जियूफ़ा के कारनामे : इतालवी लोक-कथा
Jiyufa Ke Karname : Italian Folk Tale
जियूफ़ा इटली देश की लोक कथाओं का एक बहुत ही बड़ा और लोकप्रिय हीरो है। इसकी छोटी छोटी बहुत सारी लोक कथाएं मशहूर हैं।)
1. जियूफ़ा और पादरी
जब जियूफ़ा ने अपनी छोटी बहिन को गरम पानी में उबाल कर मार दिया तो उसकी माँ ने उसको घर से बाहर निकाल दिया। घर से बाहर निकाले जाने पर वह एक पादरी के पास चला गया और उससे उसके यहाँ काम करने की इच्छा प्रगट की।
पादरी ने पूछा कि तुम कितनी तनख्वाह लोगे। जियूफ़ा बोला — “एक अंडा रोज का और उतनी डबल रोटी जितनी मैं उसके साथ खा सकूँ। और आप मुझे तब तक काम पर रखेंगे जब तक उल्लू आइवी3 पर बोलता है।”
पादरी उसकी इस तनख्वाह से सन्तुष्ट हो गया। उसको लगा कि उसको इतना सस्ता नौकर कहीं नहीं मिलेगा सो उसने उसको अगली सुबह से काम पर आने के लिये बोल दिया।
सो अगली सुबह जब वह पादरी के पास काम करने आया तो पादरी ने उसको एक अंडा दे दिया और एक डबल रोटी दे दी।
जियूफ़ा ने अंडा तोड़ा और उसे एक पिन से खाने लगा। और जब भी वह अंडा लगी पिन को चाटता तो उसके साथ एक बहुत बड़ा सा टुकड़ा डबल रोटी का खा लेता। दो चार बार में ही उसकी वह डबल रोटी खत्म हो गयी।
डबल रोटी खत्म करके वह बोला — “मुझे थोड़ी डबल रोटी और दीजिये। इतनी तो काफी नहीं थी।” पादरी को उसको एक बहुत बड़ी टोकरी भर कर डबल रोटी देनी पड़ गयी।
अब ऐसा रोज होता। एक दिन वह पादरी चिल्लाया — “उफ़ यह तो कुछ ही हफ्तों में मुझे भीख मँगवा देगा।” उस समय जाड़े का मौसम था तो उल्लू को आइवी पर बोलने के लिये तो अभी कई महीने थे।
बहुत दुखी हो कर पादरी ने अपनी माँ से कहा — “माँ आज तुम शाम को आइवी में छिप कर उल्लू की आवाज में बोलना।”
उसकी माँ ने वैसा ही किया जैसा उसके बेटे ने उससे करने के लिये कहा था। वह चिल्लायी — “म्यू म्यू।”
उसकी आवाज सुना कर पादरी ने जियूफ़ा से पूछा — “क्या तुमने सुना? उल्लू आइवी में बोल रहा है अब हम अलग हो सकते हैं।”
जियूफ़ा ने अपनी पोटली उठायी और अपने घर चल दिया। जब वह जा रहा था तब भी पादरी की माँ “म्यू म्यू” चिल्ला रही थी।
जियूफ़ा बोला — “ओ शापित उल्लू, तुमको सजा और दुख दोनों मिलेंगे।” कह कर उसने पादरी की माँ के ऊपर कई पत्थर फेंके और उसको मार दिया।
2. जियूफ़ा और किसान
जब वह घर पहुँचा तो उसकी माँ ने उसको घर में नहीं रहने दिया। उसने उसको एक किसान के पास उसके सूअरों को चराने के लिये भेज दिया।
उस किसान ने उसको अपने सूअरों के झुंड को दे कर जंगल भेज दिया और कहा कि जब वे खा पी कर मोटे हो जायें तब वह उनको वापस ले कर आ जाये।
सो उन सूअरों को मोटा करने के लिये जियूफ़ा जंगल में कई महीने रहा। जब वे सूअर मोटे हो गये तो वह उनको ले कर घर लौटा।
जब वह उनको ले कर किसान के घर लौट रहा था तो रास्ते में उसको एक कसाई मिल गया। उसने कसाई से पूछा — “क्या तुम ये सूअर खरीदोगे? मैं तुमको ये सूअर आधे दाम पर दे दूँगा अगर तुम इनके कान और पूँछ मुझे वापस कर दो तो।”
कसाई ने उसका वह सूअर का पूरा का पूरा झुंड खरीद लिया और जियूफ़ा को उसके कान पूँछ और पैसे दे दिये। जियूफ़ा उनको ले कर पास की एक जमीन पर गया और उसने सूअर के दो कान और सूअर की एक पूँछ के तीन हिस्से करके वहाँ बो दिये। इस तरह से उसने उन सूअरों के सब कानों और पूछों को बो दिया।
फिर वह परेशान होता हुआ किसान के पास दौड़ा दौड़ा गया और उससे बोला — “ज़रा सोचिये तो कि आज मेरे ऊपर क्या आफत आ पड़ी। मैंने आपके सारे सूअर बहुत अच्छी तरह से खिला पिला कर मोटे कर लिये थे और उनको घर ले कर आ रहा था कि वे सब के सब एक जमीन के टुकड़े में गिर पड़े और वह जमीन का टुकड़ा उनको सबको निगल गया बस केवल उनके कान और पूँछें ही बाहर रह गयीं।”
किसान ने जल्दी से अपने कुछ आदमी इकठ्ठा किये और उनको साथ ले कर उस जमीन के पास पहुँचा जहाँ उसके सूअरों के कान और पूँछ बाहर निकले हुए थे।
उन सबने सूअरों के कान या पूँछ खींच खींच कर उनको बाहर निकालने की कोशिश की पर जब भी उन्होंने कोई कान खींचा या कोई पूँछ खींची तो वह बस वह कान या पूँछ ही बाहर आयी और कुछ नहीं।
यह देख कर जियूफ़ा बोला — “देखा न वे सूअर कितने मोटे हो गये थे। वे इस जमीन में केवल अपने मोटेपन की वजह से ही गायब हो गये।”
किसान बेचारा क्या करता वह बिना अपने सूअरों के ही अपने घर लौटने पर मजबूर हो गया। और जियूफ़ा वह सारा पैसा ले कर अपने घर चला गया और फिर कुछ दिन तक अपनी माँ के पास ही रहा।
3. जियूफ़ा ने उधार लिया
एक दिन जियूफ़ा की माँ ने जियूफ़ा से कहा — “जियूफ़ा आज हमारे घर में खाने के लिये कुछ भी नहीं है। क्या करें।”
वह बोला — “यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं देखता हूँ।” और वह एक कसाई के पास पहुँचा और उससे कहा — “गौसिप, मुझे आधा किलो माँस दे दो मैं तुमको इसे पैसे कल दे दूँगा।”
गौसिप ने उसको माँस दे दिया। माँस ले कर वह पहले एक बेकर के पास गया फिर एक तेल बेचने वाले के पास गया फिर एक शराब बेचने वाले के पास गया और फिर एक चीज़ बेचने वाले के पास गया।
वहाँ से उसने मेकैरोनी, डबल रोटी, तेल, शराब और चीज़ उधार ला कर अपनी माँ को दे दीं। दोनों ने बड़े मजे में खाना खाया।
अगले दिन जियूफ़ा ने मरने का बहाना किया और उसकी माँ ने रोना शुरू कर दिया। “ओह मेरा बेटा मर गया। ओह मेरा बेटा मर गया।” उसके शरीर को एक खुले हुए ताबूत में रख कर चर्च ले जाया गया। पादरियों ने उसके ऊपर मास पढ़ी।
शहर में भी लोगों को पता चला कि जियूफ़ा मर गया। कसाई, बेकर, तेल बेचने वाला और शराब बेचने वाले ने कहा — “जो कुछ इसको हमने कल उधार दिया था वह तो अब ऐसा हो गया जैसे हमने उसे कुछ बेचा ही नहीं हो। अब हमें उसके दाम कौन देगा।”
पर चीज़ बेचने वाले ने सोचा “जियूफा यह तो सच है कि तुम पर मेरे चार ग्रैनी4 उधार हैं पर मैं उनको तुम पर छोड़ूँगा नहीं।” मैं अभी उसकी टोपी उतार कर लाता हूँ।
और वह चीज़ बेचने वाला चुपचाप चर्च में घुस गया पर इत्तफाक से पादरी तभी भी वहाँ मौजूद था और जियूफ़ा के ताबूत पर प्रार्थना कर रहा था।
उसने सोचा “यह पादरी जब तक यहाँ है तब तक तो मैं इसकी टोपी उतार नहीं सकता क्योंकि यह ठीक नहीं है। जब तक यह पादरी यहाँ से जाता है तब तक में इन्तजार करता हूँ।”
सो वह पूजा की जगह के पीछे जा कर छिप गया।
जब रात हो गयी और आखिरी पादरी भी वहाँ से चला गया तो वह चीज़ बेचने वाला अपनी छिपी हुई जगह से बाहर निकलने ही वाला था कि डाकुओं का एक गिरोह चर्च में घुसा।
उन्होंने कहीं से पैसों का एक बहुत बड़ा थैला चुरा लिया था और अब उस पैसे को वे बाँटना चाहते थे। उन्होंने पैसे बाँटने शुरू किये तो वे उस बँटवारे पर लड़ने लगे और एक दूसरे पर चिल्लाने लगे।
उनका चिल्लाना सुन कर जियूफ़ा उठ गया और ज़ोर से बोला — “तुम सब यहाँ से चले जाओ। यह पैसा मेरा है।”
ताबूत में से एक मुर्दे को खड़ा होते देख कर डाकू डर गये और पैसों का थैला वहीं छोड़ कर भाग गये।
जैसे ही जियूफ़ा ने पैसों का थैला उठाने की कोशिश की तो चीज़ बेचने वाला अपनी छिपी हुई जगह से कूद कर बाहर आ गया और उस थैले के पैसों में से अपना हिस्सा माँगने लगा।
जियूफ़ा बोला — “तुम्हारा हिस्सा तो केवल चार ग्रैनी है सो लो तुम यह अपनी चार ग्रैनी लो।”
डाकू अभी भी बाहर ही थे क्योंकि वे इस तरह से अपनी कमाई वहाँ छोड़ कर जाने वाले नहीं थे। सो जब उन्होंने यह सुना तो उन्होंने सोचा “लगता है मरी हुई आत्माएं इस पैसे को आपस में बाँट रही हैं।”
सो उन्होंने आपस में कहा — “अगर इसमें हर एक का चार ग्रैनी का हिस्सा है तो इसने कितनी आत्माओं को बुलाया है?” और यह कह कर वे वहाँ से जितनी जल्दी भाग सकते थे भाग गये।
उस थैले में से जियूफ़ा ने चार ग्रैनी चीज़ बेचने वाले को उसके चीज़ के लिये दीं और कुछ और पैसा उसको इसलिये दिया ताकि वह इस सबके बारे में किसी और से कुछ न कहे और बाकी का बचा पैसा ले कर वह घर चला गया।
4. जियूफ़ा और परियाँ
एक बार जियूफ़ा की माँ ने एक बहुत बड़ा थैला भर कर अलसी5 की रुई खरीदी। उसने जियूफ़ा से कहा — “मुझे यकीन है कि तुम कुछ करने के लिये इसमें से थोड़ी सी रुई तो कात ही सकते हो।”
सो जियूफ़ा उस थैले में से एक एक करके रुई की पूनी निकालने लगा और बजाय उसकी रुई कातने के वह उसको आग में डालने लगा। यह देख कर उसकी माँ बहुत गुस्सा हुई और उसने उसकी बहुत पिटायी की।
तो फिर जियूफ़ा ने क्या किया?
उसने छोटी छोटी डंडियों का एक गठ्ठर लिया और उसके चारों तरफ वह रुई लपेट दी जैसे तकली पर लपेटते हैं। फिर उसने उसकी एक झाड़ू सी बनायी और छत पर बैठ कर उसे वहाँ घुमाने लगा।
जब वह वहाँ बैठा हुआ यह कर रहा था तो वहाँ तीन परियाँ आयीं और कहने लगीं — “देखो जियूफ़ा कितनी अच्छी तरीके से बैठा हुआ यह सूत कात रहा है। क्या हमको इसे कुछ देना नहीं चाहिये।”
पहली परी बोलाी — “मैं इसको यह वरदान देती हूँ कि एक रात में यह जितनी भी रुई छुए वह सब कत जाये।”
दूसरी परी बोली — “मैं इसको यह वरदान देती हूँ कि एक रात में इसने जितना भी धागा काता हो वह यह सब बुन ले।”
तीसरी परी बोली — “मैं इसको यह वरदान देती हूँ कि जितना भी कपड़ा इसने रात भर में बुना है वह सब धो कर साफ कर ले।”
जियूफ़ा ने यह सब सुन लिया। सो जब रात हो गयी और उसकी माँ जब सोने चली गयी तो वह उसके खरीदे हुए अलसी की रुई के ढेर के पास गया और जैसे ही उसने उसकी एक लच्छी छुई वह कत गयी।
जब सारी रुई कत गयी तो वह उसको बुनने बैठा।
जैसे ही उसने बुनने की मशीन6 को छुआ तो उसका सारा सूत कत कर कपड़े के रूप में निकलने लगा। उसने तुरन्त ही वह कपड़ा बिछाया और उसको धोने के लिये उसके ऊपर थोड़ा सा पानी डाला कि वह तो सारा कपड़ा साफ हो गया।
अगले दिन जियूफ़ा ने अपनी माँ को अपना बना हुआ बढ़िया कपड़ा दिखाया तो वह तो बहुत खुश हो गयी। उसने उसको बाजार में बेच कर बहुत पैसा कमाया।
जियूफ़ा यह काम कई रातों तक करता रहा। फिर वह यह करते करते थक गया तो वह फिर किसी दूसरे किसी काम के लिये निकल पड़ा।
5. जियूफ़ा और लोहार
अब की बार उसको एक लोहार की दूकान पर काम मिल गया। उसको उसकी धौंकनी7 चलाने का काम मिल गया था।
उसने वह धौंकनी इतनी ज़ोर से चलायी कि लोहार की आग ही बुझ गयी। यह देख कर लोहार बोला “ठीक है तुम धौंकनी चलाना छोड़ो और लो यह हथौड़ा लोहे पर मारो।”
जियूफ़ा ने उससे हथौड़ा ले कर लोहे पर हथौड़ा भी इतने जोर से मारा कि वह लोहे का टुकड़ा भी हजारों टुकड़ों में टूट कर बिखर गया।
अब की बार लोहार को बहुत गुस्सा आया। वह उसको काम से निकालना चाहता था पर वह उसको निकाल भी नहीं सकता था क्योंकि उसने उसको एक साल के लिये रखा था।
वह एक गरीब आदमी के पास गया और उससे कहा — “मैं तुमको बहुत कुछ दूँगा अगर तुम उससे यह कहो कि तुम उसकी मौत हो और तुम उसको लेने आये हो।” वह गरीब आदमी बेचारा मान गया।
एक दिन वह जियूफ़ा से मिला और उसने उससे वही कहा जो उस लोहार ने उससे जियूफ़ा से कहने के लिये कहा था। पर जियूफ़ा बहुत तेज़ था। वह बोला — “क्या? क्या कहा तुमने तुम मेरी मौत हो और मुझे लेने आये हो?”
यह कह कर वह उस गरीब आदमी को पकड़ कर एक थैले में डाल कर लोहार के पास ले गया। वहाँ उसने उसको लोहा कूटने वाली जगह रखा और उसको हथौड़े से मारना शुरू कर दिया।
हथौड़ा मारते मारते वह बोला — “अब बोल मैं और कितने साल ज़िन्दा रहूँगा?”
वह बेचारा गरीब आदमी थैले में से बोला — “20 साल।”
“यह ठीक नहीं है। यह तो बहुत कम हैं। ठीक से बोल।”
वह गरीब आदमी चिल्लायाा — “30 साल। 40 साल। जितने साल तुम ज़िन्दा रहना चाहो उतने साल।”
पर जियूफ़ा उसको तब तक हथौड़े से मारता ही रहा जब तक वह मर नहीं गया।
6. जियूफ़ा और बिशप
एक बार शहर के बिशप ने सारे शहर में यह मुनादी पिटवायी कि उस शहर का हर सुनार उसको एक सोने का क्रास8 बना कर देगा।
जिस किसी का क्रास सबसे सुन्दर होगा वह उसको 400 औंस देगा और जिस किसी का क्रास उसको खुश नहीं कर सका तो वह उसका गला काट देगा।
यह सुन कर एक सुनार एक बहुत सुन्दर क्रास बना कर बिशप के पास ले कर गया पर बिशप ने उसको देख कर कहा कि उसका वह क्रास देख कर उसको खुशी नहीं हुई और उस बेचारे का गला तो काट दिया पर उसका क्रास रख लिया।
अगले दिन एक दूसरा सुनार एक सुन्दर क्रास बना कर लाया पर वह क्रास भी बिशप को पसन्द नहीं आया। उसने उस सुनार का भी गला काट लिया और उस क्रास को भी अपने पास रख लिया।
यह सब कई दिनों तक चलता रहा। इस तरह से कई सुनार क्रास बना बना कर लाते रहे और उन सुनारों के क्रास बिशप को खुश नहीं कर सके तो उन सब सुनारों के सिर कटते रहे। और बिशप उनके सोने के क्रास अपने पास रखता रहा।
जियूफ़ा ने भी यह सुना तो वह एक सुनार के पास गया।
उसने उससे जा कर कहा — “दोस्त तुम मेरे लिये एक क्रास बना दो जिसका शरीर खूब मोटा हो पर वह बहुत बढ़िया बना हुआ हो जितना बढ़िया तुम बना सकते हो।”
उस सुनार ने जियूफ़ा के लिये जैसा वह चाहता था वैसा ही एक क्रास बना दिया। जियूफ़ा ने उस क्रास को अपनी बाँहों में पकड़ा और उसको ले कर बिशप के पास चल दिया।
जैसे ही बिशप ने जियूफ़ा को उस क्रास के साथ देखा तो चीखा — “अरे यह तुम क्या कर रहे हो? क्या तुम मेरे पास यह इतना बड़ा राक्षस ले कर चले आ रहे हो? ठहरो, तुमको इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
जियूफ़ा बोला — “ठीक है जनाब वह तो मैं चुका दूँगा पर ज़रा सुनिये तो कि मेरे साथ हुआ क्या। जब मैं इस क्रास को ले कर चला तो यह क्रास तो बहुत ही सुन्दर था जैसे कोई मौडल होता है।
पर रास्ते में यह गुस्से से फूलता गया फूलता गया और जैसे जैसे मैं आपके घर के पास आता गया तो यह और फूलता गया और और फूलता गया। और सबसे ज़्यादा तो यह तब फूला जब मैं आपकी सीढ़ियाँ चढ़ रहा था।”
बिशप ने आश्चर्य से पूछा — “मगर ऐसा क्यों हुआ?”
जियूफ़ा शान्ति से बोला — “क्योंकि लौर्ड9 आपसे गुस्सा हैं। क्योंकि आपने इतने सुनारों का बेकुसूर खून बहाया है। और अगर आप मुझे तुरन्त ही 400 औंस नहीं देंगे और हर सुनार की विधवा को सालाना खर्चा नहीं देंगे तो आप पर भी भगवान बहुत गुस्सा होंगे और आप भी इसी क्रास की तरह से फूलते चले जायेंगे।”
यह सुन कर तो बिशप काँप गया और उसने तुरन्त ही जियूफ़ा को 400 औंस ला कर दे दिया। और उससे कहा कि वह उन सारे मारे हुए सुनारों की विधवाओं को उसके पास भेज देगा ताकि वह उनकी सालाना पेन्शन बाँध सके।
जियूफ़ा उस पैसे को ले कर वहाँ से चला गया। फिर वह हर विधवा के पास गया और उससे पूछा —“ अगर मैं बिशप से तुम्हारे लिये सालाना खर्चा बँधवा दूँ तो तुम मुझे क्या दोगी।”
हर विधवा तो यह सुन कर बहुत खुश हो गयी और हर एक ने उसको इस बात के लिये काफी पैसा दिया।
इस तरह जियूफ़ा उस काफी सारे पैसे को अपनी माँ के पास ले गया।
7. जियूफ़ा और बच्चे
एक दिन जियूफ़ा की माँ ने उसको एक दूसरे शहर भेजा जहाँ एक मेला लगा हुआ था। रास्ते में उसको कुछ बच्चे मिल गये। उन्होंने पूछा “जियूफ़ा तुम कहाँ जा रहे हो?”
“मैं मेले जा रहा हूँ।”
“क्या तुम हमारे लिये एक सीटी लाओगे?”
“हाँ हाँ क्यों नहीं।”
कई बच्चे चिल्लाये “और मेरे लिये भी। और मेरे लिये भी। और मेरे लिये भी।” और जियूफ़ा ने सबको हाँ कर दी।
आखीर में एक बच्चा बोला — “मेरे लिये भी एक सीटी लाना न जियूफ़ा। लो यह एक पैनी लो।”
जब जियूफ़ा मेले से वापस आया तो वह केवल एक ही सीटी ले कर आया उस आखिरी बच्चे के लिये जिसने उसको पैनी दी थी।
दूसरे बच्चे चिल्लाये — “जियूफ़ा तुमने तो कहा था कि तुम हम सब के लिये एक एक सीटी ले कर आओगे। कहाँ है हमारी सीटी?”
जियूफ़ा बोला — “पर तुममें से किसी ने मुझे उसको खरीदने के लिये कोई पैसा तो दिया ही नहीं था। मैं कैसे खरीदता।”
तो बच्चो ऐसा था जियूफ़ा।
(साभार : सुषमा गुप्ता)