जैनी (कहानी) : विक्टर ह्यूगो
Jenny (French Story in Hindi) : Victor Hugo
रात का समय था। झोंपड़ी साधारण थी, पर गर्म और आरामदेह थी।
शाम के धुंधलके में कमरे की चीजें धुंधली - सी नजर आ रही थीं और आग के जलते- बुझते कोयलों से ऊपर छत के लकड़ी के लट्टे लाल हो रहे थे। मछुआरे के मछली पकड़ने के जाल दीवार पर टंगे थे। कोने में बनी सादी - सी शैल्फ पर कुछ घरेलू बर्तन - भाडे चमक रहे थे। एक बड़े-से पलंग के अलावा, एक गद्दे को कुछ पुरानी बेंचों पर भी बिछाया गया था। इस पर पांच छोटे बच्चे ऐसे सो रहे थे जैसे घोंसले में चिड़िया के बच्चे । पलंग के किनारे, खिड़की की किनारी पर अपना माथा टिकाए बच्चों की मां बैठी थी। वह अकेली थी। केबिन के बाहर स्याह समुद्र तूफानी झाग की पट्टियों के साथ गरज और उफन रहा था। उसका पति समुद्र की ओर गया हुआ था ।
वह बचपन से ही मछुआरा रहा था। ऐसा कहा जा सकता है कि उसका जीवन विशाल जलधि के साथ रोज का ही संघर्ष था । उसे हर रोज बच्चों का पेट भरना था और हर रोज बारिश, आंधी या तूफान में उसकी नाव मछली पकड़ने निकलती थी। अपनी चार पाल की नाव को वह अकेले समुद्र में घुमाता रहता था। घर पर बैठी उसकी पत्नी पुराने पालों पर पैबंद लगाती, फटे हुए मछली पकड़ने के जालों को सीती रहती, कांटों को जांचती और उस छोटी-सी आग का ध्यान रखती जिसपर मछली का शोरबा उबल रहा होता। जैसे ही पांचों बच्चे सो जाते, वह घुटने के बल परवरदिगार से प्रार्थना करती कि लहरों और अंधेरे के साथ जूझने में वह उसके पति के साथ रहे। सचमुच ही उसके पति का जीवन कठिन था। जहां मछली मिलने की सबसे ज्यादा संभावना थी, वह जगह विशाल लहरों के बीच एक छोटा-सा बिन्दु भर होता, उसकी खुद की झोंपड़ी से बस कोई दुगुना बड़ा - एक छिपा हुआ, छलने वाला स्थान- उसे बदलते मरुस्थल जैसे सागर में कोहरे, तूफान और सर्दी की रात के बीच में ढूंढना पड़ता था- इकलौते अनुभव और कौशल से, लहरों और ज्वारों के ज्ञान से। जहां उफनती, अंधेरे की खाई पलटती और मचलती, पाल को बांधने वाली रस्सियां जोर लगाकर जैसे भय से सिसकतीं, लहरें उसके चारों ओर हरे अजगरों - सी गुजरतीं, ऐसे में बर्फीले समुद्र के बीच वह अपनी जैनी के बारे में सोचता। और, जैनी अपनी कुटिया में आंखों में आंसू लेकर उसके बारे में सोचती।
वह उसके बारे में सोच रही थी और प्रार्थना कर रही थी। समुद्री चिड़िया (सीगल) की कर्कश और मजाक उड़ाने जैसी पुकार उसे परेशान कर रही थी । चट्टान पर लहरों का गर्जन उसकी आत्मा को डरा रहा था। पर वह विचारों में खोई थी अपनी गरीबी के बारे में सोचती हुई। उनके नन्हें बच्चे गर्मी और सर्दी में नंगे पांव घूमते थे। उन्हें गेहूं की रोटी नसीब न थी । केवल बाजरे की रोटी मिलती थी । हे ईश्वर! तूफानी हवा ऐसे गरज रही थी जैसे लुहार की धौंकनी हो और समुद्री किनारा चोट पड़ने पर निहाई ( एहरन) की तरह गूंज रहा था। वह कांप गई और रोने लगी। बेचारी औरतें जिनके पति समुद्र में गए थे उनके लिए कितना भयानक था यह कहना, “मेरे नजदीकी लोग - पिता, पति, भाई, बेटे सब तूफान में हैं ! " लेकिन जैनी और भी ज्यादा दुखी थी। उसका पति अकेला था इस भयानक रात में बिना सहायता के, निपट अकेला । बेचारी मां! अभी सोचती है, “काश ! ये बड़े होते तो अपने पिता की मदद कर पाते। ” एक भोला सपना! भविष्य में जब वे तूफान में अपने पिता के साथ होंगे, वह आंसुओं से कहेगी, “काश! वे अभी भी बच्चे ही होते ! "
जैनी ने अपनी लालटेन और चोगा उठाए । “अब समय हो गया है, ” उसने अपने आप से कहा, “ देखना चाहिए कि वह आ रहे हैं या नहीं, और समुद्र पहले से शांत हुआ कि नहीं।” वह बाहर चली गई। बाहर कुछ भी दिखता नहीं था। क्षितिज पर मुश्किल से सफेदी की एक रेखा भर थी। बारिश हो रही थी- सुबह की ठंडी, स्याह बारिश | कुटिया की किसी भी खिड़की से रोशनी नहीं चमक रही थी।
तभी अचानक आसपास नजर दौड़ाने पर उसे एक टूटी-फूटी पुरानी झोंपड़ी नजर आई। उसमें आग या रोशनी का कोई चिन्ह नहीं दिख रहा था। तेज हवा में उसका दरवाजा झूल रहा था । कीड़ों की खाई उसकी दीवारें मुश्किल से ही छत को झेल पा रही थीं। हवा पीले, गंदे, सड़े हुए उसके छप्पर को हिलाए जा रही थी ।
“ठहरो”, उसने कहा, “मैं तो उस बेचारी विधवा को भूल ही गई जो उस रोज मेरे पति को अकेली और बीमार मिली थी। मुझे देखना चाहिए कि वह कैसी है ।"
उसने दरवाजा खटखटाया और सुनने लगी। किसी ने जवाब नहीं दिया। जैनी ठंडी समुद्री हवा से ठिठुरने लगी।
“वह बीमार है । और उसके बच्चे बेचारे ! उसके पास दो ही हैं। वह बहुत गरीब है और उसका पति नहीं है ।”
उसने फिर खटखटाया और पुकारा, “अरे, पड़ोसन !” लेकिन वह झोंपड़ी बिल्कुल शांत रही ।
“हे ईश्वर !” उसने कहा, “इतनी गहरी नींद सो रही है कि इसे उठाना ही कठिन हो रहा है!”
उसी क्षण दरवाजा अपने आप खुल गया। वह अंदर घुसी। उसके लालटेन ने अंदर का अंधेरा और शांत कमरा रौशन किया। तब उसने देखा कि छत से एक छलनी की तरह पानी चू रहा था। कमरे के कोने में एक डरावना शरीर पड़ा था- एक औरत नंगे पैरों, बिना देखती आंखों और बिना हिले-डुले पड़ी थी । उसकी ठंडी बांह फूस के गद्दे के नीचे लटक रही थी। वह मृत थी । किसी वक्त जो एक मजबूत और प्रसन्न मां रही होगी, अब केवल एक छाया थी। वह छाया जो संसार में गरीब आदमी के लम्बे संघर्ष के बाद बचती है।
जिस चारपाई पर मां लेटी थी, उसके पास ही दो नन्हें बच्चे- एक लड़का और एक लड़की एक पालने में सोए पड़े थे और सपनों में मुस्कुरा रहे थे।
उनकी मां ने, जब उसको लगा कि वह मरने वाली है, अपना चोगा बच्चों के पैरों पर डाल दिया था ताकि वे गर्म रहें। और वह खुद ठंडी हो गई थी।
वे अपने पुराने टुटहरे पालने में शांत सांसों और नन्हें चेहरों के साथ कितनी गहरी नींद में सो रहे थे ! ऐसा लग रहा था कि उन सोते अनाथ बच्चों को कुछ नहीं जगा सकता। बाहर बारिश बाढ़ की तरह बरसे जा रही थी। समुद्र चेतावनी की आवाजें निकाल रहा था। उस पुरानी टूटी हुई छत से, जिससे तूफानी हवा आ रही थी, एक पानी की बूंद उस मृत उस मृत चेहरे पर गिरी और एक आंसू की तरह बह गई ।
जैनी उस मृत औरत के घर में क्या कर रही थी ? वह अपने चोगे के नीचे क्या छुपाकर लाई थी ? उसका दिल क्यों इतना धड़क रहा था? वह इतने कांपते कदमों से क्यों जल्दी-जल्दी अपने झोंपड़े की तरफ आ रही थी, पीछे देखने की हिम्मत किए बिना ? उसने परदे के पीछे अपने पलंग में क्या छिपाया ? उसने क्या चुराया था ?
जब वह झोंपड़े में घुसी, चट्टानें सफेद होने लगी थीं। वह पलंग के बगल में रखी कुर्सी पर गिर पड़ी। वह बिल्कुल पीली हो रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह पछता रही हो । उसका माथा तकिये पर गिर गया और बीच-बीच में, अस्फुट शब्दों में, वह अपने-आप बड़बड़ा रही थी, जबकि कुटिया के बाहर शैतानी समुद्र कराह रहा था ।
“मेरा घरवाला बेचारा! हे प्रभु, वह क्या कहेगा? उसके ऊपर पहले ही इतनी मुसीबतें हैं। मैंने यह क्या किया है? पहले ही हमारे पास पांच बच्चे हैं! इनका पिता पिसता रहता है, पिसता रहता है । और उसके बाद, जैसे कि उसके पास कम परेशानी है, मैं उसे और परेशानियां दूं। क्या वह आ गया ? नहीं, कुछ नहीं है । मैंने गलती की है। वह मुझे पीटे भी तो भी गलत नहीं होगा। क्या यह वह है ? नहीं! ठीक है। दरवाजा ऐसे हिल रहा है जैसे कोई आ रहा हो। लेकिन नहीं । मुझे उसके आने की बात सोचकर भी डर लग रहा है।”
वह विचारों में खोई रही - सर्दी से ठिठुरती हुई, बाहरी सारी आवाजों पर ध्यान दिए बगैर । चाहे चीखती हुई जा रही समुद्री चिड़ियों की आवाज हो या फिर और हवा के रोष की अब वह इन समुद्र आवाजों को सुन नहीं रही थी।
तभी अचानक दरवाजा खुला। सुबह की रोशनी की एक पट्टी अंदर आई और मछुआरा अपने टपकते हुए जाल को लेकर घर की चौखट पर आ खड़ा हुआ। वह खुशी से हंसते हुए बोला, “लो, यह आ गई जल सेना ।”
“तुम !” जैनी बोली। उसने अपने पति को बांहों में भर लिया और अपना चेहरा उसकी खुरदरी जैकट पर टिका दिया ।
"लो, मैं आ गया !” उसने कहा और आग की रोशनी में उसका सौम्य और संतोषी चेहरा चमक उठा जिसे जैनी इतना चाहती थी।
“आज मेरी किस्मत खराब थी," वह बोला ।
“तुम्हें कैसा मौसम मिला?”
“भयंकर ।”
“ और मछलियां ? "
“ बिल्कुल बेकार। लेकिन कोई बात नहीं। फिर से तुम मेरे पास हो और मैं संतुष्ट हूं। आज मैंने कुछ नहीं पकड़ा, उल्टे मेरा जाल फट गया। आज तो हवा में ही शैतान था । एक पल तो तूफान में मुझे ऐसा लगा कि नाव डूब जाएगी, और उसका रस्सा टूट गया । लेकिन तुम इतने समय क्या करती रही?"
अंधेरे में जैनी को कंपकंपी छूट गई।
“मैं ?” उसने तनाव के साथ कहा, “ ओह, कुछ नहीं, वही रोज वाला। मैं सिल रही थी। साथ ही मुझे समुद्र की गर्जन सुनाई पड़ रहा था और मैं डर रही थी।”
"हां, सर्दी में यह बहुत बुरा होता है। पर अब कोई चिन्ता की बात नहीं । ”
फिर, उसने ऐसे कांपते हुए कहा जैसे कोई अपराध करने जा रही हो।
“सुनो!” उसने कहा, “हमारी पड़ोसन मर गई है। वह कल ही मरी होगी, जब तुम गए थे। उसके दो छोटे बच्चे हैं- एक का नाम विलियम है, दूसरे का मैडेलीन है। लड़का मुश्किल से चल पाता है और लड़की मुश्किल से बोल पाती है। वह बेचारी भली औरत बहुत जरूरतमंद थी ।"
मुछआरा गंभीर हो गया । “मुसीबत !” अपनी तूफान से भीगी टोपी एक कोने में फेंककर वह सिर खुजाते हुए बोला, “हमारे पास पहले ही पांच बच्चे हैं, ये सात हो गए । और इस बुरे मौसम में हमें पहले ही खाए बिना रहना पड़ रहा है। अब हम क्या करें ? हुंह, यह मेरी गलती तो है नहीं, यह तो ईश्वर की करनी है। यह सब मेरे लिए समझ से बाहर है, उसने इन नन्हों की मां क्यों छीन ली ? ऐसी चीजें समझना बहुत कठिन है। यह समझने के लिए तो बहुत विद्वान होना पड़ता है। कितने नन्हें छुटकू से बच्चे हैं! जैनी, जाओ उन्हें ले आओ। अगर वे जग गए होंगे तो अपनी मरी मां के पास अकेले पड़े डर रहे होंगे। हम उन्हें अपनों के साथ ही पाल लेंगे। वे हमारे पांचों के भाई-बहन होंगे। जब ईश्वर देखेगा कि हमें अपनों के अलावा इस छोटी लड़की और लड़के को भी खिलाना है, वह हमें ज्यादा मछली देगा। और मेरा क्या ? मैं पानी पी लूंगा । दोगुनी मेहनत कर लूंगा । बहुत हो गया। जाओ और उन्हें ले आओ ! अरे क्या बात है ? क्या तुम परेशान हो ? तुम आमतौर पर इतनी देर नहीं लगाती ?”
उसकी पत्नी ने परदा खोल दिया।
“देखो!” वह बोली ।
(अनुवाद : अंशुमाला गुप्ता)