झुमके (कहानी) : सआदत हसन मंटो
Jhumke (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto
सुनार की उंगलियां झुमकों को ब्रश से पॉलिश कर रही हैं झुमके चमकने लगते हैं सितार के पास ही एक आदमी बैठा है झुमकों की चमक देख कर उस की आँखें तमतमा उठती हैं बड़ी बेताबी से वो अपने हाथ उन झुमकों की तरफ़ बढ़ाता है और सुनार कहता है “बस अब रहने दो मुझे” सुनार अपने गाहक को अपनी टूटी हुई ऐनक में से देखता है और मुस्कुरा कर कहता है “छः महीने से अलमारी में बने पड़े थे आज आए हो तो कहते हो कि हाथों पर सरसों जमा दूँ”
गाहक जिस का नाम चिरंजी है कुछ शर्मिंदा हो कर कहता है “क्या बताऊं लाला किरोड़ी मल। इतनी रक़म जमा होने में आती ही नहीं थी तुम से अलग शर्मिंदा जोरू से अलग शर्मिंदा अजब आफ़त में जान फंसी हुई थी। जाने इस सोने में क्या कशिश है कि औरतें इस पर जान देती हैं।”
सुनार पॉलिश करने के बाद झुमके बड़ी सफ़ाई से काग़ज़ में लपेटता है और चिरंजी के हाथों में रख देता है। चिरंजी काग़ज़ खोल कर झुमके निकालता है जब वो झुमर झमर करते हैं तो वो मुस्कुराता है। भई क्या कारीगरी की है लाला किरोड़ी मल। देखेगी तो फड़क उठेगी। ये कह कर वो जल्दी जल्दी अपनी जेब से कुछ नोट निकालता है और सुनार से ये कह कर “खरे कर लो भाई” दुकान से बाहर निकलता है।
दुकान के बाहर एक ताँगा खड़ा है घोड़ा हिनहिनाता है तो चिरंजी उस की पीठ पर थपकी देता है “तुम्हें भी दो झुमके बनवा दूँगा मेरी जान फ़िक्र मत करो ये कह कर वो ख़ुश ख़ुश घोड़े की बागें थामता है चल मेरी जान हवा से बातें कर के दिखा दे”
चिरंजी ख़ुश ख़ुश अपने तवीले पहुंचता है धीमे धीमे सुरों में कोई गीत गुनगुनाता और यूँ अपनी ख़ुशी का इज़हार करता वो घोड़े को थपकी देता और कहता है:
“अभी छुट्टी नहीं मिलेगी मेरी जान तेरी मालिकन ये झुमके पहन कर क्या बाग़ की सैर को नहीं जाएगी।”
चिरंजी जल्दी जल्दी घर का ज़ीना तै करता है और ज़ोर से आवाज़ देता है। मुन्नी मुन्नी एक छोटी सी लड़की भागती हुई अंदर से निकलती है और चिरंजी के साथ लिपट जाती है चिरंजी झुमके निकाल कर उस की कान की लोओं के साथ लगाता है और कहता है माँ कहाँ है तेरी। जवाब का इंतिज़ार किए बग़ैर वो घर के सारे कमरों में हाथ में झुमके लिए फिरता है मुन्नी की माँ। मुन्नी की माँ कहता। लड़की इस के पीछे पीछे भागती है “मुन्नी माँ कहाँ है तेरी।” लड़की जवाब देती है। “वहां गई है:” लड़की का इशारा सामने बिल्डिंग की तरफ़ था। चिरंजी उधर देखता है खिड़की के शीशों में से एक मर्द और एक औरत का साया नज़र आता है मर्द औरत के कानों में बुनदे पहना रहा है लंबे लंबे बुनदे ये मंज़र देख कर चिरंजी के मुँह से दबी हुई चीख़ सी निकलती है वो दोनों हाथों से अपनी नन्ही बच्ची को उठा कर सीने के साथ भींच लेता है और उस की आँखों पर हाथ रख देता है जैसे वो नहीं चाहता कि उस की बच्ची इस ख़ौफ़नाक साय को देखे सीने के साथ इस तरह अपनी बच्ची को भींचे वो आहिस्ता आहिस्ता नीचे उतरता है वो झुमके जो वो अपने साथ लाया था इस के हाथों से फ़र्श पर गिर पड़ते हैं।
नीचे तवीले में आकर वो अपनी बच्ची को जो कि सख़्त परेशान हो रही है तांगे में बिठाता है और ख़ुद घोड़े की बागें थाम कर तांगे को बाहर निकालता है।
चिरंजी बिलकुल ख़ामोश है जैसे उसे साँप सूँघ गया है उस की नन्ही बच्ची सहमे हुए लहजे में बार बार पूछती है “माता जी के झुमके कहाँ हैं पिता जी माता जी के झुमके कहाँ हैं पिता जी।?”
चिरंजी की बीवी अपने घर वापस आगई है और एक आईना सामने रखे अपने झुमकों को पसंदीदा नज़रों से देख रही है और गा रही है। आईना देखते देखते वो अपनी बच्ची को आवाज़ देती है “मुन्नी इधर आ तुझे एक चीज़ दिखाऊँ ” कोई जवाब नहीं मिलता “कहाँ चली गई तू।” ये कह कर वो उठती है और इधर उधर उसे ढूंढती है जब वो नहीं मिलती तो बाहर निकलती है सीढ़ियों के इख़्तितामी सिरे पर जो चबूतरा सा बना है उस पर खुले हुए काग़ज़ में दो झुमके दिखाई देते हैं चिरंजी की बीवी उन को उठाती है एक दम उसे ख़ौफ़नाक हक़ीक़त का एहसास होता है। इन झुमकों को मुट्ठी में भींच कर वो चीख़ती है। उसे मालूम होगया है सब कुछ मालूम होगया है दीवानों की तरह दौड़ी दौड़ी अंदर जाती है सब कमरों में पागलों की तरह चकराती है और मुन्नी को आवाज़ें देती है जब उस के दिमाग़ का तूफ़ान कुछ कम होता है तो वो वहीं बैठ जाती है जहां पहले बैठी थी। उस के सामने आईना पड़ा है उस में वो ग़ैर इरादी तौर पर अपनी शक्ल देखती है। चिरंजी की बीवी जब अपनी शक्ल उस ज़ाविए में देखती है तो उस से मुतनफ़्फ़िर हो कर आईना उठाती है और ज़मीन पर पटक देती है आईना चकनाचूर हो जाता है और वो आहिस्ता आहिस्ता क़दम उठाती बाहर निकलती है।
सामने वाली बिल्डिंग का एक कमरा ये कमरा पुर-तकल्लुफ़ तरीक़े से सजा हुआ है एक लड़की और एक लड़का जिस की उम्र में तक़रीबन दो बरस का फ़र्क़ है लड़की छः बरस की और लड़का आठ बरस का है दोनों अपने बाप के पास बैठे हैं और उस से खेल रहे हैं इतने में दरवाज़े पर हौले हौले दस्तक होती है पहली बार जब दस्तक होती है तो बच्चों का बाप नहीं सुनता। जब दूसरी बार फिर होती है तो वो चौंकता है बच्चों की तरफ़ देखता है फिर उन की आया की तरफ़ और कहता है उन को बाहर ले जाओ। कोई मेरा मिलने वाला आया है जल्दी जल्दी बच्चों को निकाल कर दरवाज़ा बंद करता है दूसरे दरवाज़े की तरफ़ बढ़ता है जब दरवाज़ा खुलता है तो चिरंजी की बीवी अंदर दाख़िल होती है उस को देख कर बच्चों के बाप को सख़्त हैरत होती है। वो उस से कहता है “तुम तो कह रही थीं मुझे जल्दी घर जाना है अब वापस कैसे आगईं।” चिरंजी की बीवी कुछ जवाब नहीं देती। साकित जामिद खड़ी रहती है उस को ख़ामोश देख कर वो फिर उस से पूछता है “वो अभी तक वापस नहीं आया।”
चिरंजी की बीवी कुछ जवाब नहीं देती वो फिर उस से सवाल करता है। “तुम ख़ामोश क्यों हो। झुमके पसंद नहीं आए।” चिरंजी की बीवी के होंट खुलते हैं। फीकी सी मुस्कुराहट के साथ कहती है “”क्यों नहीं आए। बहुत पसंद आए। किया और ला दोगे मुझे।?” बच्चों का बाप मुस्कुराता है “जितने कहो बस यही बात थी ” बड़े तल्ख़ लहजे में चिरंजी की बीवी कहती है “बस यही बात थी लेकिन मुझे सिर्फ़ झुमके ही नहीं चाहिए, नाक के लिए कील। हाथों के लिए कन्गनियाँ कड़े, गले के लिए हार, माथे के लिए झूमर, पांव के लिए पाज़ेब, मुझे इतने ज़ेवर चाहिऐं कि मेरा पाप इन के बोझ तले दब जाये अपनी इस्मत का ज़ेवर तो उतार चुकी हूँ अब ये गहने न पहनूंगी तो लोग क्या कहेंगे।” बच्चों का बाप ये गुफ़्तुगू सुन कर सख़्त मुतहय्यर होता है उस की समझ में कुछ नहीं आता वो चिरंजी की बीवी से कहता है। “ये तू क्या बहकी बहकी बातें कर रही है।” चिरंजी की बीवी जवाब देती है। “बहकी पहले थी अब तो होश की बातें कर रही हूँ सुनो। मैं तुम्हारे पास इस लिए आई हूँ कि वो चला गया है मेरी बच्ची को भी साथ ले गया है उसे सब कुछ मालूम हो चुका है अब वो कभी वापस नहीं आएगा जिस तरह मेरी लुटी हुई आबरू वापस नहीं आएगी बोलो मुझे पनाह देते हो मैं तुम्हें इस पाप का वास्ता दे कर इल्तिजा करती हूँ कि जो तुम ने और मैंने मिल कर किया है कि मुझे पनाह दो ” बच्चों का बाप चिरंजी की बीवी की सब इल्तिजाएं सुनता है मगर वो कैसे उस औरत को पनाह दे सकता है जिस ने अपने आप को झुमके के बदले बेचा। एक सौदा था जो ख़त्म होगया चिरंजी की बीवी को ये सुन कर बहुत सदमा होता है नाकाम और मायूस हो कर वो चली जाती है।
चिरंजी अब एक नए घर में है रात का वक़्त है। वो अपनी बच्ची मुन्नी को सुलाने की कोशिश करता है मगर वो सोती नहीं बार बार अपनी माँ के बारे में पूछती है चिरंजी उस को टालने की कोशिश करता है मगर बच्ची की मासूम बातें उसे परेशान कर देती हैं आख़िर में घबरा कर उस के मुँह से ये निकलता है मुन्नी तुम्हारी माता जी मर गई हैं रास्ता भूल कर वो ऐसी जगह चली गई हैं जहां से वापस आना बड़ा मुश्किल होता है दरवाज़ा खुलता है। चिरंजी फ़ौरन मन्नी का चेहरा कम्बल से ढाँप देता है चिरंजी की बीवी दाख़िल होती है चिरंजी उठता है और उसे बाहर धकेल कर अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर देता है “चली जाओ यहां से ” वो उस से कहता है चिरंजी की बीवी जवाब देती है। “चली जाती हूँ मेरी बच्ची मुझे देदो” चिरंजी ग़ुस्से और नफ़रत भरे लहजे में उस से कहता है “वो औरत जो मर्द की बीवी नहीं बन सकती औलाद की माँ कैसे हो सकती है अपने पाप भरे सीने पर हाथ रख कर कहो क्या तुम्हें मन्नी की माँ कहलाने का हक़ हासिल है क्या उस दिन के बाद जब तुम ने ये झुमके लेकर एक ग़ैर मर्द को हाथ लगाने दिया तुम अपनी औलाद के सर पर शफ़क़त का हाथ फेर सकती हो, क्या तुम्हारी ममता उस दिन जल कर राख नहीं होगई थी जब तुम्हारे क़दम डगमगाए थे अपनी बच्ची लेने आई हो वो झुमके पहन कर जिन्हों ने तुम्हारी ज़िंदगी के सब से क़ीमती ज़ेवर को उतार कर गंदी मोरी में फेंक दिया है। मैं ये पूछता हूँ जब ये झुमके हिलते हैं तो तुम्हारे कानों में ये आवाज़ नहीं आती कि न तुम माँ रही हो न बीवी। जाओ तुम्हारी मांग सींदूर से और तुम्हारी गोद औलाद से हमेशा ख़ाली रहेगी जिन क़दमों से आई हो उन्ही क़दमों से वापस चली जाओ।” चिरंजी अपनी बीवी की इल्तिजाओं को ठुकरा देता है तो वो चली जाती है अफ़्सुर्दा और ख़ामोश।
तांगे का पहिया घूम रहा है ये बताने के लिए कि वक़्त गुज़र रहा है और कई साल बीत रहे हैं तांगे का पहिया मुड़ता है और बड़े दरवाज़े में दाख़िल होता है ये दरवाज़ा गर्वनमैंट कॉलिज का है जिस में कई लड़के और लड़कियां गुज़र रही हैं ताँगा कॉलिज के कम्पाऊंड में ठहरता है चिरंजी अब काफ़ी बुढ्ढा हो चुका है। तक़रीबन आधे बाल सफ़ैद हैं। उस की नन्ही बच्ची अब जवान है तांगे की पिछली नशिस्त पर से जब उठती है तो चिरंजी उस को बहुत नसीहतें करता है। “बड़े साहब को हाथ जोड़ कर नमस्ते कहना जो सवाल पूछें इन का ठीक ठीक जवाब देना। वग़ैरा वग़ैरा” लड़की अपने बाप की इन बातों से परेशान हो जाती है और अच्छा अच्छा कहती वहां से चलती है लेकिन फ़ौरन ही चिरंजी उस को रोकता है और जेब से बर्फ़ी निकाल कर उस को देता है और कहता है। “पहला दिन है मुँह मीठा कर लो” ज़बरदस्ती वो अपनी लड़की के हाथ में बर्फ़ी रख देता है।
सामने कॉलिज के बरामदे में दो तीन लड़के खड़े हैं जो आने जाने वाले लड़कों और लड़कीयों को घूर रहे हैं जब कृष्णा कुमारी (चिरंजी की बेटी) बरामदे की तरफ़ आती है तो एक लड़का जिस का नाम जगदीश है अपने साथी की पसलियों में कुहनी से ठोंका देता है और कहता है।
“लो भई एक फ़र्ट्द क्लास चीज़ आई है। तबीयत साफ़ हो जाएगी तुम्हारी। ये कह कर जब वो कृष्णा कुमारी की तरफ़ इशारा करता है तो उस के दोस्त सब उधर मुतवज्जा होते हैं मगर उन्हें बजाय एक देहाती लड़का नज़र आता है जो बड़ा इन्हिमाक से अपने फ़ार्म का मुताला करता हुआ उन की तरफ़ चला आरहा है सब लड़के उस देहाती को देख कर हंसते हैं और कहते हैं। “भई क्या चीज़ है तबीयत वाक़ई साफ़ होगई।” कृष्णा कुमारी इस दौरान में एक तरफ़ होगई थी। ये देहाती लड़का जिस का नाम कृष्ण कुमार है कॉलिज के उन पुराने शरीर तालिब-ए-इलमों की तरफ़ बढ़ता है जगदीश से वो बड़े सादा लहजे में पूछता है “क्या आप बता सकते हैं कि मुझे कहाँ जाना है” जगदीश ज़रा पीछे हिट कर उसे बड़े प्यार से देखता है और कहता है “चिड़ियाघर।” कृष्ण कुमार इसी तरह सादा लोही से जवाब देता है “जी नहीं चिड़ियाघर मैं कल जाऊंगा मैं यहां दाख़िल होने आया हूँ।” सब लड़के बेचारे कृष्ण कुमार का मज़ाक़ उड़ाते हैं उसे छेड़ते हैं इतने में एक लड़की कृष्णा कुमारी को साथ लिए इन लड़कों के पास आती है और उन में से एक लड़के को जिस का नाम सतीश है मुख़ातब कर के कहती है “सतीश मेरा पीरियड ख़ाली नहीं तुम इन्हें बता दो कि कहाँ दाख़िला हो रहा है” कृष्णा कुमारी का फ़ार्म सतीश को दे कर वो तेज़ क़दमी से चली जाती है सतीश फ़ार्म देखता है और कहता है “आप का नाम कृष्णा कुमारी है।” कृष्ण कुमार बोल उठता है जी नहीं “मेरा नाम कृष्ण कुमार है” सब हंसते हैं सतीश कृष्ण कुमार का फ़ार्म भी ले लेता है और दोनों से कहता है “आईए कुमार और कुमारी साहबा मैं आप को रास्ता बता दूं” सब चलते हैं।
उस कमरे के बाहर जहां दाख़िला हो रहा है सतीश ठहर जाता है और एक फ़ार्म कृष्ण कुमार और दूसरा कृष्णा को दे कर कहता है। “अन्दर चले जाएं।”
कृष्ण कुमारी और कृष्णा कुमार दोनों अंदर दाख़िल होते हैं कृष्ण कुमार एक मेज़ की तरफ़ बढ़ता है कृष्ण कुमारी दूसरे मेज़ की तरफ़ इधर कृष्णा कुमारी का इंटरव्यू शुरू होता है उधर कृष्ण कुमार का। कृष्ण कुमारी का नाम पढ़ कर प्रोफ़ैसर कहता है “आप कब्बडी खेलते हैं। कुश्ती लड़ते हैं, गोला फेंकते हैं।”
इधर दूसरा प्रोफ़ैसर कृष्ण कुमार से कहता है “आप को कशीदाकारी करोशिए और सिलाई के काम का शौक़ है कृष्ण कुमार और कृष्णा हैरान रह जाते हैं कृष्ण कुमारी प्रोफ़ैसर से कहती है “जी नहीं मुझे तो कशीदाकारी करोशिए और सिलाइयों का शौक़ है” उधर कृष्ण कुमार परेशान हो कर प्रोफ़ैसर से कहता है “जी नहीं मुझे तो कब्बडी खेलने गोला फेंकने और कुश्ती लड़ने का शौक़ है” दोनों के फ़ार्म तबदील होगए थे हाल में क़हक़हे बुलंद होते हैं हाल की खिड़कियों के बाहर जगदीश और सतीश और उन की पार्टी खड़ी ये सब तमाशा देखती रहती है।
बाज़ार में ताँगा खड़ा है चिरंजी उस को साफ़ कर रहा है इतने में एक पठान आता है और चिरंजी से उन दो सौ रूपों का तक़ाज़ा शुरू कर देता है जो उस ने क़र्ज़ ले रख्खे हैं पठान रोज़ रोज़ के वादों से तंग आया हुआ है चुनांचे वो चिरंजी से बड़े दुरशत लहजे में बातें करता है चिरंजी पठान से माफ़ी मांगता है और कहता कि “वो बहुत जल्द उस का क़र्ज़ा अदा कर देगा” पठान चिरंजी से कहता है कि “वो ताँगा घोड़ा बेच कर क़र्ज़ अदा कर देगा” इस से चिरंजी को सदमा होता है ताँगा घोड़ा वो कभी बेचने के लिए तैय्यार नहीं इस लिए कि वो उसे बहुत अज़ीज़ है इतने में कृष्णा कुमारी की आवाज़ आती है “पिता जी मेरी किताबें आप साथ ले गए हैं न ” चिरंजी अपनी लड़की जवाब देता है। “हाँ बेटी ले आया हूँ अपने साथ ” ये कह कर वो पठान की ठोढ़ी को हाथ लगाता है और कहता है “ख़ान मेरी इज़्ज़त तुम्हारे हाथ में है मेरी लड़की के सामने अपने रूपों का तक़ाज़ा न करना ” ख़ान का दिल कुछ पसीजता है चुनांचे जब कृष्ण कुमारी आती है और तांगे में बैठती है तो चिरंजी से कुछ नहीं कहता, ख़ान को सलाम कर के चिरंजी ताँगा चलाता है।
देहाती लड़के कृष्ण कुमार का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है, जगदीश ने उस के पुरानी वज़ह के कोट के साथ फ़र्स्ट इयर फ़ूल की चिट लगा रख्खी है जिधर से वो बेचारा गुज़रता है लड़के उस की तरफ़ देख कर हंसते हैं कृष्ण कुमार जब सब को हंसते देखता है तो ख़ुद भी हंसना शुरू कर देता है।
इस दौरान में चिरंजी का ताँगा और एक मोटर आती है इस में से सतीश और उस की बहन आ निकलती है ये वो लड़की है जिस ने कृष्णा कुमारी का फ़ार्म सतीश को दिया था कृष्ण कुमारी जब सतीश की बहन निर्मला को देखती है तो उन को नमस्ते करती है निर्मला नमस्ते का जवाब देती है और अपने भाई का तआरुफ़ कराते हुए कहती है ये मेरे भाई सतीश हैं मगर आप की एक बार पहले मुलाक़ात हो चुकी है सतीश कृष्णा कुमारी की तरफ़ देख कर मुस्कुराता है और कहता है “आप कब्बडी खेलती हैं, कुश्ती लड़ती हैं और गोला फेंकती हैं,” कृष्णा कुमारी उस रोज़ का वाक़िया याद कर के शर्मा जाती है मगर साथ ही हंस पड़ती है तीनों कॉलिज की तरफ़ बढ़ते हैं कुछ दूर जाते हैं तो एक शोर सुनाई देता है।
जगदीश और उस के साथियों ने कृष्ण कुमार को कीचड़ भरे गढ़े में धक्का देकर गिरा दिया था कीचड़ में बेचारा लत पत् है लड़के छेड़ रहे हैं जगदीश आगे बढ़ कर जब उसे उठाने लगता है तो उस का कोट फट जाता है कृष्ण कुमार से अब बर्दाश्त नहीं हो सकता क्योंकि ये कोट इसे बेहद अज़ीज़ है ये उस के मरहूम बाप का था जो उस की माँ ने सँभाल कर उस के लिए रख्खा हुआ था जब उस का कोट फट जाता है तो वो दीवानों की तरह उठता है और जगदीश को पीटना शुरू कर देता है कॉलिज में जगदीश की धाक बैठी हुई थी कि वो बहुत लड़ाका है कोई उस के मुक़ाबल में नहीं ठहर सकता मगर जब कृष्ण कुमार उसे बुरी तरह लताड़ता है तो सब लड़के हैरान रह जाते हैं और जगदीश और कृष्ण कुमार दोनों कुश्ती लड़ते लड़ते सतीश कृष्णा कुमारी और निर्मला के पास आ जाते हैं तो ज़बरदस्त घूंसा मार कर जब कृष्ण कुमार जगदीश को गिराता है तो बे-इख़्तियार कृष्णा कुमारी के मुँह से निकलता है “ये क्या वहशियाना-पन हैन” कृष्ण कुमार ये आवाज़ सुनता है और अपना हाथ रोक लेता है सतीश जगदीश को उठा कर एक तरफ़ ले जाता है इतने में घंटी बजती है सब लोग चले जाते हैं सिर्फ़ कृष्ण कुमार। कृष्णा कुमारी अकेले रह जाते हैं दोनों चंद लमहात ख़ामोश खड़े रहते हैं आख़िर में कृष्ण कुमार नदामत भरे लहजे में कृष्णा कुमारी से कहता है “मुझे माफ़ कर दो। आइन्दा मुझ से कभी ऐसी वहशियाना हरकत नहीं होगी” कृष्णा कुमारी उस की सादगी से बहुत मुतअस्सिर होती है जब वो उस से कहता है “मैं किसी से कुछ नहीं कहता लेकिन ये लड़के मेरी तरफ़ देख देख कर क्यों हंसते हैं। क्यों छेड़ते हैं क्यों तंग करते हैं। मुझे कीचड़ में लत पत् कर दिया है। ये मेरा कोट फाड़ दिया है। जो मेरे बाप का है।”
कृष्णा कुमारी उस से हमदर्दी करती है और उसे बताती है कि “लड़के उस को सिर्फ़ इस लिए छेड़ते हैं कि उस का लिबास पुरानी वज़ह का है। अगर वो उस तरह का लिबास पहनना शुरू कर दे जैसा कि दूसरे पहनते हैं तो उसे कोई नहीं सताएगा।”
कृष्णा कुमारी की बातें कृष्ण कुमार के ज़ेहन में बैठ जाती हैं जगदीश और उस के साथी झाड़ियों के पीछे से इन दोनों को बातें करते देख लेते हैं।
होस्टल कृष्ण कुमार अपने कमरे में आईने के सामने खड़ा है और सूट का मुआइना कर रहा है इस दौरान में वो एक गाना गाता है बड़े जज़्बात भरे अंदाज़ में, उस के गाने से मालूम होता है कि वो किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार होगया है
साथ वाले कमरे में जगदीश डनटर पेल रहा है और डसील फेर रहा है जब उसे गाने की आवाज़ आती है तो वो बहुत हैरान होता है। दरवाज़ा खोल कर वो बाहर निकलता है और ये मालूम करता है कि साथ वाले कमरे में कोई गा रहा है बाहर निकलता है और कमरे के दरवाज़े पर दस्तक देता है अंदर से आवाज़ आती है “आ जाओ।” जगदीश दरवाज़ा खोल कर अंदर दाख़िल होता है तो क्या देखता है कि कृष्ण कुमार नया सूट पहने खड़ा है जब दोनों की आँखें चार होती हैं तो कृष्ण कुमार कहता है। “आप लड़ने आए हैं तो मेहरबानी कर के यहां से चले जाईए क्योंकि में अब किसी पर हाथ नहीं उठाऊंगा ” जगदीश मुस्कुराता है और अपने तेल लगे बदन की तरफ़ देखता है “नहीं नहीं मैं लड़ने नहीं आया सुलह करने आया हूँ ” ये कह कर वो अपने हाथ बढ़ाता है जिसे कृष्ण कुमार क़बूल कर लेता है इस के बाद जगदीश उस के गाने की तारीफ़ करता है और कहता है “दोस्त ऐसा मालूम होता है कि तुम्हारे दिल को लगी है आवाज़ में बहुत दर्द ऐसे ही पैदा नहीं हुआ ज़रूर किसी की तिरछी नज़र ने तुम्हें घायल किया है।” कृष्ण कुमार बहुत सादा लौह है फ़ौरन ही अपने दिल का राज़ जगदीश को बता देता है “अब तुम ने दोस्त कहा है तो तुम से पर्दा उस लड़की कृष्णा कुमारी ने ऐसी प्यारी प्यारी बातें की हैं कि कुछ समझ में नहीं आता। मेरे दिल को क्या होगया है बड़ी शरीफ़ और बड़ी हमदर्द लड़की है उस ने मुझे बताया कि तुम लोग मुझे क्यों छेड़ते हो अब देख लो उस के कहने पर मैंने तीन सूट बनवा लिए हैं।” जगदीश उस का हम-राज़ बन जाता है और उस से कहता है “तुम्हें इश्क़ हो गया है समझे यानी तुम्हारा दिल जो है न वो उस लड़की पर आगया है अब तुम्हें ये चाहिए कि तुम उस लड़की पर अपने इश्क़ का इज़हार कर दो अगर तुम ने अपनी मुहब्बत को अपने पहलू में दबाये रख्खा तो उसे ज़ंग लग जाएगा और देखो औरत को अपनी तरफ़ माइल करने का सब से आसान तरीक़ा ये है कि तुम उसे कोई तोहफ़ा दो अँगूठी बुनदे झुमके कुछ भी।”
सादा लौह कृष्ण कुमार जगदीश की ये सब बातें अपने पल्ले बांध लेता है।
कॉलिज के बाग़ीचे में कृष्णा कुमारी एक बंच पर बैठी है कृष्ण कुमार आहिस्ता आहिस्ता उस के पास जाता है जिस तरह जगदीश ने कहा था उस तरह वो उस पर अपने इश्क़ का इज़हार करता है बड़े ख़ाम अंदाज़ में इस के बाद वो अपनी जेब से एक छोटी सी डिबिया निकालता है और कृष्णा कुमारी को सोने के झुमके तोहफ़े के तौर पर पेश करता है कृष्णा कुमारी ये डिबिया ग़ुस्से में आकर एक तरफ़ फेंक देती है। कृष्ण कुमार को सदमा पहुंचता है और हैरत भी होती है चूँकि वो बेहद सादा लौह है इस लिए वो सारी बात कृष्णा को बता देता है मुझे जगदीश ने कहा था कि “दिल में कोई बात नहीं रखनी चाहिए, मुझे कई रातों से नींद नहीं आई मैं हर वक़्त तुम्हारे मुतअल्लिक़ सोचता रहता हूँ। तुम ने क्यों मुझ से हमदर्दी का इज़हार किया था अगर मेरे दिल में तुम्हारे लिए मुहब्बत पैदा हुई है तो ये तुम्हार क़ुसूर है मेरा नहीं। ये झुमके तो मैंने तुम्हें देने हैं उन से मेरी मुहब्बत ज़ाहिर नहीं होती ये तो मुझ से जगदीश ने कहा था कि ऐसे मौकों पर तोहफ़ा ज़रूर देना चाहिए मैं तो अपनी सारी ज़िंदगी तुम्हें तोहफ़े के तौर पर देने के लिए तैय्यार हूँ।”
जब कृष्णा कुमारी को ये मालूम होता है कि जगदीश ने उसे बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश की थी और वो कृष्ण कुमार की साफगोई से मुतअस्सिर होती है तो वो झुमकों की डिबिया उठा लेती है और अपने पास रख लेती है और उस से कहती है मुझे तुम्हारा ये तोहफ़ा क़बूल है। कृष्ण कुमार बहुत ख़ुश होता है झुमके लेकर कृष्ण कुमारी कुछ और कहे सुने बग़ैर चली जाती है कृष्ण कुमार चंद लम्हात ख़ामोश खड़ा रहता है इतने में जगदीश और सतीश दोनों झाड़ीयों के पीछे से निकलते हैं और कृष्ण कुमार को मुबारकबाद देते हैं कृष्ण कुमार बहुत झेंपता है इस के साथ ही वो जगदीश से कहता है “मगर यार तुम ने तो कहा था कि मैं ये बात किसी को नहीं बतलाऊंगा”
सतीश की तरफ़ देख कर वो फिर कहता है उन को भी पता लग गया है जगदीश कृष्ण कुमार को तसल्ली देता है कि सतीश अपना आदमी है वो किसी से कुछ नहीं कहेगा चुनांचे सतीश भी कृष्ण कुमार को हर मुम्किन तसल्ली देता है कि वो उस के इश्क़ का राज़ किसी को नहीं बताएगा।
तवीले में चिरंजी साज़ पालिश कर रहा है। तांगे की पीतल की चीज़ें पालिश कर रहा है घोड़े को मालिश कर रहा है जब मालिश करता है तो उस से प्यार-ओ-मुहब्बत की बातें करता है। दोस्त तुम ने मेरी बहुत ख़िदमत की है अगर तुम न होते तो जाने ज़िंदगी कितनी कठिन हो जाती तुम ने और मैंने दोनों ने मिल कर मुन्नी को पढ़ाया है इतने में उस के दो तीन दोस्त जो तांगे वाले हैं, आते हैं उन में एक चिरंजी से कहता है ये तुम घोड़े से क्या बातें कर रहे हो जैसे ये सब कुछ समझता है। चिरंजी घोड़े की पीठ पर थपकी देता है और कहता है “इंसानों से हैवानों की दोस्ती अच्छी मेरे भाई। उन्हें कोई वरग़ला तो नहीं सकता। ग़ुलाम मुहम्मद तेरी जान की क़सम सच्च कहता हूँ इस जानवर ने मेरी बड़ी ख़िदमत की है तांगे में अठारह अठारह घंटे जोते रख्खा है ग़रीब ” इतने में पठान आता है चिरंजी उस को सलाम करता है और अपने तहमन्द के डब से नोट निकालता है और कहता है।
“ख़ानसाहब ये रहे आप के सौ रुपय खरे कर लीजिए। बाक़ी रहे सो उस का भी बंद-ओ-बस्त हो जाएगा। ये मेरा घोड़ा सलामत रहे।”
ये कह कर वो बड़े फ़ख़र से अपने घोड़े की तरफ़ देखता है पठान नोट लेकर चला जाता है इतने में एक तांगे वाला चरण जी से कहता है “तुम लड़की को पढ़ाना शुरू कर के ख़्वाह-मख़्वाह एक जंजाल में फंस गए हो। कोई न कोई क़र्ज़ख़ाह तुम्हारे पीछे लगा ही रहता है।” चिरंजी हँसता है “सब से बड़ी क़र्ज़ख़ाह मेरी बेटी है उस का क़र्ज़ अदा हो जाये तो ऐसे लाख क़र्ज़ लेने वाले मेरे पीछे फिरते हैं मुझे कोई परवाना नहीं तुम में से कोई अफ़ीम का नशा करता है कोई शराब का मुझे भी एक नशा है जब में देखता हूँ कि मेरी लड़की दौलतमंद आदमियों की लड़कीयों की तरह पढ़ रही है तो मेरा दिल-ओ-दिमाग़ एक अजीब नशे से झूमने लगता है औरत को ज़रूर तालीम हासिल करनी चाहिए मेरे भाई उस के क़दम मज़बूत हो जाते हैं ” ये कह कर वो घोड़े को थपकी देता है और ख़ुश ख़ुश बाहर निकलता है ताकि घर जाये।
अन्दर आईना सामने रख्खे कृष्णा कुमारी अपने कानों में कृष्ण कुमार के दिए हुए झुमके पहने बैठी है और उन्हें पसंदीदा नज़रों से देख रही है गीतगा रही है और जैसे बे-खु़द सी हो रही है झुमके उसे बहुत पसंद आए हैं इस पसंदीदगी का इज़हार उस की हर हरकत से मालूम होता है।
चिरंजी आता है घर के अंदर दाख़िल होते ही वो गाने की आवाज़ सुनता है।
कृष्णा कुमारी बदस्तूर गाने में मशग़ूल है दफ़अतन पागलों की तरह चिरंजी अंदर दाख़िल होता है कृष्ण कुमारी एक दम गाना बंद कर के दोनों हाथों से अपने कानों को ढाँप लेती है चिरंजी आगे बढ़ता है ज़ोर से कृष्णा कुमारी के दोनों हाथ नीचे झटक देता है। क़रीब है कि झुमकों को इस के कानों से नोच ले। कृष्ण कुमारी ख़ौफ़ज़दा हो कर पीछे हटती है चिरंजी पागलों की तरह उस की तरफ़ बढ़ता है और चिल्लाना शुरू कर देता है “कहाँ से लिए हैं तू ने झुमके कहाँ से लिए हैं ये झुमके ” वो इस क़दर ज़ोर से चिल्लाता है कि एक दम उसे चक्कर आ जाता है। जज़्बात से उस की आँखों के आगे अंधेरा सा छा जाता है उस की बुलंद आवाज़ बिलकुल धीमी हो जाती है कहाँ से लिए हैं ये झुमके। सर को दोनों हाथों में थाम कर वो चारपाई पर बैठ जाता है उस की लड़की फ़ौरन पंखा लेकर झलना शुरू कर देती है।
चंद लम्हात की ख़ामोशी के बाद वो एक गिलास पानी मांगता है। कृष्ण कुमारी उस को पानी पिलाती है पानी पीने के बाद वो कृष्णा कुमारी से फिर पूछता है “मुन्नी ये झुमके तू ने कहाँ से लिए हैं” कृष्णा कुमारी थोड़े से तवक्कुफ़ के बाद ज़रा हिक्मत से झूट बोलते हुए जवाब देती है “कॉलेज की एक सहेली ने दिए हैं।” चिरंजी अपनी लड़की की आँखों में आँखें डाल कर देखता है और कहता है “अपनी सहेली को वापस दे आओ।” लड़की पूछती है “क्यों पिता जी” चिरंजी जवाब देता है। “तुम्हारी माँ को ये ज़ेवर पसंद नहीं था” ये कह कर वो उठता है और बीमारों की तरह क़दम उठाता बाहर चला जाता है उस की लड़की उस से पूछती है। “खाना नहीं खाएंगे आप?”
चिरंजी जवाब देता है “नहीं।”
बाहर निकल कर चिरंजी घोड़े की बागें थामता है। और ताँगा चलाता है और (घोड़े को) मुख़ातब कर के उस से कहता है आज मेरी लड़की ने पहली बार झूट बोला है और अफ़्सुर्दगी के आलम में वो तांगे पर कई बाज़ारों के चक्कर लगाता है हत्ता कि रात हो जाती है।
एक नीम रोशन बाज़ार में से उस का ताँगा गुज़र रहा है अचानक एक औरत चंद मर्दों की झपट से निकल कर तेज़ी से चिरंजी के तांगे की जानिब बढ़ती है वो लड़खड़ाते हुए क़दमों से भागती तांगे की पिछली नशिस्त पर बैठ जाती है ये औरत शराब के नशे में चूर है। ज़ेवरात से लदी हुई है तांगे में बैठते ही वो चिरंजी से बातें शुरू कर देती है। “मुझे छेड़ते थे उल्लु के पट्ठे पर मैं दाम लिए बग़ैर किसी को हाथ लगाने देती हूँ क्यों तांगे वाले तुम्हारा क्या ख़याल है। दुनिया में पैसा ही तो है तुम कुछ बोलते नहीं। मुझे याद आया मेरा पति एक तांगे वाला ही था पर उस के पास इतने पैसे भी न थे कि मुझे नगोड़े झुमके ला देता लेकिन अब देखो मेरी तरफ़ ये कड़े, ये गुलोबन्द, ये अँगूठीयां एक से एक बढ़ कर ” ये कह कर वो दर्द भरे अंदाज़ में हंसती है। इस्मत का गहना उतर जाये तो ये ज़ेवर पहनने ही चाहिऐं।
चिरंजी पहचान लेता है कि ये औरत कौन है उस की बीवी थी जो इस हालत को पहुंच चुकी थी। चिरंजी कम्बल से अपना चेहरा क़रीब क़रीब छुपा लेता है इस पर तवाइफ़ उस से कहती है “तुम क्यों अपना चेहरा छुपाते हो छुपाना तो मुझे चाहिए ये चेहरा जिस पर कई फटकारें पड़ी हैं” ये कह कर वो फिर हंसती है “तुम ख़ामोश क्यों हो ताँगा रोक दो मेरा घर आगया है” चिरंजी ताँगा रोक देता है तवाइफ़ पाएदान पर पांव रख कर उतरने लगती है कि लड़खड़ा कर गिरती है औंधे मुँह चिरंजी दौड़ कर उसे उठाता है तवाइफ़ हंसती है “गिरने वालों को उठाया नहीं करते मेरी जान” ये कह कर जब वो घर की तरफ़ चलने लगती है तो लड़खड़ा कर फिर गिरती है। चिरंजी उस को थाम लेता है और उस को उस के घर तक छोड़ आता है जब चलने लगता है तो तवाइफ़ उस को किराया देती है चरनची किराया ले लेता है तवाइफ़ उस का बाज़ू पकड़ कर अंदर घसीटती है “आओ मेरी जान आओ आज की रात मेरे मेहमान रहो मैं तुम से एक पैसा भी नहीं लूंगी आओ शराब की पूरी बोतल पड़ी है ऊपर आओ।”
चिरंजी तांगे में बैठ कर चला जाता है। तवाइफ़ हंसती है और कहती है “बेवक़ूफ़ कहीं का मुफ़्त की क़ाज़ी भी नहीं छोड़ता।”
चिरंजी घर पहुंचता है जब अंदर दाख़िल होता है तो उसे रोने की आवाज़ सुनाई देती है कमरे में जा कर देखता है कि उस की लड़की बिस्तर पर औंधे मुँह लेटी है और ज़ार ज़ार रो रही है चिरंजी उस के पास जाता है उस के सर पर हाथ फेरता है और रोने का सबब पूछता है उस की लड़की और ज़्यादा रोना शुरू कर देती है जब चिरंजी दुबारा उस से रोने का सबब पूछता है तो वो कहती है “मुझे माँ याद आरही है अगर वो आज ज़िंदा होतीं तो मैं मैं ” वो इस के आगे कुछ नहीं कह सकी और बाप के पांव पकड़ कर कहती है “मुझे माफ़ कर दीजिए पिता जी मैंने आज आप से झूट बोला है ” चिरंजी कहता है “मुझे मालूम है।” इस पर उस की लड़की कहती है “अगर आज मेरी माता जी होतीं तो मैंने ये झूट कभी न बोला होता बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो लड़कियां सिर्फ़ अपनी माओं को ही बता सकती हैं ” चिरंजी अपनी लड़की को उठाता है और अपने पास बिठाता है “मैं तुम्हारी माँ हूँ बोलो क्या बात है शर्माओ नहीं।” कृष्णा कुमारी झेंप जाती है और शर्मा कर कहती है “ये झुमके मुझे कॉलिज के एक लड़के ने दिए हैं पिता जी। वो बहुत ही अच्छा है।” ये कह कर वो तेज़ी से कमरे से बाहर निकल जाती है सिसकियां लेती हुई चिरंजी बिस्तर पर पड़े हुए झुमकों को उठाता है और उन की तरफ़ देखता है।
चिरंजी का ताँगा कॉलिज के दरवाज़े में दाख़िल होता है कृष्णा कुमारी अपनी किताबें लेकर नीचे उतरती है चिरंजी अपनी जेब से झुमकों की डिबिया निकालता है और लड़की को दे कर कहता है “इसे आज वापस कर देना” कृष्णा कुमारी डिबिया लेकर ख़ामोशी से चली जाती है आहिस्ता आहिस्ता क़दम उठाती वो कॉलिज के बाग़ीचे की तरफ़ बढ़ती है। बाग़ीचे में एक बंच पर कृष्ण कुमार बैठा है और एक ख़त पढ़ रहा है कृष्णा कुमारी को देख कर वो उठ खड़ा होता है और इस से बातें शुरू कर देता है। “माता जी का ख़त आया है लो पढ़ो नहीं ठहरो। मैं पढ़ के सुनाता हूँ पर तुम हंसना नहीं, मेरी माँ बेचारी सीधी सादी देहाती है मैंने उन को तुम्हारी बात लिखी है मैं उन से कोई बात छुपा कर नहीं रखता सुनो उन्हों ने क्या लिखा है बेटा कुमार ऐसी कोई बात न करना जिस से उस लड़की की बदनामी हो उस के माँ बाप से मिलो और कहो जैसी वो उन की बेटी है वैसे ही तुम उन के बेटे हो मेरी तरफ़ से उस को आशीर्वाद देना तुम जुग जुग जियो और बाक़ी अहवाल ये है कि मैंने ख़ालिस घी की अपने हाथ से ये मिठाई बनाई है जो तुम्हें भेज रही हूँ इस में आधा हिस्सा तुम्हारी कृष्णा कुमारी का है। कहना तुम्हारी माता जी ने भेजा है।” कृष्णा कुमारी दमबख़ुद ये बातें सुनती रहती है कृष्ण कुमार इस रो में बातें करता रहता है और कृष्णा कुमारी को मौक़ा ही नहीं मिलता कि वो कुछ कह सके “देखा मेरी माँ कितनी सीधी साधी है उन्हों ने मिठाई भेजी है बिलकुल ख़राब थी। पर में सारी की सारी खा गया हूँ किया करता अगर न खाता तो नाराज़ हो जातीं। मैं भी बिलकुल उन जैसा हूँ अगर तुम ने उस रोज़ मेरा तोहफ़ा क़बूल न क्या होता तो मेरा दिल टूट जाता जाने मैं क्या कर बैठता ” कृष्णा कुमारी कुछ कहना चाहती है मगर उस की आवाज़ रुँध जाती है झुमके वापस देना चाहती है नहीं दे सकती। उस की आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं एक दम तेज़ी से मुड़ती है और कृष्ण कुमार को वहीं छोड़कर चली जाती है
कृष्णा कुमारी तेज़ी से जा रही है कि उस की मुडभेड़ जगदीश और सतीश से होती है दोनों उस की तरफ़ ग़ौर से देखते हैं क्योंकि उस की आँखें आँसूओं से लबरेज़ हैं कृष्णा कुमारी चली जाती है जगदीश और सतीश एक दूसरे की तरफ़ मानी ख़ेज़ नज़रों से देखते हुए इस तरफ़ बढ़ते हैं जिधर कृष्ण कुमार बैठा है।
जगदीश और सतीश दोनों कुमार से मिलते हैं जगदीश उस से कहता है “कुमार तुम ने ये क्या ग़ज़ब कर दिया बेचारी रो रही थी भई ये रोमांस अच्छा रहा मारा वारा तो नहीं तुम ने ”
कृष्ण कुमार सादा लोही के साथ मुस्कुराता है और कहता है “एक ख़ास बात थी” जगदीश ने उस से ये ख़ास बात दरयाफ़्त की तो कृष्ण कुमार कहता है “एक ख़ास बात थी ” जगदीश फिर उस से ये ख़ास बात दरयाफ़्त करता है कृष्ण कुमार कहता है। “भई सब बातें तुम्हें नहीं बता सकता। कह जो दिया एक ख़ास बात थी” ये कह कर वो चला जाता है जगदीश और सतीश दोनों अकेले रह जाते हैं दोनों बैंच पर बैठ जाते हैं और कृष्णा कुमारी के मुतअल्लिक़ बातें शुरू कर देते हैं जगदीश कहता है “मैं समझता हूँ कि फ्लर्ट है उस को हासिल करने का सब से बेहतर तरीक़ा ये है कि तांगे वाले से बातचीत की जाये वो इस के सारे भेद जानता होगा बाहर ही बाहर मुआमला तय हो जाएगा और यहां कॉलिज में किसी को कानों कान ख़बर न होगी।” सतीश को ये बात पसंद आती है चुनांचे तय होता है कि जगदीशन तांगे वाले से बातचीत करे।
चिरंजी कॉलिज के बाहर ताँगा लिए खड़ा है पास ही पान सिगरेट वाले की दूकान है यहां जगदीश खड़ा है पान वाले से पान और सिगरेट लेता है और चिरंजी की तरफ़ बढ़ता है घोड़े को थपकी देता है फिर उस की तारीफ़ करता है इस तरह वो चिरंजी से आहिस्ता आहिस्ता गुफ़्तुगू शुरू कर देता है आख़िर में वो बातों बातों में चिरंजी से कहता है “उस्ताद हर ऐश करते हो हर रोज़ एक पटाखा सी लौंडिया इस तांगे में बिठा कर लाते हो और ले जाते हो अच्छा मैंने कहा। कुछ हमारी दाल गल सकती है और उस्ताद तुम चाहो तो सब कुछ कर सकते हो तुम्हारे दाएं हाथ का काम है ऐसा ही एक ताँगा घोड़ा बन जाएगा। अगर हमारा काम हो जाये,” चिरंजी हँसता रहता है जगदीश को और शहा मिलती है “अम्मां हम सब जानते हैं कि लौंडिया ऐसी नहीं कि हाथ न आसके। कॉलिज में उस का एक लड़के से सिलसिला जारी है।” चिरंजी अब कुछ दिलचस्पी लेता है और जगदीश से चंद बातें दरयाफ़्त करता है जगदीश उसे बताता है कि “उस लड़की कृष्णा कुमारी पर कॉलिज में एक लड़का जो बहुत बदमाश है डोरे डाल रहा है और उस लड़के से वो कानों के झुमके भी ले चुकी है।”
ये सब बातें बताने के बाद जगदीश चिरंजी से कहता है “देखो अगर उस को ज़ेवरों का ही शौक़ है तो हम बढ़िया बढ़िया चीज़ दे सकते हैं तुम ये बातें अपने तौर से उस के साथ करना समझे।” इस किस्म की चंद बातें होने के बाद तय होता है कि जगदीश शाम को कंपनी बाग़ के पास फ़ुलां फ़ुलां मुक़ाम पर चिरंजी का इंतिज़ार करे जब लड़की झट मान जाने वाली है तो चिरंजी सारा मुआमला ठीक कर देगा।
उसी रोज़ शाम को जगदीश मुक़र्ररा जगह पर पहुंच जाता है खंबे के साथ खड़ा सिगरेट पी रहा है इतने में ऐन वक़्त पर चिरंजी का टांगा सड़क पर नुमूदार होता है चिरंजी खंबे के पास अपना ताँगा रोकता है जगदीश बहुत ख़ुश हो कर चिरंजी से कहता है “भई बिलकुल अंग्रेज़ हो ठीक वक़्त पर आए हो न एक मिनट इधर ना एक मिनट उधर ” चिरंजी मुस्कुराता है और कहता है, “अब आप वक़्त ज़ाए न कीजिए और बैठ जाईए तांगे में मैं आप को सीधा रास्ता बता दूँ जगदीश ख़ुश ख़ुश तांगे में बैठ जाता है और चिरंजी को एक सिगरेट पेश करता है ताँगा चलता है।
जगदीश चिरंजी के साथ लड़की की बातें करता रहता है ताँगा मुख़्तलिफ़ सड़कें तय करने के बाद एक वीरान सी जगह पर पहुंचता है चिरंजी बागें खींच कर घोड़ा ठहराता है बड़े इत्मिनान से अपना कम्बल और पगड़ी उतार कर अगली नशिस्त पर रखता है और आसतीनें छुट्टी कर जगदीश से कहता है “आईए आप की लड़की से मुलाक़ात करा दूं” जुगदीश चिरंजी की तरफ़ शक की नज़रों से देखता है मगर चिरंजी इस का बाज़ू पकड़ता है और खींच कर झाड़ीयों के पीछे ले जाता है चंद लम्हों के बाद जगदीश का हैट सड़क पर आगरता है।
कॉलिज का होस्टल जगदीश का कमरा बाहर दरवाज़े पर जगदीश का नाम पीतल के बोर्ड पर लिखा हुआ है सतीश आता है और दरवाज़े पर दस्तक देता है दरवाज़ा खुलता है सतीश अंदर दाख़िल होता है क्या देखता है कि जगदीश का सर मुँह सूजा हुआ है और कई पट्टियां उस के जिस्म पर बंधी हैं। सतीश उस से पूछता है “ये क्या होगया है तुम्हें ” जुगदीश उसे कुर्सी पर बिठाता है और सारा क़िस्सा सुनाता है “भई ये तो बरसों की वरज़िश काम आगई वर्ना बंदे का तो कल काम तमाम होगया होता।” मैंने तांगे वाले से तमाम मुआमला तय कर लिया चुनांचे वो मुझे कंपनी बाग़ में मिला लड़की वहां मौजूद थी उस से बातें भी हुईं लेकिन सतीश के हमराह वहां तीन चार और चाहने वाले आगए। मुझे उस के साथ देख कर जल ही तो गए इन में से एक ने मुझ पर कोई रिमार्कस कसा। लड़की मेरे साथ थी मैंने दिल में कहा जगदीश यहां ख़ामोश नहीं रहना चाहिए। चुनांचे मैं उठा और एक ऐसा घूंसा उस साले की ठोढ़ी के नीचे जमाया कि दिन को तारे ही नज़र आ गए होंगे बच्चा जी को, बस फिर किया था। बाक़ायदा जंग शुरू होगई। चारों मुझ पर पिल पड़े मगर सतीश मैंने भी वो हाथ दिखाए कि याद ही करते होंगे एक एक को फ़र्श कर के रख दिया। कुछ चोटें मुझे भी आगईं साथ वाले कमरे में ये सब बातें कृष्ण कुमार सुनता है क्योंकि दोनों कमरों के दरमयान लकड़ी का एक पर्दा है जो ऊपर से ख़ाली है सतीश जगदीश की सब बातें सुन कर कहता है “और भाई ऐसे मौक़ों पर कौन किस की मदद करता है तुम क्या बच्चों ऐसी बातें करते हो” इतने में जगदीश के कमरे का दरवाज़ा खुलता है और कृष्ण कुमार ग़ुस्से में भरा हुआ दाख़िल होता है जगदीश से कहता है “तुम ने जो कुछ कहा है झूट है तुम एक शरीफ़ लड़की पर बोहतान बांध रहे हो” जगदीश सुनता है और कहता है “मेरा कचूमर निकल गया है और तुम कहते हो बोहतान बांध रहा हूँ यक़ीन ना हो तो तांगे वाले से पूछ लो जो मुझे ले गया था” ग़ुस्से में आकर चूँकि उस की महबूबा की इज़्ज़त पर हमला किया गया है कृष्ण कुमार ज़ोर से एक चांटा जगदीश के मुँह पर मारता है और कहता है “बकवास मत करो ” लेकिन फ़ौरन ही उसे अपनी ग़लती का एहसास होता है “मुझे माफ़ कर दो जगदीश ये चांटा तुम्हारे मुँह पर नहीं उस तांगे वाले के मुँह पर मारना चाहिए था जो उस की ज़िंदगी तबाह कर रहा है” ये कह कर चला जाता है।
कृष्ण कुमार अपने कमरे में आता है मेज़ पर बैठता है काग़ज़ लेकर ख़त लिखना शुरू कर देता है मगर चंद सतरें लिख कर काग़ज़ फाड़ देता है कुर्सी पर से उठ खड़ा होता है कमरे में इज़्तिराब के साथ इधर उधर ज़ोर से टहलता है सामने खूंटी पर अपना सूओट देखता है उसे उतार कर अपने पैरों में रौंद देता है कुछ समझ में नहीं आता। तो पलंग पर औंधे मुँह लेट जाता है फिर उठ कर खड़ा होता है और खिड़की के पास जा कर दर्द भरी धुन में कोई गीत गाता है चिरंजी खाना खा रहा है पास ही उस के उस की लड़की बैठी है चिरंजी मुँह में निवाला डालने ही वाला था कि उसे कोई बात याद आती है चुनांचे वो अपनी लड़की से पूछता है “मुन्नी तुम ने झुमके वापस किए,” कृष्णा कुमारी झूट नहीं बोलती “पिता जी में उस को वापस देने गई पर दे न सकी।” चिरंजी निवाला वहीं थाल में रख देता है और पूछता है “क्यों?” कृष्णा कुमारी की आँखों में आँसू आ जाते हैं वो सिर्फ़ इतना कह सकती है “मुझे मालूम नहीं” चिरंजी उठ खड़ा होता है और खाना खाए बग़ैर बाहर चला जाता है।
एक आदमी ऐनक लगाए डैस्क के साथ बैठा है चिरंजी से कहता है यहां अंगूठा लगाओ। चिरंजी अपना अंगूठा आगे बढ़ा देता है उस पर वो आदमी स्याही लगाता है और पकड़ कर काग़ज़ पर जमा देता है अंगूठा लगाने के बाद वो डैस्क से नोट निकालता है और चिरंजी के हवाले कर देता है चिरंजी नोट लेकर बाहर निकलता है।
बाहर एक शैड के नीचे उस का एक ताँगा घोड़ा खड़ा है चिरंजी अपने अंगूठे की स्याही देखता उस की जानिब बढ़ता है एक हाथ में उस ने नोट पकड़े हुए हैं आहिस्ता आहिस्ता घोड़े के पास जाता है और उस की पीठ पर हाथ फेर कर गुलो-गीर आवाज़ में कहता है “बेच आया हूँ तुझे दोस्त ये देख अपनी क़ीमत” ये कह कर वो घोड़े के मुँह के आगे अपना वो हाथ फैला देता है जिस में नोट हैं। उस की आँखों में आँसू हैं लोग अपना ईमान बेचते हैं मैं तुझे बीच आया हूँ तो जो कि मेरा सच्चा दोस्त था आवाज़ चिरंजी के गले में रुँध जाती है तो बोल नहीं सकता तो तेरी ज़बान होती तो मैं तेरे मुँह से सुने बग़ैर कभी न जाता कि चिरंजी तू झूटा है मतलबी है। दग़ाबाज़ है जिस तरह वक़्त पड़ने पर लोग गले का कुंठा उंगली की अँगूठी बेच देते हैं इस तरह तू ने मुझे बेच दिया है लानत है तुझ पर ये कह कर वो अपना अंगूठा देखता है और घोड़े से कहता है ये स्याही देखी तुम ने इस सौदे की मालिक है मगर मैं तेरे साथ क्यों बातें करूं तू अब मेरा नहीं मुझे तुझ पर कोई हक़ नहीं रहा। आख़िरी बार चिरंजी मुँह परे कर के घोड़े की पीठ पर थपकी देता है।
रात का वक़्त है चिरंजी कम्बल ओढ़े पैदल चला आरहा है रास्ते में एक तांगे वाला ताँगा ठहरा कर उस से पूछता है “आज ताँगा घोड़ा नहीं जोता चिरंजी।” चिरंजी जवाब देता है “आज नहीं जोता। मेरी तबीयत अच्छी नहीं थी।” ये कह कर वो चलना शुरू कर देता है। घर में चिरंजी की लड़की कृष्णा कुमारी लालटैन जलाए इंतिज़ार कर रही है। कभी उठती है कभी बैठती है उसे किसी पहलू चैन नहीं इतने में दरवाज़ा पर दस्तक होती है वो उठ कर दरवाज़ा खोलती है चिरंजी अंदर दाख़िल होता है कृष्णा कुमारी इस से पूछती है “पिता जी आज आप इतनी देर से आए हैं कहाँ चले गए थे।” चिरंजी अपने कम्बल से एक पोटली निकालता है और उसे खोल कर अपनी लड़की को देता है “ये ज़ेवर लाने गया था तेरे लिए तुझे शौक़ जो है इन का अब तो तेरा दिल नहीं ललचायेगा तू कहेगी तो मैं ऐसे और ज़ेवर भी ला दूंगा अपना आप भी बेच डालूंगा तेरे दिल में ललचाहट पैदा न होने दूँगा।” कृष्णा कुमारी कभी ज़ेवरों की तरफ़ देखती और कभी अपने बाप की तरफ़ आख़िर में कहती है “कोई चीज़ बेची है आप ने ये गहने ख़रीदने के लिए अगर आप ने ऐसा किया है तो सख़्त ग़लती की है” ये कहते हुए इस के हाथ से ज़ेवर फ़र्श पर गिर पड़ते हैं “पिता जी मैंने कभी इन चीज़ों को ललचाई हुई नज़रों से नहीं देखा ये आप को कैसे मालूम हुआ कि मुझे इन चीज़ों का शौक़ है” चिरंजी उस से कहता है “तू ने वो झुमके वापस क्यों नहीं किए।”
कृष्णा कुमारी की आँखों में आँसू आ जाते हैं “काश मेरी माँ होती और मेरी बात समझ सकतीं कि आप समझते हैं कि मैं सोने चांदी के लिए अपना आप बीच दूँगी आप ने मुझे तालीम दी है मेरे क़दम मज़बूत किए हैं पिता जी मैं आप की बेटी हूँ आप ने मेरा नहीं अपना अपमान किया है” ये कह कर वो रोती रोती पास पड़े हुए सन्दूकचे से झुमकों की डिबिया निकालती है और अपने बाप को दे कर कहती है “लीजिए ये झुमके जिस ने मुझे दिए थे उस को आप ही वापस दे आईए अगर आप कहेंगे तो मैं उस की याद को भी अपने दिल से निकाल कर आप के क़दमों में रख दूंगी” ये कह कर वो रोती हुई दूसरे कमरे में चली जाती है। चिरंजी फ़र्श पर पड़े हुए ज़ेवरों की तरफ़ देखना शुरू कर देता है।
कॉलिज का सदर दरवाज़ा कृष्ण कुमार ख़ामोशी से दीवार के साथ लग कर खड़ा है उस की नज़रें दरवाज़ा पर जमी हुई हैं जगदीश और सतीश आते हैं सतीश उस से पूछता है “बड़ी देर से यहां ख़ामोश खड़े हो क्या बात है।” कृष्ण कुमार एक अज़्म के साथ जवाब देता है “उस बदमाश तांगे वाले का इंतिज़ार कररहा हूँ आज उस को ऐसा सबक़ सिखाऊँगा कि सारी उम्र याद रखेगा।” जगदीश कृष्ण कुमार को तांगे वाले के ख़िलाफ़ और ज़्यादा मुश्तइल करता है दफ़अतन सब की नज़रें दरवाज़े की तरफ़ उठती हैं तांगे वाला चिरंजी कृष्णा कुमारी दोनों पैदल अंदर दाख़िल होते हैं जगदीश ये देख कर कहता है “आज ताँगा कहाँ गया” और कम्पाऊंड में दाख़िल हो कर चिरंजी अपनी लड़की को किताबें देता है कृष्णा कुमारी दूर से कृष्ण कुमार को देखती है और उस की तरफ़ इशारा करती है। चिरंजी सर हिला देता है कृष्ण कुमार कृष्णा कुमारी का इशारा देख लेता है कृष्णा कुमारी एक तरफ़ चली जाती है कृष्ण कुमार ग़ुस्से में भरा सीधा तांगे वाले की तरफ़ बढ़ता है चिरंजी भी उस की तरफ़ आरहा होता है चिरंजी के पास पहुंच कर कृष्ण कुमार न आओ देखा न ताऊ खींच कर एक चांटा चिरंजी के मुँह पर मारता है और कहता है कि इशारे हो रहे थे “मेरी तरफ़ क्या मुझे भी तुम अपने जैसा बदमाश समझते हो।” एक चांटा वो चिरंजी के मुँह पर जमा देता है। “उल्लु के पट्ठे शर्म नहीं आती तुझे पराई लड़कियों को बुरे रास्ते पर लगाते हुए क्या तेरी कोई लड़की नहीं जो पैसे के लालच में आकर भड़वे बने हुए हो” चिरंजी के मुँह से ख़ून बहना शुरू हो जाता है वो आगे बढ़ता है कृष्ण कुमार ये समझ कर कि वो उसे मारना चाहता है घूंसे बाज़ी शुरू कर देता है चिरंजी उसे अपने सीने के साथ भींच लेता है कृष्ण कुमार घूंसे चलाता रहता है इतने में बहुत से लोग इकट्ठे हो जाते हैं जिन में जगदीश भी शामिल है एक दो पट्टियां अभी तक इसी के सर पर बंधी हुई हैं कृष्णा कुमारी चीख़ती हुई आगे बढ़ती है और कृष्ण कुमार से कहती है “कुमार ये तुम क्या कररहे हो। ये मेरे पिता जी हैं” कृष्ण कुमार मुतहय्यर हो कर कहता है “पिता जी।” चिरंजी के मुँह से ख़ून जारी है वो मुस्कुराता है “हाँ बेटा मैं इस का पता हूँ और तुम्हारा भी ये कह कर वो कृष्ण कुमार को सीने से लगा लेता है जीते रहो मैंने तुम से मार खाई है लेकिन इस जवान से पूछो” कि वो जगदीश की तरफ़ इशारा करता है “कि मेरे बाज़ूओं में कितना बल है” जगदीश वहां से खिसक जाता है कृष्ण कुमार नदामत भरे लहजे में चिरंजी से माफ़ी मांगता है अपनी लड़की और कृष्ण कुमार के सर पर प्यार का हाथ फेर कर चिरंजी जेब से झुमकों की डिबिया निकालता है और कृष्णा कुमारी को दे कर कहता है “लो उसे अपने पास रख्खो।”
शहनाईआं बज रही हैं कृष्णा कुमारी और कृष्ण कुमार की शादी हो चुकी है चिरंजी अपनी लड़की और कृष्ण कुमार के सर पर शफ़क़त का हाथ फेर रहा है अपनी लड़की से कहता है “तुम अपनी माँ को याद क्या करती थीं तुम्हें माँ भी मिल गई है” ये कह कर वो कृष्णा कुमारी की माँ की तरफ़ देखता है जो एक सीधी साधी दीहातन है वो मुस्कुराती है और कृष्णा कुमारी की तरफ़ हाथ बढ़ा कर सर पर हाथ फेरती है और बड़ी सादा लोही के साथ कहती है “बेटी मैंने तेरे लिए अपने हाथ से मिठाई बना कर भेजी थी किया तू ने खाई थी।” कृष्णा कुमारी ज़रा झेंप कर कहती है “खाई थी माता जी बहुत ही मज़ेदार थी।”
एक तांगे में चिरंजी की बीवी शराब के नशे में धुत बैठी है ताँगा चल रहा है इस के साथ ही एक मर्द बैठा है। चिरंजी की बीवी पान थोक देती है बहुत बदमज़ा है। इतने में ताँगा वहां पहुंचता है जहां कृष्णा कुमारी और कृष्ण कुमार की शादी हो रही है। तांगे वाला ताँगा ठहरा देता है और अपने गाहक से कहता है “माफ़ कीजिएगा मैं अभी हाज़िर हुआ।” चिरंजी की बीवी पूछती है कहाँ जा रहे हो तुम” तांगे वाला कहता है “चिरंजी तांगे वाले की लड़की की शादी हो रही है मैं उसे मुबारकबाद दे आऊं। यूं चुटकियों में आया।” ये कह कर तांगे वाला चला जाता है। चिरंजी की बीवी चंद लम्हात के लिए पत्थर की मूर्ती सी बन जाती है लेकिन लड़खड़ाती हुई उठती है और तांगे से उतर कर उधर जाती है जहां से शहनाइयों की आवाज़ आती है। बारिश हो रही है चिरंजी की बीवी जो शराब के नशे में मदहोश है लड़खड़ाते हुए क़दमों से शादी मंडल की तरफ़ बढ़ती है बारिश हो रही है बाहर तमाशाइयों के साथ खड़े हो कर वो दूलहा दुलहन को देखती है अच्छी तरह देखने के लिए जब वो आगे बढ़ने की कोशिश करती है तो एक आदमी उसे पीछे हटा देता है और कहता है “ए क्या देख रही है तू। तेरी माँ ने कभी शादी नहीं की होगी।” चिरंजी की बीवी उस आदमी से झगड़ना शुरू कर देती है “मैं माँ हूँ तू नहीं जानता मैं माँ हूँ।” सारे तमाशाई हंसते हैं चिरंजी की बीवी देख रही है कृष्णा कुमारी भी किसी बात पर हंस रही है चिरंजी की बीवी की मामता जाग उठती है वो चिल्लाना शुरू कर देती है “मुझे अंदर जाने दो मुझे अंदर जाने दो ” कुछ गड़बड़ होती है इतने में चिरंजी बाहर निकलता है और अपनी बीवी के पास जाता है और उस से कहता है “क्या चाहती हो।” तो चिरंजी की बीवी कहती है “मैं अपनी लड़की से मिलना चाहती हूँ” चिरंजी कहता है “आओ मैं तुम्हें उस से मिला देता हूँ” ये कह कर वो उसे एक तरफ़ ले जाता है जहां इस का ताँगा खड़ा है चिरंजी उसे तांगे तक ले जाता है।
ताँगा चला जा रहा चिरंजी की बीवी शराब के नशे में बार बार चिरंजी से पूछती है “मुझे मेरी बेटी से मिलाओ। मुझे मेरी बेटी से मिलाओ। मैं उस की माँ हूँ मैं उसे एक तोहफ़ा देना चाहती हूँ।” चिरंजी ख़ामोश रहता है तांगे की रफ़्तार तेज़ होती रहती है एक बार तंग आकर वो चिरंजी से पूछती है “कहाँ ले जा रहे हो मुझे” चिरंजी जवाब देता है “जहां पती और पत्नी को जाना चाहिए,” घोड़ा सरपट दौड़ता एक खाई में गिरता है।
तांगे के पुरज़े उड़ जाते हैं खाई के नीचे चिरंजी और उस की बीवी पड़े हैं और दोनों बुरी तरह ज़ख़्मी हुए हैं चिरंजी मर चुका है मगर उस की बीवी अभी ज़िंदा है वो अपनी आँखें खोलती है उसे अपनी जवानी का वो दिन याद आता है जब झुमके पहने गा रही थी। वो जवान है और झुमके अपने कानों में देख देख कर ख़ुश हो रही है और गा रही है अपनी बच्ची को आवाज़ देती है। और कहती है “मुन्नी मुन्नी आ तुझे एक चीज़ दिखाऊँ” उस की बंद मुठी खुलती है उस की हथेली पर वही झुमके नज़र आते हैं जो चिरंजी इस के लिए लाया था ।