जीवन-झरना (स्पेनिश कहानी) : एमिलिया पार्डो बाजान
Jiwan-Jharna (Spanish Story in Hindi) : Emilia Pardo Bazan
बीमार ऊँट चालक को झरने के किनारे छोड़कर काफिला चलता रहा। झरने के पानी की प्रसिद्धि के कारण सारे काफिले वहाँ रुकते थे—पानी, जिसकी बाबत बहुत बातें की जाती थीं। कुछ कहते कि इसके एक घूँट से दुर्बल में पुनः शक्ति आ जाती थी और दूसरों का विचार था कि इसके गुण अजीब, भयानक और यहाँ तक कि प्राणनाशक थे।
हजरत मुहम्मद के दामाद हजरत अली के अनुयायी और वह आदमी जिससे हजरत के धार्मिक और राजनैतिक काम को जारी रखना था, झरने के पानी का विशेष आदर करते थे। वे कहते थे कि उदार और अभागा राजकुमार, जो अपने घोषित शत्रु ऐशा या आजा, हजरत की विधवा, की सेना पर विजयी था, ने अपनी निश्चित विजयवाले दिन इसी से अपनी प्यास बुझाई थी। जैसे सभी विश्वासी जानते हैं कि हजरत की विधवा लड़ाई में ऊँट से गिर गई थी, अली ने उसे आदरपूर्वक उठाया तथा क्षमा कर दिया और उसे सुरक्षित मक्का भेज दिया। यह कहा जाता है कि उसी समय से ही जीवन झरने के पानी के गुणों की चर्चा शुरू हुई थी। यह बताया गया है कि ऐशा, जो उन केवल चार अद्वितीय महिलाओं में से एक थी जो इस दुनिया में रहीं, ने अपनी पराजय और कैदी बनाए जाने के बाद, पानी को अपने होंठों से छुआ तो उसने घोषणा की कि उसका स्वाद असह्य था।
ऊँट चालक पानी के स्वाद के बारे में नहीं सोच रहा था। उसने धूल के उस बादल को लुप्त होते देखा जो विदा होता हुआ काफिला छोड़ गया था और अपने आपको मरुस्थल की रेत के समुद्र में टूटे हुए जहाज के यात्री के रूप में पाया।
यह सत्य है कि झरना नखलिस्तान से घिरा हुआ था। दस-बारह खजूर के पेड़ और ऊँटों को पानी पिलानेवाला ईंट-मसाले से बना कठौता और दूर मसजिद में जानेवाले यात्रियों के थोड़े आराम के लिए विश्रामगृह—इतना ही उस एकांत नखलिस्तान में था। गरमी, जिसने उसकी नाडि़यों में रक्त को शुष्क कर दिया था, से भकोसाए किफायती और संयमी ऊँट चालक ने अब खाने—रोटी और खजूर जो उसका सामान्य भोजन था, की ओर ध्यान नहीं दिया; अब उसका सहारा केवल झरने का पानी था।
‘‘वे इसको जीवन का झरना कहकर अच्छा करते हैं। मैं कुछ ही दिनों में अच्छा हो जाऊँगा। मैं इसको पीता रहूँगा।’’
दो-तीन दिन बीत गए। त्यागा हुआ व्यक्ति अपना मिट्टी का बरतन पानी की मुश्क से भरता रहा, जो उसके साथी आगे जाने से पहले भरकर उसकी बगल में छोड़ गए थे, और जैसे ही वह पानी पीता था, सोचने लगता—
‘मेरी बीमारी जरूर मेरे दिमाग को घुमा देगी। अभी यह पानी कितना मीठा था और अब ऐसा हो गया जैसे कोई कड़वा काढ़ा मिला दिया गया हो।’
तीसरे दिन बौनी जाति के लोगों, जो थोड़ी दूर शुष्क घाटी की ढलान पर ठहरे हुए थे, की लड़कियाँ अपनी पानी की मुश्के भरने के लिए झरने पर आईं। बीमार आदमी ने अपनी मुश्क भरने के लिए याचना की क्योंकि वह स्वयं इतना दुर्बल हो गया था कि मुश्क को झरने में डुबो नहीं सकता था। एक पंद्रह वर्षीया, बारहसिंघे की तरह पतली लड़की ने सिकड़ी को घुमाया और पानी से भरी बालटी ऊपर आ गई। पानी ठंडा और बिल्लौर की तरह साफ था। बीमार आदमी ने घूँट भरने के लिए काँपते हुए हाथ फैलाए। जब लड़की ने चमकीले पानी से भरा, चित्रकारी किया हुआ अपना बरतन उसे दिया तो वह प्रसन्नता से मुसकराया, परंतु कुछ बूँद पानी पीते ही उसने बुरी तरह मुँह बनाया।
‘‘मुश्क के पानी के स्वाद की अपेक्षा इसका स्वाद और अधिक कड़वा है।’’ वह व्याकुलता से बड़बड़ाया।
लड़की ने अपने बरतन में थोड़ा पानी लिया और उसको बड़ी प्रसन्नता से धीरे-धीरे स्वाद चखते हुए पीया और बरतन को खाली कर दिया।
‘‘तुम कड़वेपन की क्या बात करते हो?’’ उसने हँसते हुए पूछा, ‘‘यह तो पहाड़ों की चोटियों पर पड़ी हुई बर्फ से भी अधिक ताजा और हमारी भेड़ों के दूध से भी अधिक मीठा है। इसने मुझे ताजा कर दिया है और बहुत लाभ पहुँचाया है। मैंने इससे अच्छा पानी कभी नहीं पीया। लड़कियो, इसे चखो और बताओ कि मैं ठीक कह रही हूँ।’’
और पानी लेनेवाली लड़कियों के समूह ने अपनी भरी हुई मुश्कें गधों पर पड़े हुए जाल के थैलों में रखने से पहले, झरने के पानी के लंबे-लंबे घूँट पीए। एक-दूसरी से बरतनों को छीनने का बहाना करते हुए और उनकी कुर्तियों पर पानी के छीटें उड़ाते हुए, उन्होंने परस्पर मजाक किया; ताजा खजूरों की तरह धूप से चमकते जैतूनी रंग के उनके कंधे, उनकी युवा छातियों के आकार मात्र और गोल बाँहें चमक रही थीं; उनकी अंडाकार काली आँखें खोलते समय चमकती थीं और अनार के दानों की तरह उनके दाँत पानी से ताजा हुए लाल होंठों में और भी सफेद नजर आते थे। फिर वे मुश्कों के बीच जमकर गधों पर सवार हो गईं और जीवन एवं यौवन के आनंद के साथ वापस अपने पड़ाव के लिए चल दीं।
ऊँट चालक एक बार फिर अकेला रह गया। जैसे उसने पहले लुप्त होते हुए काफिले के धूल के बादल को देखा था, अब उसी तरह उसने गधों के खुरों से उठती रेतीली धूल के बादल को देखा। मुश्कों के साथ घर जल्दी पहुँचने के लिए, हँसते-हँसाते सवारों को दूर तक जाते देखा—किसी सड़क पर नहीं क्योंकि मरुस्थल स्वयं ही एक विशाल सड़क है, रेतीली समतल भूमि है। ज्वर ने उसको नष्ट कर दिया था; निराशा में उसने पुनः पानी पीया; पानी का स्वाद पहले से भी अधिक कड़वा था!
दिन गुजरते गए। बीमार आदमी ने उनके बीतने को माला के मनकों पर गिना—माला, जो हर धार्मिक मुसलमान अपनी कमर से बाँधता है। वह इसी तरह उनको गिन सकता था क्योंकि सभी दिन एक जैसे होते हैं। प्रतिदिन सूर्य की किरणें पीतल के आकाश को चूर-चूर करती थीं; प्रत्येक चौंधियानेवाली दोपहर वैसी थी जैसी पहले बीती थी—बहुत बड़े नीले निर्दयी आकाश से रोशनी की भड़कीली धन-संपन्नता; हर सायंकाल भुनी रेत से वही प्रतिबिंबित गरम साँस आती थी, जब सूर्य दूर क्षितिज में अस्त होता और जंगली जानवर अपनी मोदों और गुफाओं से रेतीले समतल मरुस्थल में निकलते थे। हर रात पूरबी सितारों की दमक से जड़े आकाश का वही देदीप्यमान सामान्य स्थान। कभी भी ठंडी हवा का झोंका पृथ्वी से नहीं उठा अथवा आकाश से नहीं उतरा। गहरे नीले रंग के अस्तर के साथ ताँबे का चंदवा-सा नजर आ रहा था, सितारे निर्दयता से झाँक रहे थे मानो वे किसी सम्राट् की उदास आँखें हों जो अपनी प्रजा के दुःखों के प्रति लापरवाह हो!
अपनी प्यास, जिसने उसे नष्ट कर दिया था, को रोकने में अक्षम बीमार आदमी ने पानी पीया। हमेशा झरने से पीया जो प्रतिदिन कड़वे-से-कड़वा होता चला गया और स्वाद का प्रतिघाती बनता गया—न केवल प्रतिदिन, बल्कि हर घूँट के बाद अनुक्रम से। ऐसा लगता था कि दुरात्माएँ मानव जाति को यातना देने के लिए कठोरता के थैले, मुट्ठी भर नमक और हर अत्यंत कड़वी औषधि झरने में डाल रही हो, जो स्वाद को अप्रिय बनाते थे। एक ऐसा क्षण आया जब ऊँट चालक की शक्ति ने जवाब दे दिया, जब वह पानी को देखकर काँप जाता था और झरने की बगल में लेटे हुए उसने मृत्यु की प्रतीक्षा करने का निश्चय कर लिया जिसके लिए सहनशीलता और समर्पण त्यागे नहीं जा सकते; वह अपने दुःखों से मुक्त होने के लिए चिंतित भी था।
एक गंभीर आवाज सुनकर उसकी आँखें खुल गईं। उसके सामने एक भद्र आदमी, चाँदी-सी सफेद दाढ़ी के साथ, पैबंद लगे कपड़े पहने जो निर्धनता के प्रतीत थे—खड़ा था। वह चरवाहे की छड़ी पर झुका हुआ था और उसके कंधों पर थैला था जिससे प्रतीत होता था कि वह भिक्षुक था। धूप से भूरा हुआ उसका चेहरा कुलीन आकृति से, अलग पहचाना जा सकता था; और बीमार आदमी पर जमी उसकी आँखों में दया नहीं, बल्कि निर्मल गहरी चिंता दिख रही थी; मनःस्थिति जो पवित्र पुस्तकों को जानती थी और समस्त जीवन के दिल में प्रवेश करने योग्य थी। भद्र अजनबी अपने दाएँ हाथ में प्याला थामे हुए था, मानो उससे पीना चाहता हो।
‘‘मत पीयो, महाराज,’’ ऊँट चालक ने कहा, ‘‘यह चिरायते की भाँति कड़वा है, यह तुम्हें नुकसान देगा। मैं इसे और नहीं पी सकता।’’
उसको अनसुना करते हुए अजनबी ने पी लिया, परंतु किसी प्रकार की घृणा अथवा खुशी प्रकट नहीं की।
‘‘यह पानी,’’ उसने मुँह पर हाथ का पिछला भाग, जो तपते सूर्य से भुन गया था, फेरते हुए कहा, ‘‘न कड़वा है और न ही मीठा। इसका कड़ुवापन या मिठास, इसको पीनेवाले के स्वाद पर निर्भर होती है। जबसे तुम यहाँ लेटे हुए हो, क्या तुमने अपने अतिरिक्त औरों को नहीं देखा? क्या स्वस्थ युवा लोग पानी पीने नहीं आए?’’
‘‘हाँ,’’ ऊँट चालक ने उत्तर दिया—‘‘कुछ युवा लड़कियाँ आई थीं—बहुत प्रसन्न और आनंदचित्त—अपने डेरे के लिए पानी लेने; उन्होंने पानी के गुणों की प्रशंसा की थी।’’
‘‘तो अब तुमने देखा,’’ भद्र अजनबी ने शांतिपूर्वक कहा, ‘‘मौत का फरिश्ता तुमपर दया करे और कम-से-कम तुम्हें आज्ञा दे कि तुम झरने का पानी पी सको। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाता, परंतु तुम्हें इस दुर्दशा से निकालने के लिए मेरा गधा पहले ही पूरी तरह लदा हुआ है और मुझे किसी काफिले से मिलने की जल्दी है क्योंकि यदि मैं अकेला जाऊँगा तो जंगली जानवर मुझपर झपटकर मुझे फाड़ डालेंगे।’’
और अजनबी कुरान शरीफ की आयत पढ़ता हुआ चला गया। जब चमकते क्षितिज में उसका काला आकार लुप्त हो गया तो ऊँट चालक ने सोचा कि उसकी अंतिम आशा भी जाती रही। अपने बढ़ते ज्वर में वह झरने के इर्दगिर्द पत्थरों से बने स्थान पर पहुँचा और अपनी निराशा में उसको दोनों हाथों से थामा, परंतु अपनी शक्ति के लिए किसी विशेष प्रयत्न के बिना, जो मृत्यु को प्राप्त करने के लिए भी पर्याप्त नहीं थी, वह सिर के बल झरने में गिर गया।
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जब ऊँट चालक ने अपने आपको जीवन झरने में गिरा दिया तो उसके बाद भी झरने से निकाला गया पानी किसी के लिए मीठा एवं स्वादिष्ट था और दूसरे कई के लिए कड़वा। यहाँ यही कहा जा सकता है कि जब लोग उस प्रभेदकारी स्वाद को चखते थे तो वे सोचते थे कि भले ही पानी जीवन झरने से आता था, परंतु वह स्वाद उनके मन में मृत्यु का अनिवार्य विचार पैदा करता था!
(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)