झींगा और केकड़ा : नागा लोक-कथा
Jheenga Aur Kekda : Naga Folktale
बहुत समय पहले की बात है, झींगा और केकड़ा नदी में साथ-साथ रहते थे। वे दोनों आपस में हँसी-मजाक करते और एक-दूसरे का मजाक भी उड़ाते, फिर भी वे बहुत अच्छे मित्र थे। वे एक-दूसरे के बिना कुछ भी नहीं करते।
एक बार सर्दियों में नदी में पानी बहुत कम था। केकड़े को ठंड लग रही थी, इसलिए उसने नदी। के किनारे धूप सेंकने की सोची। अचानक झींगा आया और उछल-उछलकर केकड़े को चिढ़ाने लगा- "ओ केकड़े, तुम क्या कर रहे हो ? क्या तुम मेरी तरह उछल सकते हो। देखो, मैं कितना चुस्त और तेज हूँ।"
केकड़े ने उत्तर दिया - "हाँ, मैं जानता हूँ कि तुम उछल सकते हो। पर क्या तुम मेरी तरह शांत पड़े रह सकते हो ? क्या तुम मेरी तरह पानी के बाहर आकर इस धूप का आनंद ले सकते हो ? आओ मेरे दोस्त, मेरी तरह तुम भी आनंद लो।"
इस तरह दोनों एक-दूसरे से मजाक कर रहे थे और जब केकड़ा आराम करने की कोशिश करता तो झींगा आकर उसे परेशान करता और कहता, "देखो-देखो, मेरी तरफ देखो, क्या तुम वह सब कर सकते हो, जो मैं कर सकता हूँ?" झींगा उसके आराम में लगातार खलल पहुँचा रहा था।
पुराने दिनों में केकड़ा अकसर एक गीत गाता - " मेरी ओर देखो मेरे दोस्त हम लोगों के लिए बने हैं, जो आकर हमें पकड़ लेंगे और खा जाएँगे। इसलिए इस तरह की बहस की जरूरत नहीं । जब तक हम जीवित हैं, खुश रहो।"
केकड़ा यह कह ही रहा था कि कुछ गाँववाले बाँस की टोकरियाँ लेकर आते दिखाई दिए और उन्होंने नदी में कम पानी देखकर सभी केकड़ें और झींगे पकड़ लिये और गाँव लौटकर उनका भोजन किया। इस प्रकार केकड़े की बात सच साबित हुई कि जब तक जीवन है, तब तक उसे सुखपूर्वक जियो।
(- श्रुति)