झुकी हुई कमरवाला भिखारी : कश्मीरी लोक-कथा

Jhuki Hui Kamarwala Bhikhari : Lok-Katha (Kashmir)

जावेद खान ने कहना शुरू किया, 'लगभग 30 साल पहले झुकी कमरवाला भिखारी, जिसका नाम गणपत है, बिल्कुल सीधा और खड़ा था। उस समय वह एक नौजवान था, उसकी शादी हुई ही थी। हालाँकि उसके पास कई एकड़ जमीन थी, वह अमीर नहीं था और गरीब भी नहीं था। जब वह अपनी फसल 5 मील दूर बाजार में ले जाता था, वह बैलगाड़ी का उपयोग करता और गाँव की धूल भरी सड़क पर चलकर जाता था। उसका गाँव हमारे नीचे फैली घाटी में स्थित था।'

हर रात को घर लौटते समय गणपत को पीपल के एक पेड़ के पास से गुजरना होता था, जिस पर किसी भूत का वास बताया जाता था। उसे कभी पेड़ पर भूत नहीं मिला था और वह इसमें विश्वास भी नहीं करता था; लेकिन भूत का नाम, जो उसे बताया गया था, बिपिन था, जो कि बहुत पहले एक डाकू था और उसे उसी पेड़ पर फाँसी दी गई थी। तब से ही बिपिन का भूत उस पेड़ पर रहता था और अकसर उन लोगों पर झपट पड़ता था, जिन्हें वह पसंद नहीं करता था। कभी-कभी उनकी पिटाई करता था तो कभी उनके गले पर कूदकर उनकी पाचन-क्रिया गड़बड़ कर देता था। शायद गणपत के बार-बार उस पेड़ के नीचे से आने-जाने के कारण बिपिन उससे नाराज हो गया था, क्योंकि एक रात को उसने गणपत पर हमला करने का फैसला कर लिया। उसने पेड़ से छलाँग लगाई और रास्ता रोककर सड़क के बीचोबीच खड़ा हो गया। वह चिल्लाया, 'तुम अपनी बैलगाड़ी से नीचे उतरो, मैं तुम्हें मारने जा रहा हूँ।'
गणपत, जाहिर है, सकते में आ गया; लेकिन उसे इसका कोई कारण नजर नहीं आया कि उसे भूत की आज्ञा क्यों चाहिए?
'मेरा मरने का कोई इरादा नहीं है।' उसने जवाब दिया।
'तुम खुद गाड़ी पर चढ़ जाओ!'

'बोला न! किसी आदमी की तरह! ' बिपिन चिललाया और उछलकर बैलगाड़ी पर गणपत के पास पहुँच गया, 'लेकिन मुझे इसका कोई एक अच्छा सा कारण बताओ कि मैं क्यों तुम्हारी जान न लूँ?"

'अगर तुमने मुझे मार दिया तो बाद में बहुत पछताओगे। मैं एक गरीब आदमी हूँ और मेरी एक पत्नी है, जिसका मैं ही सहारा हूँ।'
'तुम्हारे गरीब होने से इसका कोई संबंध नहीं है।' बिपिन ने कहा।
'ठीक है, तो मुझे अमीर बना दो, अगर तुम बना सकते हो।'
'तो तुम समझते हो कि मेरे पास तुम्हें अमीर बनाने की शक्ति नहीं है? '
'मैं तुम्हें मुझे अमीर बनाने की चुनौती देता हूँ।' गणपत ने कहा।
'तो चलते रहो,' बिपिन चिल्लाया, 'मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चल रहा हूँ।'
गणपत ने बैलगाड़ी गाँव की तरफ बढ़ा दी। बिपिन पीछे बैठा हुआ था।

'मैंने ऐसी व्यवस्था की है।' बिपिन ने कहा, 'अन्य कोई नहीं, केवल तुम मुझे देख सकोगे। और दूसरी बात, मुझे हर रात तुम्हारे पास सोना होगा और किसी को इसका पता नहीं लगना चाहिए। अगर तुमने मेरे बारे में किसी को बताया तो मैं निश्चित रूप से तुम्हें मार डालूँगा।'
'चिंता मत करो,' गणपत ने कहा, 'मैं किसी को भी नहीं बताऊँगा।'
'अच्छा है!' बिपिन ने कहा, 'मैं तुम्हारे साथ रहने का इंतजार कर रहा हूँ। वहाँ पेड़ पर रहते हुए मैं अकेलापन महसूस कर रहा था।'

तो, बिपिन गणपत के साथ रहने आ गया और वे हर रात एक-दूसरे के साथ सोने लगे और उनमें बहुत अच्छी पट रही थी। बिपिन उतना ही अच्छा था, जितने उसके शब्द थे और 'कल्पनीय व अकल्पनीय स्रोतों से पैसा बरसने लगा, जब तक गणपत इस स्थिति में नहीं पहुँच गया कि और जमीन तथा मवेशी खरीद सके। किसी को भी उसके बिपिन के साथ सहयोग के बारे में पता नहीं था। हालाँकि स्वाभाविक है, उसके मित्र और रिश्तेदार जरूर आश्चर्य करते थे कि इतना धन आ कहाँ से रहा था! इसी समय के दौरान गणपत की पत्नी रात को लगातार उसकी अनुपस्थिति से चिंतित थी। पहले तो उसने अपनी पत्नी को बताया था कि उसकी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह बरामदे में सोएगा। फिर उसने कह दिया कि रात को कोई उसकी गाय चुराने की कोशिश कर रहा था, इसलिए उसे उनकी रखवाली करनी होगी। इसके बाद बिपिन और वह गायों के बाड़े में सोए।

गणपत की पत्नी रात को अकसर उसकी जासूसी करती थी; लेकिन उसने उसे हमेशा गायों के बीच में सोते हुए ही पाया। उसके अजीब व्यवहार को समझ पाने में असमर्थ रहने पर उसने यह बात अपने माता-पिता को बताई। वे गणपत के पास आए और उससे पूछताछ की।

गणपत के खुद के रिश्तेदार भी उसकी आय में वृद्धि का स्रोत बताने पर जोर दे रहे थे। एक दिन चाचा-चाचियाँ और दूर के चचेरे भाई, सब यह जानने के लिए उसके घर आ धमके कि यह सब पैसा आ कहाँ से रहा था?

'क्या आप लोग चाहते हो कि मैं मर जाऊँ?” अपना धैर्य खोते हुए गणपत ने कहा। 'अगर मैं अपनी दौलत का कारण आपको बताता हूँ तो मैं सबकुछ खो दूँगा।'

लेकिन उन्होंने इसे एक चालाकी भरा बहाना मानते हुए उसका मजाक उड़ाया, क्योंकि उन्हें शक था कि वह इस सारे पैसे को अपने पास ही रखना चाहता था। अंत में, वह सब लोगों की माँगों से इतना तंग आ चुका था कि उसने सारी सच्चाई उगल दी। उन्होंने इस सच्चाई पर भी विश्वास नहीं किया (लोग कम ही करते हैं); लेकिन इससे उन्हें बातें करने का एक विषय मिल गया था और वे कुछ समय के लिए चले गए।

लेकिन उस रात को बिपिन गायों के बाड़े में सोने नहीं आया। गणपत गायों के साथ अकेला सोया। उसे डर लग रहा था कि अगर वह सो गया तो जब वह सोया हुआ होगा, बिपिन उसे मारने का फैसला कर सकता है। लेकिन ऐसा लगता था कि भूत की भावनाएँ इतनी आहत हुई थीं कि वह वहाँ से चला गया था और गणपत को उसके हाल पर छोड़ गया था। गणपत को पूरा यकीन था कि उसके अच्छे भाग्य का अब अंत आ चुका था।

अगले दिन जब वह बाजार से अपने गाँव के लिए बैलगाड़ी से लौट रहा था तो पीपल के पेड़ से बिपिन ने छलाँग लगाई।
'झूठा दोस्त!' बैलगाड़ी को रोकते हुए वह चिल्लाया, 'मैंने तुम्हें वह सबकुछ दिया, जो तुम चाहते थे, फिर भी तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया! '
'मुझे बहुत खेद है।' गणपत ने कहा, 'तुम चाहो तो मेरी जान ले सकते हो।'
'नहीं, मैं यह नहीं कर सकता।' बिपिन ने कहा, 'हम लंबे समय तक दोस्त रहे हैं; लेकिन मुझे तुम्हें दंड तो देना ही होगा।'

पीपल के पेड़ से एक डाली तोड़कर उसने उससे गणपत की पीठ पर इतनी बार मारा, जब तक कि उसकी कमर पूरी तरह से झुक नहीं गई।

'उसके बाद,' कहानी समाप्त करते हुए जावेद खान ने कहा, 'वह फिर से सीधा नहीं हो सका और बीस साल से अधिक समय से वह इस विकृत रूप में रह रहा है। उसकी पत्नी उसे छोड़कर अपने परिवार में चली गई और वह अब खेत में काम करने लायक नहीं रहा था।

इसलिए उसने गाँव छोड़ दिया और जीने के लिए भीख माँगता हुआ एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने लगा। इसी तरह से वह लंढौर आ पहुँचा और उसने यहीं रहने का फैसला किया।

यहाँ के लोग अन्य स्थानों की बजाय अधिक दयालु लगते हैं, कम-से-कम गणपत ऐसा सोचता है। और इतनी ऊँचाई पर यहाँ कोई पीपल का पेड़ नहीं है।'
'लेकिन उस धन का क्या हुआ, जो उसने बिपिन से प्राप्त किया था?' कमल ने पूछा।

'वह गायब हो गया।' जावेद खान ने कहा, 'जैसे इस प्रकार की सभी चीजों को होना चाहिए। उस धन का क्या महत्त्व है, जिसके लिए तुमने खुद कोई मेहनत नहीं की है?'

(रस्किन बांड की रचना 'कश्मीरी किस्सागो' से)

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