया और दिन काटता गया। सातवें दिन जोगी द्वारा बनाये गये छेद से एकदम एक मोटी जलधारा निकली, जिसने आसपास को जलमग्न कर दिया। किसान यह देखकर दूर भाग गया और चकित होकर देखने लगा, यह क्या माजरा है! फिर जल गायब हो गया और जोगी ने किसान को इशारों से अपने पास बुलाया। वह जोगी के पास आया। जोगी ने उसे एक गोल ठीकरा दिया और कहा, "लो यह तुम्हारे लिए समुद्र से लाया हूँ। इसे घर में किसी सन्दूक में रखना। तुम मालामाल व आबाद हो जाओगे। एक बात का ध्यान रखना, इसे खोना नहीं।" जोगी के अच्छी तरह से समझाने पर किसान ने ठीकरा अपनी जेब में रख लिया और जोगी से विदा लेकर घर की ओर चल दिया। मील-दो मील चलने के बाद उसे एक पीर साहब दिखे। किसान को ख्याल आया क्यों न मैं इस ठीकरा को पीर साहब को दिखा दूं। उन्हें शायद ज्ञान होगा कि इस ठीकरा के रखने से मेरा कल्याण होगा कि नहीं। ठीकरा पीर को दिखा कर इसे प्राप्त करने का सारा किस्सा भी उन्हें सुनाया। पीर समझ गया कि इस ठीकरा में कुछ शक्ति है और किसान से कहने लगा कि इसे एक रात मेरे द्वारा भी अभिमन्त्रित करने की आवश्यकता है। किसान बहुत नादान था और पीर के कहने में आ गया। यह मुल्ला किसान का ही पड़ोसी था। घर पहुँच कर किसान ने अपनी पत्नी को सारा वृत्तान्त सुनाया।

एक दिन बीत जाने पर किसान पीर के पास ठीकरा लेने गया। पीर मुकर गया और उल्टे उससे कहने लगा कि तुम बकवास करते हो। किसान ने बहुत कुछ कहा और चिल्लाया पर किसी ने उसकी न सुनी। लोगों ने उससे कहा कि तुम पागल हो गए हो। वह बहत पछताया और परेशान हो गया। सोच-विचार के बाद वह फिर जोगी की खोज में निकल पडा। पूरे एक दिन की खोज के बाद उसे जोगी मिल गया और रोते-रोते उसने सारी दास्ताँ सना दी। किसान ने जोगी के पैर पकड़ लिए और बहुत अनुनय-विनय की। जोगी मन-ही-मन कहने लगा कि यह नादान है, ठीकरा उसके हाथ दिया!

विवश होकर जोगी ने किसान से तुरन्त आग जलाने को कहा। जोगी ने आग में अपना चिमटा लाल सुर्ख कर दिया और पूरी शक्ति से उसे जमीन में गाड़ दिया। चिमटे के गड़ते ही पीर जोगी के पास धड़ाम से गिर गया। जोगी ने उससे कहा, "अरे कमीने, तुमने इस सीधे-सादे इनसान को क्यों लूट लिया? यह बेचारा गरीब और अभावग्रस्त है।" पीर पर जैसे वज्रपात हो गया और वह लाहौल विल्लाह... पढ़ने लगा। जेब से ठीकरा निकाल के दिया और बाल-बाल बच गया। किसान ने अपना ठीकरा लिया और जोगी से विदा लेकर चल दिया। पीर को दण्ड मिला कि वह पूरे एक महीने तक जंगल से अलाव के लिए सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी करके लाए, तभी उसकी जान बख्श दी जाएगी। किसान एक महीने में ही अपने क्षेत्र का बड़ा व्यापारी बन गया। मुल्ला जब लौटा तो हैरान हो गया और पछताया। वह किसी को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहा था।

(पृथ्वी नाथ मधुप)

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