जीवन-मृत्यु (जर्मन कहानी) : राइनर मारिया रिल्के

Jivan-Mrityu (German Story in Hindi) : Rainer Maria Rilke

सान रोक्को में पुराने क़ब्र खोदने वाले का देहान्त हो गया था। रोज़ाना रिक्त पद पर किसी को नियुक्त करने की घोषणा की जाती थी । परन्तु नये आदमी के आने में तीन सप्ताह लग गये। अब चूँकि इस पूरी अवधि में सान रोक्को में किसी की मृत्यु नहीं हुई, अतः किसी को जल्दी भी महसूस नहीं हुई और लोग धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते रहे। तब तक, जब तक कि मई की एक शाम उस पद को सम्भालने वाला अजनबी प्रकट नहीं हुआ । नगर प्रमुख की बेटी गीता ने उसे सबसे पहले देखा । वह गीता के पिता के कमरे से बाहर निकला ( उसने उसे आते नहीं देखा था) और सीधा उसकी तरफ़ आया, जैसे वह अपेक्षा कर रहा था कि वह गीता से अन्धकारयुक्त ड्यौढ़ी में मिलेगा।

" क्या तुम उसकी पुत्री हो?" उसने धीमे स्वर में गीता से पूछा, और अपने हर शब्द पर जोर डाला, किसी भिन्न- भाषी की तरह । गीता ने सिर हिलाया और वह अजनबी के साथ निम्न बनी खिड़कियों में से एक तक गयी, जिसमें से गली में से बाहर उस संध्या में निहित आभा और सन्नाटे को अनुभव किया जा सकता था। वहाँ उन्होंने एक-दूसरे को गौर से देखा । गीता उस अजनबी के नेत्रों में इतनी गहरी डूब गयी थी कि उसे बाद में ध्यान आया कि अजनबी ने भी इन सब पलों में, जबकि वह वहाँ खड़ी उसे निहार रही थी, उसे निहारा होगा । वह लम्बा और छरहरा था और उसने एक काली सफ़र की पोशाक पहनी हुई थी, जिसकी काट कुछ अलग ढंग की थी। उसके बाल सुनहरे थे और उसने उन्हें किसी अभिजात पुरुष की तरह सँवारा था । उसमें से कुलीनता झलक रही थी, वह स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हो सकता था या डॉक्टर, कितनी अजीब बात थी कि वह क़ब्र खोदने वाला था । गीता बिना जाने उसके हाथों की ओर अपना हाथ बढ़ाया। उसने अपने हाथ आगे कर दिये, दोनों, किसी बच्चे की तरह ।

“यह कठिन काम नहीं है,” उसने कहा, और हालाँकि उसकी दृष्टि उसके हाथों पर थी, उसने उसके होंठों की मुस्कराहट महसूस की, उस मुस्कराहट में वह सूर्य की एक किरण की तरह खड़ी थी ।

तब वे दोनों साथ-साथ घर के मुख्य द्वार तक गये। सड़क पर संध्या का झुटपुटा छा रहा था ।

"क्या यहाँ से दूर है ?" आगंतुक ने कहा और उसने गली के अन्त तक घरों पर एक दृष्टि डाली; गली एकदम सुनसान थी ।

“नहीं, ज़्यादा दूर नहीं, लेकिन मैं तुम्हें ले चलती हूँ, क्योंकि तुम्हें रास्ता पता नहीं चलेगा, अजनबी । "

“तुम्हें पता है ? ” शख़्स ने गम्भीरता से पूछा।

“मुझे अच्छी तरह पता है, मैं जब छोटी बच्ची थी, तभी से मैं उस रास्ते पर जाया करती थी, क्योंकि वह माँ के पास ले जाता है, जो हमसे बचपन में छिन गयी थी। वह वहाँ बाहर विश्राम कर रही है, मैं दिखाती हूँ तुम्हें कि कहाँ ।”

दोनों मौन वहाँ से चल पड़े और सन्नाटे में उन दोनों के क़दम एक ही क़दम जैसी पदचाप दे रहे थे । अकस्मात काली पोशाक पहने पुरुष ने कहा, “तुम्हारी क्या उम्र है, गीता ?”

" सोलह " बच्ची ने कहा और उसने अँगड़ाई ली ।

" सोलह और प्रत्येक दिन के साथ-साथ कुछ ज़्यादा ।" अजनबी मुस्कराया।

“लेकिन,” उसने कहा और मुस्कराई भी, “तुम्हारी क्या उम्र है ?"

“बड़ा हूँ, तुमसे बड़ा, गीता, दोगुना बड़ा हूँ, और प्रत्येक दिन के साथ बहुत, बहुत बड़ा ।"

इसके साथ ही वे चर्च के अहाते में बने क़ब्रिस्तान के मुख्य द्वार के सामने खड़े थे।

"वो घर है, जिसमें तुम्हें रहना है, शवगृह के बगल में", लड़की ने कहा और हाथ के संकेत से मुख्य द्वार की लोहे की छड़ों से उसने क़ब्रिस्तान के अन्तिम छोर को दिखाया, जहाँ एक छोटा-सा घर बना हुआ था, जो मारवल्ली के पौधें से पूरी तरह आच्छादित था ।

"अच्छा, अच्छा तो यह रहा वो,” आगंतुक ने सिर हिलाया और अपने नये क्षेत्र पर उसने धीरे-धीरे एक छोर से दूसरे छोर तक एक विहंगम दृष्टि डाली । “कोई बूढ़ा आदमी था क्या, जो पहले यहाँ क़ब्र खोदता था ?” उसने पूछा ।

“हाँ, बहुत बूढ़ा आदमी था । वह अपनी पत्नी के साथ वहाँ रहता था, और पत्नी भी बहुत बूढ़ी थी । उसकी मृत्यु के तुरन्त बाद वह यह स्थान छोड़ कर चली गयी थी, मैं नहीं जानती कि कहाँ । ”

आगंतुक ने सिर्फ़ "अच्छा" कहा और फिर लगा कि वह बिल्कुल किसी अन्य विषय पर सोच में डूबा है। और अचानक वह गीता की ओर मुड़ा, “तुम्हें अब जाना चाहिए, बच्ची, अँधेरा पड़ चुका है। तुम्हें अकेले डर नहीं लगता?"

"नहीं, मैं हमेशा अकेली होती हूँ। लेकिन तुम, तुम्हें डर नहीं लगता, यहाँ बाहर?" अजनबी ने सिर हिलाया और लड़की का हाथ पकड़ लिया और उसने हाथ को धीरे से आश्वासन देने से ढंग दबाया, “मैं भी हमेशा अकेला होता हूँ" वह धीमे स्वर में बोला, और तब बच्ची अचानक निष्प्राण - सी बुदबुदाई, “ध्यान से सुनो।” और दोनों बुलबुल की आवाज़ को कान दे कर सुनने लगे, जो क़ब्रिस्तान की काँटेदार झाड़बन्दी में गा रही थी, और वे पूरी तरह उस गूँजते नाद में मग्न थे और उस गीत की उत्कण्ठा तथा आह्लाद से पुलकित हो रहे थे ।

अगली सुबह सान रोक्को के क़ब्र खोदने वाले ने अपना पद सम्भाल लिया । उसने अपने काम को एक अनूठे उत्साह से आरम्भ किया। उसने पूरे क़ब्रिस्तान को खोद-खोद कर उसे एक बाग़ में परिवर्तित कर दिया । पुरानी कब्रें चिन्तामग्न उदास नहीं रहीं और वे खिलते फूलों तथा लहराते लतातन्तुओं के नीचे लुप्त हो गयीं। और उस ओर, मध्य मार्ग के दूसरी तरफ़, जहाँ अभी तक खाली मैदान होता था, जिसकी कोई देखभाल नहीं करता था, इस शख़्स ने वहाँ छोटी-छोटी फूलों की क्यारियाँ बना दीं, दूसरी ओर बने क़ब्रस्थल की तरह, ताकि क़ब्रिस्तान के दोनों अर्थों में सन्तुलन बना रहे। शहर से आने वाले लोग अपनी प्रिय क़ब्रें एकदम से बिल्कुल नहीं ढूँढ सकते थे, ऐसा भी हुआ कि कोई माँ रास्ते के दायीं ओर बनी ख़ाली क्यारी पर घुटने टेक कर रो रही है, हालाँकि दूर निर्मल जंगली गुलाबों के नीचे विश्राम कर रहे उसके बेटे के लिए इस बुढ़िया की प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती थी । परन्तु सान रोक्को के लोग, जो इस क़ब्रिस्तान को देखते थे, मौत उनके लिए ज़्यादा कठिन नहीं रहती थी । जब भी कभी कोई मरता था ( और इस स्मरणीय वसन्त में अधिकतर बूढ़े लोग ही मरे थे ) तो वहाँ तक का रास्ता चाहे कितना ही लम्बा और उजाड़ क्यों न हो, बाहर पहुँच कर हमेशा एक छोटे से प्रशान्त उत्सव का वातावरण होता था । लगता था चहुँ ओर से फूल उमड़ रहे हों और इतनी तेज़ी से वे अँधेरी क़ब्र पर पहुँच जाते थे मानो धरती का स्याह मुँह सिर्फ़ फूल कहने के लिए खुला हो, हजारों फूल ।

गीता ने ये सब परिवर्तन देखे, वह लगभग हमेशा अजनबी के पास होती थी । वह जब भी काम कर रहा होता था, वह उसके नज़दीक होती थी और प्रश्न पूछती थी और वह उत्तर देता था, दफ़न करने की लय उनके वार्तालाप में होती थी, जिससे चिड़ियों का शोर अक्सर दब जाता था । " दूर से, उत्तर से,” एक प्रश्न के उत्तर में अजनबी ने कहा। “एक द्वीप से" वह झुका और उसने खरपतवार समेट कर रखे, झील से एक दूसरी से। एक झील, जो तुम्हारी झील से काफ़ी भिन्न है ( मैं कई बार रात को उसे गहरी साँसें लेते सुनता हूँ, हालाँकि वह इतनी दूर है कि वहाँ पहुँचने में दो दिन लगते हैं)। हमारी झील धूसर और भयानक है, और उसने वहाँ रहने वाले मनुष्यों को दुःखी तथा ख़ामोश बना दिया है । वसन्त में वहाँ लगातार तूफ़ान का मौसम रहता है, तूफ़ान, जिनमें कुछ उग नहीं सकता और मई का महीना बेकार निकल जाता है और सर्दियों में झील पर बर्फ़ की हल्की पर्त जम जाती है और द्वीप पर रहने वाले सभी मनुष्य बन्दी बन कर रह जाते हैं ।

" इन द्वीपों पर बहुत लोग रहते हैं ? "
" बहुत ज़्यादा नहीं ।"
" औरतें भी ?”
“औरतें भी । "
" और बच्चे ? "
“हाँ बच्चे भी । "
“और मृतक ?”

“और बहुत सारे मृतक, क्योंकि झील रात में बहुत, बहुत सारे मृतक किनारे पर ले आती है, और जिसे भी वे नज़र आते हैं, वह घबराता नहीं, बल्कि सिर्फ़ सिर हिलाता है, एक ऐसे व्यक्ति की तरह सिर हिलाता है, जो बहुत समय से यह जानता है । हमारे यहाँ एक बूढ़ा आदमी रहता है, जो एक छोटे द्वीप के बारे में बताया करता है, जहाँ धूसर झील इतने सारे मृतक बहा कर ले जाती थी कि जीवित लोगों के लिए स्थान ही नहीं बचा। वे तो लाशों से घिर गये थे, शायद यह एक कहानी ही है और शायद बूढ़ा आदमी, जो यह क़िस्सा सुनाता है, कहीं कोई ग़लती कर रहा हो । मुझे इस कथा पर विश्वास नहीं है, मेरे विचार में जीवन मृत्यु से अधिक सशक्त है।"

गीता कुछ क्षण मौन रही । फिर उसने कहा, “ परन्तु माँ का देहान्त तो हो गया।”

अजनबी काम रोक कर बेलचे पर भार डाल कर खड़ा हो गया ।

“हाँ, मैं एक ऐसी औरत को भी जानता हूँ, जिसकी मृत्यु हुई है। मगर वह यह चाहती थी । "

“हाँ,” गीता ने गम्भीरतापूर्वक कहा, “मैं यक़ीन कर सकती हूँ कि यह भी जा सकता है । "

“अधिकांश मनुष्य यह चाहते हैं और इस कारण वे थोड़े लोग भी मर जाते हैं, जो जीना चाहते हैं, वे आटे में घुन की तरह पिस जाते हैं, उनसे पूछा नहीं जाता। मैंने बहुत दुनिया देखी है, गीता, मैंने बहुत लोगों से बात की है और उनसे उनके मन की बात पूछी है। उनमें से कोई भी ऐसा नहीं था, जो मरना नहीं चाहता था । हाँ कहा, बहुत ने कहा इससे उलटा, यह कहने की प्रेरणा दी उन्हें उनके भय ने, परन्तु लोग क्या-क्या नहीं कहते। इसके पार्श्व में थी उनकी इच्छा, इच्छा जो बोलती नहीं, और जो गिरी जाकर मृत्यु पर, जैसे फल वृक्ष से गिरता है । इसे कोई नहीं रोक सकता।”

फिर ग्रीष्म ऋतु का आगमन हुआ। और हर वह नया दिन, जो पक्षियों के जागने से शुरू हुआ, गीता ने बाहर उत्तर से आये अजनबी के साथ बिताया। घर पर उसे चेतावनियाँ दी गयीं, उसे डाँटा गया, मारपीट से उसे रोकने के यत्न किये गये : कोई असर नहीं हुआ इस सब का । गीता अजनबी की बपौती - सी बन गयी थी । एक दिन नगर प्रमुख ने उसे बुलवाया और वह तो एक प्रचण्ड मनुष्य था, उसका ऊँचा घुड़की भरा स्वर था । " आपकी बच्ची बहुत अकेली है, मिस्टर निन्योला, ” अजनबी ने सब उलाहनों के उत्तर में कहा, शांतभाव से, खुद को ज़रा झुकाकर । “मैं उसको अपने और उसकी माँ के निकट रहने से नहीं रोक सकता । न मैंने उसे कुछ भेंट किया है, न ही कोई वादा किया है और न ही मैंने उसे कभी कुछ कह कर बुलाया है ।" वह उसने आदरपूर्वक और निश्चय पूर्ण स्वर में कहा और चला गया, यह कह चुकने के बाद; क्योंकि कहने को कुछ और बचा ही नहीं था।

अब बगीचा बाहर फूलों से लहलहा रहा था और झाड़बंदी के चारों कोनों में दूर-दूर तक फैला हुआ था। इस बगीचे को सुन्दर बनाने के लिए जितनी मेहनत की गयी थी, वह उसे सार्थक सिद्ध कर रहा था । और कभी-कभी कोई समय से पहले काम से छुट्टी कर के अपने घर के सामने लगी छोटी बेंच पर बैठ कर एक मंद और भव्य सूर्यास्त का दृष्यावलोकन कर सकता था। फिर गीता अजनबी से प्रश्न पूछती थी और अजनबी उत्तर देता था और बीच-बीच में लम्बी ख़ामोशी छायी रहती थी, जिसमें आस-पास की चीजें उनसे बात करती थीं । “आज मैं तुम्हें एक आदमी के बारे में बताऊँगा, कैसे उसकी प्रिय पत्नी उसे छोड़ कर सदा के लिए चली गयी", ऐसी ही एक ख़ामोशी के बाद एक बार अजनबी ने सुनाना शुरू किया, और उसके हाथ काँप रहे थे, एक हाथ दूसरे हाथ में था । “पतझड़ काल था और जानता था कि वह मर जाएगी। डॉक्टर यही कह रहे थे; लेकिन वे गलती भी तो कर सकते थे; लेकिन वह स्वयं, पत्नी, उनके कहने से बहुत पहले से यह कह रही थी । और वह गलत नहीं थी ।” “क्या वह मरना चाहती थी?” गीता ने पूछा, क्योंकि अजनबी बीच में रुक गया था ।

" वह चाहती थी, गीता। वह जीने के अलावा कुछ और चाहती थी । उसके इर्द-गिर्द हमेशा बहुत सारे लोग रहते थे, वह अकेलापन चाहती थी। हाँ, यही चाहती थी वह। जब वह लड़की थी, तब वह तुम्हरी तरह अकेली नहीं थी, और जब उसका विवाह हुआ तब वह जानती थी कि वह अकेली है, परन्तु वह अकेलापन चाहती थी, यह जाने बिना कि वह अकेली है।"

"क्या उसका पति भला आदमी नहीं था?"

"वह भला आदमी था, गीता; क्योंकि वह उसे प्यार करता था और वह भी उससे प्यार करती थी, परन्तु फिर भी गीता, उन्होंने एक दूसरे को छुआ नहीं था । मनुष्यों में आपस में बहुत अधिक दूरियाँ होती हैं, और उनमें, जो परस्पर प्यार करते हैं, ये दूरियाँ अक्सर सब से ज़्यादा होती हैं । अपना जो कुछ है, वे एक दूसरे की ओर उछालते रहते हैं और उसे पकड़ते नहीं, और वह कहीं उन्हीं के बीच पड़ा रहता है और उसका एक इतना ऊँचा ढेर बन जाता है कि अन्ततः वह उन्हें एक दूसरे को देखने और मिलने से रोकता है। लेकिन मैं तुम्हें उस पत्नी के बारे में बता रहा था, जो मर गयी। तो वह मर गयी । सुबह के समय मरी वह, और पति, जो पूरी रात सोया नहीं था, उसके पास बैठा था और देख रहा था कि वह कैसे मर रही है । वह अचानक सीधी हुई और उसने अपना सिर उठाया और ऐसा लगा कि जैसे उसका जीवन उसके चेहरे में उतर आया हो और वहीं केन्द्रित हो गया हो और उसके चेहरे की रूपरेखा में सैकड़ों पुष्पों के रूप में झिलमिला रहा हो। और मौत आयी और जीवन को एक बार में छीन कर ले गयी, ऐसे खींच कर ले गयी जैसे नरम गारे में से खींचा हो और उसके चेहरे को खींच कर लम्बा और दुबला बना कर पीछे छोड़ गयी हो । उसके नेत्र खुले रह गये थे और जब भी कोई उन्हें बन्द करता था, वे फिर खुल जाते थे एक सीपी की तरह, जिसमें बन्द जीवन लुप्त हो चुका हो। और पति, जो यह सहन नहीं कर पा रहा था कि नेत्र जो देख नहीं रहे थे, खुले हुए थे, बग़ीचे से दो देर से पकी, कड़ी गुलाब की कलियाँ ले आया और उन्हें उसकी पलकों पर रख दिया, वज़न की तरह | अब नेत्र बन्द थे और वह काफ़ी देर मृत चेहरे को निहारता रहा । और जितना अधिक वह निहारता था, उतना ही स्पष्ट उसे आभास होता था कि जीवन की अक्षव्य लहरें उस चेहरे की रूपरेखा के कोनों तक उमड़ कर आती थीं और फिर धीरे-धीरे लुप्त हो जाती थीं । विषादपूर्ण मन से उसने याद किया कि इस जीवन को एक बहुत ही खूबसूरत घड़ी में उसके चेहरे पर देखा था, और वह जानता था कि जीवन यह उसका पुण्यतम जीवन ही था, जिसका भरोसा वह नहीं बना था। मौत ने इस जीवन को उसके अन्तर से नहीं पृथक् किया था, उसके चेहरे में जो बहुत कुछ था, उसने मौत को भ्रम में डाल दिया था; उसी को उसने छीन लिया था, उसकी रूपरेखा की सुकोमल रेखाओं सहित। लेकिन अन्य जीवन अभी भी उसमें शेष था; कुछ समय पहले वह उसके खामोश होंठों तक उमड़ आया था और अब वह पुनः लौट गया था, चुपचाप बहता हुआ वह भीतर चला गया था और उसके विदीर्ण हृदय के ऊपर जाकर कहीं केन्द्रित हो गया था ।

और जो पुरुष इस स्त्री को प्यार करता था, असीम प्यार करता था, जैसे वह उसे करती थी, उस पुरुष के मन में एक अकथनीय उत्कण्ठा जागी कि जिस जीवन को मौत छीन कर नहीं ले जा सकी थी, वह उसे समेट कर रख ले। खैर, वह उस दाय को पाने वाला एकमात्र ऐसा व्यक्ति नहीं था, उसके फूलों, पुस्तकों तथा नर्म वस्त्रों को, जिनसे उसके बदन की सुगन्ध नहीं जा रही थी । परन्तु वह समझ नहीं पा रहा था कि वह कैसे उसके कपोलों से वापस बहती तपिश को समेटे, कैसे पकड़े वह उसे? किससे उलीचे उसे? उसने मृतक के हाथ को छुआ, जो रिक्त और खुला एक बीज निकले फल के छिलके की मानिन्द चादर पर पड़ा था, इस हाथ की ठण्डक समरूप और ख़ामोश थी और हाथ एक ऐसी वस्तु होने का एहसास दे रहा था, जो एक रात ओस में पड़ी रही हो, प्रातःकाल की बयार से शीघ्र ठण्डी और शुष्क होने के लिए। तभी अचानक मृतक के चेहरे पर कुछ हरकत हुई । जिज्ञासु दृष्टि से पुरुष ने उस ओर देखा। सब निश्चल था, परन्तु अनायास बायीं आँख पर पड़े गुलाब की कली हिली। और उसने देखा कि दायीं आँख पर पड़ा गुलाब भी बड़ा हो गया था और अभी भी बड़ा हो रहा था । चेहरा मौत का आदी हो चुका था, परन्तु गुलाब नेत्रों की तरह खुल रहे थे, जो किसी अन्य जीवन में झाँक रहे थे । और जब संध्या हो गयी, इस ख़ामोश दिन की संध्या, तो यह आदमी दो बड़े लाल गुलाब हाथ में लिये खिड़की पर गया। उन गुलाबों में, जो वज़नी होने की वजह से डोल रहे थे, वह अपनी पत्नी का जीवन उठाये हुए था, उसके जीवन का प्राचुर्य, जो उसने भी कभी नहीं पाया था । "

अजनबी ने अपना सिर हाथ पर टिका लिया और बैठ गया और ख़ामोश हो गया। जब वह हिला तो गीता ने पूछा :

“और तब?”

“फिर वह चला गया, गया और क्या करता वह ? परन्तु उसे मौत पर यक़ीन नहीं था, उसे सिर्फ़ यही यक़ीन था कि मनुष्य एक दूसरे तक पहुँच नहीं पाते, जीवित मनुष्य नहीं और मृतक भी नहीं । और यही उनका दुर्भाग्य है, न कि मौत ।" "हाँ, ।” यह तो मुझे भी पता है रे कि कुछ नहीं किया जा सकता।” गीता उदास स्वर में बोली, “मेरे पास एक नन्हा, सफ़ेद खरगोश था, जो बिल्कुल पालतू था और मेरे बग़ैर नहीं रह सकता था। और फिर वह बीमार पड़ गया, उसका गला सूज गया और उसे भी मनुष्यों की तरह दर्द हो रहा था । और वह मुझे ताकता था, अनुनय करता था, अपनी छोटी-छोटी आँखों से विनती करता था, उम्मीद करता था, उसे यकीन था कि मैं मदद करूँगी। और आखिरकार उसने मुझे ताकना छोड़ दिया और मेरी गोद में प्राण त्याग दिये उसने, जैसे अकेला हो, सैकड़ों मील दूर हो मुझसे ।”

" किसी पशु से लगाव नहीं रखना चाहिए, गीता, यह सच है, इससे मनुष्य पाप का भागी बनता है, वह वचन देता है, पर निभा नहीं पाता। इस परस्पर व्यवहार में लगातार असफलता ही हमारा अंश है । और मनुष्यों के साथ भी स्थिति भिन्न नहीं है, सिर्फ़ यही है कि दोनों कसूरवार बनते हैं, एक दूसरे के। इससे ज़्यादा नहीं, गीता, इससे ज़्यादा नहीं ।"

“मैं जानती हूँ,” गीता ने कहा, “मगर यही ज़्यादा है।"

और फिर वे दोनों एक साथ चल पड़े, हाथों में हाथ लिये, क़ब्रिस्तान के इधर-उधर, और यह नहीं सोचा उन्होंने कि जो था, उससे भिन्न भी कुछ हो सकता है ।

परन्तु भिन्न ही हुआ । अगस्त का महीना आया और अगस्त के एक दिन, जब नगर की गलियाँ जैसे ज्वर में तप रही थीं, बोझिल, उदास, पवन रहित । अजनबी कब्रिस्तान के द्वार पर गीता की प्रतीक्षा कर रहा था, फ़क्क और संजीदा ।

“मुझे एक बुरा सपना आया है, गीता," उसने उसे पुकारा, “घर चली जाओ और तब तक मत आना जब तक मैं तुम्हें आने को न कहूँ । मेरे पास अब शायद बहुत काम होगा । सुखी रहो।"

लेकिन वह उसके सीने से लग गयी और रोने लगी। और उसने गीता को तब तक रोने दिया, जब तक उसने चाहा और उसे जाते हुए वह बहुत देर तक देखता रहा । वह ग़लत नहीं था; काम गम्भीरता से शुरू हो चुका था । हर रोज़ दो या तीन अर्थयाँ आती थीं। कई नागरिक उनके पीछे चल रहे होते थे; लाशों को शान और धूमधाम से दफ़नाया जाता था, जिसमें धूप जलाना और गाना-बजाना भी शामिल था। लेकिन अजनबी को वह मालूम था, जिसके बारे में किसी ने अपने मुँह से एक शब्द भी नहीं निकाला था: शहर में प्लेग फैल चुका था । जानलेवा आकाश के तले दिन और गर्म और चुभने वाले होते जा रहे थे, और रातें आती थीं और ठण्डक नहीं पहुँचाती थीं । भय और क्षोभ उनके हाथों पर रखा था, जो हाथ का काम करते थे और उनके दिलों पर, जो प्यार करते थे, और वे इस कारण पंगु बन चुके थे। और घरों में एक सन्नाटा छाया हुआ था, मानो कोई विशेष छुट्टी का दिन हो, या जैसे आधी रात हो । परन्तु चर्च शोकाकुल चेहरों से भरे पड़े थे | और अनायास घण्टे बजने शुरू हो गये, सारे चौंक कर शोर मचाने लगे। जैसे जंगली जानवर घण्टों की रस्सियों पर चढ़ बैठे हों और उनको दाँतों से दबोच लिया हो; ऐसे बज रहे थे वे, बदहवास ।

इन विकराल दिनों में क़ब्र खोदने वाला एकमात्र ऐसा व्यक्ति था, जो काम कर रहा था। उसके बाद की ऊँची अपेक्षाओं के फलस्वरूप उसकी भुजाएँ मज़बूत हो रही थीं, उसमें एक विशेष उमंग थी, उसके लहू की उमंग, जो अब उसकी धमनियों में अधिक तेज़ प्रवाहित हो रही थी ।

परन्तु एक सुबह, जब वह ज़रा-सी नींद के बाद जागा तो गीता उसके सामने खड़ी थी । "तुम क्या बीमार हो ?"

“नहीं, नहीं।” परन्तु गीता ने झटपट और घबराहट में जो कुछ कहा, उसे समझने में उसे थोड़ा समय लगा ।

उसने कहा, सान रोक्को के लोग उसकी ओर आ रहे हैं । वे उसे मारना चाहते हैं, क्योंकि “वे कहते हैं कि तुम ने प्लेग का आह्वान किया है । तुमने क़ब्रिस्तान के रिक्त भाग पर, जहाँ पर कुछ नहीं था, टीले बना दिये हैं, क़ब्रें, वे कहते हैं, और इन क़ब्रों को बना कर लाशों का आह्वान किया है। भागो भागो ।” गीता ने उससे विनती की और घुटने पर गिर पड़ी, इतनी गति से, मानो किसी मीनार की ऊँचाई से गिरी हो। और रास्ते पर एक गहरा झुंड दृष्टिगोचर हो रहा था, जो आकार में बड़ा हो रहा था और निकट आ रहा था। धूल आगे बढ़ रही थी । और भीड़ की अस्पष्ट घुसुर-फुसुर में इक्का-दुक्का धमकी भरे शब्द सुनाई दे रहे थे। और गीता उछल कर खड़ी हो जाती है और फिर घुटनों पर गिर पड़ती है और अजनबी को खींचकर अपने साथ ले जाना चाहती है ।

लेकिन वह चट्टान की तरह खड़ा रहता है और गीता को अन्दर जाने और उसके घर में प्रतीक्षा करने का आदेश देता है। वह आदेश का पालन करती है। वह घर में दरवाज़े के पीछे उकहूँ बैठ जाती हैं और हृदय उसके कण्ठ तक आ जाता है ।

फिर एक पत्थर आता है, एक और पत्थर आता है, उनकी झाड़बंदी पर पड़ने की आवाज़ आती है। गीता से और नहीं सहा जाता। वह धड़ाक से दरवाज़ा खोलकर भागती है, सीधे तीसरे पत्थर के रास्ते में आ जाती है, जो उसका माथा फ़ोड़ देता है। अजनबी उसे गिरने से पहले थाम लेता है और उसे उठाकर अपने छोटे से, अन्धकारयुक्त घर के भीतर ले जाता है। और लोग चिल्लाते हुए निचली झाड़बंदी के एकदम निकट पहुँच जाते हैं, जो उन्हें रोक नहीं सकती । परन्तु तभी कुछ अनपेक्षित भयानक घटना घटती है । ठिगना गंजा क्लर्क थेओफ़िलो अचानक अपने पड़ोसी विकोला समा, त्रिनिता गली के लोहार, की बाँह पर झूल जाता है। वह लड़खड़ाता है और उसकी आँखें अजीब तरह से घूमने लगती हैं । उसी समय तीसरी पंक्ति में एक लड़का भी लड़खड़ाना शुरू कर देता है और उसके पीछे एक औरत चीखती है, एक गर्भवती औरत चीखती है, चीखती जाती है और सब लोग इस चीख़ को पहचानते हैं और इधर-उधर भागना शुरू कर देते हैं, डर से पागल । लोहार, एक लम्बा तगड़ा आदमी, थरथराता है और जिस बाँह पर क्लर्क झूल रहा है, उसे झटकता है, जैसे उसे वह अपने से परे धकेलना चाहता हो, झटकता है और झटकता जाता है ।

और घर के अन्दर बिस्तर पर पड़ी गीता को होश आता है और वह सुनने की कोशिश करती है ।

“वे चले गये हैं,” अजनबी, जो उसके ऊपर झुका हुआ था, कहता है । वह उसे देख नहीं पाती, परन्तु वह कोमलतापूर्वक उसके झुके हुए चेहरे को छूती है, देखने के लिए कि सब कैसे हैं । उसे लगता है कि वह काफ़ी समय से एक साथ रह रहे हैं, अजनबी और वह, सालोंसाल ।

और अनायास उसके मुँह से निकलता है, “समय नहीं करता यह, नहीं क्या ?"

"नहीं," वह कहता है, “ गीता, समय यह नहीं करता।" और वह जानता है, वह क्या कहना चाहती है । और वह चिरनिद्रा में सो जाती है ।

और वह मध्यमार्ग के अन्त में उसके लिए क़ब्र खोदता है, साफ़-सुथरी उच्चकोटि की बजरी में | और चाँद निकलता है और ऐसा प्रतीत होता है मानो वह चाँदी में खोद रहा हो। और वह उसे अन्दर फूलों की सेज पर रखता है और उसे फूलों से ढंक देता है। “प्रिय,” वह कहता है और एक पल मौन रहता है । परन्तु इसके तुरन्त बाद वह काम आरम्भ कर देता है जैसे वह मौन खड़े रहने और सोच-विचार से भयभीत हो । सात ताबूत अभी ऐसे पड़े हैं, जिनकी लाशों को दफ़नाया नहीं गया; उन्हें एक दिन पहले वहाँ लाया गया था । उनके साथ ज़्यादा लोग नहीं थे, हालाँकि उनमें से एक ख़ास बड़े बलूत के ताबूत में जान बातिस्ता, विन्योला, नगर प्रमुख, पड़ा था ।

सब कुछ बदल गया है। कोई मान-सम्मान नहीं रहा। बहुत सारे जीवित व्यक्तियों के साथ एक लाश की बजाय अब हमेशा एक जीवित व्यक्ति आता है और अपने ठेले पर तीन, चार ताबूत लाता है । और लाल पिप्पो ने इसे धंधे के रूप में अपना लिया है । और अजनबी नापता है कि कितनी जगह उसके पास बची है। क़रीब पन्द्रह क़ब्रों की जगह। और उसी हिसाब से वह अपना काम शुरू करता है, और एक बार तो रात में अकेली आवाज़ उसके बेलचे की होती है। जब तक कि नगर से विलाप के स्वर पुनः नहीं गूँजते । क्योंकि अब कोई भी छुपाने का प्रयास नहीं करता; अब यह रहस्य नहीं रहा । जिसे भी बीमारी या केवल उसका भय पकड़ लेता है, वह चीखता है, चीखता है और चीखता जाता है, जब तक कि अन्त नहीं आ जाता। माएँ बच्चों से भयभीत हैं, कोई किसी को नहीं पहचानता, जैसे घोर अन्धकार छाया हो । इक्का-दुक्का मायूस लोग मदिरापान के साथ खाते-पीते हैं और मदहोश वेश्याओं को लड़खड़ाने की हालत में खिड़कियों से बाहर फेंक देते हैं, डर के मारे कि कहीं बीमारी उन्हें भी न पकड़ ले ।

लेकिन बाहर अजनबी शान्तिपूर्वक क़ब्रें खोदने में व्यस्त है । उसकी धारणा है : जब तक उसकी चलती है, इन चार झाड़बंदियों में, जब तक वह यहाँ व्यवस्था कायम रख सकता है और कुछ बना सकता है, कम से कम पुष्पों और क्यारियों के माध्यम से इस असंगत दैवयोग को एक अर्थ प्रदान कर सकता है और उसका इर्दगिर्द की ज़मीन से सामंजस्य स्थापित कर सकता है, जब तक और लोग सही नहीं हैं, और एक दिन ऐसा आ सकता है, जब वे और लोग थक जाएँगे और हार मान लेंगे। और दो क़ब्रें तो तैयार हो चुकी हैं । और तब कुछ होता है : हँसी, स्वर और एक वाहन की चरमराहट । वाहन लबालब लाशों से भरा है । और लाल पिप्पो को मदद करने के लिए साथी भी मिल गये हैं । और वे अन्धों की तरह और लोलुप लाशों के ढेर में हाथ मारते हैं, और प्रतिरोध करती लगती एक लाश को निकाल कर झाड़बंदी के पार क़ब्रस्तिान में फेंक देते हैं । और फिर एक और फेंकते हैं । अजनबी अपने काम में लगा रहता है जब तक कि एक नग्न और लहूलुहान युवा लड़की, जिसके बालों को क्रूरतापूर्वक खींचा गया है, उसके पैरों पर नहीं आ गिरती । तब क़ब्र खोदने वाला उन्हें धमकी भरे स्वर में बाहर निकल जाने को कहता है । और अपना काम जारी रखना चाहता है। लकिन मदहोश लौंडे उससे आदेश लेने की मनोदशा में नहीं हैं। बार-बार लाल पिप्पो प्रकट होता है, सपाट माथा उठाता है और एक मृत शरीर को उठाकर झाड़बंदी के पार फेंक देता है। इस तरह उस प्रकृतिस्थ कामगार के इर्द-गिर्द लाशों का ढेर लग जाता है। लाशें, लाशें, लाशें । बेलचा उठाने में भारी होता जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मृतक बचाव करने के लिए उसे हाथ से पकड़ रहे हैं। तब अजनबी रुक जाता है । उसके माथे पर पसीना है । उसके सीने कुछ उथल-पुथल हो रही है। तब वह झाड़बंदी के निकट आता है, और जैसे ही पिप्पो का लाल, गोल सिर दिखाई देता है, वह बेलचे को आगे तक ले जाकर वार करता है, उसे लगते बेलचे को महसूस करता और देखता है कि वह काला और गीला है, और उसे वापस खींचता है। उसे वह घुमाकर दूर फेंक देता है और माथा झुका लेता है । और वह आहिस्ता-आहिस्ता उद्यान से बाहर निकल जाता है, रात की बाहों में : एक पराजित मनुष्य । एक ऐसा मनुष्य, जो समय से पहले इस संसार में आ गया है, बहुत पहले ।

(अनुवाद : अमृत मेहता)

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