जन्म दिवस का उपहार (असमिया बाल कहानी) : अनन्तदेव शर्मा/অনন্তদেৱ শৰ্মা
Janm Divas Ka Uphaar (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Anant Dev Sharma
साड़ी और ब्लाउज में रीता आज बहुत ही सुन्दर लग रही थी। इस पोशाक में वह बड़ी लड़की सी लगी। वह इधर से उधर नाचती - फुदकती घूम रही थी। कभी देखती कि वह इस पोशाक में कैसी लग रही है। फिर अपने आप हँसने लगती। वह आज मानो अपने को पहचान नहीं पा रही थी। इससे पहले रीता फ्राक और जाँघिया ही पहनती थी। स्कूल भी वह फ्राक पहन कर ही जाती थी । फ्राक पहनकर रीता को तितली की तरह उड़-उड़कर घूमने का मन करता है। इस अनजान भावना को लेकर ही उसे हँसी आ गयी।
आज रीता का जन्म दिवस है। रीता के माँ-बाप हर वर्ष यह दिन मनाते हैं। उसके लिए यह बड़ा ही आनन्द का दिन है। जन्म दिवस पर प्रति वर्ष उसके लिये नये-नये फ्राक पहनने को मिलते हैं। इस वर्ष रीता की माँ को कुछ नयापन सूझा। उसका यह देखने का मन हुआ कि साड़ी और ब्लाउज में रीता कैसी लगेगी। रीता को भी इसमें बड़ा आनन्द आया। यह दिन मानो उसके लिए प्यार पाने का दिन है। इस दिन नये-नये फ्राकों, जाँघियों के साथ-साथ नये चप्पल भी मिलते हैं। खाने-पीने की चीजों की तो बात कहनी ही नहीं है। उसकी सभी सखी-सहेलियाँ आकर उसे घेर लेती हैं। आनन्द मनाती हैं। इन सबको रीता की माँ बड़े लाड़-प्यार से खिलाती पिलाती हैं। विदा होते समय रीता को नाना प्रकार के उपहार तथा शुभाशीष मिलते हैं।
आज वह स्कूल के चौथे घंटे में ही छुट्टी लेकर आ गयी है। अपनी प्रिय दीदी उषा, साधना तथा प्रतिमा को वह दावत देती आयी थी। अपनी कक्षा की सभी लड़कियों को भी उसने बुलाया है। ये शाम को आएँगी। आज उसके लिए समय मानो आगे बढ़ता ही नहीं है। उसकी माँ और चाची रसोई बनाने में लगी हुई हैं। उसके पिताजी बैठक को सजाने और आवश्यक सामग्रियों को जुटाने में लगे हुए हैं।
शाम तक तीनों दीदियाँ आ गयीं। उसकी कक्षा की सहपाठिनें भी एक- एक कर प्रायः सभी आ गयीं। उनके साथ सारा समय आनन्द में बिताया और खाने-पीने के बाद सभी चली गयीं। इन सहेलियों से उसे बहुत - बहुत उपहार मिले। किसी ने कलम दिया तो किसी ने अँगूठी, किसी ने कीमती फ्राक के कपड़े दिये । इस प्रकार के उपहारों से उसकी मेज भर गयी।
साँझ होने को आई । उसकी सभी साथिनें चली गई थीं । अन्त में उसकी कक्षा की सबसे शान्त सुशील लड़की अणिमा आयी। अणिमा और रीता एक ही कक्षा में पढ़ती हैं, पर उनमें न बहुत दोस्ती और न दुश्मनी ही है। अणिमा की पोशाक भी साधारण है । चप्पल बहुत कम पहनती है। कक्षा में हो चाहे कक्षा के बाहर, वह बहुत कम बातें करती है। पढ़ने में तेज न होने पर भी बिलकुल खराब भी नहीं है। मध्यम है। रीता ठहरी बड़े घर की बेटी । इसी कारण रीता का अणिमा के साथ सम्पर्क कम है। हाँ, बड़े घर की बेटी होने का उसको कोई अभिमान नहीं है।
अणिमा अकेली आयी है। उसका घर रीता के घर से बहुत दूर नहीं है। अणिमा को आती देख, रीता आगे बढ़ गयी और उसे पकड़ कर एकदम अपने कमरे के भीतर ले गयीं। रीता की माँ भी उसे जानती है। माँ ने प्यार से उसे जन्म दिन की मिठाईयाँ खिलाई। उसने भी आनन्द से खाया।
विदाई के समय संकोच के साथ कागज से लपेटी हुई एक किताब अणिमा ने उसे दिया। उसने कहा, 'देखो, मैं एक गरीब घर की लड़की हूँ तुम्हारे जन्म दिन पर एक कीमती उपहार देना चाहिए था, लेकिन हमारे बारे में तो तुम जानती ही हो । मन होने पर भी धन नहीं है। इसी कारण एक साधारण सी वस्तु तुम्हारे लिए लाई हूँ । सहेलियों के बीच इसी संकोच के कारण मैं नहीं आ पाई। उन लोगों ने तो कितने ही कीमती उपहार दिये हैं, तुम्हें । मेरे लिए तो यह सम्भव नहीं। इसी कारण उनके साथ न आकर, मैं अब आई हूँ। फिर यह पुस्तक लाई हूँ । आशा है, तुम इसे प्यार से ग्रहण करोगी । इसे तुम मेरी प्यार की निशानी समझना । इतना कहती हुई रीता के हाथ में उसने वह किताब थमा दिया। रीता ने कहा, 'धत् अणिमा, तुम भी क्या कहती हो। उसने किताब के ऊपर के कवर की लपेटन खोल दिया। किताब का नाम था, 'किशोरों की कहानियाँ' एक विख्यात बाल- साहित्यकार की लिखी हुई। यह किताब पाकर रीता खुशी से कूदने लगी । कीमती उपहार पाकर वह इतना खुश नहीं थी, जितना इस किताब को पाकर हुई । रीता ने अणिमा को गले लगा लिया और कहा, 'अणिमा, मुझे कौन - सा उपहार चाहिए, तुम्हीं ने समझा । अणिमा जानती हो, किसी ने भी मुझे किताब का उपहार नहीं दिया, इसी कारण मैं आज बहुत खुश नहीं थी ! किताब पढ़ना मुझे कितना पसंद है, इसे तुम्हें मैं समझा नहीं सकती, अणिमा । तुम्हारी किताब पाने के बाद मुझे लगा कि असली उपहार मुझको अब मिला है। जानती हो अणिमा, लड़कियाँ प्रायः केवल कपड़े और अलंकार पहचानती हैं, किताब नहीं, ये लड़कियाँ अपने को सजाने में ही लगी रहती हैं, किताबों में छिपे ज्ञान से ये अनजान हैं। इसी कारण लड़कों की तुलना में हम लड़कियाँ आज भी पिछड़ी हुई हैं। खैर, तुमने आज मुझे एक अच्छा उपहार दिया, सबसे अच्छा। आज के उपहारों में तुम्हारा ही सबसे प्यारा है। इस कारण मैं तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद देती हूँ, अणिमा।'
रीता की बातें सुनकर अणिमा की आँखें छलछला आयीं।
(अनुवाद : चित्र महंत)